दास्तान-ए-अश्क - 23 SABIRKHAN द्वारा क्लासिक कहानियां में हिंदी पीडीएफ

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दास्तान-ए-अश्क - 23








मौत ही इंसान की दुश्मन नहीं
ज़िंदगी भी जान लेकर जाएगी
- 'जोश' मलासियानी
................... ....

बहुत ही अजीब बात थी उसको धिन्न हो उठी थी पुरुष जात से..!
एक कांच के जैसा होता है स्त्री का ह्रदय..! और हमेशा दिमाग से सोचने वाला पुरुष उसे ठेस पहुंचाने में कोई कसर नहीं छोड़ता..!
उसके साथ भी वैसा ही हुआ था अपनी नाबालिक उम्र में दूसरे बच्चे के बारे में सोचना भी जानबूझकर जिंदगी को दाव पर लगाने जैसा था..!
सब आदमी ही तय करता है ..! औरत को कब मां बनना है ? और कब नहीं..? नफरत थी उसे ऐसे इंसानों से जो औरत को कुछ भी नहीं समझते थे..!
इस समय वह अपना पूरा ध्यान अपने बीमार बच्चे पर रखना चाहती थी, लेकिन उसकी मर्जी के खिलाफ उसका पति फिर उसे मां बना देता है !
गुजरते समय के साथ धीरे धीरे नन्ना बड़ा होता है..!
वक्त रेत की तरह सरकता है..!
अब वो खुद को विपरीत परिस्थितियों के सामने चट्टान की तरह मजबूत कर लेती है!
उसकी परवरिश कैसे हुई थी की सब्र करना उसकी आदत बन चुकी थी !
जिंदगी में फिर एक बार करवट ली फिर एक नन्हीं सी जान उसके वजूद के साथ पलने लगी थी..!
अपने शरीर का एक अंश..! अपनी जिंदगी का एक खूबसूरत हिस्सा...!
अपना खून अपनी ही परछाई बनकर उसके सामने फिर एक बार नन्हे से रूप में उसकी जिंदगी में आया..!
एक छोटी सी खूबसूरत परी के रूप में..!
वही आंखें वहीं होट और वही गोल चेहरे की छोटी सी झलक..!
जो भी उसके गोरे बदन को देखता था बस देखता ही रह जाता था!
जिंदगी में आए दो मासूम फूलों ने उसके माथे के बोजको कुछ हद तक हल्का कर दिया था! फिर से जीने की उम्मीद जगी थी! मानो जिंदगी में धीरे धीरे बहार लौट रही थी!
अब उसका सारा ध्यान अपने बच्चों में था! उनका लालन-पालन करना! अच्छी परवरिश करके एक नेक इंसान बनाना उसका सिर्फ एकमात्र मकसद बन चुका था!
वह अंतः करण से यही चाहती थी कि अपने बच्चों को कभी भी किसी के सामने मोहताज ना होना पड़े!
समाज में वह अपनी जिंदगी सर उठा कर जियें..! कभी किसी बात को लेकर समझौता ना करना पड़े..! हो अपने सपनों को सच होते देखकर जियें..!
जो मनोकामनाएं उसकी अधूरी रह गई वह सारी अपने बच्चों की लाइफ में पूरा होते हैं वह देखें!
दो बच्चों के बाद भी वो जरा भी नहीं बदला था
कोई जिम्मेदारी नहीं ..!
कोई अपने बच्चों के प्रति किसी चीज का फिक्र नहीं..! लेकिन वह मां थी !
उसे पता था कि कब किस समय उसे उसके बच्चों को क्या चाहिए..? और गनीमत थी कि मां और बाबूजी उसके खिलाफ जाते..!
बच्चे धीरे-धीरे जिंदगी के साथ कदम से कदम मिलाकर चल रहे थे !
स्कूल जाने लायक हो गए थे..!
जिंदगी देखने में तो बहुत नॉर्मल चल रही थी !
फिरभी ना जाने क्यों उसे अंदर ही अंदर ऐसा बस महसूस हो रहा था कि ये खामोशी तूफान आने से पहले की है !
जब अपने बच्चों के मासूम चेहरे को देखती अपना हर दर्द हर गम भूल जाती ! सब अपने तरीके से अपनी जिंदगी भी जी रहे थे !उसका पति अपने दोस्तों में मस्त था ..!
पापा जी अपनी राजनीति में और जेठ जेठानी आज भी बाबाओं के पास बच्चे की उम्मीद से घूमते..! अचानक वही हुआ जिसका बड़े समय से उसके मन में डर था! एक ऐसा तूफान आया जिसने फिर से उसके जिंदगी बदल दी !
पापा जी नहीं रहे..!
अच्छे भले खाना खाकर सोए लेकिन सुबह उठे ही नहीं!
डॉक्टर को दिखाया तो उन्होंने कहा ! "उनको दिल का दौरा पड़ा जो उन्हें साथ ही ले गया..!"
उसे पापा जी का बहुत सहारा था! पापा जी के जाने के बाद मानो वो अनाथ हो गई..! उस घर में पापा जी चाहे कम बोलते थे लेकिन घर में उनका दबदबा बहुत था! जैसे भी घर में आते सब अपने कमरों में दुबक जाते थे ..!
लेकिन पापा जी के जाते ही सब शेर हो गए सब अपनी मनमानी करने लगे !
बड़े जतन से दौलत जमा की थी बहुत जायदाद बनाई थी! लेकिन उनके बेटों को सब किया धरा मिल गया!

