नया सवेरा - (सवेरे का सूरज) - 7 Yashvant Kothari द्वारा फिक्शन कहानी में हिंदी पीडीएफ

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नया सवेरा - (सवेरे का सूरज) - 7

नया सवेरा - (सवेरे का सूरज)

यशवन्त कोठारी

(7)

अन्ना अपने कमरे में मिसेज प्रतिभा के साथ अपनी सर्वेक्षण रपट को अन्तिम रूप देने के पूर्व विमर्श कर रही थी। बातचीत को शुरू करते हुए अन्ना ने कहा।

‘‘ ग्रामीण क्षेत्र में बालिकाओं पर कभी ध्यान नहीं दिया है। उन्हें हमेशा एक भार समझा गया। इसका बड़ा मनोवैज्ञानिक असर पड़ा है। और ये बालिकाएं बड़ी होकर जब मॉं बनती है या गृहस्थ जीवन में प्रवेश करती है तब भी अपने आपको कमजोर, असहाय समझती हुइ्र हमेशा किसी के सहारे जीवन यापन करती है। ’’

‘‘ तुम ठीक कहती हो लेकिन बालिकाओं पर अब ध्यान दिया जाने लगा है उन्हें अब पढ़ने भी भेजा जाता है। बीमार होने पर इलाज भी कराया जाता है। ’’ मिसेज प्रतिभा ने बात को आगे बढ़ाया।

‘‘ लेकिन सबसे अहम समस्या तो शिक्षा की है। खासकर प्रोढ़ महिलाओं की शिक्षा तथा उत्तर साक्षरता की और अभी ज्यादा ध्यान नहीं दिया जा रहा है। एक और बात जो मैने सर्वे के दौरान महसूस की है वो ये कि हर कोई यह समझता है कि पढ़ने का कोई लाभ लड़की या महिला को मिलने वाला नहीं है। जब कि हकीकत में बात ऐसी नहीं है। एक कन्या को शिक्षित करने अर्थ है एक पूरे परिवार को शिक्षित करना। क्योंकि शिक्षित महिला दूसरे परिवार में जा करके शिक्षा की नई अलख जगाता है। ’’ अन्ना ने अपना निप्कर्प प्रस्तुत किया।

‘‘ राजपुर तथा आसपास के गांवों, खेड़ों, ढ़ाणियों में जाकर मैंने यह महसूस किया है कि समाज में उपेक्षित स्त्री और बालिका दोनों हैं। जबकि देश के भविप्य के लिए इनको सुखी, स्वस्थ्य और खुशहाल रखा जाना चाहिए।’’ अन्ना फिर बोली।

‘‘ और फिर इतने सारे बन्धन। सब महिलाओं के लिए हैं। ’’ मिसेज प्रतिभा ने कहा।

‘‘ हां बन्धनों का अपना अलग इतिहास है। सदियों की गुलामी तथा रूढ़िवादिता ने बेड़ियां डाल दी है। विदेशी हमलेां से बचने के लिए नये नये बन्धन महिलाओं और बालिकाओं पर लगाये गये थे। ’’ अन्ना बोली।

‘‘ हां और फिर कई जगहों पर पैदा होते ही लड़कियों को मार डालने की परम्परा भी तो थी। ’’

‘‘ हां यह दुखद अध्याय भी था मगर यह समाप्त हो चुका है। ’’

हां इतिहास में रह गयी हैं ये बाते। मगर अभी भी इस देश में महिलाओं की स्थिति में सुधार हेतु बहुत कुद किया जाना है। ’’

‘‘ तुम ठीक कहती हो। तुम अपनी रिपोर्ट में कुछ सुझाव भी देना। ’’

‘‘ निश्चित रूप से। मैं चाहूंगी कि इस रपट के कुछ अंश छपें और उन पर बहस हो। ताकि आगे के कार्यक्रमों पर काम हो सके। ’’

‘‘ अन्ना एक बात बताओ। तुम्हारा प्रोजेक्ट तो अब शीघ्र ही समाप्त हो जायेगा। फिर सोचा है क्या करोगी।’’

