दास्तान-ए-अश्क - 10 SABIRKHAN द्वारा क्लासिक कहानियां में हिंदी पीडीएफ

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दास्तान-ए-अश्क - 10


9

(काफी वक्त हो गया जब मैंने कुंदनिका कापड़ियाजी की "सात पगलां आकाशमां"
नोवेल पढी थी...!उनके जैसा तो सात जनम लु तबभी नही लिख सकता.. स्त्रीयां की छोटी बडी सब समस्याओं को बखुबी शब्दो में उतार कर एक अच्छा संदेश दिया था!
तबसे धनक लगी थी..! एसी कहानिया लिखने की !
"स्त्रीजीवन" सामयिक मे बहोत सी प्रकाशित हुई..!
लंबे अरसे बाद फिर वही अंदाज दोहराने का मौका मिला..
मेरे सभी पाठको ने मेरी कहानियां को
सराहा है..!
मेरे आप्तजनो की तरह सबने मेरे उत्साह को बरकरार रखा..
ये दास्तान-ए-अश्क मेरे सभी पाठको को समर्पित करता हुं..! तहे दिल से सबका शुक्र गुजार हुं..! क्योकि सभी पाठक मेरे लिये मेरे रब की तरह है..! ईसी जजबे के साथ सबको सलाम.. अपनी राय.. ईस कहानी पर जरूर दे..!)

9

रेडियो पर इस गाने की गुंज उसके सीने में जैसे उतर रही थी!
और दिल के रेशमी अरमा समंदर में उछल रहे मौजों की तरह उसकी रूह को भिगो रहे थे!
उसकी शादी पक्की हो गई थी सर्दी के मौसम में जब किसान गेहूं को पहला पानी देते हैं ! और सरसो पक कर तैयार हो जाती है वह महीना!
इस महीने में बहुत सी शादियां होती क्योंकि यह अच्छे मूर्हत का महीना है!
इसी महीने में उसकी शादी तय हुई तो वह बहोत खुश हो गई !
रोज नए सपने बुनती और रोज उनमें रंग भरती!
शादी के बाद ऐसा होगा ,वैसा होगा मैं ये करूंगी वो करुंगी!
अपने पति के साथ वह उंचे गगन की एक नई ख्वाबों की दुनिया की सैर करेगी!
अपनी जिंदगी के मेघ धनुष ही सपने बुनेगी! उन स्वप्न पूष्प की माला को अपने हाथों से संवारेगी..!
सोचती थी मन में उठ ने वाली मनोगम्य भावनाओं का टच पाकर जिंदगी खुद-ब-खुद जन्नत सी हो जाएगी!
कहते हैं मनचाहा सुख कभी किसी को नहीं मिलता
इन सब बातों से अनजान अपनी ही धून में मग्न थी!
रोज नए ताने-बाने बून रही थी! उसका मन पंछी दूर-दूर चला जाता जहां तक उसकी नजर ना पहुंचती!
फिर वो दिन आ गया! उसके घर को सजाया गया! दुल्हन की तरह पूरी कोठी जगमगा रही थी! चकाचौंध रोशनी को देख कर जानने वाले कई लोग उंगलियां दिखाकर बोल रहे थे की वेद प्रकाश जी की बेटी की शादी है !
बहुत सुकून मिल रहा था वह सुनकर!
आज वह सबके लिए कुछ खास थी! हर कोई उसके सामने आकर मुस्कुरा रहा था!
वेद प्रकाश जी की शादी के बाद यह उनके घर में दूसरी शादी थी!
उसका मन परीतृप्त था क्योंकि दादाजी ने कहीं कोई कसर नहीं छोड़ी थी पोती की शादी में..!
बहोत रीति रीवाज और पूरी रस्मो के साथ वो उसकी शादी करना चाहते थे!
महेंदी, हल्दी, चूडे की रस्म हुई..!
सब बहुत खुश थे उसकी सहेलियां उसे छेड रही थी!
