आयम स्टिल वेटिंग फ़ॉर यू, शची - 3 Rashmi Ravija द्वारा फिक्शन कहानी में हिंदी पीडीएफ

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आयम स्टिल वेटिंग फ़ॉर यू, शची - 3

आयम स्टिल वेटिंग फ़ॉर यू, शची

रश्मि रविजा

भाग - 3

(अभिषेक, एक पत्रिका में कोई रिपोर्ट लिखने के उद्देश्य से एक कस्बे में आता है. पर वहाँ की धीमी गति से गुजरते जन जीवन से एक दिन में ही बहुत ऊब जाता है. तभी एक दुकान पर उसे एक नारी कंठ सुनायी देता है. वह चेहरा नहीं देख पाता. उसे शची की आवाज़ लगती है और वह परेशान हो उठता है. अपने गेस्ट हाउस में लौट वह पुरानी यादों में खो जाता है कि शची नयी नयी कॉलेज में आई थी. आते ही लोकप्रिय हो गए थी. मनीष उसे शची का नाम ले छेड़ने लगा था. जब उसने उसे उल्टा ही चिढाया तो मनीष ने बताया कि वह उसे राखी बाँध चुकी है और माँ को बचपन में ही खोकर बिलकुल अकेली है )

सूने घर में बैठा, वह एक किताब के पन्ने पलट रहा था, जिसे शची ने बहुत इंटरेस्टिंग बताया था. पर उसका तो मन ही नहीं लग रहा. बार बार ध्यान उचट कर शची की तरफ चला जाता. ओह! कैसे हो सकता है इस तरह दो चेहरा किसी का?. इतनी खुश दिखने वाली शची का असली रूप कुछ और है? वह तो सोच बैठा था, ईश्वर कुछ ज्यादा ही मेहरबान है शची पर. इतनी जल्दी अटूट लोकप्रियता हासिल कर लेना और इतनी छोटी सी उम्र में ही अखबार का एक जाना-पहचाना हस्ताक्षर बन जाना. ईश्वरीय कृपा से ही तो संभव था. रश्क भी हो आया था उसे, शची की किस्मत पर. लेकिन सारी धारणा मिथ्या निकली. पर कैसे शची सब कुछ परे धकेल इतना हंसती रहती है. शायद इसीलिए ज्यादा हंसती है, ज्यादा बोलती है., ज्यादा चहकती है.

तभी, एकाएक जैसे अपनी ही चोरी पकड़ ली, उसने. दूसरे शची का नाम भी लें तो फुफकार उठता है और खुद क्या कर रहा है तब से? कहने को तो तीन पन्ने पलट लिए उसने पर दिमाग तक क्या गया, एक अक्षर भी? वहाँ तो जैसे शची ही आसन जमा कर बैठ गयी है. तो क्या वह, सच में.. ??.. ओह्ह नो!... इट्स ऑल रब्बिश. सिहर कर इधर उधर नज़र दौड़ाया, कोई देख तो नहीं रहा? फिर खुद ही इस विचार पर हंस पड़ा. कोई देखे भी तो क्या समझेगा, भला?. कि साहबजादे गुम हैं किसी माहज़बीं के ख्यालों में. पहली बार ऐसा हुआ कि क्रिकेट, फिल्म, किताबों या म्युज़िक से अलग कहीं और उलझा था मन. आजतक तो नहीं हुआ कभी ऐसा? फिर डांट दिया खुद को. क्या बिना सर पैर की बात सोचे जा रहा है. कुछ पिक्युलिअरीटी नज़र आई तभी तो ध्यान गया उसका. नए सिरे से किताब में मन लगाने की कोशिश की. पर शायद किताब के भाग्य में यह शाम नहीं लिखी थी. ऋचा आती दिखी, अब तो हो गयी घंटे भर की छुट्टी. फिर भी नज़रें किताब पर ही जमाये रखा.

आदतवश ऋचा ने दरवाजे पर से ही बोलना शुरू कर दिया., " भईयाsss.... कोई नयी लड़की आई है तुम्हारे कॉलेज में 'शची शिवालिका ' नाम की?"

