Anjam-e-mohabbat - 2 books and stories free download online pdf in Hindi

अंजामे मुहब्बत - 2



                                              PART 2
                                                            
                      हस्बे मामूल चिड़यो के बेतहाशा चहचहाने पर उसकी आंख खुल गई।अभी सूरज नहीं निकला था।वो फ्रैश हवा को महसूस करते हुए उठ गई ।नमाज़ और तिलावत से फ़ारिग होकर वो वॉक करने बाहर निकल आई ।वो एक कतार में लगे पेड़ो के बीच बनी छोटी सी सडक पर तेज़ तेज़ कदम उठाने लगी।इस तरफ किसी का आना-जाना न होने के बराबर था। वो अपने ध्यान में चलती हुई पानी के पास पहुंच गई थी।नहर के किनारे दरख्त लगे होने की वजह से सडक पर सूरज की किरनें छन छन कर पडती तो मंजर की खूबसूरती बढ जाती थी।वो लम्बे लम्बे सांस लेने लगी।खूबसूरत और बेतहाशा फूल निखरे निखरे से लग रहे थे। उसे ये सब चीजें बहुत दिलचस्प लगने लगी।
          नहर के ठंडे पानी में पांव डुबोते हुए उसे झुरझुरी सी आ गई लेकिन इस खौफ पर एडवेंचर छा गया था।पानी में डूबते उभरते लचकीली शाख़ो वाले फूल देख कर उसे "वडॅज़ वथॅ"की "डैफ़ोडल" याद आ गई जो उसे बहुत पसंद थी।
         "हाओ••••"किसी ने उसे कांधो से पकड़कर झटका दिया तो उसका दिल उछलकर हलक़ आ गया।वो इस मंजर में  इतना खोई हुई थी किसी के आने की खबर  तक नहीं हुई।शमा खिलखिलाती हुई अब उसके पास पांव पसार कर बैठ गई थी।
       डरा दिया ना,कहां गुम थीं बीबी तुम?"वो हंसते हुए पूछने लगी जबकि ईशा का  दिल अभी तक अपनी रूटीन से ज्यादा ही धड़क रहा था।
          "अगर मैं नहर के पानी में गिर जाती तो•••••?"वो नाराज़गी से शमा को देखते हुए बोली।  "यूंही गिर जातीं।मैंने कांधों से अच्छी तरह थाम लिया था तुम्हे•••••फिर कैसे गिर जाती।"
         वो लापरवाही से बोलती हुई फूलों के गुच्छे हाथों में लिए पांव टखनो पानी में डाल कर रिलेक्स होकर बैठ गई थी। "तुम मुझे बीबी न कहा करो।मेरा नाम लेकर बुला लिया करो।"ईशा ने पानी पर नज़रे जमाते हुए उसे टोक दिया।
          "ना  ना••••मैं क्यों नाम लूं तुम्हारा,तुम तो शहर वाली हो इसीलिए मैं तुम्हें बीबी कहती हूं।तुम कहती हो तो नहीं कहूंगी•••••क्या बाजी कह लिया करूं?" वो अपना परांदा झुलाते हुए इजाज़त तलब नज़रो से उसे देखते हुए बोली। "कह लिया  करो बाबा, तुम्हारे अब्बा ने कल तुम्हें कुछ कहा तो नहीं? " ईशा ध्यान बटाते हुए बोली। "हां•••••मेरे इतनी देर लगाने पर बहुत बोला,मैंने सब बाते सुन ली,फिर जब तुम्हारा बताया तो कहीं जाकर ठंडा हुआ। मैंने अब्बा को ये आस भी लगा दी है कि मैं शहरन बीबी से पढने लिखने जाउंगी।"वो हसते हुए बोली।
       "हां हां क्यो नहींं,तुम पढ लिया करो।मैं तुम्हे इंग्लिश भी पढना सिखाऊंगी । "ईशा फौरन  ही राज़ी हो गई।"तुम बहुत मासूम हो बाजी!"वो खिलखिलाते हुए  दोहरी हो गई तो ईशा उसके बेतहाशा हंसने पर हैरान रह गई।  "अगर मैं तुम्हारा नाम 
