चंदा फुलारा
जन्मतिथिः 31 मार्च
शिक्षाः एम.ए.;हिंदी
संप्रतिः स्वतंत्र लेखन
हिंदी की विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं मे कविताएँ प्रकाशित।
संपर्कः ई-90 सैक्टर-72 नोएडा 110077
मो.- 9711221294
मेरी माँ
खून से सींचती, आँखें मिचती,
करती है दुआ मेरी माँ।
अंधेरी रातों में, दुख भरी बातों में,
करती है सवेरा मेरी माँ।
शब्दों की गहराई, ईश्वर की परछाई,
बनी है मेरी माँ।
दुखों के जंगल में,समस्याओं के दगंल से,
निकाल देती है मेरी माँ।
नफरतों को तोड़कर, दिलों को जोड़कर,
रख देती है मेरी माँ।
ममता की गहराई माँ में है समाई,
बहुत प्यार लुटाती है मुझ पर मेरी माँ।
मुश्किलों की घड़ियों में, खुशियों की लड़ियों में,
साथ देती है हर पल मेरी माँ।
ज़िंदगी से बढ़कर, कठिनाइयों से लड़कर,
मुझे चाहती है मेरी माँ।
-चंदा फुलारा
अजन्मी औलाद
तुझे जन्मना बस रह गया बाकी,
तुझे इस दुनिया में, मैं ला न सकी।
तू फूल थी कभी, मेरी प्यार की डाली का,
बस सपना बनकर रह गई, तू मेरी जिं़दगी का।
हाय! तुझे क्यों मैं जन्म न दे पाई,
तेरे जाने के बाद मैं ये समझ पाई।
बेटी रूप है माँ के प्यार का,
है आधार बेटी, बढ़ते संसार का।
नारी होकर भी, तुझे इज्जत न दे पाई,
माँ होकर भी, मैं तुझे क्यों त्याग आई?
न जाने किस झूठे भ्रम में, मैं भरमाई,
तुझे त्यागते हुए भी, मुझे ज़रा भी शर्म न आई।
किस मुख से तू मुझे माँ कहती गुड़िया,
वो मुख तो मैं पीछे छोड़ आई।
थी तू मेरे ही खून का कतरा,
जिसे मैं बोझ समझकर फैंक आई।
माँ होकर भी तुझे अपनाया नहीं,
बेटे की चाह में रूलाया भी।
की होगी तूने भी कल्पना,
कभी इस संसार में आने की।
तेरी इस इच्छा को मैं स्वयं ही मिटा आई,
बड़ी क्रूर होती वह माँ,
जो अपनी ही औलाद को मार देती है।
क्योंकि इससे ही तो ईश्वर के दिए,
आशीर्वाद की हार होती है।
-चंदा फुलारा
प्यारी माँ
माँ तू क्या है, मैं ये जान सकती नहीं,
तेरी महिमा क्या है, मैं बखान सकती नहीं।
तू प्यार का गहरा संमदर है,
जिसे मैं संभाल सकती नहीं।
दर्द मुझे मिले तो तू क्यों तड़प जाती है,
दिल मेरा रोए बाद में, पहले क्यों?
तेरी आँख भर आती है।
देखकर हमारा सुखी संसार,
तू क्यों गम मैं भी मुस्कराती है।
हम स्वार्थी अंश तेरे,
तुझे क्यों दुनियादारी की समझ आती नहीं।
कहने को तो माँ कहते हैं तूझे,
लेकिन माँ मानते नहीं।
सींचती आ रही है,
अपने जिस लहू से तू आज तक हमें।
उस लहू को अब हम पहचानते नहीं,
तू माँ होकर भी अपना कर्तव्य भुलाती नहीं।
एहसान करती है चुपचाप पर जताती नहीं,
हम कर्ज उतार सकेंगे तेरा कभी,
ये ख्याल हमें कभी आता क्यों नहीं।
-चंदा फुलारा
सिमरी
टन्नटून खड़ाक और सन्नाटा फिर वही कर्कश आवाज़ ’सिमरी ओ सिमरी अब क्या तोड़ा, डरी हुई मात्र 11 साल की दुबली पतली सी लड़की सिमरी ने कांपते हुए जवाब दिया ’मैडमदीदी एक प्याली टूट गई है तेरा बाप लाकर देगा इसके पैसे। कोई काम ढ़ग से नहीं होता भाग यहां से आंगन धोले बाहर रोती हुई सिमरी झाड़ू लिए बाहर आ गई। पूस की सर्द लहर और वो नंगे पैर पानी में लिए आंगन को धोती हुई उपर छत की ओर बढ़ती है जहां कपड़े उसका इंतजार कर रहे है वो पगली उन कपड़ो को निचोड़ने का प्रयास करती है जिनको वो पकड़ने में भी असमर्थ है। ये सब देखकर तो कलेजा ही मुंह को आ जायें। ऐसे कई दर्दनाक र्दश्य अक्सर मुझे मेरी छत से दिखाई देते क्योंकि सिमरी मेरे पड़ोस में ही एक दुर्जन जोड़े के साथ रहती है उनकी छत नीचे की ओर है हमारी काॅफी उॅची। हमारे पड़ोसी की किसी के साथ बोलचाल नहीं है अपने अहंकारवश बरखा देवी सिमरी की मैड़मदीदी किसी को कुछ समझती नहीं है। नीचे कब आएगी महारानी खाना कौन बनाएगा तेरा बाप इतना सुनते ही वो सिढ़ियों की और लपकी उसने कल दिन से कुछ नहीं खायां। एक गलती की सजा उसे भूखा रखकर मिलती हैं। जब पेट की आतें कुलबुलानें लगी तो उसे वो दुर्दिन याद आया कि कैसे उसकी मैंड़मदीदी झूठ बोलकर उसको उसकी मां से अलग कर दिया। बरखा देवी सभ्यता का दिखावा करते हुये उसकी मां से बोली कि मेरा बच्चा छोटा है मै सिमरी को अपने साथ शहर ले जाती हूॅ इसे पढ़ाकर मै इसका भविष्य बना दुंगी और इससे कभी कभार कुछ मदद ले लूंगी और आपको पैसे भी भेजती रहुंगी।
सिमरी बरखा के गाॅव इलाहाबाद की थी उसके पापा नहीं थे बस विधवा मां थी जो विवश थी। जब वो असहाय सी शहर आई तो भौचक्कीं रह गई उसकी पढ़ाई तो दूर वो तो भरपेट खाने को भी तरस गई बस साथ लाये दो जोड़ी कपड़ो में ही सिमट गई। सारे घर का काम निपटाकर उसको मैड़मदीदी के बेटे का ख्याल भी रखना होता था। ऐसा करूणा का द्रश्य देखकर भी मैं मूक बनी बैठी हूॅ चाहकर भी कुछ कर नहीं सकती शायद दखल देने से उस अबला के कष्टों में और बढ़ोतरी हो जाए इसलिए आत्मा को मार देना ही उचित लगता है। चटाक जोर से चाटे की आवाज़ आई फिर से उसको मार पड़ी। छटपटाती हुई आत्मा शरीर से निकलने को बैचेन है लेकिन उस पगली के भाग्य में वो सुख कहाॅ।
चंदा फूलारा
दिल्ली