ओह! तो क्या वह अनजाने में कुछ बोल गया और ऋचा ने चुपके से सुन लीं उसकी बातें. इसके लिए कुछ भी असंभव नहीं. जासूसी की पुरानी आदत है इसकी. बचपन में जब भी किताबों के बीच छुपाकर कॉमिक्स पढता, तुरंत शिकायतनामा ले पहुँच जाती, ममी के पास. उसने बिना किताब से नज़रें हटाये, पूछा, " तुम्हे कैसे पता? '

"मैं गयी थी उनके यहाँ"

बौखला गया वह, सरासर मजाक बना रही है ये लड़की. जरूर कोई सुराग लग गया है, उसके हाथों. लेकिन वह भी आसानी से फंदे में नही आने वाला. डपट कर बोला, "झूठ बोलने में तो डिप्लोमा ले रखा है तूने. वहाँ कैसे चली गयी? "

"लो, ममी डैडी के साथ गयी थी. और तुम इतना क्यूँ चिढ रहें हो, झगडा है क्या उनसे?"

"देख, ऋचा पहेलियाँ ना बुझा. वहाँ से परिचय कैसे हुआ?"

'अरे! नहीं जानते... ऋचा ने पलकें झपका, हाथ घुमा नक़ल उतारी और बोली "इन्हीं की 'सिस्टर इन ला' हैं"

"ओह! यू मीन डॉक्टर माथुर. "

"हूँ... यानि शकुन भाभी की बहन. आज बर्थडे था ना उनकी साहबजादी का. बड़ा मजा आया. तुम तो कभी जाते नहीं साथ. शची दी से तो एक मिनट में दोस्ती हो गयी, मेरी. "

"तेरी दोस्ती का क्या, दूसरे ही मिनट दुश्मनी में बदल जायेगी. "

"हुहँ", मुहँ बिचकाया ऋचा ने, " छुट्टी कर देंगी तुम्हारी. बड़े हीरो बने घूमते हो ना. सुना है, हमेशा फर्स्ट क्लास मिली है, उन्हें. और गाती तो क्या हैं. ऐसा लगता है लता, आशा, गीता दत्त सबकी आवाज़ मिक्स हो गयी है. ".. फिर हंस पड़ी... "भैया तुम कभी हिम्मत ना करना उनके सामने गाने का. ऐसा लगेगा जैसे सितार के साथ नगाड़े की जुगलबंदी कर दी गयी हो. "..

"ऋचाsss...... " चिल्ला उठा वह

"और लिखती भी है, अखबारों में "... ऋचा ने चिढाया.

"तू जाती है या नहीं यहाँ से... मेरी क्लास मेट है तुझसे ज्यादा जानता हूँ, उसके बारे में. पढने दे. डिस्टर्ब मत कर मुझे".... और किताब की तरफ हाथ बढ़ाया ही था कि ऋचा ने उठा ली और मुहँ बनाते हुए बोली, "ओह हो हो... जैसे कोर्स बुक पढ़ रहें हो. "
और किताब ले कमरे से भाग गयी.

"ममीsssss..... "... चिल्लाता हुआ वह भी भागा उसके पीछे.

000

'कॉलेज डे' की गहमागहमी में सब व्यस्त हो उठे थे. कितनी बार जी चाहा, एक बार मनीष के साथ शकुन भाभी के यहाँ जाकर चौंका दे, शची को. पर मनीष तो जैसे कॉलेज का सबसे चुस्त दुरुस्त छात्र होने का सर्टिफिकेट लेने वाला था. कभी स्पौन्सर्स ढूंढ रहा है, कभी चीफ गेस्ट की खोज में लगा है तो कभी रिहर्सल देख रहा है. शची भी ऐसे ही व्यस्त थी. लेकिन उसने सबसे हाथ खींच लिया था. पूरे मनोयोग से क्लास अटेंड करता मानो परीक्षाएं शुरू होने वाली हों. यही पिछले साल कितना दौड़ता फिरता रहा था. जैसे पैरों में मशीन लगी हो. इस बार तो एक बार रिहर्सल देखने भी नहीं गया और गलत ही किया. उसे यूँ वीतराग देख सबकी निगाहों में कुछ तैर गया.

