आफ़िया सिद्दीकी का जिहाद - 19 Subhash Neerav द्वारा फिक्शन कहानी में हिंदी पीडीएफ

Featured Books
श्रेणी
शेयर करे

आफ़िया सिद्दीकी का जिहाद - 19

आफ़िया सिद्दीकी का जिहाद

हरमहिंदर चहल

अनुवाद : सुभाष नीरव

(19)

आफिया का नाम यद्यपि हर तरफ से गायब हो चुका था, परंतु एक ऐसा इन्सान भी था जो हर वक़्त उसके बारे में सोचता था। वह था उसका पहला पति अमजद। जब भी कहीं ख़बर आती कि आफिया गिरफ्तार हो गई है तो वह रात रातभर सो न पाता। आफिया का चेहरा उसकी आँखों के आगे घूमता रहता। वह यह सोचकर तड़पता रहता कि इस समय पता नहीं उस पर क्या बीत रही होगी। मगर जब ख़बर आ जाती कि नहीं वह अभी तक किसी की हिरासत में नहीं आई है तो उसको कुछ शांति मिलती। आफिया के साथ गहरा जुड़ा होने के अलावा उसको बच्चों की बड़ी चिंता रहती थी। वह सोचता कि वह जहाँ कहीं भी रह रही है, रहे जाए, पर पुलिस के हाथ न आए। यह दर्द उससे झेला नहीं जाएगा और साथ ही, बच्चों का जीवन भी बर्बाद हो जाएगा।

परंतु जब उसको पता चला कि आफिया के साथ उसका नाम भी एफ.बी.आई. ने मुज़रिमों के इश्तहार की लिस्ट में डाल दिया है तो उसके होश उड़ गए। क्योंकि वह तो अपने ही घर में रहता था और उसने सोचा कि उसको पुलिस किसी भी समय गिरफ्तार कर सकती है। उसने अपने पिता से बात की। पिता ने अपने किसी दोस्त की राय ली। यह दोस्त पहले आई.एस.आई. का अफ़सर रह चुका था और इस समय रिटायर हो चुका था। इसी दोस्त के उद्यम से अमजद की आई.एस.आई. के मौजूदा किसी अफ़सर के साथ इंटरव्यू करवाई गई। उसने अमजद से बहुत सारे सवाल पूछे। लेकिन अमजद ने जो सच था, वह बता दिया कि जिस आफिया को वह जानता है, वह ऐसी नहीं है और हो सकता है कि आफिया उससे छिपाकर कोई दोहरी ज़िन्दगी जी रही हो। लम्बी इंटरव्यू के बाद अफ़सर ने उसको फ्री कर दिया। अपने रिकार्ड में उसका नाम लिख दिया कि इस व्यक्ति की पूछताछ हो चुकी है और इसका किसी असामाजिक तत्वों से कोई संबंध नहीं है। अब एफ.बी.आई उसको आसानी से गिरफ्तार नहीं कर सकती थी। ख़ास तौर पर पाकिस्तान में तो कतई नहीं। इस दौरान अमेरिका के बाल्टीमोर दफ़्तर से एफ.बी.आई. का एक एजेंट उसके घर आ पहुँचा। घर वालों की तो जैसे जान ही सूख गई। पर अमजद ने उसको आई.एस.आई. के साथ हुई अपनी इंटरव्यू के बारे में बताया और साथ ही इंटरव्यू करने वाले अधिकारी का नाम-पता आदि दे दिया। उस वक़्त तो एजेंट चला गया, पर अगले रोज फिर आ गया। ख़ैर, अब उसने बताया कि वह सिर्फ़ अमजद की उसके घर में ही पूछताछ करेगा। लम्बी बातचीत के बाद इस एजेंट ने भी यही नतीजा निकाला कि अमजद को आफिया की दूसरी ज़िन्दगी का कोई इल्म नहीं है। वह वापस अमेरिका लौट गया।