सहेलियों की बातों से उसका दिल मीठी सी गुदगुदी के साथ उछल रहा था!
यह वो समा था जिसमें वह सब कुछ भूल चुकी थी! अपने ईकलौते सपने को भी!
इस वक्त उसके जेहन में एक नया चेहरा उभर रहा था ! उसके पति का चेहरा !
जिसको लेकर उसने काफी उम्मीदें लगा रखी थी!
उसको याद थी उसके दिल में उठने वाली प्रेम की बौछार!
और वह जिंदगी जो वो उसके पति के साथ जीने वाली थी!
धूमधाम से उसके लिए बारात आई!
लाला करोड़ीमल जी और वेद प्रकाश जी ने सारे बारातियों का सत्कार किया स्वागत किया! पूरे मन से उनकी सेवा में जुट गए दोनों ! मनोरमा जी बार-बार उसके माथे को देख रही थी!
बेटी के चांद से चेहरे पर लगाया काला टीका कहीं पसीने से निकल तो नहीं गया!वह बार बार बेटी की बलाईया ले रही थी! दुल्हन के रूप में वह आज बहुत खूबसूरत लग रही थी!मानो पूर्णिमा का चांद धरती पर आ गया हो!
उसकी सुंदरता आज देखते ही बनती है ऊपर से उसकी हया ने उसके सौंदर्य को निखारा था!
सबकी निगाहें उस पर थमी थी!
मानो जैसे वो दुल्हन के रूप में किस्मत से उसके पति को मिला नायाब तोहफा थी!
लोग कहेते थे उसका पति खुश किस्मत है जो उसको ऐसी खूबसूरत पत्नी मिली !
सच्ची बातें शुरू कर वह खुशी से फूले नहीं समा रही थी खुश क्यों ना होती लोग जब उसकी सुंदरता की तारीफ कर रहे थे!
पर एक बात उसको बहुत खटक रही थी न जाने क्यों प्रीति उससे दूर दूर रहने लगी थी! उसने एक दो बार उसको बुलाया भी मगर काम का बहाना करके प्रीतिने बात टाल दी!
फिर उसने सोचा शायद काम के बोझ की वजह से और वह ससुराल जाने वाली है इस वजह से प्रीति का मन उदास होगा! उसके जाने के बाद वह फिर अपने रेशमी सपनों में उलझ गई ! जो फिलहाल इस वक्त उसे बहुत सहारा दे रहे थे!
लोगों ने जिज्ञासा से उनके सात फेरे देखे! वह संस्कार जो एक दूसरे को हमेशा के लिए एक गांठ में बांध लेते हैं
वह सात वचन जिससे वह कभी मुकर नहीं सकती थी उन वचनों की डोर से बंधी वह अपनी जिंदगी को संपूर्ण समझने लगी थी!
सात फेरों के बंधन बाद वह पूर्णतया अपने पति की हो गई!
विदाई की बेला में वह अपने पिता मम्मी दादा दादी सबको गले से लगा कर बहुत रोई थी ऐसे मौके पर हर एक लड़की रोती है मां बाप को छोड़कर जाने का दर्द उनसे बेहतर कौन जान सकता है जिसने भरी जवानी में मां बाप को छोड़ कर उम्र भर के लिए दूर चले जाना है!
मन में एक तरफ पिया से मिलने की खुशी थी, तो दूसरी तरफ अपने परिवार को छोड़कर जाने का उतना ही गम था!
बड़ी अजीब सी हालत थी ! बड़ी अजीब सी कशमकश थी! मन को तर करने वाला यह एहसास था!
हर एक लड़की इस लम्हे को जीती है ऐसी तड़प महसूस करती हैं! अपने पेरेंट्स को छोड़ते वक्त ह्रदय भर आता है जैसे कलेजा निकल कर बाहर आ रहा हो ऐसी हालत हो जाती है!
और फिर वही विदाई की घड़ी ! एक एक कदम घर से बाहर उठाना उसके लिए भारी हो जाता है! जैसी ही परंपरा रही है वैसे ही वह बिदा हुई!
