Anjam-e-mohabbat - 4 books and stories free download online pdf in Hindi

अंजामे मुहब्बत - 4


अगली सुबह काफ़ी हलचल थी। शाहमीर के अक्सर रिश्तेदार आ चुके थे।मर्दान खाना अलग होने के बावजूद रिश्तेदार लड़के ज़नान खाने के चक्कर लगा रहे थे।
शाहमीर से बड़ा अली मीर अरमान को अजीब सा महसूस हुआ थाल हर लड़की को यूं घूरता जैसे इससे पहले कोई लडकी देखी न हो।उसकी बेबाकी किसी की नज़रों से छुपी न रही थी।
शाहमीर ने उसे बताया था कि वो शुरू से ही अजीब तरह का मिज़ाज रखता था। ज़्यादा वक़्त डेरे पर गुज़ारता था। बुरे दोस्तों सोहबत ने उसकी सेहत पर भी बुरा असर डाला था।

उनका वो दिन काफ़ी मसरूफियत में गुज़रा था। यहां कोई मैरिज हॉल नहीं था। हवेली के करीब ही खुली जगह पर फंक्शन की तैयारी हो रही थी।
इतनी मसरूफियत से वक़्त निकाल कर शाहमीर उसे लिये हुए मेजर साहब के घर पहुंच गया था।

घर की पिछ्ली साइड पर उसे सुरमई आंचल लहराता हुआ नज़र आ गया जो अब नज़रों से ओझल हो चुका था। शाहमीर फौरन उसकी तरफ़ बढा। लड़कियों ओर खास तौर पर अपने इलाके की लड़कियों का वो खास तौर पर ध्यान रखता था।

शायद उन्हें देखकर उसे अपनी लाड़ली बहन का ख्याल आ जाता था।वो उनकी इज़्ज़त के बारे में बहुत टची था। उसके पीछे चलते हुए सफ़ेदे के दरख्तों के बिच खड़ी ईशा को देखकर वो फौरन आगे बढ़ा था। वो कैंवस पर आम पेड़ बनाने में इस कद्र मसरूफ थी की उनके आने की उसे कोई खबर तक न हुई थी।
"हैलो।" शाहमीर के इशारे पर अरमान उस के करीब जाकर बोला तो वो उछल पड़ी लेकिन उसे देखकर फौरन दुपट्टा सर पर जमा लिया।

"अस्सलाम अलैकुम।"वो ब्रश कलर प्लेट में रखते हुए बोली।
"वालैकुम अस्सलाम।" शाहमीर और अरमान के मुंह से एक साथ निकल गया।
"आपका पांव तो ठीक है ना अब? उस दिन कोई चोट वगैरा तो नहीं आई थी?"
अरमान ने बात आगे बढ़ाने के लिये पूछ लिया।

शाहमीर पेंटिंग को यूं गौर से देखने लगा था जैसे वो यहां इसी काम के लिये बुलाया गया हो।

"ठीक हूं ••• थैंकयू । आप ज़रूर उमर से मिलने आए होंगे? " वो खुश अखलाकी से बोली। आज उसके लहजे में उतरा एतमाद शाहमीर ने भी महसूस कर लिया था।
"जी हां, उसी से मिलने आया हूं। इस वक़्त घर पर होगा ना••••" अरमान फौरन बोला तो शाहमीर ने बडी मुश्किल से अपनी हंसी का गला घोंटा था।

"वो तो सुबह ही युनिवर्सिटी के लिये निकल गया था। खिज़र भी उसके साथ चला गया, इसीलिए तो मैं यहां आकर अपना काम कर रही हूं। मैंने सोचा की आपको मेरे घर से दूर नहर किनारे जाने पर एतराज था, सो आज घर के पास ये जगह ढूंड ली•••• काफ़ी पुरसुकून जगह है ये भी।" वो एतमाद से बोलती हुई अरमान को हैरान कर रही थी।
कहां तो घबराहट में अपनी आंखे बंद कर लेना और कहां यूं उसे बोलने का मौका दिए बगैर पटर पटर बोलते चले जाना।