आफिया की माँ के पास ग्रीन कार्ड था और वह अमेरिका जा सकती थी। वह अपनी बेटी को खोजने के लिए अमेरिका के लिए रवाना हो गई। न्यूयॉर्क के कनेडी एअरपोर्ट पर ही उसको एफ.बी.आई. वालों ने घेर लिया। पर वह डरी नहीं और ज़ोर-ज़ोर से चीख-चिल्लाकर कहती रही कि तुमने मेरी बेटी को कै़द किया हुआ है। चार घंटों के बाद उसको छोड़ दिया गया तो वह बाहर इंतज़ार कर रही फौज़िया के साथ उसके घर चली गई। करीब दो दिन बाद ही फौज़िया के दरवाज़े पर शैरिफ़ दफ़्तर का एक अधिकारी खड़ा था। उसने इस्मत सद्दीकी के विषय में पूछा, “मैम, मैं इस्मत सद्दीकी से मिलना चाहता हूँ।“

“किसलिए ?“ फौज़िया के चेहरे पर चिंता की लकीरें उभर आईं।

“उसको कोर्ट को आदेश हुआ है कि वह ग्रैंड ज्यूरी के पास पेश हों।“

तभी इस्मत वहाँ आइ गई। उसने दस्तख़्त करके कोर्ट का सम्मन ले लिया। इसके बाद दोनों माँ-बेटियाँ गहरी फिक्र में डूब गईं। फौज़िया ने अपने भाई को टैक्सास में फोन करके इस बारे में बताया। उसने वकील कर लेने की सलाह दी। डर था कि कहीं उनकी माँ को जेल में ही न बंद कर दें। किसी दोस्त ने बॉस्टन की बहुत ही मशहूर वकील शार्प के विषय में बताया। फौज़िया ने शार्प को फोन किया। पहले तो वह केस लेने से हिचकिचाती रही, पर फिर मान गई। इससे माँ-बेटी दोनों को बड़ी राहत मिली। शार्प ने सबसे पहला काम यह किया कि इस्मत को दिमागी तौर पर परेशान बताकर, फिलहाल ग्रैंड ज्यूरी के पेश होने से छूट दिलवा दी। इधर से पीछा छूटते ही इस्मत अपने बेटे मुहम्मद के पास टैक्सास चली गई। पर उसके वहाँ पहुँचने के अगले दिन ही एफ.बी.आई. वाले उसके दरवाज़े पर भी आ खड़े हुए। वह इस्मत की इंटरव्यू करना चाह रहे थे। मुहम्मद ने तुरंत अपने लोकल वकील को फोन किया तो वकील उसी समय उसके घर आ गया। एफ.बी.आई एजेंट ने इंटरव्यू शुरु करते हुए सवाल किया, “मैम, तुम अमेरिका में क्या करने आई हो ?“

“मेरे पास ग्रीन कार्ड है। मैं जब चाहे यहाँ आऊँ-जाऊँ, तुम कौन हो मुझे पूछने वाले ?“ इस्मत यहाँ भी भयभीत न हुई। अपितु डटकर उत्तर देने लगी।

“तुम कभी ओसामा बिन लादेन से मिली हो ?“

“मुझे उससे मिलने की कोई ज़रूरत नहीं है। नहीं, मैं उससे नहीं मिली।“

“तुम्हारी बेटी आफिया कहाँ है ?“

“मैं तो खुद उसको खोजती घूमती हूँ। उसी को तलाशती मैं अमेरिका आई हूँ। इस बात का जवाब तुम दो कि तुमने आफिया को कहाँ कै़द करके रखा हुआ है।“

“व्हट नानसेंस ! हमने उसको नहीं पकड़ा। वह हमारे कब्जे़ में नहीं है। तुम जानबूझ कर नहीं बता रही। तुम माँ-बेटियों ने मिलकर अमेरिका के खिलाफ़ कोई साज़िश रची है। उसी साज़िश को अमली रूप देने के लिए तुम यहाँ आई हो।“

“यह सब बकवास है। तुमने मेरी बेटी को कहीं खपा दिया है। बताओ, कहाँ है मेरी बेटी ?“ वह ऊँची आवाज़ में बोलने लगी।

“मैम, तुम हमारी इंटरव्यू नहीं कर रहीं, बल्कि हम तुम्हारी इंटरव्यू कर रहे हैं। इसलिए तुम्हें हमारे सवालों के उत्तर तो देने ही पड़ेंगे। तुम बताओ कि के.एस.एम. के बारे में तुम क्या जानती हो ? मजीद खान तुम्हारा क्या लगता है ? उसने क्या योजनाएँ बना रखी थीं। तुम्हारी बेटी आफिया ने उसके लिए पोस्ट ऑफिस बॉक्स किराये पर क्यों लेकर दिया था ?“