वह अपने ससुराल रवाना हो जाती है
रास्ते भर आंखों से समंदर छलकता जाता है बस छलकता जाता है! उसका पति निर्लेप भाव से उसके बगल में बैठा रहता है! उसको रोते तड़पते देख कर भी उसके पति की कोई भी प्रतिक्रिया नहीं थी! यह बात उस को थोड़ा खटकती है फिर वह सोचते हैं गाड़ी में और भी बहोत से लोग हैं सबके बीच में शायद वह बात करते हुए शर्माते होंगे!
उलझनो के इन ही भंवर से गुजरती हुई वह आखिर अपने घर पहोंचती है!
अपने ससुराल में जहां पर उसकी सास उन दोनो का स्वागत करती है!
बड़े प्यार से उसको घर में लाया जाता है जहां सारी जिंदगी उसको बितानी है!
एक अनजाने घर में
देवर नणद जेठ जेठानी सबके चुहुल बाजी के बीच उसको एक कमरे में ले जाकर बैठा दिया जाता है! उसे कहा जाता है , कि वह कुछ देर आराम कर ले !उसकी जेठानी चुटकी लेती है बोलती हैं !"अभी तुम सो जाओ , वैसे भी रात को वह तुम्हें सोने नहीं देगा!"
उसके शरीर में हल्की सी मीठी गुदगुदी के साथ सिरहन दौड़ जाती है!
फिर वो आने वाले मिलन की घड़ियां की कल्पनाओं में खो जाती है!
पिया जी आकर प्यार से घुंघट उठाएंगे, शर्मा के वह अपना चेहरा हाथों में छुपालेगी! धीरे धीरे से छेडना शुरू करेंगे! और अनछुई भावनाओ को जगायेगें! उसको सलिके से रुक रुक कर बदन के हर हिस्से मे किया जाने वाला स्पर्श उसकी जिंदगी मे हमेशां ईस रात को स्मरण में जिंदा रखने वाला साबित होगा!
सब के चले जाने के बाद वह अपना घुंघट हल्के से उठाकर देखती है!
वह कमरा शायद उस घर का स्टोर रूम था! आस पास बहुत सारे बिस्तर थे बिखरा हुआ सामान था! अपने घर में हर एक चीज को सलीके से सजाकर रखती थी! ऐसी अव्यवस्था उसे पसंद ही नहीं थी! क्योंकि उसकी जिंदगी भी इसी तरह डिसिप्लिन से बंधी हुई थी!
इस कमरे को देखकर उसका मन खट्टा हो गया था! शादी का पहला दिन और उसको ऐसी जगह पर बिठा दिया गया था! अपने विचारों पर कंट्रोल करके खुद को संभाल भी है सोचती है वह खुद ही अपने घर गृहस्ती को अच्छी तरह संवारेगी!
तभी अचानक दरवाजा खुलता है वह जल्दी से अपना घुंघट ढक लेती है! घुंघट के परदे से देखा कि उसका पति अंदर आ रहा है! उसका दिल पसलयां से जोरों से टकराने लगता है! इस समय वह घबरा जाती हैं! इस समय मैं यहां पर क्यों आए है शायद उससे बात करने! शायद उसको सांत्वना देने और यह कहने की वह अपने घर में आई है और मैं हमेशा तुम्हारे साथ हूं रोना मत प्लीज!!
और सर झुका के बैठ जाती है इसका पति अंदर आते ही बिना कुछ बोले उसका घुंघट उलट देता है! वह खुदमें ही सिमट जाती है! एकदम उसके साथ ऐसे व्यवहार से वह चौक उठती है!
उसका पति आते ही उसके नाजुक बदन को नोंचने लगता है!
