नया सवेरा - (सवेरे का सूरज) - 3 Yashvant Kothari द्वारा फिक्शन कहानी में हिंदी पीडीएफ

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नया सवेरा - (सवेरे का सूरज) - 3

नया सवेरा - (सवेरे का सूरज)

यशवन्त कोठारी

(3)

छात्रावास में अभिमन्यु अपने कक्ष में बैठकर मेस सम्बन्धी जानकारी अपने सहयोगी से ले रहा था तभी विंग मानीटर लिम्बाराम ने प्रवेश किया और आदर के साथ खड़ा हो गया।

‘‘ कहो लिम्बाराम कैसे आये हो ? कुछ परेशानी है क्या। ’’

‘‘ सर। छात्रावास के सम्बन्ध में कुछ बातें करना चाहता था। ’’

‘‘ अच्छा बैठो। सुनो एक काम क्यों नहीं करते चारों मॉनीटर एक साथ आ जाओ और सभी बातों पर एक साथ चर्चा कर ले इस नवीन सत्र की एक कार्य योजना भी बना ले ताकि सब कार्य व्यवस्थित, सुचारू रूप से चल सके।

‘‘ यही ठीक रहेगा सर। अभी छात्रों के पढ़ने का समय भी नहीं है। मैं तीनों मॉनीटरों को बुला लाता हू। ’’

यह कहकर लिम्बाराम जाने लगा। अभिमन्यु ने साथ में अवतार सिंह प्रोक्टर को भी बुलाने के निर्देश दिये। कुछ ही देर में चारों मॉनीटर तथा प्रेाक्टर अभिमन्यु के कक्ष में एकत्रित हो गये। अभिमन्यु ने उन्हें सम्बोधित करते हुए कहा- ‘‘ आप लोगों पर इस छात्रावास की महती जिम्मेदारी है। मैं तो केवल आप लोगों की सहायता के लिए हू। छात्रावास में मेस की सुविधा साफ, सफाई, सास्कृतिक कार्यक्रम तथा खेलकूद आदि के लिए आप लोगों को दिल लगाकर काम करना होगा। साथ ही आप लोगों को इस कस्बे के सामाजिक उत्थान के लिए भी काम करना चाहिए। मेरी मान्यता है कि आप लोग मिलजुल कर काम करें तो पढ़ाइ्र के अतिरिक्त समय में भी बहुत कुछ कर सकते हैं। ’’

‘‘ हां सर हम भी महसूस करते हैंकि हमारे पास काफी समय बचता है। जिसे हम इधर-उधर के कामों में नप्ट कर देते हैं। यदि कोई स्पप्ट दिशा- निर्देश हो तो हम सब मिलकर कुछ नया और अनोखा काम अवश्य कर सकते हैं। यदि इस काम में हमें आनन्द भी आएगा। और खुशी भी होगी। ’’ लिम्बाराम तुरन्त बोल पड़ा।

‘‘ लेकिन सर ’’ असलम ने अपनी बात रखी ‘‘ जो छात्र पढ़ाई में कमजोर हैं उन छात्रों की ओर ध्यान देने के लिए भी हमें कुछ करना चाहिए। ’’

‘‘ बिल्कुल असलम मैं तुमसे शत प्रतिशत सहमत हू तुम चारों मॉनीटर अपनी अपनी विंग के कमजोर छात्रों की एक सूची बनाओ और मैं उन्हें अतिरिक्त समय में यहॉं पढ़ाउंगा ताकि उनकी कमजोरी दूर हो। ’’

‘‘ यही ठीक रहेगा सर। ’’ सुरेश शर्मा बोल पड़ा।

‘‘ और आप लोग एक और बात का ध्यान रखें। यदि किसी छात्र की कोई निजि आवश्यकता हो तो उसका भी ध्यान रखें। हमस ब एक साथ मिल बैठकर उसका समाधान खोज निकालेंगे।’’ अभिमन्यु बाबू ने फिर कहा।