“तुम सब झूठे हो। मैं किसी भी बात का उत्तर नहीं दूँगी। जाओ, कर लो जो करना है।“

“उत्तर तो मैम तुम्हें देने ही पड़ेंगे।“

इतना कहकर एफ.बी.आई. के एजेंट उठ खड़े हुए। उनके वकील ने कहा कि तुम देख ही रहे हो कि इस औरत दिमाग सही ढंग से काम नहीं कर रहा। अपनी बेटी के गम में यह बेज़ार हो चुकी है। इसको इलाज की ज़रूरत है। मगर एफ.बी.आई. वाले उसकी बात का नोटिस लिए बग़ैर बाहर निकल गए। अगले दिन यहीं कोर्ट का समन आ पहुँचा कि इस्मत सद्दीकी ग्रैंड ज्यूरी के सामने पेश हो। लेकिन वकील ने एक बार फिर उसकी बीमारी का बहाना बनाकर यह काम टाल दिया।

“अम्मी, मुझे लगता है कि तुझे वापस चले जाना चाहिए। कहीं यह न हो कि तू यहीं घिरकर रह जाओ।“ उस शाम घर बैठी फौज़िया ने बात शुरु की।

“मेरी एक बेटी तो गायब हो ही चुकी है, मैं नहीं चाहती कि तू भी एफ.बी.आई. के चक्कर में फंस जाए। तू भी यहाँ से चली चल।“ इस्मत ने फौज़िया से कहा।

“फौज़िया, मैं भी तुझे यही सलाह दूँगा, जो अम्मी दे रही है।“ समीप बैठा मुहम्मद बोला।

“वैसे तो भाईजान मेरे पीछे भी एफ.बी.आई. वाले घूमते रहते हैं। मेरी पहले वाली जॉब चली गई। हर रोज़ अस्पताल आ पहुँचते थे। अपनी रेपुटेशन के कारण अस्पताल वालों ने मुझे नौकरी से निकाल दिया। इसी बात की सताई मैं वहाँ से दूर बाल्टीमोर जाकर एक साधारण-सी नौकरी करने लगी तो एफ.बी.आई. ने वहाँ भी मेरा ठिकाना खोज लिया। पर मैं एक बात सोचती हूँ।“

“वह क्या ?“

“जब मेरा किसी बात से कोई लेना-देना ही नहीं तो मुझे कोई क्या कर देगा।“

“फौज़िया, यह बात नहीं है। असल में तू और आफिया शुरु के काफी दिन एकसाथ रहती रही हो। फिर, तू वहाँ उसके पास बॉस्टन में भी रही। इसीलिए एफ.बी.आई. सोचती है कि तू उसके बारे में बहुत कुछ जानती होगी। या वह अवश्य तेरे से सम्पर्क कायम करती होगी।“

“भाईजान, आफिया की वजह से सारा परिवार मुश्किलों में फंसा हुआ है। पता नहीं, उसने यह राह क्यों चुना ?“ इतना कहती हुई फौज़िया रोने लगी। माँ ने उसका ढाढ़स दिया।

“फौज़िया, यह मौका इस तरह हिम्मत हारने का नहीं है। मैं चाहता हूँ कि तू कल ही अपने वकील से सारी बात बता दे और अम्मी को लेकर यहाँ से चलती बन।“

“ठीक है भाईजान।“ फौज़िया वापसी के लिए मन बनाने लगी।

अगले दिन फौज़िया ने वकील शार्प को फोन करके कहा, “मैम, मैं इन एफ.बी.आई. वालों से बड़ी तंग आ चुकी हूँ। जिस अस्पताल में मैं काम करती थी, उन्होंने एफ.बी.आई. के चक्कर में मुझे नौकरी से निकाल दिया। अब मुझे कहीं ढंग की नौकरी नहीं मिल रही। मैं यहाँ से चले जाने के बारे में सोच रही हूँ।“