न लेती तो अब्बा कभी मुझे यहां न आने देता।तुम्हारे आने से मुझे आसानी हो गई है।"
         वो तफसील से बोली।तब तक सूरज की किरनें उनके चेहरों पर पड़ने लगी थीं।चमकता हुआ पानी देखते हुए ईशा फिर हैरान हुई थी वो इस शोख व चंचल लड़़की को समझ नहींं पा रही थी।
         "फिर तुम इधर क्या लेने आती हो?"पानी से अपने पांव बाहर निकालते हुए ईशा ने पूछ लिया।वो उठने की तैयारी करने लगी थी।"तुम पहले बताओ कि तुम्हारे अब्बा क्या करते हैं ओर यहां क्या लेने आए हैं?"वो बड़ी होशियारी से उसका सवाल गोल कर गई थी।
        मेरे डैडी तो आर्मी में हैं। वो थोड़े फ़ासले पर बंगले के साथ जो कुछ देर पहले बहुत फ़ौजी चौकी है,आजकल वहां ट्रेनिंग के लिए फौजी आए हुए हैं ।मगर तुम क्यों पूछ रही हो और तुमने मेरे सवाल का जवाब भी नहीं दिया?
       वो बोलते बोलते शमा को देखने लगी।वो बहुत ग़ौर से चौकी की तरफ देख रही थी।यूं जैसे सब फौजियों को देखकर ही छोडेगी।ईशा के लिए उसका ये अंदाज़ काफ़ी हैरत अंगेज  था, इसीलिए उकताकर कपडे झाड़ते हुए उठ खडी हुई।उसके उठ ने पर शमा का ध्यान टूट गया था।
    "ये फौजी लोग कैसे होते हैं बाजी!मेर मतलब  इनका मिज़ाज वगैरा?
      वो उठते हुए संजीदगी से बोली। ईशा उसे चौकी के बारे में बताकर पछता रही थी कि अब वो  सवाल कर करके उसका सर खाएगी।वो चलना शुरू हो गई थी।
   "मुझे क्या मालूम,मैं कोई उनके साथ थोड़ी रहती हूं।"ईशा ने पीछे मुड़कर उसे देखते  हुए कहा।
     वो अब शर्म से उंगलिया मरोड़ते हुए लाल चेहरा लिया उसके साथ चलने लगी थी।
 "अब तो तुम्हे पता चल ही गया होगा कि मैं रोजाना अब्बा  से बहाने बनाकर क्यों यहां आती हूं।सुबह सुबह फ़ौजी वर्ज़िश वगैरा करने इधर खेतो में  निकल आते हैं।उस दिन मैं सुबह सुबह ही अब्बा को चौधरी के खेत पर बुलाने गई थी।वो रात को घर नही आया था।चाची ने सवेरे ही मुझे उसकी तलाश में दौड़ा दिया था••••••खेतो से पहले
फौजियों की चौकी है ना, वहां इतना सोहना फौजी था वो•••••मैं क्या बताऊं,मैं तो 
देखती की देखती रह गई।जैसे किसी ने मन्तर पढ कर मुझे पत्थर का बना दिया हो।
है तो बेचारा पतला सा लेकिन वर्दी में बहुत मन-मोहना सा लग रहा था।मुझे एकदम ही बहुत शर्म आ गई।
     ऐसे दीदे फाड़कर तो पहले कभी किसी ने मुझे नहीं देखा था।मैं पास से गुज़रने लगी तो मेरी कलाई पकड ली।मेरी तो मानो जान ही निकल गई।वो सांस लेने को रूकी।फिर जैसे अपने आप को उसी मंजर का हिस्सा समझने लगी थी। ईशा ने लकड़ी के दरवाजे को देखा जहां उसे जाना था।
     "फिर क्या हुआ•••••जल्दी बताओ,मेरा घर आ गया है।" वो दिलचस्पी से शमा के चेहरे के तस्सुरात देखते हुए बोली।"जब मैंने अपना बाज़ू खींचा तो कम्बख्त आहिस्ता से हंस पड़ा।एसी प्यारी हंसी तुमने भी कभी पहले न सुनी होगी। बोला,तुम कहां से रास्ता भुलकर इधर आ गई हो शहाज़ादी?"
