नया सवेरा - (सवेरे का सूरज) - 6 Yashvant Kothari द्वारा फिक्शन कहानी में हिंदी पीडीएफ

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नया सवेरा - (सवेरे का सूरज) - 6

नया सवेरा - (सवेरे का सूरज)

यशवन्त कोठारी

(6)

अभिमन्यु और कमला जब गांव पहुंचे तो रात गहरा चुकी थी। गॉंव सुनसान और नीरव था, अपने घर तक पहुचने में अभिमन्यु ने शीघ्रता बरती। घर के बाहर ही उसे अकबर मिल गया।

‘‘ कैसे हैं बाबूजी। ’’ अभिमन्यु ने अधीरता से पूछा।

‘‘ अब ठीक है। वे सो रहे हैं। मां उनके सिरहाने बैठी हैं। ’’

कमला तुरन्त भीतर चली गयी। वो मां से लिपटकर रो पड़ी। अभिमन्यु भी अन्दर आया। मॉं के चरण छुए। बाबूजी के बारे में पूछने लगा।

‘‘ क्या हुआ था। ’’

‘‘ अब बुढ़ापा सबसे बड़ी बीमारी है बेटा। ’’ मां ने रोते हुए कहा।

‘‘ कुछ दिन बुखार रहा। वैधजी की दवा दी । फायदा नहीं हुआ। एक रोज बेहोश हो गये। फिर होश आया तो बॉंया हिस्सा काम नहीं करता है। ’’

‘‘ अभिमन्यु, बापू के लकवा हो गया है। ’’ अकबर ने हकीकत बताई।

‘‘ मां अब मैं तुम दोनों को यहां नहीं रहने दूंगा। कल सुबह ही बापू को लेकर राजपुर चलेंगे। वहीं अच्छा इलाज भी हो सकेगां ’’

‘‘ जैसा तुम ठीक समझो बेटा। अब हमारे दिन ही कितने हैं काश तुम शादी कर लेते तो कुछ चैन मिलता। ’’

तभी अभिमन्यु के बापू ने ऑंखें खोली। पहचानने की कोशिश की।

अभिमन्यु ने चरण छुए। वह बापू के शरीर पर मालिश करने लगा। मां व कमला घर के काम में लग गयी।

अकबर चला गया। अभिमन्यु सूने कमरे में अकेले चुपचाप विचार करने लगा। उसे याद आया हाड़ तोड़ मेहनत कर घर चलाने वाला बापू, आज कैसी असहाय स्थिति में है। उसे अपने घर परिवार के अभाव, भूख, बेकारी के दिन भी याद आये। उसका मन उदास हो गया। उसे याद आया बचपन में नंगे पांव स्कूल जाना। एक ही कुर्ते को रात में धोकर सुबह पहन कर परीक्षा देने जाना। इस गांव से कितनी यादें जुड़ी हुई है। बचपन और जवानी की यादें। जिन्दगी की कठोर यादें अभावों की यादें। भूख और प्यास की यादें। अकाल की यादें। उसे फिर याद आया किस तरह परीक्षा के दिनों में भी उसने अकबर का कुर्ता पहन कर परीक्षा दी थी, क्योंकि उसका इकलौता कुर्ता नदी में बह गया था। और तुरन्त दूसरा कुर्ता बनवाने को पैसे नहीं थे। इसी गांव के पोस्ट आफिस के बाहर बैठकर उसने लोगों के पत्र और तार लिखे थे। कभी निःशुल्क और कभी पैसे लेकर ताकि अपनी पढ़ाई जारी रख सके। उसकी आंखें भर आई। बापू ने एकाध बार तो उसके स्कूल की फीस मां के गहने बेचकर भरी थी। समय ने सब धो दिया। बापू ने तभी पानी मांगा। अभिमन्यु तन्द्रा से जागा। बापू को पानी पिलाया। खुद भी पिया। रात काफी बीत गयी थी। अभिमन्यु वहीं बापू के पैंताने सो रहा।