“मिस फौज़िया, यह तो तेरी मर्ज़ी है। तुझे कोई यहाँ जबरन रोक नहीं सकता। तेरे पर केस भी कोई दर्ज़ नहीं हुआ। इसलिए तू जाने के लिए आज़ाद है। दूसरा इस्मत सद्दीकी को भी अपने मुल्क में ले जाकर तुम्हें उसका अच्छा इलाज करवाना चाहिए।“ इशारे से वकील ने कह दिया कि अच्छा है कि इस्मत यहाँ से चली जाए। अगले ही दिन माँ-बेटी दोनों ही वापस जाने की तैयारियाँ करने लगीं और दो दिन बाद वह पाकिस्तान पहुँच गईं।

इन्हीं दिनों आई.एस.आई. की पूरी टीम आफिया के पहले पति अमजद के घर पहुँची।

“मि. अमजद, तुझे हमारी मदद करनी पड़ेगी। हम आफिया को पकड़ने की योजना बना रहे हैं।“

“कहाँ है आफिया ? क्या मेरे बच्चे भी उसके पास हैं ?“ अमजद ने उत्साह से आई.एस.आई. के अफ़सर से पूछा।

“यह नहीं पता, पर तुम्हें हमारे साथ चलना पड़ेगा।“

“साथ चलना पड़ेगा ? पर कहाँ ?“

“इस बात का पता भी वहीं चलकर लगेगा। अब तू चलने के लिए तैयार हो।“

इसके पश्चात आई.एस.आई. वालों ने अमजद को संग लिया और कराची एअरपोर्ट पर पहुँच गए। वह वहाँ खड़े हो गए जहाँ जहाज की सवारियाँ उतरकर आ रही थीं। करीब आधे घंटे के बाद आई.एस.आई. वालों ने अमजद से कहा कि सामने जो औरत आ रही है, वह उसको पहचाने और बताए कि क्या यही आफिया सद्दीकी है। अमजद ने ध्यान से सामने से आ रही औरत की ओर देखा। उसका सारा शरीर लम्बे बुर्के से ढका हुआ था। अमजद ने उसकी आँखें देकर नब्बे प्रतिशत अंदाजा लगा लिया कि यह आफिया ही है। उसके साथ चले रहे बच्चे को भी अमजद ने पहचान लिया कि वह उसका ही बेटा है। एकबार तो वह बहुत ही भावुक हो गया। पर साथ ही उसने सोचा कि यदि उसने आई.एस.आई. वालों को बता दिया कि उसे लगता है कि यही आफिया है तो वे उसको तुरंत गिरफ्तार कर लेंगे। लेकिन उसके अंदर का अमजद यह नहीं सहन कर सकता था। उसने सिर मारते हुए कह दिया कि यह आफिया नहीं है।

उधर, आफिया के मामा एस.एच. फारूकी को भी आई.एस.आई. तंग करने लग पड़ी तो उसने दौड़-भाग करके बमुश्किल अपना पीछा छुड़वाया। फौज़िया और उसकी माँ पाकिस्तान में आकर अपने घर में रहने लग पड़ी थीं। इसी बीच उन्हें फोन आने शुरू हो गए कि या तो वे आफिया के मामले में चुप हो जाएँ, नहीं तो उनका हाल भी उसके जैसा होगा। इसके बाद माँ-बेटी दोनों ने आफिया को लेकर बातें करनी बंद कर दीं। साथ ही, उन्होंने भी मीडिया से विनती की कि वे आफिया का मामला न उठाएँ। मीडिया ने तो क्या मानना था अपितु उन्हें एक और ख़बर मिल गई कि आई.एस.आई. सद्दीकी परिवार को तंग कर रही है। एकबार फिर से लोगों में आफिया का नाम चर्चा का विषय बन गया।

जो कुछ हो रहा था, अमजद बड़े ग़ौर से सब देख रहा था। वह चाहता था कि बस एकबार वह अपने बच्चों को देख ले। पर यह मुमकिन न हो सका। एक दिन वह अपने पिता को संग लेकर उनके उसी आई.एस.आई. के रिटायर्ड अधिकारी दोस्त से मिलने पहुँचा जिसने उसकी आई.एस.आई. से इंटरव्यू करवाकर उसको क्लियरेंस दिलवाई थी। वह अफ़सर अमजद को सलाह देते हुए बोला, “अच्छा यही रहेगा कि तुम यहाँ से कहीं दूसरी जगह चले जाओ। यहाँ किसी का कोई भरोसा नहीं कि क्या करवा दे। तुम प्रेज़ीडेंट मुशरफ का उदाहरण ले लो। वह अमेरिका को खुश करने के लिए किसी को भी उनके हवाले कर देता है। मेरे कहने का अर्थ है कि कई ऐसे व्यक्ति भी उसने अमेरिका को सौंप दिए जिनका गुनाह इतना बड़ा नहीं था कि उन्हें बेगाने देश के हवाले किया जाता। कई तो सिर्फ़ पूछ-पड़ताल तक ही सीमित थे। पर इसने सभी पर अलकायदा सदस्य होने का लेबल लगाकर गिरफ्तार किया और एफ.बी.आई. के हवाले कर दिया।“