    मैं अपने अब्बा  को लेकर अभी आती हूं फिर बताउंगी।मैने धड़कते दिल को काबू में करते हुए कहा और डेरे की तरफ चल पड़ी।अब्बा मुझे वहां नहींं मिला।वो कुछ देर पहले ही दूसरे रास्ते से घर जा चुका था।मै वापस आ गई।
        अब रोजाना मेरा वहां जाने को दिल करता है।अब तो हमारी अच्छी खासी दोस्ती भी हो गई है।उसका नाम फहद है।वो किसी गांव का रहने वाला है।उसकी बेबे उसकी शादी के लिए बैचैन है।वो कहता है कि वापस जाकर अपनी बेबे को मेरे अब्बा  के पास भेजेगा।मैं तो जैसे किसी डोर में बंधी इधर चली आती हूं।"शमा बोलती चली गई।शायद वो पेट की हल्की थी।वो दरवाजे के करीब पहुंच चुकी थीं।
         "अच्छा फिर मिलेंगे,तुम अंदर आओ ना।"ईशा ने उसकी तरफ देखकर कहा।
      "नहीं जी अब चलती हूं।अच्छा रब राखा।" इतना कहते ही वो पलट गई।ईशा उसकी कमर को देखती ही रह गई,यहां तक के वो नज़रों से ओझल हो गई।
        "आज हमारा बेटा काफ़ी देर लगकर आया है?" पापा उसे देखते ही बोल उठे तो वो शर्मिन्दा सी हो गई।
    "बस डैडी!वो एक गांव की लडक़ी मिल गई थी इसलिए देर हो गई।"
      नाश्ता करने से लेकर शाम होने तक उस के जहन में शमा का ख्याल आता रहा।वो यकीनन फौजियों के नेचर से अंजान थी,जो थोडे दिन यहां गुज़ारकर अपना बोरिया बिस्तर समेटकर चले जाएंगे और उस अंजान लड़की को खबर तक नहीं होगी।उसे समझाने का इरादा दिल में बांधकर सुकून से सो गई थी।
          अगले चंद दिनों में शमा से उसकी अलग अलग वक़्त में मुलाकात होती रही थी।वो उसे समझाने में नाकाम रही थी।अपनी एक तरफ़ा मुहब्बत में  वो इस कद्र आगे निकल चुकी थी कि ईशा तो क्या उसका सख्त मिज़ाज अब्बा भी उसे इन राहों से वापस नही ला सकता था। वो इतने यकीन से फहद नाम के फौजी का ज़िक्र करती थी कि ईशा बेसाख्ता उसका यकीन कायम रहने की दुआ करने  लगती।
       इन थोडे से दिनो में  ही शमा बहुत सुंदर हो गई थी।ये शायद फहद की बातों का असर था।उसके चेहरे पर सबसे प्यारी चीज़ उस की लौंग थी जो धूप पड़ने पर उसके 
चमकते हुए चेहरे पर बहुत खुबसूरत नज़र आती थी।गोल मोल सा चेहरा इस पर मुस्कुराते होंट बहुत भले लगते थे।आंखों मैं जुगनू से चमकते रहते।कई बार वो शमा को उसके हाल पर छोड देने का इरादा करती लेकिन दोबारा मिलने पर नए सिरे से उसे समजाने लगती थी।उसे इस लडकी से हमदर्दी होने लगी थी।फहद की शक्ल अगरचे ईशा ने नहीं देखी थी लेकिन शमा के मुंह से उस का ज़िक्र सुन सुनकर अब उसे पुरा यकीन हो गया था कि वो उसे पहचान लेगी।
                                                    ○●○
