जाने क्यों ये रातें मुझसे ख़फ़ा ख़फ़ा सी रहती हैं Rudra द्वारा कविता में हिंदी पीडीएफ

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जाने क्यों ये रातें मुझसे ख़फ़ा ख़फ़ा सी रहती हैं

Poetry Author – Rudra

Presented by – IMRudra – The Life Coach

Content Writer – Rudra

Book Title – Heart Touching Sad Potry - जाने क्यों ये रातें मुझसे ख़फ़ा ख़फ़ा सी रहती हैं – By IMRudra

Disclaimer –

This is a work of fiction. Names, characters, businesses, places, events, locales, and incidents are either the products of the author’s imagination or used in a fictitious manner by resemblance to actual persons, living or dead, or actual events is purely coincidental.

About The Author –

Rudra is widely recognized for his thought leadership, A First Generation Entrepreneurs has an ideology to win the long road race. Some of these lineaments are Belief, Passion, Networking, Optimism, Startup Capital and Partner (Co-Founder). He is actually the wealth creator and fresh leader. He also coach professionals and leaders in business and personal Life. He believes that finding your excellence is an inside job. With the advent of the modern marketing concept and innovative business plan, Rudra can easily create customers and buyers by fulfilling their needs. He has also competed ferociously by standing against those businesses who follow the traditional business norms Rudra’s Life Coaching is different from any other. If you are severe about changing the situations of your life and are open to exploring how life lessons or coaching can help you. Your Rudra Results life coach will become faithful companion in your life.

I expect the best from your inside so that you will dare to perform your best. I help people fight powerfully with whatever challenges they are facing in life, challenges related to business, career, relationships, Finances etc. That’s the class of value and capability He brings to your life.

जाने क्यों ये रातें मुझसे ख़फ़ा ख़फ़ा सी रहती हैं ।

सोचता हूँ तो लगता है जैसे ये मुझसे कुछ कहती हैं ।

जाने क्यों ये अँधेरी रातें मुझसे ख़फ़ा ख़फ़ा सी रहती हैं ।

ये दिन तो गुजर जाता है जैसे - तैसे,

ये दिन तो गुजर जाता है जैसे - तैसे,

पर ये धुंधली शाम जाने क्यों मुझसे रूठी रहती है ।

सोचता हूँ तो लगता है जैसे ये मुझसे कुछ कहती है,

जाने क्यों ये काली रातें मुझसे ख़फ़ा - ख़फ़ा सी रहती है ।

जाने क्यों ये काली रातें मुझसे ख़फ़ा - ख़फ़ा सी रहती है

सोचता हूँ तो लगता है जैसे ये मुझसे कुछ कहती हैं ।

ये दिन तो गुजर जाता है जैसे - तैसे

ये दिन तो गुजर जाता है जैसे - तैसे,

पर ये धुंधली शाम मुझसे रूठी रहती है ।

सोचता हूँ तो लगता है जैसे ये मुझसे कुछ कहती है ॥

कैसे समझाऊं इनको,

कैसे समझाऊं इनको,

कि मुझको भी कुछ है कहना,

कैसे समझाऊं इनको,

कि मुझको भी कुछ है कहना,

कुछ दर्द है मेरे सीने में जो ये भी नहीं समझती है।

कैसे समझाऊं इनको,

कि मुझको भी कुछ है कहना,

कुछ दर्द है मेरे सीने में जो ये भी नहीं समझती है ॥

सोचता हूँ तो लगता है जैसे ये मुझसे कुछ कहती है ।

नींद आती नहीं मेरे सिराहने में,

जिस्म सारी रात बिस्तर पर करवट बदलती है ।

सोचता हूँ तो लगता है,

जैसे ये मुझसे कुछ कहती है ।

जाने क्यों ये काली रातें मुझसे ख़फ़ा - ख़फ़ा सी रहती है ।

कैसे समझाऊं इनको,

कैसे समझाऊं इनको कि मुझको भी कुछ है कहना ।

कुछ दर्द है मेरे सीने में जो ये भी नहीं समझती है ॥

कैसे समझाऊं इनको कि मुझको भी कुछ है कहना ।

कुछ दर्द है मेरे सीने में जो ये भी नहीं समझती है ॥

सोचता हूँ तो लगता है जैसे ये मुझसे कुछ कहती है ।

नींद आती नहीं मेरे सिराहने में,

जिस्म सारी रात बिस्तर पर करवट बदलती है ।

सोचता हूँ तो लगता है जैसे ये मुझसे कुछ कहती है ।

जाने क्यों ये काली रातें मुझसे ख़फ़ा - ख़फ़ा सी रहती है ॥

नींद आती नहीं मेरे सिराहने में,

जिस्म सारी रात बिस्तर पर करवट बदलती है ।

सोचता हूँ तो लगता है जैसे ये मुझसे कुछ कहती है ।

जाने क्यों ये काली रातें मुझसे ख़फ़ा - ख़फ़ा सी रहती है ॥

सोचता हूँ तो लगता है जैसे ये मुझसे कुछ कहती है ॥

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