‘‘ खाली समय का सदुपयोग करने की शुरूआत हम वृक्षारोपण से करेंगे। शाम को सभी छात्र छात्रावास के पीदे वाले खाली मैदान में एकत्रित हो जायें वहीं से हम अपनेअभियान का श्रीगने श करेंगे। मैं कोशिश करूंगा कि प्राचार्य महोदय भी उस समय वहां पर उपस्थित रहें। ’’

‘‘ सर एक बात पूछना चाहता हू। अवतार सिंह पहली बार बोला।

‘‘ हां हां पूछो। झिझकों मत। ’’

‘‘ सर कुछ अपने बारे में बताइये। ’’

अभीमन्यु बाबू हंस पड़े कुछ पल मौन रहे। फिर गम्भीर स्वर में बोल पड़े।

‘‘ अवतार सिंह मैं सामान्य निम्न मध्यम वर्गीय परिवार का सदस्य हू यह नौकरी तीन वर्प की प्रतीक्षा के बाद मिली है। और विज्ञान में स्नातकोत्तर स्तर की पढ़ाई मैंने जयपुर से की है। प्रतियोगी परीक्षाओं की भी तैयारी यहां रह कर करूंगा।’’

‘‘अच्छा सर। एक बात बताइये। ’’

‘‘ नैतक मूल्यों में इतना ह्रास क्यों हो रहा है ? ’’ लिम्बाराम पूछ बैठा।

‘‘ देखो लिम्बाराम मूल्य हमारी नैतिकता से जुड़े है और आजकल भैातिकवाद का समय हैं। उपभोक्तावादी संस्कृति तथा खुली बाजार व्यवस्था ने नैतिकता को लगभग नप्ट कर दिया है और मूल्य भी विघटित हो गये है। वर्पो के प्रजातन्त्र ने हमारे जीवन में कई बड़े बदलाव पैदा किये है और दूसरी ओर कई क्षेत्रों में हमने बहुत ज्यादा प्रगति की हैं विकास और प्रगति के कुछ मूल्य भी हमने चुकाये है और नैतिक मूल्यों का हास इन्हीं में से एक है तुम ष्शायद कला संकाय में हो, इतिहास में अक्सर ऐसे अवसर आए है जब मूल्यों में हास होने पर नई दिशा देने के लिए किसी महात्मा सन्त या महापुरूप ने इस देश को दिशा दी है। विकास और प्रगति के मूल्यों को चुकाने के लिए हम आजकल पर्यावरण की समस्या से जूंझ रहे है। समाज को स्पप्ट दिशा निर्देश नहीं होने के कारण अन्धकार में भटकाव है। रोशनी की तलाश जारी है।

‘‘ अच्छा सर विज्ञान की इतनी प्रगति के बावजूद मानव संतुप्ट क्यों नहीं है ? ’’

‘‘ मानव का संतुप्ट हो जाना उसकी प्रगति को रोक देगा। प्रगति के लिए नियमित रूप से आगे की ओर देखना जरूरी है। ’’ चलते जाना ही जीवन है क्या नदी कभी रूकती है वह चलती ही जाती है। ’’

‘‘ सर वृक्षारोपण के लिए क्या करना होगा ? ’’

‘‘ फिलहाल तो हम मैदान को ठीक करेंगे। फिर वर्पा ऋतु में बारिश हो जाने पर पेड़ पौधें को लगायेंगे। ’’

‘‘ लेकिन सर । पौधे ? ’’

‘‘ पौधे वन विभाग देगा या विद्यालय प्रशासन खरीदेगा। ’’

‘‘ प्रशासन के भरोसे तो सर कामकाज नहीं चलता। ’’ सुरेश ने कहा

‘‘ देखो ष्शुरू में ही निराश हो जाना या पूर्वाग्रह पाल लेना ठीक नहीं है हम कोशिश करेंगे और सफल होंगे। ’’ अभिमन्यु ने कहा।

‘‘ अब तुम लोग जाओ शाम पांच बजे पीछे वाले मैदान में एकत्रित हो जाना मैं और प्राचार्य जी वही मिलेंगे। ’’