‘‘कुछ नहीं सोचा। मैं सेाचना भी नहीं चाहती जो हाथ में है उसे पूरा कर लूं। बस फिर शायद वही उलझाव, भटकाव शायद वापस पापा के पास चली जाउं। वे हैदराबाद में हैं। नई मम्मी ने बड़े प्यार से बुलाया है मगर कुछ कह नहीं सकती। कुछ निश्चित भी नहीं है तुम जानती हो मेरा मन तो बस पंछी की तरह है बस उड़ जाना चाहती हूं। ’’

‘‘ तुम्हारा मन पन्छी है मगर सब कोई तो पक्षी नहीं बन सकते। रविवार को तुम्हारे जिजाजी आयेंगे। ’’

‘‘ अच्छा सच। कितनी खुशनसीब हो तुम।’’ दोनों हंस पड़ी।

रात गहरा रही थी। अन्ना व मिसेज प्रतिभा सो गये।

प्रधान जी ने अपनी कार्यवाही शुरू कर दी थी। प्राचार्य और अभिमन्यु बाबू अपने अपने काम में व्यस्त थे। कस्बे के स्थनीय लोगों में प्रधानजी तथा उनसे जुड़े निहित स्वार्थो वाले लोग इधर-उधर अभिमन्यु बाबू के खिलाफ जहर उगल रहे थे। इधर छात्रावास में भी छात्रों में फूट डालने की कोशिश की जा रही थी। वातावरण ठीक नहीं था। अभिमन्यु बाबू के बापू का स्वास्थ्य भी ज्यादा ठीक नहीं था।

इधर प्रधान जी राजधानी का चक्कर भी लगा आये थे। और उन्होंने कस्बे में अफवाह उड़वा दी थी कि शीघ्र ही प्राचार्य और अभिमन्यु बाबू को ठीक करने के आदेश राजधानी से आ जायेंगे।

छात्रावास में जिस ठेकेदार को अभिमन्यु बाबू ने घटिया और मिलावटी खाना खिलाने के कारण निकाल दिया था, वो ठेकेदार भी प्रधानजी के साथ था। विद्यालय में छात्रों में कई प्रकार की बीमारियां होने लग गयी थी। छात्रावास के मॉनिटर तथा प्रोक्टर भी असमंझस की स्थिति में थे। इसी बीच प्राचाय्र ने एक रोज स्टाफ मिटिंग बुलाई। वे बोले-

‘‘ शीघ्र ही छात्रों की परीक्षाएं होने वाली हैं। अधिकांश कक्षाओं में पाठ्यक्रम पूरा हो चुका है। ऐसी रिर्पोट मिली है। यदि किसी कक्षा में पाठ्यक्रम अधूरा है तो कृपया उसे पूरा करावें। ’’

‘‘ सर। परीक्षा के दिनों की ड्यूटी की स्थिति कैसी रहेगी। पिछली बार भी काफी तनाव था। ’’ एन्टोनी बोले।

‘‘ तनाव होते रहते हैं। हमें इन सबके बजाय स्वयं के काम की ओर ध्यान देना चाहियें ठीक है कि सांस्कृतिक कार्यक्रम के दौरान कुछ गड़बड़ी हो गयी। मगर ऐसा हर बार तो नहीं होगा। ’’ प्राचाय्र ने कठोर स्वर में कहा।

‘‘ फिर भी सर। कुछ सुरक्षा व्यवस्था।’’ गणित के महेश जी बोल पड़े।

‘‘ इस तरफ से आप निश्चिंत रहें। नकल विरोधी कानून पास हो चुका हे। मैं इसे पूरी सख्ती से लागू करूंगा। आप लोग निश्चिंत होकर परीक्षा व्यवस्था की ओर ध्यान दें। अपराधिक तत्वों को कोइ्र रियायत नहीं दी जायेंगी।’’

‘‘ सर मैं कुछ कहना चाहता हूं। ’’ अभिमन्यु बाबू ने अनुमति मांगी।

‘‘ यस मि. अभिमन्यु।’’