करीब करीब सबने उसे मनाने की बहुत कोशिश की. प्रोफ. सुगंधा ने भी उसे अलग बुलाकर आग्रह किया. पर पता नहीं उस पर कैसी जिद सी सवार हो गयी थी. नहीं होना है शामिल, बस. एक बार तो यह प्रण टूटता सा लगा. जब रितेश, विजय, विंशी, कविता आदी ने उसे घेर लिया, शची भी उनके साथ थी. सब उसका ब्रेन वाश करने में लगे थे. पर शची यूँ ही किताबों पर पेन ठकठकाती हुई, इधर उधर देख रही थी, जैसे बहुत ही निरर्थक लग रही हो, ये बहस. जैसे ही विजय, एक पल को रुका. शची बोल उठी, "लेट्स मूव गाईज़, रिहर्सल के लिए देर हो रही है. " सब उसकी बात मान चल दिए.

आँखें सिकोड़ वह, उन्हें दूर तक जाते देखता रहा. एक मन हुआ कि आवाज़ दे दे, वह भी आ रहा है. उसके जाते ही कैसे शची साइड लाइन हो जाती, पता भी नहीं चलता पर अभी शामिल ना होने के पक्ष में अपने दिए सारे दलील उसे याद हो आए.

दो दिन कॉलेज जाना भी गुल कर गया. सारे दोस्त तो बिजी थे. मन नहीं लगता उसका. ऐसे में मनीष उसकी खोज खबर लेने घर आया. मनीष के घर में कदम रखते ही माँ, ऋचा यहाँ तक कि नौकर भी 'कैसे हो मनीष भैया?' कहते उसके इर्द गिर्द ही सिमट आते. हमेशा उसे ही अपने कमरे से निकल मनीष को उनके बीच से छुडाना पड़ता था. पर आज वो नहीं गया. मनीष डाइनिंग टेबल पर बैठा, ममी और ऋचा से गप्पे लगाता रहा. उसे आवाज़ भी दी, "अरे अभिषेक निकल, अपने कोप भवन से". माँ भी बोल पड़ी, " बस सारा दिन कमरे में पड़ा फिल्म देखता रहता है, जोर जोर से म्युज़िक सुनता रहता है या किताबों में डूबा रहता है. क्या होगा इस लड़के का. "

वह फिर भी नहीं गया तो मनीष, 'रामेश्वर' को दो कड़क चाय लाने को बोल खुद ही कमरे में आ गया. आते ही उसके बिस्तर पर पसर गया, 'ओह ये राजसी ठाट हैं तेरे. परदे खींचे हुए, पंखा चल रहा है. जगजीत साहब गा रहें हैं और हाथों में किताब अहा हा. "

"अरे कभी कभी ये नसीब होता है. वो भी तेरे जैसे दोस्तों से नहीं देखा जाता. आ गया चौपट करने "

पर मनीष मजाक के मूड में नहीं था, 'यार तू इतना अलग थलग क्यूँ पड़ गया है. कम से कम मैनेजमेंट तो देख. किसी इवेंट में पार्टिसिपेट नहीं करना है. मत कर. पर परदे के पीछे का काम तो संभाल" और फिर हंस कर जोड़ा, "वहाँ तेरी शची से मुठभेड़ भी नहीं होगी. अच्छा कहीं ऐसा तो नहीं सोच रहा कि शची स्पेशल रिक्वेस्ट करे तब तू शामिल होगा"

गुस्सा तो आ रहा था उसे, पर दबाते हुए बोला, 'शची क्यूँ करेगी?, उसने कभी देखा है मेरा कोई प्रोग्राम. क्या जानती है वो?"

"नहीं मुझे ऐसा लगा. वो फिल्मों में दिखाते हैं ना, हीरो तैयार नहीं होता गाना गाने को तो हिरोइन शर्मा कर अदा से बोलती है, ' गा दीजिये ना, मेरे लिए" और हेरोइन की आवाज़ की नक़ल करते हुए जोर से ठहाका लगा हंस पड़ा, मनीष.