          गर्मी  आज पहले से ज्यादा हो रही थी।क्यारी में लगे पौधे मुरझाने लगते तो ईशा  फौरन बाल्टी भर कर पानी क्यारी में डाल देती।घर के पास भी सड़क के किनारे आम के बहुत ज्यादा पेड़ लगे हुए थे।अब तो उन पर केरियां लगी साफ़ नज़र आती थीं।उसके मुंह में पानी भर आता।कॉलेज में आम के पेड़ से वो और उसकी दोस्त केरियां
उतारने के चक्कर में खुद को ज़ख्मी कर लेती थीं। माली दौड़ा चला आता तो वो फौरन कैन्टीन में छुप जाती थी।अब इन केरियों को देखकर बेइख्तियार इन्हें उतारने को जी चाहने लगा लेकिन एक तो वो यहां एसी हरकतें नही कर सकती थी,दूसरे वो पेड़ भी काफ़ी ऊंचे थे।लड़के उन पेड़ो पर चढ़ जाते और केरियां तोड़ तोड़ कर झोलियों में भर लेते मगर वो चाहते हुए भी उनसे केरियां नहीं मांगती थी।
              शमा काफ़ी दिनो से नहीं आई थी।उसका वक़्त अब काफ़ी बोर गुज़र रहा था।तभी उमर का फ़ोन आ गया।वो सुनते ही शिकायतों के दफ्तर खोलकर बैठ गई थी। 
              "कैसे भाई हो तुम,इतने उजाड़ बयाबान इलाके में मुझे भेजकर तुम दोनो खुद वहां यूनिवर्सिटी में मज़े ले रहे हो।और ये खिज़र कहां दफ़ान हो गया है।इतने दिनों में तुम पहली दफा फ़ोन कर रहे हो।यहां तो फ़ोन तक की सहूलत नहीं है।ये तो सेल फ़ोन का ही सहारा है कि•••••मैं बहुत बोर हो रही हूं।तुम दोनो पहली फुर्सत में जल्दी से यहां पहुंच जाओ।"
               वो सांस लेने को रुक गई।दूसरी तरफ उमर उसके नॉन स्टॉप बोलने पर हंस रहा था।
        "इलाका बैकवर्ड सही लेकिन तुम्हारी ज़बान काफ़ी तरक्की कर गई है।" वो ईशा को चिड़ाने के लिये बोला।
            "देखो मैं कोई फुज़ुल बात नहीं सुनूंगी ।तुम दोनों जल्दी से आ जाओ वरना मुझसे बुरा कोई नहीं होगा।" वो उंची आवाज़ में  बोली।
   "तुमसे बुरा पहले भी कोई नहीं है।लो अब खिज़र से बात करो।" वो बात करके ईशा का करारा सा जवाब सुने बगैर रफू चक्कर हो गया था।
   खिज़र को भी उसने अच्छा खासा डांटा था।और ये भी उसके जज़्बाती कचोके लगाने का असर था की आखिरकार उन्हें इतवार को आने का वादा करना ही पड़ा था।
आज वो बहुत खुश थी।इतने दिनो बाद लाड़ले भाईयों की आवाज़ सुनी थी।उसे उनके आने की अभी से खुशी हो रही थी।
                                                  ‍‍‍‌‌  ○●○
    सुबह वॉक पर जाना उसने नहीं छोडा था।नजाने कितने दिन यहां ठहरना था।अब जितने दिन वो यहां है कम से कम उतने दिन तो कुदरती नज़ारों का लुत्फ उठा ले।सुबह की इतनी ठंडी मीठी हवा भला और कहां मिलेगी।वो जाॅगिंग शूज़ पहनने के बजाए काली पट्टीयों वाली चप्पल पहन लेती थी। नहर में पांव डुबौना उसे अच्छा लगता था और चप्पल से उसका ये शौक आसानी से पुरा हो जाता था।आज वो रूटीन से ज्यादा ही लेट हो गई थी।मम्मा को बताते हुए वो घर से निकलकर सड़क पर आ गई।शमा की फिक्र करना उसन छोड़  दिया था।