छात्रों के जाने के बाद अभिमन्यु ने पिताजी को पत्रलिखा ।

श्रद्धैय पिताजी,

सदर चरण स्पर्श।

आपको जानकर प्रसन्नता होगी कि मैने काम संभाल लिया है। सब कुछ ठीक-ठाक है वातावरण तथा कस्बा दोनों ही ठीक है शायद थोड़ी बहुत उंच नीच है तो वह समय पर अपने आप ठीक हो जायेगी। मुझे यहां पर छात्रावास में ही रहने को क्वार्टर मिल गया है। सोचता हू आप लोग भी यहीं पर आ जाये तो ठीक रहेगा। अब वहॉं गांव में कब तक रहेंगे ? कमला की भी पड़ाई यहां पर जारी रह सकेगी। आपका पत्र पाते ही मैं लेने आ जाउंगा। माताजी को प्रणाम अर्ज कराये तथा कमला को शुभाशीप।

आपका प्रिय पुत्र

अभिमन्यु।

पत्र को पोस्ट करने के लिए उसने चौकीदार को दिया। और स्वयं प्राचार्य से मिलने चल दिया।

प्राचार्य अपने कक्ष में थे। उन्होंने अभिमन्यु की वृक्षारोपण योजना ध्यान से सुनी और कहा-

‘‘मैं तो आ जाउंगा काम भी शुरू कर देंगे। मगर हमारे पास इस समय अतिरिक्त बजट नहीं है। और आप जानते हैं बिना बजट के सरकारी काम कैसे हो सकता है ? ’’

‘‘ आप चिन्ता न करें फिलहाल हम सभी लोग श्रमदान करेंगे। पौधे बारिश के बाद वनविभाग से प्राप्त करेंगे। ’’

‘‘ फिर ठीक है मेरी शुभकामनाएं आपके साथ है। ’’

‘‘ तो चले। ’’

‘‘ आइये। ’’ अभिमन्यु और प्राचार्य चलकर मैदान में आ गये। छात्र पहले से ही उपस्थित थे। अभिमन्यु ने मॉनिटरों तथा प्रोक्टर का परिचय प्राचार्य से कराया। प्राचार्य ने सबसे पहले मिट्टी उठाकर डाली। काम शुरू हुआं छात्रों ने जमीन को सममतल करना शुरू कर कंकड पत्थर बुहारे दो घन्टों के श्रम से छात्र थक गये। आगे का काम कल करने का संकल्प ले सभी लौट पड़े।

***

दूसरे दिन विद्यालय में अध्यापक कक्ष में इस धटना की चर्चा थी।

एन्टोनी बोले- ‘‘ व्हाट। श्रमदान इस युग में। अभिमन्यु बाबू का दिमाग फिर गया है नया नया जोश है। ’’

‘‘ आप ठीक कहते है। ’’ गणित के गुप्ताजी बोल पड़े। ‘‘ लड़के पढ़ते तो है नहीं ये फालतू का झंझट क्या पालेंगे। ’’

‘‘ मगर यदि कोई अच्छा काम शुरू हो रहा है तो शुरू में ही उस काम की बुराई क्यों करनी चाहिए ’’ मिसेज प्रतिभा बोल पड़ी।

‘‘ आप नहीं समझेगी। नया नया लगा है। अगर इस तरह के लटके झटके नहीं दिखायेगा तो प्रभावशाली कैसे सिद्ध होगा। ’’ चन्द्रमोहन जी ने अपना दर्शन दिया।

आप लोग कुछ भी कहें जी, दुनिया में पृथ्वी दिवस या पर्यावरण दिवस पर इतना काम होने लगा है तो यहॉं अवश्य ही कुछ होगा। मिसेज प्रतिभा ने कहा।

‘‘ हां हां भाई ठीक है। सब हो रहा है होने दो। मगर हमें बक्शों। ’’ एन्टोनी बोल पड़े।