उसकी बातें सुनकर पिता-पुत्र चिंतित हो गए। कुछ देर बातें करके वे वापस लौटने लगे तो वह अजमद के पिता को एक तरफ ले गया। फिर धीमे स्वर में बोला, “नईम खां, तुम्हें एक भेद की बात बताता हूँ।

“जी।“

“तुम्हें याद होता कि कुछ समय पहले के.एस.एम. का भान्जा अली और एक अन्य आतंकवादी पकड़े गए थे। दूसरे आतंकवादी पर चार्ज है कि उसने अमेरिकी समुद्री यू.एस.एस. कोहल नामी बेड़े पर हमला किया था।“

“जी हाँ, याद है मुझे वो घटना।“

“तो फिर तुम्हें यह भी याद होगा कि उस दिन उनकी पुलिस के साथ फायरिंग हो गई थी और उन्होंने वहाँ फंसे हुए किसी बच्चे को बाहर निकालने के लिए कुछ देर के लिए फायरिंग रुकवाई थी। बाद में आई.एस.आई. का हथियारबंद दस्ता भी वहाँ पहुँच गया था।“

“हाँ जी, बिल्कुल। बाद में पता चला था कि आई.एस.आई. ने उस बच्चे को अपने कब्ज़े में कर लिया था।“

“हाँ-हाँ, वहीं घटना। पर क्या तुम्हें पता है कि वह कोई बच्चा नहीं था बल्कि एक औरत थी ?“

“जी नहीं, यह तो नहीं पता। पर फिर वो औरत कौन थी ?“

“वह तुम्हारे बेटे की पहली बीवी आफिया ही थी।“

“हैं ! यह तुम क्या कर रहे हो ?“

“यह बिल्कुल सही है। वह अलकायदा की बहुत ही सक्रिय मेंबर है। साथ ही, वह बहुत ज्यादा ख़तरनाक भी है। इसीलिए कह रहा हूँ कि तुम अपने बेटे को कहीं बाहर भेज दो। कल अगर वह फिर पकड़ी गई और उसने कहीं अमजद का नाम ले दिया तो इसकी ज़िन्दगी बर्बाद हो जाएगी।“

“पर जनाब एक बात और...।“ नईम खां कोई दूसरी बात शुरु करता करता रुक गया।

“हाँ, बताओ तुम क्या कहना चाहते हो ?“

“तभी पता लगा था कि आफिया एकबार आई.एस.आई. द्वारा पकड़ ली गई थी। पर क्या वह फिर से छोड़ दी गई ? मेरा मतलब यह सब क्या है ?“

“ये दोनों बातें सहीं है। लेकिन यह एजेंसियों के काम करने का ढंग होता है, तुम इस बात के पीछे न जाओ। बस, अमजद का कुछ सोचो।“

“जी, बहुत बेहतर जनाब। मैं सब समझ गया।“

बात समाप्त करके नईम खां बाहर खड़े अमजद के साथ कार में आ बैठा। घर तक वह अपने दोस्त की कही बात के विषय में ही सोचता रहा। घर आकर उसने अमजद को समझाया कि उसको चाहिए कि अब अतीत का पीछा छोड़कर भविष्य के बारे में सोचे। अमजद भी आफिया की तलाश से ऊब चुका था। पिता की बात से सहमत होते हुए उसने अपनी ज़िन्दगी को आगे बढ़ाने का फैसला कर लिया। उसका नाम एफ.बी.आई. की वांटिड लिस्ट में से उतर चुका था। इसलिए उसने पाकिस्तान छोड़ने का निर्णय करते हुए सउदी अरब के किसी अस्पताल में नौकरी कर ली। वह अपनी नई दुल्हन और छोटी-सी बच्ची को लेकर सउदी अरब चला गया।

(जारी…)