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शक्ति



कहानी = "शक्ति"
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रात के 3:00 बजे थे भोपाल स्टेशन पर रेल की आने की आहट पाकर सारे ऑटो वालों की हलचल तेज हो गई थी।
भले हो भी क्यों नहीं रात में ही तो कमाई का सही समय है क्योंकि कोई भी सवारी रात का अधिक रुपए देने के लिए थोड़ी ना नुकुर के बाद मान ही जाती है एक तो रात का समय होता है इसलिए रामदास को भी आती सवारी के पीछे -आगे आकर के चलिए,..भाई साहब कहां चलना है चलिए,.... मेरा ऑटो यहीं पर खड़ा है।
चलो मैं बड़े आराम से ले चलता हूं एक सवारी रामदास से जगह और रुपए की बात करके बैठ जाती है।
(रामदास साधारण कद काठी का ऑटो वालो की खाकी ड्रेस में सबसे मुस्कुरा के बात करने वाला व्यक्ति है)
रामदास बातचीत करते-करते उनकी बताई हुई जगह पर पहुंचकर रुपए लेते ही घड़ी में समय देखते हुए कुछ 15 मिनट में एक और ट्रेन के आने का समय हो गया है बस यही सोच कर के जल्दी ही अपना ऑटो वापस स्टेशन की ओर बड़ा ही था कि तभी एक ट्रक बड़ी ही तेजी में उसके ऑटो के आगे आकर के रामदास के ऑटो को जोरदार टक्कर मार के जल्दी हड़बड़ी में भाग निकला इधर रामदास तो ऑटो सहित रोड पर बिछा पड़ा था अब तो वह हिल भी नहीं पा रहा था वह तो सर में चोट खाए हुए ऑटो के नीचे पड़ा था ।
बड़ी हिम्मत से सर से निकलते खून के बाद भी वह बड़ी ही मुश्किल से बाहर तो आ गया परंतु वहां आसपास नाही किसी व्यक्ति की गाड़ी थी और ना ही कोई व्यक्ति अब तक रामदास तड़प ही रहा था।
परंतु हिम्मत बांधे था खून लगातार बाहर जा रहा था वह सड़क पर पड़े- पड़े अपने परिवार को याद कर रहा था कितने संघर्ष भरी गांव की भुखमरी भरी, जिंदगी छोड़कर वह और उसकी पत्नी शक्ति और चार लड़कियों को लेकर शहर आए थे, ताकि जीविका चला सके पूर्णता पेट भर खाना खा सके और बच्चियों को कुछ शिक्षित करके वह दोनों पति-पत्नी तो पढ़े नहीं है पर बच्चों को पढ़ाना चाहते थे इसलिए शहर में रामदास ने ऑटो चलाना सीखा और किराए के ऑटो से एक दिन - रात ऑटो की आय से लोन लेकर अपना ऑटो लिया था!
अब रामदास की सांसे थमने लगी ऑटो की ओर देखते- देखते चल बसा। सुबह भीड़ ने रामदास को देखा तभी उसका साथी ऑटो वाला उसकी रास्ते से निकला सड़क पर भीड़ देखकर वहीं जिज्ञासा के कारण भीड़ में घुसा तो वह ऑटो और रामदास के शरीर को देखकर पहचान गया।
वहां रामदास को हिलाता है,.. परंतु रामदास तो राम को प्यारा हो चुका था जैसे- तैसे करके रामदास की ओर उसके ऑटो को घर पर लाया जाता है।
वहां पत्नी शक्ति रामदास के लिए चाय-नाश्ते के इंतजाम में लगी थी, और बच्चियाँ तो स्कूल के लिए अपने-अपने बैग जमा रही थी।
(रामदास का साधारण किराए के दो कमरे का मकान था सामने आंगन था)
कि तभी एंबुलेंस की गाड़ी का शोर सुनाई देने लगा गाड़ी ठीक घर के सामने खड़ी हुई थी और बड़ी बेटी ने यूं ही घर के सामने दरवाजे से बाहर देखा कि गाड़ी का दरवाजा खुला और क्या देखा उसमें उनके ऑटो वाले चाचा जी बाहर आते हैं और उनकी आंखों में आंसुओं का सैलाब भरा था।

चाचा जी ---(उसे देखते ही )...बिटिया जाओ कोई घर में बड़ा व्यक्ति हो ,...... बुलाकर लाओ।
( कहते- कहते जाओ बिटिया जाओ ना कोई बड़े व्यक्ति को बुलाकर लाओ बिटिया ना चाहते हुए भी उनकी सिसकियां बाहर आंसू के साथ निकल रही थी)