‘‘ सर क्या ऐसा नहीं हो सकता कि हम लोग छात्रों को पहले से ही इस प्रकार से तैयार करें कि नकल विरोधी कानून की आवश्यकता ही नहीं पड़े।’’

‘‘ वो कैसे।’’ प्राचार्य ने पूछा।

‘‘ पाठ्यक्रम समय पर पूरा होने के बाद यदि सभी छात्र अच्छी तैयारी करें तो इस अधिनियम की जरूरत ही नहीं पड़े। ’’ अभिमन्यु बाबू ने पूछा।

‘‘ ये थोथा आदर्शवाद है। ’’ एन्टोनी बोल पड़े।

‘‘ थोथा आदर्श नहीं, श्रीमान् हम अपने गिरेबान में झांकें क्या हम सब पाठ्यक्रम के साथ न्याय करते हैं। पाठ्यक्रम के साथ न्याय नहीं होने से भी नकल होती है।’’

‘‘ खैर छोड़ों इस बहस को। जरूरत पड़ने पर हम इस नियम का उपयोग करेंगे। आप लोग अपना अपना दायित्व पूरा करें। ’’

यह कह प्राचार्य ने उपवेशन समाप्त किया। और अभिमन्यु बाबू को अपने कक्षमें रोक लिया।

‘‘ देखो अभिमन्यु बाबू इस बार परीक्षा में आप को सहायक केन्द्राध्यक्ष बनाया जा रहा हे। ताकि सब कुछ व्यवस्थित और ठीक चले। ’’

‘‘ सर मैं अभी बहुत जूनियर हूं।’’

‘‘ सवाल सीनियर-जूनियर का नहीं। विश्वास का है, वैसे भी हमारे यहां के छात्रों का परीक्षा परिणाम शत-प्रतिशत रहता है। हां एक बात और प्रधानजी व उनके लोग अपना काम कर रहें हैं। तुम थेाड़ा सावधान रहना। ’’

‘‘ सर मेरा उद्देश्य तो केवल संस्था की प्रतिप्ठा को उपर उठाना है, मैंने हर काम को इसी कोण से देखा और सोचा है। ’’

‘‘ ठीक है तुम चलों। ’’

अभिमन्यु बाबू नमस्कार करके बाहर आये। स्टाफ रूम में मिसेज प्रतिभा तथा कुछ अध्यापक बैठे थे। शायद उन्हें इस बात की जानकारी मिल गयी थी कि अभिमन्यु बाबू को सहायक केन्द्रध्यक्ष बनाया गया है। मिसेज प्रतिभा ने बधाइ दी।

मगर कुछ अध्यापकों ने अभिमन्यु बाबू को देख कर मुंह बिचकाया। अभिमन्यु बाबू ने शालीनता से कहा।

‘‘ मुझे आप सभी लोगों के सहयोग की आवश्यकता है। परीक्षा का काम सभी का काम है। हमें विद्यालय में व्यवस्था को बनायें रखना हे। और हमारा विद्यालय तो जिले में अव्वल रहता हे। ’’

‘‘ हां वो तो आप नहीं थे तब भी अव्वल था। ’’ एन्टोनी ने कहा।

‘‘ हमें इस परम्परा को बनाये रखना है। ’’

तभी चपरासी ने आकर कहा।

‘‘ सर। आपके पिताजी की तबियत बहुत खराब है।’’

अभिमन्यु तुरन्त अपने क्वार्टर की ओर चल पड़ा। वहां पहुंचकर देखा पिताजी बेहोश थे। छात्रों का एक झुण्ड भी वहां था। मां ओर कमला रो रही थी। उन्होंने तेजी से छात्रों को हटाया मां-कमला को सांत्वना दी। और बापू को अस्पताल ले जाने की तैयारियां की। अस्पताल में डाक्टरों ने जांच के बाद बताया कि किडनी का आपरेशन होगा। और अभी करना होगां तुरन्त खून की जरूरत थी। अभिमन्यु बाबू ने अपना खून देने की पेशकश की। तब तक छात्रावास के छात्र और प्रतिभा तथा अन्ना भी वहां पहुंच गयी थी। छात्रों में से केवल दो छात्रों का खून मिला। छात्र मोहम्मद शरीफ तथा एन्थेनी का खून रोगी के खून से मिला। वास्तव में सभी के समझ में आ गया कि खून जात-पात, सम्प्रदाय, छोटे-बड़े में विभिजित नहीं किया जा सकता। साम्प्रायिकता से उपर होता है खून का रंग जो केवल लाल होता हे।

