वीकेंड चिट्ठियाँ - 20 Divya Prakash Dubey द्वारा पत्र में हिंदी पीडीएफ

Featured Books
श्रेणी
शेयर करे

वीकेंड चिट्ठियाँ - 20

वीकेंड चिट्ठियाँ

दिव्य प्रकाश दुबे

(20)

तुम्हें dear लिखूँ या dearest,

ये सोचते हुए लेटर पैड के चार कागज़ और रात के 2 घंटे शहीद हो चुके हैं। तुम्हारी पिछली चिट्ठी का जवाब अभी तक नहीं मिला तो सोचा कि पिछले दिनों दिवाली की छुट्टी थी। डाकिये को मैंने दिवाली ‘का कुछ’ अलग से नहीं दिया था इस चक्कर में उसने चिट्ठी दबा ली होगी।

सही कहती हो तुम फ़ोन पर कि आज कल चिट्ठियाँ लिखता कौन है। मैं भी नहीं लिखना चाहता चिट्ठी-विट्ठी लेकिन मैं इस भाग दौड़ के बीच में इतमिनान से तुम्हारा इंतजार करना चाहता हूँ। चिट्ठियाँ का इंतजार तुम्हारा इंतजार लगता है। हर चिट्ठी अपने आप में एक कहानी होती है।

कम से कम लिखते हुए तुम कुछ देर के लिए अपने मोबाइल का डाटा ऑफ करके सिर्फ और सिर्फ मेरे बारे में कुछ सोचती होगी। मुझे बड़ा क्यूट लगता है जब लेटर बॉक्स में चिट्ठी डालने के बाद तुम तुरंत व्हाट्स एप्प करके बताती हो कि चिट्ठी पोस्ट कर दी है और शाम को ऑफिस के बाद मैं तुमको लेने आ जाऊँ।

एक ही शहर में रहते हुए लगता है कि हमने सबसे छुपाकर अपनी चिट्ठियों का एक चिड़ियाघर बना लिया है जिसकी टूटी हुई, रंग छोड़ चुकी बेंच पर तुमसे मिलकर कुछ पूरा होता जाता है। जहाँ मॉल जितनी भीड़ नहीं है। मुझे दिक्कत भीड़ से नहीं शोर से होती है। भीड़ हो शोर न हो तो मैं झेल जाऊँ। शोर में मुझे डर लगता है कि मैं तुम्हें ज़ोर से चिल्ला कर बुला नहीं पाऊँगा कोई मेरी आवाज़ दबा लेगा। मॉल मुझे मेले जैसे लगते हैं जिसमें हर बार कुछ खो जाता है।

अच्छा ठीक है बस, बहुत फ़िलॉसफ़ी झाड़ ली मैंने। क्या करूँ चिट्ठियों में फ़िलॉसफ़ी ‘चल’ जाती है जैसे व्हाट्स एप्प पर जोक्स ‘दौड़’ जाते हैं।

मैंने जो लिखा है वो जो कुछ भी है उसका जवाब तो क्या लिखोगी बस जो मन में आए एक चिट्ठी में लिखकर पोस्ट कर देना। चिट्ठियों में हम कोई सवाल-जवाब, हिसाब-किताब नहीं करेंगे। अच्छा ठीक है ज़्यादा नहीं चार लाइन ही सही लेकिन लिखना जरूर।

चिट्ठी बैरंग भेजना, बिन टिकट चिट्ठी जल्दी और जरूर पहुँचती है।

तुम्हारा दिव्य

Contest

Answer this question on info@matrubharti.com and get a chance to win "October Junction by Divya Prakash Dubey"

दिव्य प्रकाश दुबे की किताब मसाला चाय का कवर किस रंग का है ?