कहते हैं जो जितना ताकतवर होता है वह दूसरों को उतना ही दबाता है..! ऐसा ही उसके घर में हो रहा था..!
पापा जी के जाने के बाद बड़े छत के ऊपर सारी जिम्मेदारी आ गई ..!
लेकिन बजाए अपने भाइयों को समझाने और एकजुट रखने के उसने अपनी जेबे भरनी शुरू कर दी ..!
मम्मी सब कुछ देखते हुए भी खामोश थी! लेकिन सबसे ज्यादा मुश्किल में तो वो थी उसका पति तो पहले ही उसके प्रति लापरवाह था ! एक पापा जी थे जो उसका ध्यान रखते थे..! अपनी बेटी की तरह उसके बच्चों की परवरिश करने के लिए उसको कभी कोई कमी नहीं आने देते थे..! लेकिन उनके जाने के बाद उसके जेठ ने उसे पाई पाई के लिए मोहताज करना शुरू कर दिया..!
बच्चे चाहे अभी स्कूल के शुरुआती दिनों में थे लेकिन फिर भी अपनी छोटी-छोटी जरूरतों के लिए उसे मोहताज कर दिया गया..!

उसने सोचा आज वह अपने पति से इस बारे में बात करेगी !
"वह अपने बच्चों का जिम्मा उठाए अगर वह उन्हें इस दुनिया में लाया है तो उन्हें पालने की भी जिम्मेदारी समझे!
पर वह आदमी पता नहीं किस मिट्टी का बना हुआ था..? उसे अपने परिवार की कोई परवाह ही नहीं थी..!
जब तक उसका सवाल था तो वह अपने पेट के जन्मे हुए को कैसे छोड़ देती! हार कर उसने नौकरी करने का फैसला किया! पढ़ी-लिखी तो बहुत ही बैंक के पेपर भी उसने दे रखे थे! एक दिन चुपचाप उसने नौकरी के लिए आवेदन दे दिया!
अच्छी किस्मत से उसे इंटरव्यू कॉल भी आ गया! जैसे ही उसके जेठ को इस बात का पता चला! उसने घर में बवाल मचा दिया! अच्छे घरकी बहू बेटियां घर से बाहर जाकर नौकरी नहीं करती.. तूने किस को पुछकर बाहर जाकर काम करने का फेसला कर लिया..?
घर के सब काम कर तुझे किसी चीज की कमी नहीं आने दूंगा!"
"भैया आपकी सोच बहुत छोटी है एक औरत घर से बाहर कमाने के लिए निकलती है..! वह कोई बुरी बात नहीं है! बुरा है बदचलन हो ना..! अपने घर की बहू बेटी पर बुरी नजर डालना..! अगर आप मुझे अपनी बहन और बेटी के समान समझते तो मुझे कभी भी घर से बाहर जाकर नौकरी करने की जरूरत महसूस ना होती..! लेकिन आप हमेशा मुझ पर बुरी नियत रखते रहे..! खैर मैं मर जाऊंगी कभी आपके इरादों को कामयाब नहीं होने दूंगी..!"
"ज्यादा बकवास मत कर..! देखता हूं मैं तु कैसे नौकरी करती है..? अभी तेरे मायके और तेरे मां भाइयों को बुला कर बताता हूं कि तू हमारे कहने में नहीं है..! और अपनी मनमर्जी से घर से बाहर जाना चाहती है..! मुझे पूरा यकीन है कि वह लोग भी मेरा ही साथ देंगे, तेरा नहीं..!अभी समय है तु मेरी बात मान ले..! तुझे किसी चीज की कोई कमी नहीं आने दूंगा..!"
" भैया.. अगर आपको बच्चा ही चाहिए तो आप नन्ने को गोद ले लीजिए ..! वह भी तो आप ही का बेटा है..! आपके भाई का खून..!"
"नहीं मुझे अपना बच्चा चाहिए..! खुद का अपना खून..! बोल देगी मुझे..? मेरा कहा मान ले..! तेरे दोनों बच्चों को बहुत अच्छी परवरिश दूंगा..! तेरा वो नालाइक पति किसी काम का नहीं है..! उसका तो बाहर ही बहुत चक्कर चल रहा है..! कयू तू उसके पीछे अपनी जिंदगी खराब कर रही है..?"
"भैया मैंने एक बार पहले भी आपको मना किया है..! आप ऐसी बातें करके अपनी बची कुची इज्जत भी मेरी नजरों में गिरा रहे हैं..! मेरी ना सही कम से कम अपनी और भाभी की इज्जत का तो ख्याल करें..? और सुन ले मैं नौकरी करूंगी..! और मेहनत से अपने बच्चे पालूंगी..!
