आयम स्टिल वेटिंग फ़ॉर यू, शची
रश्मि रविजा
भाग - 4
(अभिषेक, एक पत्रिका में कोई रिपोर्ट लिखने के उद्देश्य से एक कस्बे में आता है. वहाँ एक दुकान पर उसे एक नारी कंठ सुनायी देता है. वह चेहरा नहीं देख पाता. उसे शची की आवाज़ लगती है और वह परेशान हो उठता है. अपने गेस्ट हाउस में लौट वह पुरानी यादों में खो जाता है कि शची नयी नयी कॉलेज में आई थी.. मनीष उसे शची का नाम ले छेड़ने लगा था. पर वह अपने मन को नहीं समझ पा रहा था. पर जब शची ने स्टेज पर आँखें उठाकर कुछ ऐसी नज़रों से देखा कि उसने बहुत कुछ पढ़ लिया उसकी आँखों में. )
प्रोग्राम काफी सफल रहा. इसकी सफलता को सेलिब्रेट करने के लिए सब ने पिकनिक पर जाने का प्रोग्राम बनाया. तय हुआ. 'जाह्नवी लेक' चला जाए. वहाँ घूम फिर कर और खा पीकर, चांदनी रात में बोटिंग के बाद रात के आठ-नौ बजे तक लौट आया जाए. नाव पर ही महफ़िल जमी और करीब करीब हर गाने का शौक रखनेवालों ने ने एकाध गाने सुनाये. विजय की मिमिक्री पर तो सब इतना लोट पोट होकर हँसे कि डर लगा कोई गिर ना जाए पानी में. लेकिन जब इतने लोग अपने बेस्ट मूड में हों तो हंसी तो बेबात ही चली आती है. शालीनता के कवर में लिपटे नौनवेज़ चुटकुले भी चले. पर उसे आश्चर्य हुआ, शची को देख. शची ने ऐसे भाव प्रदर्शित किये, मानो सुना ही नहीं. 'कस्बाई मनोवृति' मन ही मन दुहराया उसने. ये छोटे शहरों से आई स्मॉल टाउन मेंटालिटी वाली लड़कियों से बड़ी कोफ़्त होती है उसे. क्या छोटी बच्ची हैं वे सब. किताबें तो बड़ी बड़ी पढ़ेंगी पर बस चाँद, फूल खुशबू की ही बातें करेंगी. जीवन के सच से जैसे वे अनभिज्ञ हैं.
अन्त्याक्षरी भी चली. झट से लड़के लड़कियों के दो ग्रुप बंट गए. पर दोनों एक दूसरे पर बीस ही पड़ रहें थे. जब बोर गए तो गाने का दौर शुरू हुआ. उसने भी सोच लिया था, ऋचा ने मजाक बनाया तो क्या, वो बेहतर जानता है, अपनी आवाज़. इसे ही माध्यम बनाएगा अपना पैगाम पहुंचाने का. (बाद में कितना हंसा था अपनी इस बेवकूफी भरे ख्याल पर. सच ही तो कहा है किसी ने, 'व्हेन अ गर्ल इज इन लव, शी बिकम्सा क्लेवर बट व्हेन अ बॉय इज इन लव, ही बिकम्स अ फूल. ) इसीलिए जब सबने आग्रह किया तो उसने ज्यादा टाल मटोल नहीं की और गाया, "ये रंग और नूर की बारात किसे पेश करूँ.... मुरादों भरी ये रात किसे पेश करूँ..... " सबके कान खड़े हो गए. खूब समझते थे, सब, किसके लिए गाया है, उसने. पर गाना ख़त्म होते ही शची बोली, 'कविता को और किसे?. " इसपर कविता बिलकुल छुई मुई सी हो गयी. लेकिन शची ने कहा, "अरे ! तुम क्यूँ शर्मा गए मैंने तो इन्हें कविता लिखने की बात की थी.... अब इस सुहाने महौल में तो कविता ही लिखी जा सकती है, ना. ". अपने गाने का यूँ सत्यानाश होते देख, तिलमिला गया वह. और फिर सबों के बहुत आग्रह करने पर... 'एक और.... प्लीज़ एक और... " एक कठिन उर्दू शब्दों से भरी एक ग़ज़ल उठा ली. जो सबके सर पर से गुज़र गयी. पर शची ने भी जैसे बनाने की कसम खा रखी थी. गाना ख़त्म होते ही पूरे लय में शुरू कर दिया, "वाशिंग पाउडर निरमा.. दूध सी सफेदी.... " एक पल को किसी के कुछ समझ में नहीं आया पर दूसरे ही पल असलियत जान सब खिलखिला पड़े. हंसी के बीच शची ने स्पष्ट किया., "गाने के बीच विज्ञापन भी तो जरूरी है, ना.... और ऐसे गाने के बाद तो अनिवार्य. " व्यर्थ हो गयी सारी, कोशिश उसकी. फिर भी एक क्षीण आशा बाकी थी. अभी तो शची के गाने की बारी बाकी है और यह सब बिलकुल एकतरफा तो है नहीं. लेकिन तुषारपात हो गया उसकी आशाओं पर. नाविक ने नाव किनारे लगाते हुए कहा, "दो घंटे हो गए स्साब "