    "उसकी किस्मत में  अगर फहद की मुहब्बत लिखी है तो उसे ज़रूर मिलेगी और अगर नहीं,तो कम से कम वो उसके लिए कुछ नहीं कर सकती थी।"
       वो पुल के उस पार देखते हुए आहिस्ता आहिस्ता दौड़ रही थी।आम के दरख्ततों के नीचे से गुज़रते हुए भी उसका ध्यान पुल के पार गांव की आबादी पर लगा हुआ था।अचानक कोई चीज़ बहुत ज़ोर से उसके सर पर आन लगी थी।वो बिदक कर पीछे हट गई।आंखें खौफ़ से बाहर निकलने को थीं।एसा महसूस हो रहा था जैसे कोई पथ्थर आं लगा हो। वो सर पर हाथ रखे इधर उधर देख रही थी लेकिन चिड़ियों के अलावा उसे वहां कोई परिंदा नज़र नहीं आया जो पथ्थर जैसी भारी चीज़ को उठा सकता हो। दिल पत्ते की तरह लरजने लगा था। दूर से कोई किसान साईकल पर सवार गुनगुनाता हुआ अपने ध्यान में मगन खेतों की तरफ जा रहा था।एकदम ही उसकी नज़र सड़क के किनारे लगे कच्चे आम पर पड गई।एक नज़र आम को देखते हुए उसने पैड़ की तरफ निगाह उठा कर देखा मगर वहां कोई नहीं था।तब उसे शक हुआ की ज़रूर भारी होने की वजह से खुद ही हवा के झोंके से गिर गया होगा।वो अंदाज़ा लगाते हुए कैरी उठाने के लिए आगे बढ़ गई लेकिन अपनी खुशी में वो दूर से आती उस काली कार को नहीं देख पाई जो उसकी तरफ आ रही थी।वो आम पकड़कर उसे हाथों में उछालते हुए खुशी से आगे बढ़ने को थी तब उसकी निगाह तेज़ रफ्तारी  से आती गाड़ी पर पड़  गई।घबराहट में  उसे इतना भी होश नहीं रहा था की एक तरफ हट जाती।वो कबूतर की तरह आंखे बंद किए गाड़ी के गुजरने का इन्तिज़ार करने लगी।उसकी आंखे तो तब खुली जब कार के ब्रेक बड़े ज़ोर से चरचराए थे।
       फिर गाड़ी का दरवाज़ा खुलते देख कर उस के रहे सहे औसान भी हवा हो गए थे। बड़ी बड़ी मूंछो वाले शख्स को देखकर उसका दिल चाहा काश वो परी होती और फुर ए उड़ जाती।उसके सामने फ्रंट सिट पर बैठा शख्स उसकी घबराहट पर खुश हो रहा था।
        "आप यहां सड़क के बीचों बिच क्या कर रही हैं मोहतरमा! कहीं खुदखुशी के इरादे से तो नहीं निकली थीं?" वो उसके सर पर पहोंच कर गुस्से से बोला तो ईशा ने अपनी रंगत उड़ती हुई महसूस की थी।टांगे अलग कांपने लगी थी।हाथ से छुट कर आम भी दूर जा गिरा था।उसने होंठो पर ज़बान फेरते हुए कनखियों से पहले आम की देखा फिर उस मूंछो वाले को।
      "मैं तो वॉक करने निकली थी।मुझे क्या मालूम के आपकी सवारी यहां से गुज़रेगी।"वो हिम्मत करते हुए बोली।
       "अकेले वॉक करने का मशवारा आपको किस बेवकूफ ने दिया है मोहतरमा!मै पूछ सकता हूं?"
