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लगे नाचने अक्षर

लगे नाचने अक्षर

-मनोहर चमोली ‘मनु’

वेलिया ने स्कूल से मिला होमवर्क पूरा किया। स्कूल बैग खोला। पेंसिल-काॅपियां रखकर वह खेलने चली गई। वेलिया के जाते ही अक्षर और पेंसिल में बहस छिड़ गई। सारे अक्षर एकजुट हो गए। पेंसिल अलग-थलग पड़ गई।

अ बोला-‘‘हम हैं तो तुम हो। हम न होते तो तुम्हें कौन पूछता।’’ पेंसिल पीछे क्यों रहती। कहने लगी-‘‘मेरे कारण ही तुम्हारी पहचान है। मैं नहीं होती, तो तुम्हें कौन पूछता !’’ क बोला-‘‘हम बहुत सारे हैं, तुम अकेली हो। हम तुम्हें कुछ नहीं समझते।’’

बैग में रबड़ भी था। वह बोला-‘‘किसी को अकेला देख सताना ठीक नहीं।’’ कटर ने भी सहमति दी-‘‘एक अकेली पेंसिल को परेशान क्यों कर रहे हो?’’ र बोला-‘‘ये लो। अब ये बेचारा रबड़ भी बोलने लगा। जिसका काम ही मिटाना है। अरे। हम तो मिलकर शब्द बनाते हैं। शब्दों से वाक्य बनाते हैं। चल हट। हवा आने दे।’’

बेचारा रबड़ चुप हो गया। ज्ञ कटर से बोला-‘‘और तुम! जिस पेंसिल को छीलते हो, उसी का तरफदारी कर रहे हो। वाह !’’ कटर भी चुप ही रहा।


अक्षर गुस्से में थे। उन्होंने बैठक की। तय किया कि पेंसिल को मज़ा चखाया जाएगा। यकायक अक्षर काॅपी छोड़कर कुर्सी के नीचे जा छिपे। अगले दिन वेलिया स्कूल गई। यह क्या ! निताली मैडम ने वेलिया के कान खींचते हुए कहा-‘‘कल जो होमवर्क दिया था, वह क्यों नहीं किया?’’ वेलिया आंखें फाड़कर काॅपी को घूर रही थी। उसने तो घर जाकर होमवर्क किया था। उसके बाद ही खेलने गई थी। वेलिया क्या कहती। उसे कुछ सूझ ही नहीं रहा था कि निताली से क्या कहे।


छुट्टी हुई तो वेलिया घर लौटी। उसने सबसे पहले सावधानी से आज मिला होमवर्क निपटाया। काॅपियां और पेंसिल स्कूल बैग में रखने से पहले किये गए होमवर्क को गौर से देखा। फिर निश्चिंत होकर खेलने चली गई। वेलिया के जाते ही अक्षर हंसने लगे। पेंसिल से कहने लगे-‘‘देखी हमारी ताकत! आज हमारे न रहने पर वेलिया को डांट पड़ी होगी।’’ पेन्सिल ने रबड़ की ओर देखा। रबड़ ने पेंसिल के कान में कुछ कहा। पेंसिल ने हां में सिर हिलाया। कटर ने पेंसिल की अच्छी-सी नोक बनाई। पर, यह क्या! रबड़ ने काॅपी पर किये होमवर्क के कुछ अक्षर मिटा दिए। पेंसिल मिटे हुए अक्षरों की जगह कुछ नए अक्षर लिखने लगी। अक्षर चिल्लाने लगे। पेंसिल से कहने लगे-‘‘तुम ऐसा नहीं कर सकती। तुम्हें ऐसा नहीं करना चाहिए।’’ पेंसिल ने अक्षरों की बात नहीं सुनी। पेंसिल अपना काम कर चुकी थी।

अगले दिन वेलिया स्कूल गई। यह क्या ! मैंडम ने वेलिया को कान पकड़ने के लिए कहा-‘‘कल होमवर्क ही नहीं किया था। आज किया तो गलतियां ही गलतियां। तुम्हारा ध्यान कहां रहता है? ये क्या लिखकर लाई हो?’’ काॅपी पर लिखा था- बातल आए। हल चली। कटड़े उड़ने लगे। तीमर उड़ा। सड़की रोने लगी। चाढल पक गए। चपखा चलने लगा। फकल जल गई। वेलिया आंखे फाड़कर काॅपी को घूर रही थी। लेकिन उसने तो बड़े ध्यान से सारा होमवर्क ठीक-ठीक किया था। उसे कुछ सूझ ही नहीं रहा था कि निताली से क्या कहे। वेलिया ने तो लिखा था-बादल आए। हवा चली। कपड़े उड़ने लगे। तीतर उड़ा। लड़की रोने लगी। चावल पक गए। चरखा चलने लगा। फसल जल गई।

छुट्टी हुई तो वेलिया घर लौटी। वह फफक-फफक कर रो रही थी। उसने स्कूल बैग पटक दिया। मम्मी ने समझाया। वेलिया बहुत देर के बाद शांत हुई। अक्षर, पेंसिल, कटर और रबड़ को भी वेलिया का रोना अच्छा नहीं लगा। रोना अच्छी बात नहीं। वे सब एक दूसरे से यही कह रहे थे। वेलिया बेमन से होमवर्क पूरा करने के लिए तैयार हुई। वहीं रबड़, पेंसिल के साथ-साथ अक्षरों ने तय किया कि वह अपनी भूल सुधारेंगे। वे सब झट से तैयार हो गए। अक्षर बिना गलती किये वेलिया की काॅपी पर बैठने लगे। कटर ने पेंसिल की नोक सावधानी से बनाई। वेलिया की लिखावट चमकीली हो गई। वेलिया लिख रही थी। वह जैसे ही कुछ लिखती, रबड़ सरलता से उसे मिटा देता।

आज वेलिया ने होमवर्क बहुत जल्दी कर लिया। काॅपी पर अक्षर मोती से चमक रहे थे। वेलिया खिलखिलाकर हंस रही थी। वेलिया को हंसता देख कटर, पेंसिल, और रबड़ हंसने लगे। सारे के सारे अक्षर भी नाचने लगे।

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-मनोहर चमोली ‘मनु’

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