आफिया सद्दीकी का जिहाद
हरमहिंदर चहल
अनुवाद : सुभाष नीरव
(13)
अमजद ने अपनी आखि़री परीक्षा पास कर ली और उसने डॉक्टरी की सारी पढ़ाई मुकम्मल कर ली जो कि उसका लक्ष्य था। उसके लिए बड़े गर्व की बात थी कि वह अपनी कक्षा में अव्वल आया था। उसकी पार्ट टाइम टीचर की जॉब भी उसके लिए अच्छी साबित हुई। यह परीक्षा पास करते ही उसको असिसटेंट प्रोफेसर बना दिया गया। वह अब खुश था। उसकी पढ़ाई की जिम्मेदारियाँ पूरी हो चुकी थीं। उसने आफिया को खुश रखने का एक और ढंग निकाला। वह आफिया से कहने लग पड़ा कि अभी तो हम जिहाद के बारे में सीख ही रहे हैं, जब हम इस बारे में पूरी जानकारी हासिल कर लेंगे तो इसमें शामिल होने की सोचेंगे। उसने फिर से दाढ़ी बढ़ा ली ताकि आफिया को लगे कि वह मज़हब की ओर लौट रहा है। पर आफिया इस वक़्त उसकी बातों में कोई दिलचस्पी नहीं ले रही थी। शायद वह उसका नाटक समझ रही थी। ख़ैर, अमजद ने आफिया को खुश रखने के लिए काफ़ी सारा वक़्त घर में ही बिताना प्रारंभ कर दिया। वह हर इतवार को उसको और बच्चों को कहीं बाहर घुमाने ले जाता। एक दिन उसने घर में बात की, “आफिया, मेरे परिवार में शिकार का बहुत शोक रहा है।“
“अच्छा।“ आफिया ने साधारण-सा हुंकारा भरा।
“मैं चाहता हूँ कि मैं अपने बच्चों को खानदानी शोक से परिचित करवाऊँ।“
“इसके लिए क्या करेगा ?“
“हम इस वीक एंड पर कहीं बाहर चलते हैं। शिकार खेलने का सारा सामान वगैरह मेरा मतलब बंदूक आदि और अन्य सामान हम किसी स्टोर से खरीद लेंगे।“ उसकी बंदूक वाली बात आफिया को जच गई। उसने सोचा कि इसी बहाने वह बंदूक चलाने का अभ्यास कर लेगी। साथ ही फील्ड में पेश आने वाली मुश्किलों से परिचित हो जाएगी। उसने खुशी खुशी इस काम के लिए हामी भर दी। अगले ही दिन वे किसी असले की दुकान पर गए। दुकान वालों ने उनकी आई.डी. आदि चैक कीं। फिर उन्होंने आवश्यक सामान खरीद लिया। इस में पिस्तौल, बंदूक, सरवाइवल गाईड, बुलेट प्रूफ और नाइट विज़न गोगल्ज़ आदि थे। वे वीक एंड पर किसी शूटिंग रेंज पर चले गए। वहाँ उन्होंने दो दिन बिताये। खूब मस्ती की। शिकार खेला। ख़ास तौर पर आफिया ने बंदूक के निशाने लगाने का अभ्यास किया। इतवार की शाम वे घर लौट आए। अमजद ने देखा कि इस घटना के बाद आफिया में बहुत परिवर्तन आने लगा। वह अमजद से कहने लगी कि फिर से शूटिंग रेंज पर चला जाए। और इस बार बड़े हथियार मतलब ए.के. फोर्टी सेवन जैसी राईफलें चलाने का लुत्फ़ उठाया जाए। अमजद इसके लिए मान गया। अगले सोमवार वे यह कहकर काम पर गया कि वह कुछ घंटों के बाद लौट आएगा और फिर वे शिकार पर जाने का कार्यक्रम बनाएँगे। आफिया खुशी खुशी तैयारी करने लगी। करीब ग्यारह बजे उसके घर की डोर बेल बजी। वह दौड़ती हुई दरवाज़े की ओर गई कि शायद अमजद आ गया है। दरवाज़ा खोलने से पहले उसने की-होल में से देख लेना ज़रूरी समझा। जब उसने बाहर झांका तो वह भौंचक्क रह गई। बाहर दो व्यक्ति सूटिड-बूटिड और काली ऐनक लगाए दरवाज़ा खुलने की प्रतीक्षा कर रहे थे। आफिया का दिल ज़ोर से धड़का, पर उसने अपने आप पर नियंत्रण रखते हुए पूछा, “कौन हो तुम ?“
“हम एफ.बी.आई. से हैं। आपसे मिलना है। दरवाज़ा खोलो।“
“मैं घर में अकेली औरत हूँ। मैं इस तरह दरवाज़ा नहीं खोल सकती। तुम तब आना जब मेरा पति घर में हो।“ उसने धैर्य से उत्तर दिया।