पति की ईस तरह की हरकत उसपर नागवार गुजरती है! जबरदस्ती उसे अपनी बांहों में भींसकर जगह जगह काटने और चूमने लग जाता है! एक पति का पत्नी से प्रेम नहीं था वहशीपन था! जैसे कोई भेड़िया अपने शिकार को दबोच कर उस पर टूट पड़ता है! वह काफी हतप्रभ हो गई थी! वह हड़बड़ा कर उससे छूटने की भरपूर कोशिश करती हैं! कसमसाती है लेकिन उसके बंधन से आजाद नहीं हो पाती!
वह उसे बुरी तरह काटता है!
उसकी आंखे छलक जाती है! क्या सोचा था ,और क्या हो रहा था उसके साथ..!
वो बुरी तरह रोती तडपती है.. उसके सामने गिडगिडाकर कहती है!
" प्लीज मुझे छोड दो इस तरह से जुल्म न करो..!
उसकू मिन्नतो का उसपक कोई असर नही था!
वो जैसे पागल होकर उस पर टूट पडा था! रहम जैसी चीज उसके जेहन को टच भी नही कर रही थी..!
ऐसा ईन्सान उसने कभी नही देखा था जिसके दिल मे रहेम को जगह नही थी!
तभी अचानक दरवाजे पर आहट हुई!
शायद बाहर कोई था! पति के रूप मे उस पर जुल्म कर के जख्मी करने वाला दरिंदा बाहर चला जाता है!
वो अपना मुह छूपाकर रोती है! ये क्या हो गया उसके साथ..? ये कैसे प्यार करने का तरिका था उसके पति का?
वो सून्न हो जाती है! कुछ भी सूनने समझ ने की शक्ति उसमे खत्म हो जाती है!
आंखे किसी झरने की तरहा लगातार बहती है! दिल पर चोट लगी थी! और आंखो से सारा दर्द छलक रहा था! वह कबूतर की तरह फडफडा रही थी!
क्या यही प्रेम था? यहीं सम्बन्ध था जो एक पतिपत्नी के दरम्यान बनता है! वो हिरनी की तरह कांप रही थी..!आंखे खौफ से भरी थी! वो अपने जिस्म के हर हिस्से पर निगाह फेरती है! सिने मे काफी दर्द हो रहा था! उसने देखा की वहां से लहु बह रहने लगा था! उस दरिन्दे की दरिंदगी से वो सहम गई थी!
वो यह सोच कर कांप रही थी की अभी तो पुरी रात बाकी है! न जाने कैसा घिनौना खेल उसके साथ खेला जाने वाला था!
उसकी लाईफ की सबसे अहम रात उसके लिये कयामत की रात बन गई थी! मधुरजनी नही थी वो.. ! उसको लग रहा था जैसे ये कमरा नही जेल है और उसके माता पिता ने उसे शेर के पिंजरे मे डाल दिया है! अब भुखा शेर उसको किस तरह नोंच नोच कर खायेगा वह सोचकर भी डरती है!
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प्यारे दोस्तों मेरी कुछ कहानियां मातृभारती पर भी आती प्लीज वहां भी आप मुझे सपोर्ट करें आपका लगाव मुझ पर बना रहे इसी कोशिश में लेकर आया हूं वह कौन थी

दास्तान-ए-अश्क -10

(मेरे प्यारे दोस्तो मातृभारती पर एवरी सन्डे "वो कौन थी.. होरर सिरीज को मैं लेकर आया हुं वहां भी मुझे भरपूर सपोट करे... मेरे लिखने के जज्बे को बरकरार रखने आप के साथ की आवश्यकता है... मातृ पर मेरी कहानी पढकर अपनी राय जरुर दे)

("दास्तान मे कुछ शब्द एसे है जिसको लिखने में मेरा जमिर मुझे रोक रहा था! फिर भी कहानी की धार बनी रहे इस लिए लिख दिए हैं किसी को वो न भी अच्छा लगे तो क्षमा चाहता हुं!!! )


10

रात उसको डरावनी लग रही थी!
