कल होली थी | सौरभ और सुरभि अपने पापा के साथ बाजार से ढेर सारा गुलाल, रंग, पिचकारी, मिठाई आदि लेकर आए थे | दरवाजे पर कदम रखते ही सौरभ चिल्लाया, “देखो माँ , हम लोग पूरा बाजार ही उठा लाए |” और इसी के साथ सौरभ और सुरभि बाजार से लाए सामान खोल-खोलकर माँ को दिखलाने लगे | तभी दरवाजे की घंटी बजी | माँ ने दरवाजा खोला | काम वाली बाई आई थी | उसके साथ उसकी छोटी बेटी भी थी |
“यहाँ कोने में बैठ जाओ गुड़िया ! जल्दी जल्दी काम निपटाकर बाजार चलेंगे | फिर तुम्हें नई फ्राक दिलवाऊँगी | अब रोना बिलकुल नहीं..!” काम वाली बाई ने कहा और फिर रसोईघर में घुस गई |
उसकी बात सुनकर माँ ने गुड़िया की ओर देखा | वास्तव में गुड़िया की आँखों में आंसू तैर रहे थे | शायद वह इससे पहले बहुत रो चुकी थी | गुड़िया के सिर पर हाथ फेरते हुए माँ ने पूछा, “तू तो बहुत अच्छी गुड़िया है | नन्हीं मुन्नी , प्यारी प्यारी ...फिर भी रोती है ? तेरी माँ तो तुझे अच्छी सी फ्राक दिलवाने जाएगी बाजार...!”
माँ की बात सुनकर काम वाली बाई ने कहा, “यह इसलिए रो रही है मालकिन जी, कि इसे लम्बी वाली पिचकारी चाहिए है | मोहल्ले के बच्चों को पिचकारी और फुव्वारे से रंग चलाते देखकर यह भी मचल रही है | अब आप ही बताओ , यदि मैं सारे पैसे बड़ी सी पिचकारी खरीदने में ही खर्च कर दूंगी तो इसके लिए फ्राक कहाँ से खरीद पाऊँगी ?”
माँ और बाई की बातें सौरभ और सुरभि भी सुन रहे थे | उन्हें यह जानकर बहुत अफ़सोस लगा कि गुड़िया होली पर लम्बी सी पिचकारी से रंग इसलिए नहीं खेल पायेगी, क्योंकि उसकी माँ के पास इसके लिए पैसे नहीं हैं | तभी सुरभि , सौरभ के कान के पास अपना मुंह ले जाकर फुसफुसाई, “भैया, पिछले साल हम लोगों ने जो लम्बी वाली पिचकारी खरीदी थी, वह तो रखी है न ! हम लोग इस साल नई पिचकारी खरीद लाए हैं | यदि पिछले साल वाली पिचकारी गुड़िया को दे दें तो यह भी मोहल्ले के बच्चों के संग लम्बी वाली पिचकारी से होली खेल पायेगी |”
सौरभ को सुरभि की बात बहुत अच्छी लगी | उसने तुरंत सहमति में अपना सिर हिलाया और भागकर ऊपर छत पर रखी पिछले साल वाली पिचकारी उठा लाया | यह देखकर पापा ने कहा, “सौरभ, यह पिचकारी क्यों उठाकर लाए हो?”
“पापा, मैं ये पिचकारी गुड़िया को दे देता हूँ | सुरभि भी यही चाहती है | इस पिचकारी को पाकर गुड़िया भी होली वाले दिन सबके साथ रंग खेल पायेगी |” सौरभ ने पापा की ओर देखकर कहा |
सौरभ की बातें सुनकर पापा के चेहरे पर मुस्कान छा गई | काम वाली बाई भी सौरभ की बातें सुन रही थी | उसकी आँखों में खुशी के आंसू की बूंदे तैरने लगीं थी | मन ही मन उसने सौरभ और सुरभि को अनगिनत आशीष दे डाले | माँ ने सौरभ का मस्तक चूमते हुए कहा, “सचमुच खुशियाँ बांटने से और बढ़तीं हैं | तुम दोनों ने पिचकारी गुड़िया को देकर बहुत अच्छा काम किया है | इससे गुड़िया के मन में भी खुशियों के फूल खिल उठेंगे |”
सौरभ और सुरभि ने जब गुड़िया को पिचकारी पकड़ाई तो गुड़िया के रोते चेहरे पर मुस्कान फ़ैल गई |
- डा.देशबन्धु ‘शाहजहाँपुरी’
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