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फिर सब कुछ सामान्य हो चला, लेकिन नहीं सामान्य हुआ, उसका मन. मन ही मन शची के प्रति अपने आकर्षण को महसूस तो कर रहा था. लेकिन कुछ भी स्पष्ट नहीं हो पा रहा था. शची की तरफ से हल्का सा भी आभास नहीं मिल रहा था, स्पष्ट संकेत मिलने की बात तो दर-किनार रही. शची के व्यवहार से कुछ भी परिलक्षित नहीं होता था. पहल करने से वह नहीं घबराता लेकिन शची ने अगर नकार दिया तो ?? और इसी ' तो' ने उसके सभी राहों पर तालेबंदी कर रखी थी. 'तो ' के आगे सोच कर ही रूह काँप जाती. किसी से कुछ कह भी तो नहीं सकता. खुद ही हर संभावना से इनकार किया है उसने. लेकिन बिल्ली के भाग्य से छींके मुहावरे में ही नहीं, सच में भी टूटते हैं. तभी तो उस दिन मनीष ने कैंटीन में बड़े राजदार ढंग से पूछा, "पता है तुझे... अभी तक शची के राखी का उपहार ड्यू है.. पता है क्या देने की सोच रहा हूँ. ?"
"क्या दे रहा है ?" यूँ ही अन्यमनस्क भाव से पूछ लिया उसने.
"वो चीज़ जो जीवन भर उसके साथ रहें
और हर पल, उसे इसका अहसास रहें "
"वाह वाह वाह... शायरी की टांग तोड़ने से तो तू बाज़ आएगा नहीं... अब नाम भी बता दे. "
"ना, ऐसे नहीं.... मैंने इतना दिमाग खर्च किया इसे बनाने में तू आधा तो कर. "
"कोई किताब होगी "
"मेरी बात के तह में जा गधे, किसी को कैसे जीवन भर याद रह सकता है कि उसके पास ये किताब है. "
"तो क्या कोई ज्वेलरी पीस दे रहा है.. ?".. अविश्वास से पूछा उसने.
"अबे पागल है?, मैं कहाँ से लाऊंगा इतने पैसे... मानता है हार बता दूँ?"
"बता दे यार... तू भी एक बार जान ले जीत की ख़ुशी क्या होती है "... बोर होकर कहा उसने. उसे बिल्कुल मजा नहीं आ रहा था, इस बातचीत में.
"जीवन साथी"
"क्या कह रहा है,.. मैं समझा नहीं... "... वह सचमुच नहीं समझ पाया था.
"जीवन साथी का मतलब होता है, 'हमसफ़र, हमकदम, लाइफ पार्टनर, समझा उल्लू के पट्ठे. "... आज वह उसे खिझाने पर आमादा था.. आगे जोड़ा, "उसकी बहन ने कहा था, कोई अच्छा सा लड़का हो नज़र में तो बताऊँ"
उसे विश्वास ना हुआ. ये तो वह जानता था. मनीष का शची के यहाँ आना -जाना काफी बढ़ गया है. परिवार में काफी घुल मिल भी गया है. आखिर एक ही कॉलोनी में रहते थे वे. यह सहज स्वाभाविक था. लेकिन भाभी मनीष से चर्चा करेंगी? अविश्वास सा हुआ उसे. सीधे उसकी नज़रों में देख कर पूछा, "तुझसे कहा उन्होंने?"
"एक ही बात है. उन्होंने माँ से कहा और माँ ने मुझसे चर्चा की. पढ़ाई ख़त्म हो रही है, उसकी. चिंता नहीं करेंगे गार्जियन, " गंभीर स्वर था उसका, "दस जगह पूछताछ करनी ही पड़ती है. एकाध जगह और बात चल रही है. "
उसका कलेजा धक् से रह गया. ओह! क्या बेवकूफी कर डाली, उसने. मनीष को इस तरह दर किनार नहीं करना चाहिए था. यही कुछ सहायता कर सकता था. लेकिन अब? अब क्या हो सकता है? सब कुछ तो ख़त्म हो गया. मन कडवाहट से भर गया, लेकिन छुपाने का प्रयत्न करता हुआ बोला, "तो भाई का कर्तव्य निबाह रहें हो?. कहाँ ढूंढ लिए?"