    वो उस शख्स की मूंछो से डरी सहमी खड़ी थी।उसकी अच्छी ख़ासी शक्ल को घनी मूंछो ने कितना खौफनाक बना दिया था। तभी दुसरी तरफ से एक हैंडसम शख्स बाहर निकल आया फिर उसकी घबराहट को इनज्वाए करते हुए वो बिलकुल उसके सामने आन खड़ा हुआ था।आम अब उसके कदमों के पास पड़ा था।ईशा ने कनखियों से दोबारा आम को देखा।
          "मुझे इनसे डरना नहीं चाहिए।ये मुझे खा तो नहीं जाएंगें।करीब ही तो मेरा घर है।"उसने दिल में सोचा।
    मैं अकेली नहीं हूं।मेरा अल्लाह मेरे साथ है।"वो तेज़ी से बोलती चली गई।इस बात पर उन दोनो का बेसाख़्ता कहकहा निकल गया था।वो हैरानी से उन्हे देखने लगी।फिर उन्हे मज़ीद हंसने और बातें बनाने का मौका दिये बगैर वो वापस घर जाने के लिए मुड़ गई। 
         "ठहरिए।"
   वो काफ़ी दूर पहुंच गई थी जब उस लम्बे चौड़े शख्स ने उसे पुकारा था। वो उससे तिन चार कदमो के फासले पर पहुंच चुका था।ईशा रूक तो गई लेकिन पीछे मुड़ कर नहीं देखा।वो उसकी साइड से होता हुआ अब उसके सामने आन खड़ा  हुआ।ईशा ने अपने आप को उसके सामने किसी गुड़िया की तरह पाया। वो धीरे धीरे मुस्कुराते हुए पैंट की जेब में  हाथ डालने लगा।
      " ये लीजिए जिसके पीछे आप सुबह सुबह इतनी परेशान हो रही थीं।"वो आम हथेली पर रखकर उसकी तरफ बढ़ाते हुए शरारत से बोला।
   ईशा उसके हाथों में एक की जगह दो आम देखकर हैरान रह गई।जादूगरो की कहानियां उसके ज़हन में घुमने लगी थीं।
         "लीजिए,हैरान क्यो हो रही हैं?"वो अपना हाथ  उसकी तरफ बढाते हुए बोला।
आ जाओ यार! मूंछो वाले की झुंझलाइ हुई आवाज़ पर ईशा ने फौरन ही उसकी हथेली से आम उठा लिए।उसके यूं रिएक्ट करने पर वो शख्स फिर मुस्कुराया था लेकिन होंट खोले बगैर,आंखे अलबत्ता शरारत से भरपूर थीं। वो फौरन नज़रे चुराकर आगे बढने लगी।
       "अकेली न निकला  करें।वो एरिया अब इतना भी सेफ़ नहीं है।"
   वो उस जगह की तरफ इशारा करते हुए बोला जिसका थोड़ी देर पहेले ईशा ने बखौलाहट में ज़िक्र किया था।उसके कुछ बोलने से पहले ही वो लम्बे लम्बे कदम उठाता हुआ पलट गया।वो उसके कदमो को देखती ही रहा गई और फौरन घर वापस आ गई थी।गाड़ी मे उस शख्स का बाए बाए करता हाथ उसे दूर तक नज़र आया था।वो बहुत ज़्यादा डिस्टर्ब हो गई थी।
          बार बार शरारत भारी काली आंखे उसके ज़हन के परदे पर छा जाती थीं।वो लाख जान छुड़ाती अपनी सोचने की आदत की वजह से मजबूर थी।  खिज़र और उमर के आने की खुशी कहीं गुम हो गई थी।वो दुआ करते करते थक गई  थी की उस शख्स का दोबारा उससे सामना न हो।

                        .                         ●○●

             उमर और  खिज़र को सफारी बैग समेट अंदर  दाखिल होते देखकर उसने चीख मारी और भागकर उनसे लिपट गई।उसकी आंखो मे खुशी के मारे आंसू आ गए थे।
  "अरे ये अपनी मुस्कराहट रोना क्यों शुरू हो गई?"खिज़र शरारत से उसे ईशा के बजाए मुस्कुराहट कहता था।वो फौरन आंखे साफ़ करने लगी।
"तुम हर बात में मज़ाक ढ़ूँड लिया करो।"वो अपनी पुरानी रूटीन में आ गई।
 "मैं तो इस घर की बुलबुल हूं•••••क्यो दादू!"