बड़ी बेटी--- मम्मी,.. मम्मी चाचा जी बाहर एंबुलेंस में आए हैं और वह रूआसे स्वर में किसी बड़े को बुलाने को कह रहे हैं।
चलो,.. चलो ना मुझे कुछ अजीब सा लग रहा है----मां ठीक है,... ( घबराते हुए स्वर में)
शक्ति जल्दी यदि तेज कदमों से बाहर आती है क्योंकि वह भी कहां बीती रात को सो पाई थी,. पूरी रात अजीब घबराहट और बेचैनी से गुजारी थी शक्ति 3:00 बजे से दिल में अधिक भारीपन महसूस कर रही थी,.. जैसे किसी अनहोनी का अंदेशा हो रहा था ,बीती रात हवाओं ने भी तो बहुत तेज चल करके इस बात का समर्थन किया था और यह बात सुनकर के की एंबुलेंस घर के बाहर आई है वह बहुत अधिक डर के घर के बाहर कदम रखती है, रामदास का दोस्त उसे देख कर रोने लगा ।
शक्ति--- क्या हुआ?....

दोस्त ---(इशारे से एंबुलेंस की ओर दिखाया रोते हुए) भाभी जी आपको हिम्मत रखनी होगी!

"शक्ति" ....यह वाक्य सुन तेजी से एंबुलेंस की ओर दौड़ती है जहां पर एक स्ट्रेचर पर रामदास का शरीर था वह रामदास को हिला कर बोली क्या हुआ आप को उठो चलो मैंने आपके पसंद का नाश्ता बनाया है चलो उठो ना जी,... क्यों सोए हो,... आपको तो अभी बच्चियों को स्कूल छोड़ने जाना है।

शक्ति गफलत में बेहोश हो जाती है रामदास का शरीर वहीं पास में लिटा कर सारे करीबी रिश्तेदारों को खबर की जाती है फिर अंतिम संस्कार और अन्य सारे कार्यक्रम होता है जैसे- तैसे 13 दिन तो बीत गए थे और सारे रिश्तेदार भी अपने -अपने घर चले गए थे, अब रह गई बेचारी शक्ति और 4 बच्चियां अब सबसे बड़ा सवाल था,.. घर खर्च और किराए के मकान का किराया,वह अकेली क्या करें?.. और कैसे करें?... क्योंकि पढ़ी-लिखी भी नहीं थी!.. गांव की सीधी-सादी एक महिला यह सोचते -सोचते आंखों में आंसू का सैलाब ले वह बाहर आंगन में खड़े रामदास के ऑटो को शक्ति की नजर पड़ती है, वह याद करने लगती है कैसे 1 दिन रामदास की ज़िद पर शक्ति ने राम दास से ऑटो चलाना सीखा शक्ति यादों के समुंद्र में खो जाती है!...

रामदास रात की सवारियों को लाना ले जाना करके उस सुबह कितना थका हुआ,घर आया था उसने नाश्ता करके सोने की इच्छा जाहिर की थी।
शक्ति -- सुनो जी बच्चियों को स्कूल छोड़ के आ जाओ।
(तेज आवाज में ऑर्डर शक्ति की ओर से आया था),.. परंतु रामदास बड़े ही अनमने मन से उठा था,.. तभी शक्ति ने कहा सुनो जी यदि मुझे आपका ऑटो चलाना आता तो,... मैं ही छोड़ आती बच्चियों को तभी रामदास बोला तो इसमें कौन सी बड़ी बात है ,,,, ऑटो चलाना सीखना चाहती हो चलो तो मेरे साथ,..

शक्ति ---अजी छोड़ो आप तो जल्दी छोड़ कर आओ और सो जाओ क्यों मस्करी कर रहे हो मैंने तो यूं ही कह दिया था।
रामदास--अब बोला है तो चलना ही पड़ेगा और ज़िद करने लगा।

शक्ति--- आप मानोगे थोड़ी ,...
अच्छा चलो!
बच्चियों को जल्दी स्कूल पहुंचाना है ना!
(मुस्कुराते हुए रामदास के साथ बैठ जाती हैं)
रामदास ने स्कूल से छोड़ के आते समय अब रोज शक्ति को आटो चलाना सिखाना शुरू कर दिया। जैसे कि शक्ति में आत्मविश्वास का संचार कर दिया था।
शक्ति अब अच्छे से आटो चलाने लगी थी रामदास हमेशा शक्ति का उत्साह बढ़ा रहता और कहता रहता था शक्ति तू किसी से कम नहीं उसकी यह बात आज शक्ति के कानों में गूंज रही थी वह वही आंगन में आटो को निहार रही थी और जैसे रामदास पहले शक्ति को आत्मनिर्भर बनाकर चला गया था।
अब शक्ति के सारे सवालों का जवाब वही सामने था वह अपलक उसे निहारे जा रही थी।


सरिता बघेला "अनामिका"

(यह कहानी और भी आगे हैं )

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