"आप के पापा तो यकीनन घर में ही होंगे?"अब शाहमीर काम की बात की तरफ़ आ गया।
"डैडी भी घर में नहीं हैं। वो मायुसी से बोली फिर उनके पीछे कुछ देखते हुए कहने लगी।
"लीजिए, वो वापस घर की तरफ़ जा रहे हैं। आपको कोई ज़रूरी काम है उनसे?"
वो डैडी को घर की तरफ़ जाते देख कर फौरन बोली तो शाहमीर की जान में जान आई।

"इतना कोई खास काम भी नहीं है। चलो अरमान ।" शाहमीर ने चलने के लिये कदम बढ़ा दिए तो अरमान ने दिल ही दिल में उसे बातें सुना डाली ।

"इतना अच्छा मौका था•••बेवकूफ कहीं का। खुद ही चला जाता उनके पास।"वो मजबूरन उस के पीछे दिया फिर कुछ याद आने पर ईशा की तरफ़ मुड़ गया।

"हम आप को इंवाइट करने आए हैं। आप ज़रूर आइएगा, हमें इन्तिज़ार रहेगा। उमर तो बगैर बताए चला गया,वरना वो भी बहुत इन्ज्वाए(enjoy) करता।"

कहते हुए लम्बे लम्बे कदम उठाता हुआ वो शाहमीर के पास पहुंच गया तो ईशा ने गहरा सांस खींचते हुए नासमझी से उस कमर को घूरा।
शाहमीर अभी उसके पास से गुजर ही रहा था की उसने कलर ओर ब्रश समेटने शुरू कर दिये थे। मगरिब की अज़ान होने वाली थी।
परिंदो की चूं चूं बढ़ गई थी। सारा सामान समेटकर वो घर की तरफ़ आ गई । वो लोग शायद अंदर सहन में जा बैठे थे। लकडी का दरवाजा धकेलते हुए वो अंदर दाख़िल होने ही वाली थी जब दूसरी तरफ़ से आते अरमान से ज़ोरदार टक्कर हो गई । ब्रश अगरचे साफ़ किया हुआ था लेकिन अभी गिला था।
मामूली से कलर भी उसकी शर्ट पर डिज़ाइन बना गए थे। ईशा शर्मिन्दा सी निचे गिरी चीज़े उठाने लगी।

"सोरी••••••मुझे देखकर चलना चाहिए था। असल में मेरा ध्यान शाहमीर की तरफ़ था। अरमान निचे गिरा ब्रश उठाते हुए एक्सक्यूज़ कर रहा था।

"आप अपनी फ़ैमिली को ज़रूर साथ में लाइएगा अंकल! इट विल बि ए ग्रेट ऑनर फ़ॉर दिस(this) ।"अदब से बोलता शाहमीर डैडी से हाथ मिलाकर पलट गया।

शर्मिन्दा सी ईशा अरमान के पास से गुज़रती हुई अंदर की तरफ़ बढ़ गई। वो अपनी मुस्कुराहट दबाते हुए बाहर निकल गया।

"आ गई ईशा बेटा।" मेजर साहब की आवाज़ आई।

"ईशा नाम है भाई मेरे, चलो अब घर की राह लो।" शाहमीर शरारत से बोला तो वो सतपटया हुआ उसके पीछे चल दिया।

"ये तुम हर जगह जल्दी क्यों मचा देते हो। उधर भी कबाब में हड्डी बने पास खड़े रहे? जाते जाते मुझे बुलाना ज़रूरी था।" वो उसके कदमों से कदम मिलाते हुए बोला।

"तुम्हें होश में भी तो मैने ही लाना होता है ना। लडक़ी के अब्बा सामने हो और तुम इश्क़ बघार रहे हो तो सोचो कितना अच्छा सीन होगा•••• फिर उस सीन का ड्रॉप भी बहुत अच्छा हो और दिलचस्प सा•••खास तौर पर मेरे प्यारे! जब तम्हारी अब्बा जान के हाथो पिटाई हो रही हो।"

शाहमीर खुशदिली से बोला तो अरमान ने उसकी कमर पर मुक्का जड़ दिया।

"हाए मार दिया ज़ालिम। इतना सख्त दिल तू कब से हो गया?" शाहमीर ने तकलीफ़ की एक्टिंग करते हुए कहा।

"जब से तम्हारी संगते खास में आ गया हूं।" अरमान ने फ़ौरन जवाब दिया था। फिर वो दोनो कहकहा लगाकर हंस दीए ।

(क्रमशः)




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