उसे लगा जैसे वह डूबती नाव में बैठ गई है! अपनी बेबसी पर सोचते सोचते दिमाग की नस फट रही थी! आखिर थक कर उसने आंखें मूंद ली!
काफी देर तक बेसुद्ध सी पड़ी थी!
उसकी ननद आकर उसे जगाती हैं!
"भाभी उठो, क्या यहीं पर सोई रहोगी?"
अपने जख्मो को छूपाति सहम कर उसे देखती है!
"अरे अरे डरो मत..! "
"जी..! "
"उठो, अपना हाथ मुंह धो लो और चेहरा साफ करो..!"
"देखो रो रोकर तुमने कैसा बुरा हाल बनाया है अपना? तुम्हारी आंखों का काजल भी बहकर गालो पर आ गया है!"
"दीदी मै ठीक हुं! क्या मुझे एक कप चाय मिलेगी? और साथ में कोई सिर दर्द की गोली भी मिल जाए तो!!"
"हां हां क्यों नहीं पहले आप वोशरुम जाकर फ्रेश हो जाओ, तब तक मैं तूम्हारी चाय और दवाई का बंदोबस्त कर देती हूं!"
ननद का अपनापन उसके मन को जरा शांति मिलती है!
फ्रेश होकर बाहर आती है !
सोचती है सब इतने बुरे नहीं है! उसने शायद बात को मन पर ले लिया है!
ऐसा भी हो सकता है मन की इतनी खूबसूरती देखकर अपने पति से रहा नहीं गया होगा!
एक तरफ दिल प्रतिरोध भी करता है "इस तरह का व्यवहार पत्नी से भला कोई करता है?
शायद ऐसा ही होता होगा ! तूने कहा पहले किसी के साथ इस तरह की जिंदगी जी है? हां मैं धीरे धीरे उनको समझा दूंगी! मुझे दर्द होता है ऐसा मत करो..! मुझ पर रहम कर के जरा सब्र से काम लो!
खुद से बातें करती वो खुद को ही समझाती ! खुद को ही तसल्ली दे रही थी! वह शायद खुद को रात के लिए तैयार कर रही थी!
सब विशाल डाइनिंग टेबल पर एक साथ बैठकर खाना खा रहे थे!
हंसी मजाक का दौर चलता है! बातो से उसका मनभी थोडा हल्का हो जाता है! पर वह एक बात नोटिस कर रही थी
बाकी सब बहोत बातें कर रहे थे मगर उसकी जेठानी चूप चूप थी!
वो कम बाते कर रही थी ,मगर जीतना भी बोली उसे लगा उसकी बाते जलीकटी थी! जेठानी के रुखे बर्ताव से वो सोचने लगी.
"वह तो अभी अभी ईस घरमे आई है उससे कैसी नाराजगी..?
फिर वह अपने आप को ही टोकती है! तु कुछ ज्यादा ही सोचती है !
तुझे ये क्या हो गया है? कभी जेठानी की बातें अच्छी नहीं लग रही कभी पति का व्यवहार नेगेटिव...!
अरे कुछ समय तो दे इन लोगों को इनको समझना फिर इन के बारे में सोचना..!
खुद को ही डांट कर वह हंस पड़ती है!
तभी उसकी दोनो ननदे आकर उसको अपने कमरे मे छोड जाती है!
बड़ी ननद उससे कहती हैं "भाभी डरना मत ! हर लड़की के जीवन में ऐसे पल आते है! इसको खुलकर जीना और इसी बात की फिकर ना करना!
देखो हम भी तो अपने मां बाप को छोड़ कर दूसरे घर में गए थे और आज हम उसी घरके हो कर रहे गए!
ननद की ऐसी समझदारी भरी बात सुनकर उसके दिल को तसल्ली मिलती है! वह कहती है "दीदी हां मैं पूरी कोशिश करूंगी!
उन दोनों के चले जाने के बाद वह फिर अकेली हो जाती है! उसका दिल तेजी से धड़कने लगता है!
अब वो एक तरफ बैठ जाती है!