सुबह अभिमन्यु, मां, कमला और बापू को लेकर राजपुर चला आया। वहां पर सर्वप्रथम अभिमन्यु ने बापू को डाक्टर साहब को दिखाया और दवा शुरू हुई। धीरे धीरे बापू की तबियत सम्भलने लगी। विद्यालय के अध्यापक भी अभिमन्यु के घर पर कुशलक्षेम पूछने आये। छात्रावास की व्यवस्था अभिमन्यु ने पुनः सम्भाल ली ।

रंजन की नशीली दवा लेने की आदत छूट चुकी थी। कमजोर बच्चों को लिम्बाराम व अन्य होशियार छात्र पढ़ा रहे थे। वृक्षारोपण तथा मैदान का काम ठीक था। छात्र सांस्कृतिक कार्यक्रमों की तैयारी में व्यस्त थे। कुछ छात्र मिलकर एक पत्रिका भी निकालना चाहते थे। शायद हस्तलिखित भित्ति पत्रिका की योजना थी।

इधर प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी भी अभिमन्यु रात को पुनः करने लगा। उसे अपने सफल होने की उम्मीद भी थी। प्रारम्भिक लिखित परीक्षा वह पास कर चुका था। अभी अन्तिम लिखित परीक्षा होने में तीन माह थे वह बापू की बीमारी के कारण कुछ परेशान था। मगर मां व कमला सब सम्भाल रही थी। यदा कदा मिसेज प्रतिभा तथा अन्ना भी आ जाती थी। बापू की तबियत संभल रही थी अब वे खाट पर बैठ सकते थे। बोलने लग गये थे।

अभिमन्यु ने मां से कहा- ‘‘ मॉं मुझे विद्यालय के सांस्कृतिक कार्यक्रमों में कुछ समय ज्यादा देना पड़ सकता है। ’’

‘‘ ठीक है बेटा तुम काम में व्यस्त हो जाओ मैं और कमला सब सम्भाल लेंगी। ’’

***

विद्यालयके स्टाफ रूम में सांस्कृतिक कार्यक्रमों के क्रम में प्राचार्य ने अध्यापकों तथा कक्षाओं के मॉनीटरों का एक उपवेशन बुलाया था। सभी लोग प्राचार्य कक्ष में उपस्थित थे।

मिसेज प्रतिभा ने सर्वप्रथम सांस्कृतिक कार्यक्रमों की रूपरेखा प्रस्तुत की। तीन दिन तक चलने वाले इस समारोह में मुख्य अतिथि के रूप में समाजविज्ञान के प्रोफेसर सिंह आ रहे थे। उसकी स्वीकृति मिल चुंकी थी। समारोह में नाटक, वाद-विवाद तथा निबन्ध प्रतियोगिताएं होनी थी। खेलकूद प्रतियोगिताएं अलग चल रही थी। कुछ छात्रों ने एक पत्रिका निकालने की बात कही। प्राचार्य महोदय ने एक हस्तलिखित पत्रिका निकालने की व्यवस्था करने के निर्देश एन्टोनी सर को दिये ताकि छात्रों की सृजनात्मक प्रतिभा प्रकाश में आयें।

अन्तिम दिन समापन समारोह में पुरस्कार वितरण कार्यक्रम में विकास अधिकारी के बुलाने का निश्चय किया गया। प्राचार्य ने मिसेज प्रतिभा के साथ कुछ अन्य छात्रों तथा अध्यापकों की ड्यूटी लगा दी ताकि काम सुचारू रूप से चल सके । उद्घाटन सत्र के तुरन्त बाद वाद-विवाद प्रतियोगिता रखी गयी थी। विपय भी रोचक था। ‘‘दहेज प्रथा का औचित्य’’ छात्रों में उत्साह था। अध्यापक भी इस कार्यक्रम को सफल बनाने में जुटे हुए थे। अगले सोमवार से कार्यक्रम शुरू होने थे। सोमवार आया। जयपुर के प्रोफेसर सिंह निर्धारित समय पर अन्ना के यहां आ गये। अन्ना ने अपनी प्रोजेक्ट रपट दिखाई। प्रोजेक्ट की प्रगति से वे खुश थे। सन्तुप्ट भी। आशा भी साथ आयी थी। अन्ना व आशा आपस में बतियाने लगी। तभी प्रतिभा ने कहा।