पता नहीं उसे क्या हुआ, एकदम ही वह झपट पड़ा मनीष पर और उसका गला पकड़ लिया. 'अरे छोड़ छोड़... मार डालेगा क्या सच में" मनीष फंसती हुई आवाज़ में चिल्लाता रहा. अगर उसे यकीन हो जाता कि मनीष अगले ही पल जिंदा हो जायेगा तो एक बार तो मार ही डालता उसे. इतना गुस्सा आ रहा था, उस पर.

जैसे ही मनीष का गला छोड़ा, उसे सचमुच खांसते देख घबरा गया वह. पूछा, "पानी लेगा "

"अबे... साले... एक दूंगा खींच के... पहले तो मार डाला, अब पूछता है, पानी लेगा. "... वह शर्ट के ऊपर के बटन खोल कॉलर ढीले करने लगा. " तू और तेरी शची... जाओ जहन्नुम में दोनों मेरी तरफ से... ओह्ह आज मार ही डालता तू मुझे. "

तभी रामेश्वर चाय लेकर आ गया. और मनीष चुप हो गया. रामेश्वर ने भी हवा में कुछ तनाव महसूस किया और चुपचाप चाय रख कर चला गया. उसे एक पल के लिए अपने अंदर के जानवर की झलक देख सचमुच शर्मिंदगी महसूस हो रही थी. बात बदलने को और मनीष को थोड़ा खुश करने के ध्येय से फेस्टिवल के बारे में पूछा तो सब कुछ भूल मनीष उसे विस्तार से बताने लगा. कि चीफ गेस्ट का नाम अभी तक तय नहीं हो पाया है..... कई लोगों को एप्रोच तो किया है.... स्पोंसर्स की प्रोब्लम.. अभी तक एंकरिंग कौन करेगा ये भी डीसाईड नहीं हो पाया है... और अचानक मनीष ने उसकी तरफ देखा.
अभिषेक आँखों से ही उसका आशय समझ गया... "नोssss... "

"येस्स्स्स.. "

"ना, मुझसे नहीं होगा"

"यार... तुझसे अच्छा कौन मिलेगा हमें. तुझे जरा भी स्टेज फ्राईट नहीं है. ऑडिएंस की आँखों में देखकर बात कर सकता है तू.... क्या यार इतना तो नमकहरामी मत कर. याद कर कॉलेज का नमक खाया है तूने. कैंटीन के पकौड़े और समोसे में पड़ा नमक... आज कॉलेज को तेरी जरूरत है... कॉलेज तुझे पुकार रहा है.... " मनीष नाटकीय अंदाज़ में पता नहीं कब तक और क्या क्या ना बोलता पर उसने बीच में हो टोक दिया
"ठीक है ठीक है... अब बंद कर ये नौटंकी.. करता हूँ मैं एंकरिंग".... और दोनों बिस्तर पे लोट पोट हो हंसने लगे. उसकी हंसी रुक नहीं रही थी, "क्या कह रहा था तू.... कॉलेज का नमक खाया है... हा हा हा "

'हाँ... समोसे और पकौड़े में डला नमक... मनीष ने आगे जोड़ा और जोर जोर से हंस पड़ा.

रामेश्वर खाली कप प्लेट लेने आया तो अबूझ सा देखने लगा उन्हें. अभी थोड़ी देर पहले तो दोनों एक दूसरे को गुस्से से घूर रहें थे... औए अब इस तरह हंस रहें हैं.

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प्रोग्राम के दो दिन पहले उसे भी ड्रेस रिहर्सल में उपस्थित होना पड़ा. किस प्रोग्राम के बाद क्या है. सबकी लिस्ट तैयार करनी थी. उसने भी सोच लिया था जब मनीष ने गले में ढोल डाल ही दिया है तो उसे धमाधम पीटने के बजाय क्यूँ ना लय और ताल में बजाय जाए. और इसके लिए काफी मेहनत कर रहा था. बीच बीच में लतीफे और शेर भी डालता जा रहा था.