वो दादू को देखकर फौरन ही उनके गले में बांहे डालते हुए बोली।उमर भी दादू का प्यार लेते हुए कमरे की तरफ बढ़ गया था। 
   "ये उमर कुछ  चुपचाप  सा लगता है।"खिज़र के कान घुसते हुए ईशा ने सरगोशी की थी
  "बस थोड़ा सब्र करो।खुद ही उगल देगा।खिज़र लापरवाही से बोला। 
  मम्मा जल्दी से किचन में घुस गई ।बेटों के आने की खुशी में उनकी पसंदीदा डिशिज़
बनाते हुए आज शायद उन्हें गर्मी  महसूस न हो रही थी।ईशा काफ़ी दिनों से वॉक करने भी नहीं गई थी।उस अंजाने शख्स से दोबारा मुलाकात होने का डर जो था।वो किसी भी क़ीमत पर अपने आप को कमज़ोर साबित करना नहीं चाहती थी।
      डैडी के पुछने पर उसने तबियत की खराबी का बहाना बना दिया था।घर मे अब हर वक़्त रौनक लगी रहती थी।उमर भी अपने पुराने मिज़ाज में लौट आया था।हॉस्टल की कोई टेंशन थी जिसे अब वो भूल चुका था।वो ईशा के लिए कैंवस पेपर्ज़ लाया था 
कलर्ज़ और ब्रश भी नए खरीद लिए थे।उसकी बोरियत दूर करने का ये सबसे अच्छा शौक था लेकिन फ़िलहाल उनकी कंपनी इन्ज्वाए कर रही थी।पेंटिंग का शौक तो उनके जाने के बाद भी पूरा हो सकता था।
      उमर के कहने पर उसने बिरयानी पकाने की तैयारी की थी।नाकाफ़ी सामान से अगरचे बिरयानी बनाना मुश्किल था लेकिन वो शुरू से हर तरह के हालात की आदी रही थी इसीलिए जो मौजूद था उसे ही काफ़ी मान लिया था।
     "बाजी कहां है पाई जान!"प्याज काटते हुए शमा की शर्माई हुई सी आवाज़ उसके कानो से टकरा गई थी। उसके पाई जान कहने पर जहां ईशा के होंट मुस्कुरा उठे,वहीं उमर का छत फाड़ देने वाला कहकहा उसे खुलकर हंसने पर मजबूर कर गया था।आंखो में आए पानी को दुपट्टे के पल्लू से साफ़ करते हुए वो किचन से बाहर निकल आई तो शमा को हैरत में डूबे हुए पाया
     उमर के कहकहे सुनकर खिज़र फौरन नहाकर निकल आया था।बालों को तौलिए से रगड़ता हुआ वो शमा के करीब आ गया था।
   "किससे मिलना है बीबी?"
     शमा एक के बाद दूसरे लड़के को देखकर मज़ीद हैरान हुई थी। हैरत से आंखे फाड़े वो कभी खिज़र को देखती तो कभी उमर को•••और कभी अपना परंदा हाथ पर लपेट ने लगती थी।
      "वो••••मुझे बाजी से मिलना है•••आप फ़ौजी है?"