‘‘ चलो स्कूल में कार्यक्रम के उद्घाटन का समय हो रहा है। ’’

प्रो.सिंह ने कार्यक्रम का विधिवत उद्घाटन किया, छात्रों ने सभा भवन को खूब सजाया था।

प्रारम्भ में प्राचार्य महोदय ने विद्यालय के इतिहास पर प्रकाश डाला। प्रो.सिंह ने अपने संक्षिप्त मगर सारगर्भित भापण में देश की इस नई पीढ़ी को भावी कर्णधार बताया। उन्होंने नये युग के निर्माण की महत्ता को समझाया और छात्रों को युग निर्माता की संज्ञा दी।

कार्यक्रम चल ही रहा था कि बिजली घुल हो गयी। तभी एक कोने से शोर शराबा हुआ कुछ छात्र आपस में झगड़ने लगे। कुछ अध्यापक दौड़े मगर तब तक देर हो चुकी थी। भीड में प्रधान के आदमी धुस आये थे। असामाजिक तत्वों ने मिलकर तोड़ फोड़ नारेबाजी शुरू कर दी थी। ’’

प्राचार्य महोदय ने मौके की नजाकत को सम्भालते हुए मंच से कहा

‘‘ आप लोग शांत हो जाइयें विद्यालय की गरिमा का ध्यान रखिये। हम सब इसी विद्यालय की प्रतिप्ठा से जुड़े हुए हैं।

तभी कोइ्र चीज सनसनाती हुई और अभिमन्यु बाबू के सिर पर लगी। उनके सिर से खून बहने लगां सारा वातावरण बिगड़ गया। शोरगुल, अन्धकार और आपा धापी का माहोल बन गया, प्राचार्य की आवाज शोर में डूब गयी।

अभिमन्यु बाबू को तुरन्त अस्पताल ले जाया गया उन्हें मरहम पट्टी के बाद छुट्टी दे दी गयी। कस्बें में भी तनाव था। छात्र उत्तेजित थे। वे दो दो हाथ करना चाहते थे। कस्बे में जनता भी प्रधानजी व उनके आदमियों से तंग आ चुकी थी। मगर अभिमन्यु बाबू, प्राचार्य आदि ने छात्रों को समझाकर शान्त किया।

मगर छात्रों के मन में प्रधान जी के प्रति आक्रोश था। वृक्षारोपण का मामला, फिर रंजन तथा कुछ अन्य को नशीली दवांए बेचने का मामला आदि से कस्बे की आम जनता तथा छात्र सभी परेशान थे। मगर वे लोग मजबूर थें कई बार कस्बे वालों ने कोशिश की थी। मगर प्रधान जी के हाथ लम्बें थे। पुलिस-प्रशासन उन पर हाथ डालने में झिझकता था। वे एक तरह से माफिया लीडर हो गये थे।

विद्यालय में घटी घटना का विवरण अखबारों में छपा था। छात्र फिर उत्तेजित हो रहे थे। छात्रावास में मिटिंग करते। मगर अभी तक कार्यवाही नहीं की गयी थी। अभिमन्यु अक्सर घूम घूम कर छात्रों को समझाता। प्राचार्य ने समारोह को समाप्त धोपित कर दिया। पुरस्कार विजेता छात्रों को पुरस्कार दे दिये गये। छात्रों का एक दल इन सबसे अलग अध्ययन में व्यस्त हो गया। परीक्षाएं पास आ रही थी।

अभिमन्यु भी अपनी प्रतियोगी परीक्षा की तैयारी में लग गयां बापू का स्वास्थ्य धीरे धीरे सुधर रहा था।

एक रोज शाम को वो छात्रावास में अपने कक्ष में बैठा था तभी प्रोक्टर अवतार सिंह आया। कहने लगा।

‘‘ सर एक इशारे की देर है हम सब मिलकर प्रधानजी व उनके आदमियों से निपट सकते हैं। ’’

‘‘ नहीं अवतार सिंह हमें यह नहीं करना है। पाप का धड़ा भरने दो अपने आप फूट जायेगा। ’’