उसके मन में अब भी डर था, पर कुछ हद तक कम था! कुछ ही देर में उसका पति कमरे में दाखिल होता है!
वह कमरे में प्रवेश कर दरवाजा बंद कर लेते है!
उसका दिल डर के मारे कांप रहा था! अब क्या होगा ? धड़कने तेज हो गई थी!
कुछ वक्त पहले जो कुछ चूपकिदी उसके मन में थी वो ईस वक्त गायब हो चूकी थी!
अब तो सिर्फ डर था कि क्या होने वाला है उसके साथ? फिर से वही दरिंदगी से भरा खेल?
उसके पति अंदर आकर उसके पास बैठ जाते हैं चुपचाप! फिर कुछ सोचकर उसका हाथ पकड़ कर कहते हैं!
"तु मुझसे नाराज हो गई?
वह सर झुका कर बैठी रहती हैं !और माथे को हल्की सी जुंबिश देकर चूपचाप सिर हिलाकर 'नही' कहती हे
"ठीक है तो मुझसे नाराज मत होना! तु बहुत सुंदर है !बहुत अच्छी है! तुझे देख कर मैं खुद पर कंट्रोल नहीं कर पाया!
वह कुछ भी बोलती नहीं और सिर हिला देती है!
इससे आगे बढ़कर उसके पति कहते हैं सुनो हम तीन भाई हैं! दोनों भाइयों की पहले शादी हो चुकी थी! मगर उनको कोई बच्चा नहीं है मगर तू वादा कर मुझसे कि मुझे 1 साल के भीतर ही एक बच्चा देगी! लोग हमारी मर्दानगी पर उंगलियां उठाते हैं
पति की बात सुनकर वह हैरान हो जाती है! जेठानी की नाराजगी और उसकी जली कटी बातें अब उसे समझ में आ जाती हैं!
वह कहती है बच्चा होना ना होना तो भगवान की मरजी की बात है! तब उसका पति कहता है !"नहीं तो मुझसे वादा कर! पूरे साल के अंदर ही मुझे बच्चा देगी! मुझे लोगों की जुबान बंद करनी है!
से कुछ भी समझ में नहीं आ रहा था कि वह क्या जवाब दें ! क्या वो बात करती! पति की बात पर उसे यकीन ही नहीं हो रहा था!
वो फिर गरजते है! तूने सूना नहीं वादा कर मुझसे..! तु एक साल के भीतर ही
मुझे बच्चा देगी!
वो डर के मारे सिर हिला देती है! बस उसके सिर हिलाने की ही देरी थी ,उसके पति पर वहशीपन सवार हो जाता है! फिर से वो टूट पड़ता है! वो उसके होटों को गालो को बुरी तरह नोंचता है! धीरे धीरे करके उसके शरीर से एक एक कपडा हटा उतार देता है!
शर्म खौफ और बेबसी ने उसको जकड़ कर रख दिया था! उसके पति को कोई फर्क नहीं पड़ रहा था!
जबरदस्ती उसके साथ संबंध बनाते हैं उसकी अस्मत को तार-तार करते है!
ना सिर्फ उन्होंने उसके बदन को जख्मी किया उसकी अंतरात्माको भी छलनी कर दिया था!
वह दर्द से तड़पती हैं कराहती है! पति को जरा भी रहम नही आता!
वो बस खुद को तृप्त करने में अपनी शारिरीक क्षमता आजमा रहे थे! पत्नी के बहते अश्क उनपर बेअसर थे!
पूरी तरह संतुष्ट होकर जब उसका पति उठता है तब उसे लगता है, जैसे कोई जहरीला खंजर उसके शरीर से निकल गया हो..! एक ऐसा जहरीला खंजर जिसने शरीर के साथ अंतरात्मा को भी जख्मी कर दिया था!
उसमे इतनी भी हिम्मत बाकी नहीं थी कि वह उठकर अपने कपड़े पहन सके! अपना बदन ढक सके! तभी कुछ ऐसा होता है कि उसकी रूह कांप जाती है!