नहीं चाहिए मुझे आप की जायदाद.. और पैसा..!
"हां.. हां खूब समझता हूं पैसा तो खूब बना ही सकती है..!"
"भैया बंद करें अपनी बकवास..!"
"ये बकवास तब सारी दुनिया करेगी..! बस तू बाहर निकल कर तो देख एक बार..! मैं सारे समाज में तुझे चरित्रहीन साबित कर दूंगा..! मजबूर कर दूंगा तुझे अपने कदमों में लेटने के लिए..! मैं भी देखता हूं तु कैसे नौकरी करती है घर से बाहर जाकर..? आज तक मैं चुप था कि तू एक दिन मेरा कहा मानेगी..! पर लगता है कि अब मुझे उंगली टेढ़ी करनी ही पड़ेगी.! तुझे और तेरे बच्चों को अगर पाई पाई के लिए मोहताज ना कर दिया तो मेरा नाम नहीं..!"
क्रोध से जेठका चेहरा पूरी तरह लाल हो गया था!
उसकी बातें सुनकर वह सहम गई थी ! एक चरित्र ही तो हैं उसके पास..! अगर इस आदमी ने उस पर भी दाग लगा दिया तो वह कहां जाएगी..? उसके पापा जी क्या सोचेंगे उसके बारे में ..? वह तो उठ बैठ भी नहीं सकते..! ये सदमा कैसे सहेंगे..? हे भगवान क्या करूं मैं..? कहां जाऊं..? अभी और कितने दुख लिखे हैं मेरे हिस्से में..? कब तक बर्दाश्त करना पड़ेगा मुझे..? मेरे दुखों की कोई सीमा है..? क्यों मेरे साथ ऐसा कर रहे हो और दीन दयालु दुख भंजन..?"
उसके आक्रंद से आंखें भीग गई थी!
उसे कोई रास्ता नजर नहीं आ रहा था ..!
क्या करें और क्या ना करें ..? एक मन होता कि चुपचाप नौकरी कर ले..! लेकिन दूसरे ही पल डर लगता अगर जेठजी ने कुछ ऐसा वैसा कह दिया..? उसके पापा को कुछ गलत बता दिया..? तो कहीं वो ईस सदमे से चल ही ना बसें..! एक पिता को तो वह खो चुकी थी..! लेकिन दूसरे पिता को वह खोना नहीं चाहती..! उसकी भावनाएं ही उसकी सबसे बड़ी कमजोरी बन चुकी थी..!
ऐसे में एक दिन अचानक उसकी बड़ी दीदी आती है ! उन्हें देखकर उसे ऐसा महसूस होता है कि शायद उनसे बात करके उसकी किसी मुश्किल का हल निकल आए..!
पर जितना हम सोचते हैं ऐसा होता नहीं है हमारी सोची-समझी धारणाएं धरी की धरी ही रह जाती है..!
यहीं पर उसने अपने जीवन की सबसे बड़ी गलती कर जाती है!
दीदी उसकी बात सुनकर उल्टा उस पर ही चिल्लाने लगती है!
ना जाने क्या का इल्जाम उस पर थोप देती है..! पापा के जाने के बाद उसकी नजर पापा की जायदाद पर है..! क्योंकि पापा की जायदाद का वारिस तो उसके पास है ..! वह कहती हैं कि वो ऐसा नहीं होने देंगी !
वो अपने भाइयों में बराबर का बंटवारा करवाएंगी.!
एक तरफ उसका जेठ उसके चरित्र पर उंगली उठाता है और दूसरी तरफ उसकी ननद उसकी नियत पर..!
जब अपने ही उसके दुश्मन बने थे तो गैरों की तो बात ही क्या करनी..?
अपने मतलब के लिए लोग खून के रिश्ते भी भुला देते हैं..! उसने अपनी आंखों से देखा था..!

.......
दास्तान एक ऐसी नारी की कहानी है जिसने दुख सहते सहते अपने आप को पत्थर बना लिया अब वह ऐसी हो गई है कि आंसू तो निकल जाते हैं मगर अब वह सिसकती नहीं है..!
मेरी दास्तान को पढ़ने वाला हर एक परिवार से मेरी गुजारिश है कि अपनी बेशकीमती राय जरूर दें.. क्या दास्तान-ए-अश्क की नायिका आपके दिलों को छू गई है..? आपके जवाबों का इंतजार रहेगा