   शमा अटकटे हुए बोली।अब ईशा को एंट्री देनी पड़ी।
    "हाए बाजी,आप कहां छुपकर बैठ गई थीं और ये कौन आ गए तुम्हारे घर में••••तुमने बताया नहीं की तुम्हारे घर में फ़ौजी भी रहते हैं।"
               ये कहते हुए वो फौरन ही ईशा के गले से आ लगी।उमर अब खिज़र को झूट  मूट का गुस्सा चेहरे पर सजाए यूं घूर रहा था जैसे कह रहा ही की मंहूस,तुम तो यहां से आउट हो जाओ।लेकिन वो भी अपने नाम का एक ही था।उससे पूरी जान पहचान किए बगैर वहां से टलने वाला नहीं था।
        "अरे नहीं,ये दोनो तो मेरे भाई हैं।ये बडा है मुझसे और ये छोटे वाला है।"ईशा खिज़र का इशारा पाकर फौरन ही उनकी तरफ़ इशारा करते हुए शमा को बताने लगी।
          "तुमने पहले तो कभी नहिं बताया और  ये अभी तुम्हारे साथ घूमने भी नही आए।" शमा हैरान होते हुए बोली।
         "ये अभी पढ़ते हैं।थोडे दिन  पहले ही यहां अपनी  छुट्टीयां गुजारने आए हैं। थोड़े  ही दिनो में वापस चले जाएंगे।"वो शमा को अपने कमरे में ले जाते हुए बोली।
     "अब आप भी होश में आ जाएं पाई जान।"उमर खिज़र का कांधा हिलाकर अंदर की तरफ लपका।उसे मालूम था की अभी उसका हाल शदीद क़िस्म का होने वाला है।फिर उस का कोई एतबार भी नही था,जो चीज़ हाथ मे लगती दे मारता।
         शमा आज काफ़ी पुरजोश थी।वो ईशा को अपने साथ घर ले जाने की  ज़िद कर थी लेकिन इतनी धूप में ईशा का बहार निकलने का कोई इरादा नहिं था और वैसे भी अभी उसे बिरयानी तैयार करनी थी इस लिए वो कल आने का वादा लेकर चली गई  थी। 
      "उफ़,क्या स्टाइल था ज़ालिम का।कसम से ये लड़की अगर यूनिवर्सिटी चली जाए तो यूनिवर्सिटी की सारी लड़कियों की छुट्टी कर देगी।"उमर क्यों पीछे रहता। 
    "देखो,अगर वो मेरि मुहब्बत में पहली बार मेरे घर आ गई तो तुम उसकी इतनी मट्टी पलीद तो न करो और यहां से निकलो,वरना इतनी शदीद गर्मी में खुद ही बिरयानी बनानी पड़ जाएगी।"
        उन्हें बाहर धकेलते हुए ईशा ने शमा की हिमायत की तो वो उसकी धमकी सुनते ही बाहर खिसक गए।
               शाम में उमर और खिज़र बाहर जाते हुए उसे भी अपने साथ खींचकर ले गए थे।उन्हें नहर के किनारे लगे बाग की तरफ़ ले जाते हुए ईशा ने शमा की मुहब्बत की दास्तान उनके सामने बयान कर दी थी जिस पर वो दोनों काफ़ी हैरान हुए थे।
      "तुम लोग फहद से मिलो तो सही,मैं इसी लिए तो तुम्हारा इस कद्र बेचैनी से इंतिजार कर रही थी।मैं देखना चाहती हूं के वो उसके साथ फ़ेंयर है या टाईम पास कर रहा है।"
         वो घास पर बैठते हुए हस्बे आदत नहर के पानी में पांव लटकाते हुए बोली।
         "तुं यहीं बैठो,हम अभी उससे मिलकर आते है।"उमर अपने बैचेनी भरे मिज़ाज की वजह से फौरन उठ खड़ा हुआ था।
              "तुम ही जाओ पाई जान!मैं तो यहीं इनज्वाए करूंगा।कितनी अच्छी फ़जा है।मुझे तो नींद आने लगी है।
         खिज़र काहिली से लेटते हुए बोला तो उमर गुस्से मेंं छावनी की तरफ़ चला गया।
         "तुमने देखा,कैसी जासूसी करने की आदत हो गई है उसकी••••वहां यूनिवर्सिटी में भी यूंही मेरे बारे में छानबीन करता फिरता है।"खिज़र दोनों बाज़ुओ का तकिया बनाते हुए बोला।
    
                                                                                       ( क्रमशः)
         

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