‘‘ मगर सर आप तो कहते थे कि अन्याय को सहना भी अन्याय है। ’’

‘‘ हां मैं अब भी कहता हॅं। मगर जब तक पुण्य है तब तक व्यक्ति की ज्यादतियां चलती है। पाप का घड़ा तो रावण का भी भर गया था। और फिर वह स्वतः नियति के हाथों नप्ट हो गया था। ’’

‘‘ ठीक है सर। सर एक ओर बात है मेरे चाचा अपनी लड़की का ब्याह जल्दी करना चाहते है। वो अभी बारह वर्प की ही है। ’’

‘‘ ये तो गलत है। बाल विवाह कानूनन अपराध है इसके लिए शारदा एक्ट बन चुका है। ’’

‘‘ हमने समझाया मगर चाचा मानते ही नहीं है। ’’

‘‘ भैया मुझे ले चलो। गांव के बड़े बुजुर्गो को इकटठा करो। ’’ ये सब तो रोकना ही पड़ेगा। यदि सामाजिक बुराइयों को नहीं रोक सकते तो हमारा पढ़ा लिखा होना बेकार हे। ’’

‘‘ चाचाजी कहते हैं। जल्दी शादी से कई परेशानियों से बच सकते हैं। फिर गोना तो देर से करते हैं। ’’

‘‘ चाचाजी गलत कहते हैं। जल्दी शादी से सैंकड़ों परेशानियॉं पैदा होती है। तुम चाचाजी को समझाओं। उन्हें पत्र लिखो। जरूरत पड़े तो मुझे ले चलो। ये नहीं होना चाहिए। अपने गांव के सरपंच की मदद लो। ’’

‘‘ मैं फिर कोशिश करता हूं। सर आप चलते तो ठीक रहता। ’’

तभी अन्ना अपने प्रोफेसर सिंह के साथ आई।

‘‘ आप अभी यहीं हैं प्रोफेसर साहब ’’। अभिमन्यु ने अभिवादन के बाद पूछा।

‘‘ हां सोचा कुछ दिन रहकर यहां के गांवों में स्त्री व बच्चों की स्थिति पर एक पुस्तक लिखूं। ’’

‘‘ये तो खूब अच्छी बात है। ’’

‘‘ लेकिन मुश्किल ये है कि गांवों के लोग ज्यादा सहयोग नहीं करते हैं।’’ अन्ना बोल पड़ी।

हां तुम ठीक कहती हो। ’’

‘‘ इस अवतार सिंह के चाचाजी अपनी लड़की का बाल विवाह करना चाहते हैं मगर हम सभी को मिलकर इसे रोकना होगा।’’

‘‘ हां सर आप सभी चलियें।’’ अवतार सिंह बोला। मामला प्रोफेसर सिंह व अन्ना की रूचि का था सो अवतार सिंह, के साथ सभी उसके गांव चल पड़े। गांव पास ही था। अवतार सिंह ने अपने घर में जाकर चाचा को बताया कि उसके अध्यापक तथा बड़े प्रोफेसर साहब आये है चाचा शुरू में नाराज हुए। मगर अभिमन्यु बाबू के तर्को तथा प्रोफेसर सिंह के निवेदन से बात उनकी समझ में आयी। अभिमन्यु ने अवतार सिंह के चाचा से कहा-

‘‘ देखिये। आपकी लड़की अभी कुल बारह वर्प की है। अभी तो इसके खेलने खाने के दिन हैं।’’

‘‘ लेकिन बाद में बिरादरी में लड़का आसानी से नहीं मिलता है। गांव में बदनामी होती है। ’’

‘‘ काहे की बदनामी। सरकार ने इस बाल विवाह को गैर कानूनी घोपित कर रखा हे।’’

‘‘ सवाल कानून का नहीं है मास्टर जी। सवाल समाज और गांव तथा बिरादरी का है आप तो चले जायेंगे। हमें तो यहीं रहना है। ’’

‘‘ देखिये हम सभी आपसे निवेदन करते हैं कि इस बाल विवाह को रोकिये। यह एक सामाजिक अपराध है।’’ प्रो.सिंह बोले।