“वह कब आएगा ?“ एफ.बी.आई. वालों ने पूछा। पर आफिया कुछ न बोली। वह कुछ देर दरवाज़ा खुलवाने अथवा अन्य कोई बात करने का यत्न करते रहे, मगर आफिया ने अंदर जाते ही बैडरूम का दरवाज़ा भी बंद कर लिया। अंदर से ही वह अमजद को फोन मिलाते हुए बोली, “अमजद, गज़ब हो गया।“
“क्यों, क्या हो गया ? ख़ैर तो है ?“
“नहीं, ख़ैर नहीं है। अपने दरवाज़े पर एफ.बी.आई. वाले खड़े हैं और वे मुझे दरवाज़ा खोलने के लिए ज़ोर दे रहे हैं।“
“तू दरवाज़ा खोलकर पूछ तो सही कि आखि़र बात क्या है। वे यहाँ क्या करने आए हैं ?“
“नहीं अमजद, मैं दरवाज़ा नहीं खोलूँगी।“
“आफिया हो सकता है कि वे कोई ज़रूरी बातचीत करने आए हों। या किस दूसरे का अता-पता पूछ रहे हों। मेरा तो ख़याल है कि तू एक बार उनसे बात कर ले।“
“अमजद, मैंने तुझे कह दिया कि मैं किसी हालत में भी दरवाज़ा नहीं खोलूँगी। मुझे तो बहुत डर लग रहा है।“
“डरने की इसमें क्या ज़रूरत है। तू तो...।“ बात करते करते अमजद एकदम चुप हो गया। उसने देखा कि उसके सामने कोई आ खड़ा हुआ था। जो देखने से ही किसी एंजेंसी का व्यक्ति लगता था।
“आफिया, मैं तुझे ठहरकर फोन करता हूँ।“ इतना कहते हुए अमजद ने फोन काट दिया। उसने फोन एक तरफ रखा तो सामने खड़े व्यक्ति ने अपना कार्ड निकालकर उसके सामने कर दिया और बोला, “आए एम फ्रॉम एफ.बी.आई.।“
“जी, मैं आपकी क्या सेवा कर सकता हूँ ?“ अमजद की आवाज़ में कंपन था।
“हम आपके साथ बातचीत करने आए हैं। मेरा साथी बाहर खड़ा है। क्या हम कुछ देर पॉर्क में जाकर बैठ सकते हैं ?“
“हाँ जी, बिल्कुल। मैं अपने बॉस को बता दूँ।“ इतना कहते हुए अमजद ने अपने बॉस से बात की और एफ.बी.आई. अफसर के साथ चल दिया। चलते हुए वह सोच रहा था कि यह तो काई खास बात लगती है कि ये एक समय में उसके घर और दफ़्तर में आए हैं। फिर उसको याद आया कि कुछ हफ़्ते पहले ही उसने असले की दुकान से जो सामान खरीदा था, ये उसी के कारण आए होंगे। यह बात याद आते ही उसका मानसिक तनाव काफ़ी घट गया, पर असल में यह बात नहीं थी। पहली बात तो अबू जु़बेद ने ही यहाँ के अलकायदा सैलों के बारे में बहुत कुछ जानकारी दी थी। शेष कसर तब पूरी हो गई जब उसकी गिरफ्तारी के अगले हफ़्ते ही पाकिस्तान से चलकर चिकागो एअरपोर्ट पर जैसे ही होजे़ पदीला उतरा, उसे पकड़ लिया गया। उसके पास से जो कंप्यूटर बम ड्राइव मिली, उसमें से बहुत सारी जानकारी प्राप्त हुई थी। उसमें से अदनान शुक्रीजुमा का नाम का पता चला। एफ.बी.आई. पहले ही उन लोगों की गतिविधियों पर नज़र रखे हुए थी जिनके नाम अबू जु़बेद से मिले थे। अबू जु़बेद की गिरफ्तारी छिपाकर रखी गई थी। इसी कारण होजे पदीला, एफ.बी.आई. के हाथ चढ़ गया। पर उसके पकड़े जाने के पश्चात शेष सभी सदस्य गुप्तवास में चले गए। ख़ैर, अमजद को साथ लेकर एफ.बी.आई. के दोनों अफ़सर पॉर्क में जा बैठे।
“मि. अमजद, हम एफ.बी.आई. से हैं। लो, तुम अपनी तसल्ली के लिए मेरा आई कार्ड देख लो।“ इतना कहते हुए एक अफ़सर ने सरकारी बैज दिखलाते हुए अपना विजिटिंग कार्ड निकालकर अमजद के हवाले कर दिया। अमजद ने सरसरी नज़र डालते हुए विजिटिंग कार्ड जेब में डाल लिया।
“मि. अमजद, आप कोई घबराहट तो महसूस नहीं कर रहे ? मेरा मतलब हम बात कर सकते हैं ?“
“नहीं सर, ऐसा कुछ नहीं है। आप बात शुरू करो।“
“मि. अमजद, नाइन एलेवन का हादसा करने वाले हाईजैकर्स घटना से पहले आपके अपार्टमेंट की बिल्डिंग में आते जाते रहे हैं। क्या आप उनके बारे में कुछ जानते हैं ?“
“नहीं सर। मुझे बात की कोई जानकारी नहीं है।“ पहली बात ने ही उसके पैर उखाड़ दिए। जितनी छोटी बात वह समझ रहा था, उतनी छोटी उसको लगी नहीं।
