आओ चमचागीरी सीखें - व्यंग Deepak Bundela AryMoulik द्वारा हास्य कथाएं में हिंदी पीडीएफ

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आओ चमचागीरी सीखें - व्यंग

कलम दरबारी की कलम से

“आओ चमचागीरी सीखें”

कसम है उन चम्चगीरों की जिन्होने पूरे देश के कर्मठ लोगों को अपना पालतू बना रखा है…बगैर चमचों के बड़ा आदमी इनके बगैर दिशा हीन है….एक चम्मचें ही है जो उन्हे राह दिखाते है….बगैर चमचों के चश्में से वे दुनिया नहीं देख पाते तभी तो बड़ी-बड़ी डिग्रीधारी उनके आगे धूल झाड़ते घूमते है….अब घूमें भी क्यो ना ऐसो ने अपना आधा जीवन तो डिग्रियां लेने में ही लगा दिया…काश हमने भी आज इस महारथ को पाने के लिए किसी गुरू को तलास लिया होता तो आज हमें चम्मचों की चमचागीरी नहीं करनी करनी पड़ रही होती……!

हमारे बाप दादो ने कभी चमचागीरी नहीं की और ना ही करवाई लेकिन जमाने के साथ चमचागीरी का युग कब हावी होता गया ये हमें पता ही नहीं चला, जब दाल रोटी की जुगाड़ में अपनी डिग्रीयों के बल पर हम जब घर से बाहर निकले तो नौकरी की तलास में 5-6 वर्ष कैसे खिसक गये ये हम जान ही ना पाए….जहां भी नौकरी लगती 6-7 माह से ज्यादा टिक ही नहीं पाते ज्यादा से ज्यादा एक साल लेकिन हमे नौकरी में कहीं भी स्थाईपन नसीब ना हो सका….और इसी भेड़ धुन में हम ओवर ऐज की सीमा भी पार कर चुके थे….हमारी सारी डिग्रीयां अब शोपीस में सजाने भर की रह गयी थी….इन्हे पाने के चक्कर में हम सिर्फ और सिर्फ घर वालों का पैसा ही फूंकते रहें इतने सालों बाद हमारी खोपड़ी में एक बात समझ में आई के बगैर चमचागीरी के हुनर से कुछ नहीं हो सकता…..

अब आप ही देखों अगर हम कुछ गलत कह रहे तो आप चाहे सजा दो हमें मंजूर है…अधिकतर लोग इस कला के सपोर्ट से अपने जीवन की गांड़ी हाक रहें है…क्योकि डिग्री और हुनर के साथ चमचागीरी का हुनर भी होना बहुत जरूरी है……ये हम जान चुके थे…

कभी-कभी तो ऐसा लगता है कि ये सारी गल्ती सरकार की ही है जिसने शिक्षा के सिलेवस में इस कला को तबज्जों नहीं दी अगर सिलेवस में एक चेप्टर चमचागीरी का होता तो आज हम ना जाने कहां से कहां पहुंच गये होते… ये बात हम यकीन से बोल रहें है… देश से बेरोजगारी और गरीबी काफी हद्द तक मिट गयी होती इतना ही नहीं भ्रष्टाचार का जिन्न कभी भी दौलत के चिराग से बाहर नहीं आता….पूरे देश में सिर्फ और सिर्फ खुसामत होती भाई चारा होता और चमचागीरी का नारा होता और चमचागीरी ही प्रथम मुद्दा होती उसी के आधार पर पगार होती और तो और अपराधओं की सजा होती….और चमचागीरी की प्रजा होती…और आंदोलन भी होते तो चापलूसी के आधार पर होते…

अगर गौर फरमाए तो ये गुण हर किसी में पैदाईशी होता है जिसे जरूरत के हिसाब से स्तेमाल किया जाता है…जो लोग इस कला को पहचान लेते है वे वाकई बड़े बुद्धिमान होते है….डिग्रीधारी तो सिर्फ कोल्हू का बैल की तरह पिसते-पिसते दुनिया से कूच कर जाते है…

देश में हर ओर चापलूसी की तूती बोल रही है चाहे वो नेताओं की जमात हो या सरकारी विभाग हो बगैर इसके तो पत्ता भी नहीं हिलता…अब देखने में तो ये लगता है कि चापलूसी निहायती घटिया होती है लेकिन जनाव आज यही चापलूस देश के ज्ञानियों की बुद्धि बने हुए है…..अब आप ही बताओं बुद्धि बड़ी या चापलूसी….?