अवतार सिंह और अभिमन्यु बाबू ने भी समझाया।

गांव के सरपंच भी आ गये। धीरे धीरे अवतार सिंह के चाचा पर बातों का असर हुआ उसने अपनी बच्ची का विवाह अठ्ठारह वर्प पर करने का निश्चय कियां उसने बाल विवाह नहीं करने की सौगन्ध के साथ ही गांव में सरपंच के साथ मिलकर बाल विवाह रोकने में सहयोग करने की सौगन्ध खाई इस सफलता से सभी बड़े खुश थे। वे रात में ही वापस राजपुर लौट आये। अन्ना ने प्रोजेक्ट में इस घटना का वर्णन विस्तार से करने का निश्चय किया। दूसरे दिन प्रोफेसर साहब वापस चले गयें समाचार छपाया। चारों तरफ अभिमन्यु बाबू की तारीफ हुई। साथी अध्यापक भी खुश हुए प्राचार्य ने अभिमन्यु बाबू को बुला कर शाबाशी दी ।

इसी बीच राजपुर के प्रधान जी ने कुछ लोगों को इकठ्ठा किया और अभिमन्यु बाबू के खिलाफ भड़काया। कुछ लोग इस बात से भी नाराज थे कि विवाह जैसे पवित्र कार्य में भी अभिमन्यु बाबू रोड़ा अटकाते हैं। मगर अभिमन्यु बाबू ने कोइ्र प्रतिक्रिया व्यक्त नहीं की।

विद्यालय में अध्यापन के बाद अभिमन्यु बाबू छात्रावास में अपने क्वार्टर में आते। बापू की सेवा सुश्रुपा करते और कमला की पढ़ाई-लिखाई देखते। प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी करते।

***

एक दिन अभिमन्यु बाबू को प्राचार्य ने अपने कक्ष में बुलाया और कहा-

‘‘ अभिमन्यु बाबू मैं इस लड़ाई में तो आपके साथ हू क्योंकि आप सच्चाई, ईमानदारी, और नैतिक मूल्यों के लिए काम कर रहे हैं मगर मेरी कुछ सीमाएं है और आप जानते होंगे कि एक सीमा के बाद हमस ब केवल मूकदर्शक रह जाते हे। ’’

‘‘ आपसे सहमत हू सर। मगर आप चिन्ता नहीं करे। मेरा दायित्व में खूब समझता हू। इसका अन्तिम परिणाम स्थानान्तरण या प्रोबेशन पर होने के कारण बर्खास्तगी भी जानता हू। ’’ अभिमन्यु बाबू ने अपना पक्ष रखा।

‘‘ बात ये है अभिमन्यु बाबू कि आज सुवह ही प्रधान जी का फोन आया था, वे एक बार आपसे मिलना चाहते है मेरा भी ख्याल है कि मिल लेने में हर्ज ही क्या है। आपकी और उनकी कोई व्यक्तिगत लड़ाई तो है नहीं ’’

‘‘ लड़ाई तो स्वार्थो और मूल्यों के बीच है सर। ’’

‘‘ और फिर वे एक बार पिटवा चुके हैं धमकियां दिलवा चुके हैं। फिर मिलने का औचित्य क्या है ? ’’

‘‘ मेरी सलाह मानकर एक बार आप उनसे मिल लें। शायद बात सुलझ जाये वे यह बात आपके भविप्य के लिहाज से कहा हू। आज सांयकाल आप मेरे साथ उनके यहां चलेंगे। ’’

‘‘ यदि यह आपका आदेश है तो मुझे स्वीकार है। मैं सांयकाल आपके साथ चला चलूंगा।’’ यह कह कर अभिमन्यु बाबू बाहर आ गये। सारे दिन उनका किसी काम में मन नहीं लगा। सांयकाल के समय प्राचार्य प्रधानजी के बंगले पर पहुचे वहां पर कुछ लोग पहले से ही थे। एक दो को और अभिमन्यु बाबू ने पहचान लिया। प्रधान जी ने कहा।