‘‘ हां ये ठीक है। ’’ चन्द्रमोहन बोले।

इसी समय अभिमन्यु बाबू ने स्टाफ रूम में प्रवेश किया। उसे देखते ही सब चुप हो गये।

अभिमन्यु बाबू के हाथ चाक से भरे थे। उन्होंने हाथ धोये। पानी पीया। और एक कुर्सी पर आराम से बैठकर बोले-

‘‘ मुझे देखते ही आप लोग चुप क्यों हो गये। ’’

‘‘ कुछ नही हम आपके पेड़ लगाने की योजना की चर्चा कर रहे थे। ’’ मिसेज प्रतिभा ने बातचीत का सिलसिला फिर जोड़ा।

‘‘ हां यह तो एक आवश्यकता है। कल्पना कीजिये यदि पृथ्वी ही नहीं होगी तो हम सब कहां होंगे ओर जीवन का क्या होगा। ’’

‘‘ लेकिन ये श्रमदान......। ’’ एन्टोनी बोल।

‘‘ वो तो प्रारम्भिक स्थिति है जब काम दिखने लगेगा तो जिला प्रशासन भी मद्द करेगा और फिर आप सभी भी तो सहयोग करेंगे। शुरू में ही सहायता मांगना ठीक नहीं है। ’’

‘‘ मुझे तो माफ करना भाई। ’’ एन्टोनी उठकर चले गये।

‘‘ अभिमन्यु बाबू आपकी बात और काम दोनो में दम है। आप लगे रहिये। धीरे धीरे लोग आपके साथ हो जायेंगे, और कारवॉं बनता जायेगा। ’’ मिसेज प्रतिभा ने उसका हौसला बढ़ाया।

घन्टी बजी। सभी अध्यापक अपनी अपनी कक्षा की ओर बढ़ गये। अभिमन्यु का कालांश खाली था।

अभिमन्यु के कदम स्वतः पुस्तकालय की ओर बढ गये। उसने देखा पुस्तकालय समृद्ध है लेकिन पढ़ने वालों का अभाव था। पत्र पत्रिकाएं बिखरी पड़ी थी। पुस्तकों पर धूल थी। और वाचनालय खाली पड़ा था। उसके मन में दुख की एक रेखा खिंच गयी। सरस्वती का मन्दिर और पुस्तकों की यह दशा। वह चाहकर भी कुछ नहीं कर सकता था।

शाम को छात्रावास में अपने कक्ष में आने पर चौकीदार ने उसे पिताजी का पत्र दिया। संक्षिप्त सा पत्र था। पिताजी अपने गांव को छोड़ने को तैयार नहीं थे। हां कमला को यहां भेजने को तैयार थे। अभिमन्यु ने तय किया कि अकले रविवार को गांव जाकर कमला को अपने साथ ले आयेगा।

***

अन्ना और मिसेज प्रतिभा साथ रहने लग गयी थी। अन्ना दिनभर कस्बे तथा आसपास के छोटे गांवों में जाकर महिलाओं ओर बच्चों की स्थिति पर सर्वेक्षण करने लगी। उसने महसूस किया कि गांवों में लड़कियों और लड़कों में अन्तर और भेदभाव कुछ ज्यादा ही है। कुपोपण तथा बीमारियों का प्रकोप भी ज्यादा है। सबसे बड़ी बात ये कि गांवों के बूढ़े ही नहीं नई पीढ़ी के पढ़े लिखे नौजवानों का रूख भी ऐसा ही था। लड़कियों को पढ़ाने के नाम पर ज्यादातर ग्रामीण लोग नानुं करते थे। प्रोढ़ शिक्षा केन्द्रों पर भी प्रोढ़ों की संख्या ही ज्यादा नजर आती थी। वहां महिलाऐ कम आती थी। अन्ना ने अपनी संक्षिप्त सी प्रारम्भिक रपट बनाकर अपने निर्देशक को जयपुर भेजी थी, उसने पत्र में प्रोफेसर साहब की बहन को भी यहां आने का निमंत्रण दिया था। शीघ्र ही आशा का जवाब आया कि भाईजान उसकी प्रारम्भिक रपट से सन्तुप्ट हैं तथा वह अपना काम जारी रखें। अगले माह परीक्षा समाप्त होते ही वह भी राजपुर का एक चक्कर लगा लेगी। और सम्भव हुआ तो प्रोफेसर साहब को भी अपने साथ लेती आयेगी।