अन्ना का खून भी मिल गया। इस प्रकार बापू को अन्ना व मोहम्मद शरीफ का खून चढ़ाया गया। उनका आपरेशन सफल रहा।

ष्शाम को अस्पताल में बापू की जिन्दगी और मोत की लड़ाई में डाक्टर जीत गये थें आपरेशन के बाद देखभाल की जिम्मेदारी अन्ना, मां और कमला ने अपने सिर पर ले ली। बापू ज्यादा बोल नहीं सकते थे, मगर चुपचाप आंखों से सब व्यक्त कर देते थे।

अभिमन्यु के बापू अस्वस्थ तो थे, मगर मन से कुछ कहना ओर करना चाहते थे, उन्होंने इश्शरे से अभिमन्यु को अपने पास बुलाया और अटकते हुए कहा-

‘‘ बेटे इस नश्वर देह का क्या भरोसा। कब क्या हो जाये। मेरी बड़ी इच्छा है कि शरीर किसी के काम आ जाये। बेटे मेरी तम्मना है कि मैं अपने शरीर का दान कर दूं। नेत्रादान तथा देहदान के फार्मो पर दस्तखत कर दूं। तुम बचे हुए काय्र कर लेना। ’’

अभिमन्यु की मां भी यह वार्तालाप सुन रही थी। तुरन्त बोल पड़ी।

बेटा दो फार्म लाना। एक मेरे लिए भी। ’’

‘‘ क्यों मॉं ऐसा क्यों ? ’’

बेटा इससे बड़ा पुण्य का काम और क्या हो सकता है कि मेरी मृत्यु के बाद मेरी आंखों से कोइ्र नेत्रहीन व्क्ति इस दुनिया को देख सके और इस संसार का आनन्द ले। मैं भी तेरे बापू की तरह ही नेत्रहीनका पुण्य कमाउंगी। ’’

‘‘ अच्छा मां जैसी आप दोनों की इच्छा। ’’

शाम को अभिमन्यु ने आकर फार्मो पर माता पिता के दस्तखत कराकर स्थानीय चिकित्सालय में जमा कर दिये ताकि देह दान का काम सफल हो सके।

अभिमन्यु के माता पिता द्वारा देहदान का समाचार अखबारों में बड़ी सुर्खियों में छपा। वास्तव में स्वास्थ्य शिक्ष में अखबार बहुत महत्वपूर्ण भूमिका अदा कर सकते हैं। अभिमन्यु के माता पिता को इस सत्कर्म के लिए चारों तरफ से बधाई मिली।

इससे प्ररित होकर कस्बे के कई लोगों ने भी नत्रदान हेतु फार्म भरे। शुरू में कुछ लोग इस काय्र से असंतुप्ट थे। मगर जब उन्हें बताया गया कि व्यक्ति की मृत्यु के बाद ही नेत्रों तथा देह के अन्य अंगों को काम में लिया जाता है तो काफी ज्यादा संख्या में नेत्रदान के फार्म भरे गये। लेकिन प्रधान जी व उनके आदमी इस काम से भी नाराज हुए। उनके आदमियों ने पूछा ‘‘ मृत्यु के बाद शरीर की ऐसी दुर्दशा। नरक मिलेगा। ’’

किन्तु लोगों ने प्रधानजी की बातों की ओर ध्यान नहीं दिया। नेत्रदान एक संकल्प की तरह हो गया। नेत्रदान महादान व देहदान के नारे से कस्बा गूंज उठां

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