‘‘ देखो अभिमन्यु तुम सुधार के अच्छे काम कर रहे हो। ’’ मुझे भी यह सब अच्छा लगता है। मगर प्रजातन्त्र में सबके हितों को ध्यान में रखना पड़ता है। अब देखों तुमने मेस के इस ठेकेदार के काम को बन्द कर दिया। ’’

‘‘ तो क्या मिलावटी खाना खिलाकर बच्चेां को बीमार कर देता ? ’’

‘‘ देखों खाने से कोई नहीं मरता, भूख से मरते हैं। ’’ और ये किशनबाबू के दवा का तो कारोबार ही चौपट हो गया। कोई भी इनकी दुकान से दवा खरीदनें नहीं आता। ’’

‘‘ तो इसमें मेरा क्या कसूर है ? वे नशीली दवा का धन्धा करते थे। पकड़े गये। छापा पड़ा। बदनाम हुए। अखबारों में छपा। ’’ अभिमन्यु बाबू उखड़ गये।

‘‘ मेरी बात ध्यान से सुन लो।’’ ‘‘प्रधान जी ने कठोर आवाज में कहा। ’’

‘‘ इसी प्रकार आसपास के गांवों में शिक्षा के नाम पर बाल विवाह राकने के प्रयास भी तुमने तथा तुम्हारे छात्रों ने किये हैं। ’’

‘‘ यह एक सामाजिक बुराई है और इसे रोकना जरूरी हैं ’’

‘‘ सदियों से चली आ रही परम्परा बुराई नहीं होती। ’’

‘‘ दादा अपने पोते का व्याह अपने सामने करना चाहता है फिर गोना बाद में युवावस्था में होता है इसमें बुराई क्या है। ’’

‘‘ बुराई ये है कि ष्शादी दो पवित्र आत्माओं का मिलन है।’’ गुड्डे गुड्डियों का ब्याह नही. ’’

ठीक है छोड़ो इस बात को। मैंने तुम्हें और प्राचार्य को यह कहने बुलाया है कि आप लोग अपने काम से काम रखो। इन व्यर्थ के प्रपन्चों में नहीं पड़ों।’’ ‘‘ ये व्यर्थ के प्रपंच नहीं है। प्रधान जी।’’ इस बार प्राचार्य बोल पड़े। ‘‘ ये हमारी शिक्षा का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है और हम सभी को इस यज्ञ में मदद करनी चाहिए।’’

‘‘ देखो प्रिन्सिपल साहब मैं आपको फिर समझाता हू। ’’ कि आप वृक्षारोपण वाली जमीन से हाथ खींच लें। ’’

‘‘ ऐसा कैसे हो सकता है। यह तो विद्यालय की जमीन है।’’

‘‘ मेरे हाथ बहुत लम्बे हैं। ’’ इस बार प्रधान जी ने सीधा वार किया।

‘‘ मैं आप दोनों का टान्सफर करा दूंगा। या फिर राजधानी जाकर अभिमन्यु बाबू को बर्खास्त करा दूंगा। आप दोनों अपने आपको समझते क्या हैं।’’

अब अभिमन्यु बाबू ने क्रोध में आकर कहा।

‘‘ आप जो चाहे कर लें। हमें अपने मार्ग पर चलने दें। आप की हरकतों का जवाब देने के बजाय हम अपना काम करना ज्यादा पसन्द करेंगे। हमारा काम ही हमारा जवाब है। ’’

‘‘ ठीक है फिर मैं आपको देख लूंगा। ’’

प्रधान जी के यहां से अभिमन्यु बाबू सीधे छात्रावास की ओर चल पड़े। प्राचार्य भी चले गये। अभिमन्यु बाबू का मन उदास था। रास्ते में छात्र मिले। मगर उन्होंने ध्यान नहीं दिया सीधे अपने कक्ष में आये। बापू अब ठीक थे। कमला की परीक्षाएं चल रही थी अभिमन्यु बाबू चुपचाप छत पर टहलने लगे। कुछ ही दिनों में प्रतियोगी परीक्षाएं शुरू होने वाली थी। उन्होंने अपना ध्यान परीक्षा की ओर केन्द्रत करने का निश्चय किया ओर सो गये।

***