अन्ना को यह सब जानकर बहुत खुशी हुई। उसके भटकाव-उलझाव को एक किनारा मिलने की उम्मीद थी और इसी उम्मीद को वह अपने प्रोजेक्ट के सहारे सहेज रही थी।

चाय पीते समय शाम को उसने मिसेज प्रतिभा को यह सब जानकारी दी तो वे भी बड़ी खुश हुई । बोली-

‘‘ इस देश में जब तक महिलाओं, लड़कियों और ग्रामीण बच्चों का सामाजिक उत्थान नहीं होगा, तब तक तमाम प्रगति का कोई मतलब नहीं है। प्रगति व्यक्ति और समाज को उपर उठाने के लिए है या नीचे गिराने के लिए । आज भी गांव में लड़कियों को कम उम्र में ही घर के काम काज में जोत दिया जाता है। यह तो शोपण है भाई । ’’

‘‘ ये तो ठीक है मगर हमारी ग्रामीण अर्थव्यवस्था की धूरी तो व्यक्तियों के हाथ- पांव ही हैं, अधिक हाथ, अधिक आमदनी। ’’ अन्ना ने कहा।

‘‘ नहीं ये ठीक नहीं है। इस सामाजिक ढा चें को बदलना होगा तभी तो एक नया खुशहाल, सम्पन्न, तथा समृद्ध भारत होगा। इस महान देश की महानता को बनाये रखने के लिए ग्रामीण जगत का सही विकास आवश्यक

है। ’’

‘‘ वाह वाह क्या बात है मगर बहिनजी यह आपकी कक्षा नहीं, घर है। लीजिये चाय पीजिये ठण्डी हो रही है। ’’ अन्ना ने मजाक किया।

दोनों हंस पड़ी। और चाय पीने लगी।

इसी समय अभिमन्यु बाबू आ गये। नमस्ते की औपचारिकता के बाद कहने लगे -

‘‘ गांव से पिताजी का पत्र आया है। सोचता हू जाकर मिल आउं और बहन कमला को यहां ले आउ ताकि उसकी पढ़ाइ्र जारी रह सके । ’’

‘‘ मिसेज प्रतिभा आप से एक निवेदन है मुझे वापस आने में एक-दो दिन लग सकते हैं तब तक क्या आप छात्रावास के पीछे वाले मैदान में चल रहे काम-काज को चला लेंगी। मैं नहीं चाहता कि यह काम अधूरा रहे। ’’

‘‘ वैसे तो आप ठीक कह रहे है। मगर सुना है कि प्रधानजी तथा कुछ अन्य लोग इस काम से नाराज हैं, वे इस जमीन का कोई अन्य उपयोग करना चाहते हैं। ’’ मिसेज प्रतिभा बोल पड़ी।

‘‘ वो सब बाद में देख लेंगे। जमीन तो विद्यालय की है, मगर प्रबन्ध समिति ओर प्रधानजी ष्शायद कुछ और सोच रहे हैं। मैंने बी.डी.ओ. साहब से भी चर्चा की है और वे इस जमीन में वृक्ष, पार्क, घास आदि विकासित करने में मदद करेंगे। ’’ अभिमन्यु बाबू बोले।

‘‘ तब ठीक है। आप आराम से गांव हो आईये। माता-पिता को ला सकें तो ले आइये। आप निश्चिन्त रहें। कार्य जारी रहेगा। ’’ मिसेज प्रतिभा ने कहा।

‘‘ आप से ऐसी ही आशा थी। ’’

अभिमन्यु ने शालीनता से हाथ जोड़े ओर रवाना हो गया।

***