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तपते जेठ मे गुलमोहर जैसा - 24

तपते जेठ मे गुलमोहर जैसा

सपना सिंह

(24)

मिनाक्षी देख रही थी सामने काउच पर गहरी नींद में डूबी अप्पी को! एक हाथ गाल के नीचे दबाये......! कैसा बच्चो सरीखा निर्विकार चेहरा.....इस उम्र में भी चेहरे पर एक दूधिया शांति ! ये कैसे ऐसी निश्चित हो सकती है......?

चन्द घंटो पहले जब अप्पी उसके दरवाजे पर अपने थोडे़ से समान के साथ खड़ी थी.....तो उसके कहने पर भी मिनाक्षी यकीं नहीं कर पाई थी कि वह सब छोड़ छाड़ कर आयी है। इस तरह पहले भी वो कई बार घर छोड़ चुकी है.....जब अभिनव हद पार करने लगता है.....कभी मिनाक्षी का घर, कभी अर्चना का घर और कभी सीमा! मिनाक्षी ने उसे तब रात भर बेचैन देखा है.....अपना घर छूटते जाने की बेचैनी.....दूसरे के घर मेें टूअर की तरह पडे़ रहने कहने की बेचैनी.....पर आज ये शान्त, चैन भरी नींद! कुछ छूटा हुआ दीख तो नही रहा.....

अप्पी कहती तो रहती थी......’बस अपूर्व सेटल हो जाये.....मै सब छोड दूंगी......यूँ......!’ चुटकी बजाते हुए उसकी वह मुद्रा...... मिनाक्षी को याद थी। ’’अभिनव ने आने दिया.....कुछ नही कहा.....’’ पूछा था मिनाक्षी ने......

’’नही.....उसे शायद लगा हो......ये क्षण भर का आवेश है.....लौट के वही जाउंगी।’’ ’’गुस्सा......आवेश तुम तो शान्त दिख रही हो.....’’

’’हाँ.....अब शान्त ही हूँ......तभी ये निर्णय भी लिया.....!’’

’’अपूर्व......?’’उसने क्या कहा.....!’’

’’यही कि ममा ......ये निर्णय थोड़ा औैर पहले लेना था .... आपने देर लगा दी।’’

‘‘ऐसा कहा ...?’’ मीनाक्षी हैरान थी ....

‘‘हाॅँ.... शायद वही मुझे सबसे ज्यादा समझता है ...’’

लेकिन ... अप्पी इस तरह सब छोड़ना...?’’ इस उम्र में ...’’

‘‘यही सही समय है...। जरूरी है कि कुछ तभी छोड़ा जाय जब आपके पास उसका विकल्प हो...? नयी शुरूआत करनी हो..? मुझे कुछ नया नहीं शुरू करना... कहीं नहीं जाना.. कुछ नया नहीं पाना... बस्स कुछ गर्द थी जिसे झाड़ा गया है। हर चीज का एक सैचुरेटेड प्वाइंट होता है न। वैसे भी इस रिश्ते में ढेरों फैक्चर थे... अकेला .... अपूर्व कितनी प्लास्टर चढ़ाता....?’’

‘‘ ये एक नाकाम रिश्ता था.. मैं इसे चला रही थी... जबरदस्ती। मेरे मोह तन्तु थे जो लिपटे थे अभिनव से ... उस सारी स्थिति परिस्थितियों से गहरे जुड़े... एकायक उन्हें झटक देना ... असंभव था.। पता नहीं कौन सी नामालूम सी आशा थी... जो घिसटाये हुए थी इस रिश्ते को ... एक दिन सब ठीक हो जायेगा की सनातन स्त्री आशा...।

‘‘कभी-कभी अपना आप ही अजूबा लगता है मुझे ... एकदम शुरूआत में अपने रिश्ते का सच मैं देख चुकी थी न प्रेम ... न रेक्सपेक्ट ... और अब तो..... कोई शिकायत भी नहीं... सब ठीक चल रहा है... आगे जो दस बीस साल बचे हैं जीवन के बो भी ठीक-ठाक ही बीत जायेगा... पर ..’’ ‘‘सब ठीक चल रहा था तो फिर ऐसा निर्णय क्यों ...? कहीं डाॅ. सुविज्ञ की वजह...’’ मिनाक्षी की बात अप्पी ने काट दी थी।..।

‘‘नहीं... वजह वो नहीं है.. हाॅँ वजह उनके प्रति मेरी जो भावना है शायद... वो है... हाँ मेरी भावना.... ही है।’’

मैं समझी नहीं....।’’ मीनाक्षी असमंजस में थी

‘‘मैं पूरी इमानदारी से अपने इमोशंन को जीना चाहती हँू... बिना किसी रिग्रेट के... जानती तो मीनाक्षी मेरे इस निर्णय को जानने के बाद सबसे ज्यादा परेशान होंगे डाॅ. सुविज्ञ... अभी उन्हें मेरे बावत कोई चिंता कोई परेशानी नहीं होती ... मेरी उम्र की औरत के पास जिंदगी से कुछ चाहिए वो सब भरपूर है मेरे पास ... मेरे भरे पूरे पन को देख एक राहत की अनुभूति होती है उन्हें....’’

‘‘ तो क्या छोड़ना ... जाना ... उनको परेशान करने के लिए है...।’’

‘‘ इतनी स्टूपिड लगती हॅूँ मैं तुम्हें ...?’’ नहीं मीनाक्षी ... इस बार मैं स्वार्थी हुई हुई हॅूँ तो सिर्फ अपने बारे में सोचकर... अभिनव, अपूर्व, सुविज्ञ ... शायद इनका लेन-देन मेरे खाते में कुछ नहीं बचा.. अब अपना खाता क्लीयर करना है।’’

‘‘सेपरेशन...?’’

नहीं रे.... अब इस उम्र में ये सब फजीहत किस लिये... ? हाॅँ .. इन सबसे दूर जाना चाहती हॅूँ.... इसलिए मैने सूदूर केरल के स्कूल में .... ज्वाइन कर लिया है्’’

‘‘ तुम पागल हो ... यूनियवर्सिटी छोड़ कर स्कूल ज्वाइन कर रही हो....’ मीनाक्षी परेशान थी ... ये क्या कर रही है अप्पी अपने साथ...? सबकुछ यूँ छोड़ना...। कभी अकेलापन जीया नहीं न .... मीनाक्षी ने जीया है ये अकेलापन... प्रोफेसर तिवारी अपने परिवार के पास लौट गये थे। बेटा-बहू.. नाती पोतों.... के सामने ये बेनाम रिश्ता बहुत हल्का पड़ा गया था। मीनाक्षी ने बिना कोई शिकायत किये ... बिना कोई आरोप मढ़े .... उन्हें जाने दिया था। ऐसे रिश्ते जबरदस्ती नहीं रोके जाते। ऐसे कठिन वक्त पर अप्पी ने ही उसे उबारा था.. अप्पी को देख उसे ताकत मिलती थी .... हर हाल में जीवन जीये जाने योग्य होता है... देखो तो कैसी निश्चित सो रही है ... कल सुबह उसकी टेªन है... मीनाक्षी ने सोचते हुए गहरी सांस ली।

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