उसके पति की एक हरकत ने उस को चौंका दिया ! वह काफी हद तक डर गई थी ! समझ नहीं पा रही थी, आखिर वह इतना जुल्म उसके साथ क्यों कर रहा है? उसने अपने कपडों से लदी बेग से एक छोटा टॉवेल निकाला था!
और उससे वह उसके संवेदनशील अंग को साफ करने लगा था! उसकी वह क्रिया के पिछे उसकी विकृत अज्ञानता से भरी हुई सोच थी!
उस खुरदुरे टॉवेल की चुभन से वो चीख उठती है..!
"क्या कर रहे हो आप..? "
पत्नी को जवाब देने की बजाय वह उससे सवाल करता है!
"तेरे को खून क्यों नहीं आया..?
"क्या..? " पति के बचकाने सवाल से वह हिल जाती है!
"जब औरत से पहली बार फिजिकल संबंध बनाते हैं ,तो खून आता है ! फिर तुझे क्यों नहीं आया? तेरे पहले भी किसी से संबंध थे..? "
कैसी बातें करते हो आप में एक शरीफ खानदान की लड़की हुं..! हमेशा कभी घर पर अकेले बाहर भी नहीं जाने दिया जाता! मैं ऐसी नाजायज संबंध किसी के साथ भला क्यो बनाउंगी..!
वो रोने लगती है! उसके आंसू उस पत्थर पर क्या असर करने वाले थे! वह उसके बाल पकड़कर खींचते हुए कहते हैं सच बता तूने पहले भी किसी के साथ यह सब किया है?
नहीं मैं कसम खाती हूं इससे पहले मैंने कभी किसी मर्द को नहीं छुआ! आपने देखा नहीं मैं दर्द से कितनी तड़प नहीं थी?"
"अरे वह तो लड़कियां त्रिया चरित्र करती है! नाटक करती है!"
नहीं .. नहीं ऐसा मत बोलो प्लिज मेरे किसी से कोई संबंध नही थे!
"तो फिर बता तुझे खून क्यों नहीं आया...?"
पता नहीं अभी कल ही तो मेरी महावरी ठीक हुई है! शायद उस वजह से
पहले ही बोल बहुत बह चुका है इसलिए शायद नहीं आया होगा! और मुझे पता नहीं कि खून भी आता है!
हां ..हां तुझे तो कुछ पता होगा तू तो दूध पीती बच्ची है ना? मैंने तो सुना है ग्रेजुएशन कर रही हो और ईतनी नासमझ.. हो नहीं सकता..!
लेकिन पढ़े-लिखे होने का मतलब यह तो नहीं की ऐसी बातें करेंगे.!
मेरे बाल छोड़िए प्लीज! मुझे दर्द हो रहा है!
वह उसके बाद छोड़ देता है!
लेकिन उसका मन घिन्न और अवसाद से भर जाता है! कैसा आदमी है? दिल नाम की चीज उसके अंदर है या नहीं राम जाने..?
एक तरफ पड़ी कराहती वो देर रात तक आंसू बहाती है! फिर हिम्मत जुटाकर अपने कपड़े पहनने लगती है !उसका पति उसके हाथ से कपड़े छीन लेता है
फिर वही दरिंदगी और हैवानियत से भरा खेल शुरू होता है! वह चिपकी रहती है चिल्लाती है! भेड़िए के नुकिले नाखून उसके कोमल अंग को चीर रहे है! कौन उसको बचाता! कयामत से भरी रातें उसकी जिंदगी बन चुकी थी!
वो उस पर ईस तरह से भारी थी की उसके शरीर को वह नॉच रहा था! तब तक उसने बार बार झुल्म जारी रखें जब तक उसके ऩाजुक अंग से खून बहना शुरु न हुवा..! उसको दोबारा रूतुश्राव शुरु हो जाता है! उसके शरीर में बुरी तरह जलन हो रही थी!