हॉल में पहुँच कर जैसे एक टीस सी उठी. सब कुछ कितना मिस किया उसने. हवाओं में एक अलग ही उत्साह, उमंग के साथ एक तनाव भी था. किसी का डायलौग भूल जाने पर शर्मिंदा होना. डाइरेक्टर का फ्रसट्रेटेड हो कर चिल्ला पड़ना. हर इवेंट के बाद जोर जोर से ताली बजा साथियों का उत्साह बढ़ाना. शची के एक्टिंग के बाद भी बाद भी सबने खूब तालियाँ बजायीं. उसने भी पेन नीचे रख साथ दिया. पर शची ने किसी की तरफ नहीं देखा. थोड़ी एम्बैरेस लग रही थी. दुपट्टे से चेहरा पोंछती उसके सामने ही थोड़ी दूर पर बैठ गयी. उसके थोड़े से बाल पसीने से भीग उसके गालों पर चिपक गए थे. बार बार उसकी नज़र उधर चली जाती. ये लड़कियों को कुछ असहज सा नहीं लगता. कभी कभी तो शौक से बालों की लट चेहरे पर गिरा लेंगी. कभी कभी हेयर स्टाईल ही ऐसी होगी की दायें तरफ से या बाईं तरफ से बालों का गुच्छा चेहरे से टकराता रहेगा. कुछ अनईजी नहीं लगता इन्हें? शची को भी जैसे कोई एहसास ही नहीं था. विजय इतनी अच्छी मोनो एक्टिंग कर रहा था और उसका ध्यान बार बार शची की बालों की तरफ चला जाता, उसने अब तक बाल हटाये या नहीं. आखिर विंशी और अर्पिता ने बाहर जाते वक़्त शची से इशारे से पूछा... 'कमिंग?.. " और शची उठकर चली गयी. चैन की सांस ली उसने और ध्यान से विजय का शानदार अभिनय देखने लगा.

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फंक्शन का दिन भी आ पहुंचा. शाम से ही दर्शक हॉल में जमा होने लगे. आज वह भी पूरी मुस्तैदी से जुटा था. प्रोफेसर्स भी टाई-सूट में सजे अलग अंदाज़ में नज़र आ रहें थे. कुछ ख़ास ऐसे मौकों पर ही सूट की धूल झाडी जाती. कुछ के तो शादी में मिले सूट थे और अब उनकी दुबली पतली काया पत्नी के हाथों का बना खा कर बदल चुकी थी. तोंद का घेरा, बड़ी मुश्किल से कोट में समा रहा था. बटन लगते थे, अब टूटे की तब टूटे. पर यह दृश्य, स्टुडेंट्स का तनाव कम करने में बड़े सहायक सिद्ध हो रहें थे. महिला प्रोफेसर्स भी कांजीवरम और सोने के आभूषणों से लदी, किसी शादी समारोह में शामिल होने का भ्रम दे रही थीं.

प्रोग्राम शुरू हुआ और वह अपनी लच्छेदार बातों में शेर और लतीफों का तड़का लगा, औडिएंस की वाहवाही लूटता रहा.. शची का अभिनय शानदार रहा और अपने मीरा के भजन से तो उसने बाँध लिया, सबको. बधाई देने वालों में सबसे

पहला नाम उसका ही था. (मंच पर मौजूद रहने के कारण) शची ने थैंक्स कह कर नज़रें झुका लीं. आरक्त कपोल पर झुकी झुकी लम्बी काली पलकों की झालर कुछ इतनी भली लग रही थी कि उसकी नज़रें जमी रह गयीं. एक पल को शची ने पलकें उठा कर उसकी ओर देखा और झटके से स्टेज से उतर गयी. जाने क्या था, उन नज़रों में कि वह पूरा का पूरा नहा उठा.

मंत्रमुग्ध सा खड़ा था कि घुंघरुओं के आवाज़ ने तन्द्रा भंग कर दी ओह! अभी नृत्य का कार्यक्रम है, उसे अनाउंस करना है, ना. उसने दूने जोश से आगे बढ़ कर माईक थाम ली.

(क्रमशः)