"है एक... " लापरवाही से बोला, मनीष.. "मेरा तो पूरा विश्वास है, रिश्ता पक्का हो जायेगा. लड़का भी अव्वल है और अपनी शची ही कौन सी कम है. "
उसने जैसे सुना नहीं... खिड़की के पार उड़ते धूसर बादलों को देखता रहा.
"क्यूँ यार ! तबियत तो ठीक है तेरी... बड़ा सुस्त लग रहा है. "
"मनीsssष... " हंसने का अभिनय करने की क्षमता भी नहीं रही उसमे. गले में कुछ फंसता हुआ सा महसूस हुआ. आँखों में पानी झलझला आए. क्या होगा, अब उसके सपनों का?"
लेकिन मनीष ने जैसे ध्यान ही नहीं दिया. कंधे पर हाथ रख कर बोला, "तूने नाम नहीं पूछा, अभिषेक?'
झुंझला आया वह. हाथ झटक कर उठ खड़ा हुआ, "मैं जान कर क्या करूँगा... चल अब थोड़ी देर में लेक्चर शुरू होने वाला है. तेरी इन फ़ालतू बातों में मिस हो जायेगा. "
अब मनीष खुल कर हंस पड़ा. उसका हाथ थाम रोकते हुए बोला, "तू जानना चाहे या ना... मुझे तो बतानी है... दोस्त हो आखिर... उसका नाम है, अ भि षे क "
"क्यूँ मजाक करता है यार... हमेशा तुझे मसखरी ही सूझती रहती है... " आशंका के बादल छंटे नहीं थे, उसके चेहरे से, अभी
"अच्छा मसखरी ही सही.... लेकिन बता तो कैसा है, अभिषेक उसके लिए? "
लगा मानो इतनी देर तक किसी ने उसे, अँधेरी तंग कोठरी में बंद कर दिया था और दम घुट रहा था, उसका. भरपूर सांस खींचकर वापस बैठते हुए बोला, ओफ्फ़! तूने तो मुझे डरा ही दिया था. और जेब से रुमाल निकाल ली. पसीना छलक आया था, चेहरे पर.
"क्यूँ मैंने तो कोई डराने वाली बात नहीं कही. ना भूत का नाम लिया, ना शेर का. ".. बड़े भोलेपन से कहा मनीष ने.
"क्या सब कुछ जानकर भी अनजान बनने की कोशिश कर रहा है. "... इतनी देर बाद मुस्कराहट आई थी उसके चेहरे पर.
"अनजान मैं नहीं, तू बनने की कोशिश कर रहा है. पर बन नहीं पा रहा.. " फिर बड़े अपनेपन से कहा, "यार मुझसे नहीं कहेगा तो किस से कहेगा. ? देख रहा हूँ, मन में लिए घुट रहा है. लेकिन इतना जान ले, तेरा मनोभाव किसी से छुपा नहीं है. शची से भी नहीं. फिर भी मुहँ छुपाये फिरता है. अरे डरना क्या कर दे इज़हार. "
"क्या कर दूँ?"... कुछ गुस्से से बोला वह.
"अच्छा तो आ गया फिर से ओल्ड ट्रैक पे?... अभी तो तेरी सांस अटकी जा रही थी.... सोच रहा होगा, क्यूँ नहीं कह दी मनीष से दिल की बात " बड़े नाटकीय ढंग से बोला, मनीष तो हंस पड़ा वह, "तू अन्तर्यामी कब से हो गया यार?... मैं सच में यही सोच रह था. "... और एक लम्ब सांस खींची.. "लेकिन लगता है ये सब अपने वश का रोग नहीं. "
"बस बस अब तुझे फ़िक्र करने की कोई जरूरत नहीं... अब मुझे हमराज़ बना लिया, ना... देख कैसे सब फिट करता हूँ.. अरे अपना बीस साला सॉरी बीस गर्ल वाला तजुर्बा किस दिन काम आयेगा ?"
"मेहरबानी कर के मुझे मेरे हाल पर छोड़ दे.... तेरी उलटी सीधी हरकतों की कोई जरूरत नहीं मुझे "... कुहनी तक दोनों हाथ जोड़ लिए उसने तो मनीष ठहाका लगा कर हंस पड़ा.
(क्रमशः)