जैसे वहीं जहरीला खंजर उसको भीतर ही भीतर काट रहा था! पेट में असह्य दर्द हो रहा है! उसका जी चाहता है कि वह जोर जोर से चिल्लाए! पर वह चुप हो जाती है पति के लिए उसका मन कटु हो गया था अंदर से बस एक ही आवाज उठ रही थी कि इस हैवान को छोड़ कर कही दूर चली जाए!
उसका पति तृप्त होकर भैसे की तरह लेटा हुवा है! तब वो लडखडाती उठकर वोशरुम जाती है! कपडे पहनती है! खुदको संभालती है! और वापस आ कर लेट जाती है! उसके मन में समंदर की मौजो की तरह द्वंद उठा था, क्या मधुरजनी पर खून आना ही एक औरत की पवित्रता की निशानी है..? जिन लडकियाँ को उस रात खून नही आता वो क्या अपवित्र होती है..?
शरीर का मात्र चार ईंच का टूकडा औरत के वजूद पर हावी है?
वो क्या करती है ? क्या सोचती है ? कैसे जीती है..? और समाज के लिये वो क्या क्या नही कर सकती वो कुछ मायने नही रखता..! मायने रखता है तो वो सिर्फ चार ईंच का टूकडा.. जिसे छूकर कोई भी मर्द उसे बाजारु औरत बना देता है.. ,मा बना देता है..! उसकी मरजी के बिना लेकिन कभी कोई भी मर्द स्त्री के दर्द को नही समजता.! उसके शरीर का वह छोटा सा हिस्सा उसकी पूरी शख्शियत पर हावि होता है! किसी औरत को बेईज्जत करना हो तो भी, किसी मर्द को गंदी गाली देनी हो तब भी..! क्या हमारा समाज औरतो को हमेशां ईसि नजरिये से देखेगा..? हम देवीओं को पूजते है माताओंको पूजते है..! लेकिन धरकी औरतों को हमेशां तिरस्कृत किया जाता है..! संस्कृत मे किसी विद्वान ने कहा है "यत्र नार्यस्तु पूज्यन्ते रमन्ते तत्र देवता:" (जहां नारी की पूजा होती है वही देवताओ का वास होता है..! )
अगर समाज बदलने की शुरुआत करनी है तो वो घरसे होनी चाहिए! घर के मर्दो को अपनी मानसिकता बदलनी चाहिए!
एक औरत जो मर्द को जन्म दे सकती है, उसको पाल सकती है बडा कर सकती है ! वो कुछ भी कर सकती है..!
कभी भी किसी औरत को तिरस्कृत करना नही चाहिए! और जो मर्द ऐसा करते है उनको सजा मिलनी चाहिए!
औरत कोई भोग की चीज नही वो हमारे समाज का एसा अहम हिस्सा है! जिसके बिना हमारे समाज का कोई वजुद नही..! एक अकेली औरत मर्द बनकर अपने बच्चों को पाल सकती है! लेकिन एक मर्द कभी औरत नही बन सकता..!
"तिनखो मंदा आखिये जिंजन मे राजान..!"
उस औरत को क्यो बूरा कहा जाए जिसने भगवान और राजाओंको जन्म दिया..!
कृपया मेरी बातों को सोचियेगा! जरूर..! एक बार.. औरत की तरह सोचकर देखियेगा.. बदलाव आएगा जरुर आयेगा हमारे समाज में..!
शायद मेरी दास्तान-ए-अश्क कुछ एसी औरतो मे हौसला भर देगी जो आज भी
बहोत कुछ सह रही है!
और शायद कुछ एसे मर्दो को समझ आजाए जो आज भी औरतो को भोगने की चिज समझते है!
नही सर औरत भोगने की वस्तु नही है वो समस्त सृष्टि का आधार है..!
( क्रमश:)
दास्तान-ए-अश्क आप सबको कैसी लगी अपनी राय से जरुर अवगत करे मुझे... !
-साबीरखान