“क्या आपकी पत्नी को इस बारे में कुछ पता होगा ?“
“जहाँ तक मेरा ख़याल है, इस बात के बारे में उसको भी कुछ पता नहीं होगा। हम तो आम-सी ज़िन्दगी जीने वाले सादे-से लोग हैं।“
“आपको या आपकी पत्नी को और कुछ अता-पता है। हमारा मतलब हाईजैकर्स या उनकी कार्रवाइयों के बारे में ?“
“नहीं सर, हमें इस तरह की कोई जानकारी नहीं है।“
इसके बाद दोनों अफ़सरों की आपस में नज़रें मिलीं। फिर उनमें से एक बोला, “मि. अमजद, हम आप दोनों यानी पति-पत्नी की एकसाथ इंटरव्यू करना चाहेंगे। इसके लिए आपको हमारे दफ़्तर से सरकार का लैटर आएगा। पर तब तक आप शहर छोड़कर कहीं नहीं जा सकते। यह एक सरकारी आदेश है। मेरा कार्ड आपके पास है, जब चाहे कॉल करके बता सकते हो। वैसे घबराने वाली कोई बात नहीं है। यह एक रूटीन काम है।“
“जी सर।“
वे चले गए तो अमजद के मन पर से बहुत सारा बोझ कम हो गया। शुरू में तो उसको पहला प्रश्न सुनकर ही लगा था कि यह तो बात ही उल्टी दिशा की ओर चल पड़ी। पर अब उसको लगा कि यह तो वास्तव में ही आम-सी इंकुआरी है जो कि किसी के साथ भी हो सकती हे। लेकिन जब अमजद घर पहुँचा तो आफिया डर से काँपे जा रही थी। उसके घर में प्रवेश करते ही वह अमजद से लिपटकर रोने लग पड़ी। अमजद ने उसको ढाढ़स देकर शांत करवाया। आफिया थोड़ा संभलते हुए बोली, “अमजद, तू मेरी बात सुन ले। हमें आज ही पाकिस्तान चले जाना चाहिए।“
“क्यों ? हमने क्या कोई गलत काम किया है कि यहाँ से भागें ?“
“बस, मैंने कह दिया कि हमें यहाँ नहीं रहना।“
“पर कोई बात तो हो जिसकी वजह से हमें भागना पड़े।“
“इसका मतलब, तू मेरी बात नहीं मानेगा ?“
“मैं तेरी बात मान लूँगा यदि तू मुझे साफ़ साफ़ बता दे कि तुझे डर किस बात का है। पहले भी तूने ऐसा ही किया था। घटना न्यूयॉर्क में हुई थी और तूने यहाँ धरती आसमान पर उठा ली। आखि़र मेरी बात न मान पाकिस्तान जाकर ही साँस लिया था। फिर क्या निकला उस बात में से ? सिर्फ़ परेशानी के। मेरी पढ़ाई का नुकसान हुआ, साथ ही सारे रिश्तेदारों को तंग किया।“
“अमजद, तू तब की बात छोड़। मैं तेरी मिन्नत करती हूँ, प्लीज़ अब मेरी बात मान ले।“ आफिया आँखों में आँसू भरती हुई बोली। उसके आँसू देखकर अमजद ढीला पड़ गया। वह कुछ सोचता हुआ बोला, “चल, मैं कुछ दोस्तों के साथ सलाह-मशवरा करता हूँ। फिर देखते हैं कि क्या होता है।“
“अगर तब तक वो दुबारा आ गए तो ?“
“नहीं, इतनी जल्दी नहीं आते। और फिर उन्हें और भी कोई काम होगा। अकेले हम ही तो यहाँ नहीं बैठे। यहाँ लाखों मुसलमान रहते हैं। क्या पता, उन्हें किस-किस की इंटरव्यू करनी होगी।“
“तू मेरे साथ एक बात का फैसला कर, अभी।“ आफिया गुस्से में काँपने लगी।
अमजद ने हैरान होकर आफिया की ओर देखा कि यह कभी नरम पड़ जाती है और कभी फिर से भड़क उठती है।
“अमजद, तुझे मेरी परवाह है कि नहीं ?“
“तेरी परवाह मुझे न होगी तो फिर और किसको होगी।“
“फिर मेरी बात मान और कल ही पाकिस्तान चल।“
अमजद ने उसकी बात का कोई उत्तर न दिया। उसने कई मित्रों को फोन मिलाकर बातें कीं। हरेक ने उसको यही बताया कि आजकल यह बात आम हो गई है कि एफ.बी.आई. वाले किसी भी मुसलमान के घर जा पहुँचते हैं। पर जब कुछ मिलता नहीं तो वापस लौट पड़ते हैं। फिर अमजद ने आफिया के भाई मुहम्मद अली को हूस्टन में फोन किया। सारी बात सुनकर अली ने आफिया के साथ बात करनी चाही। आफिया ने फोन पकड़ लिया तो वह हँसता हुआ बोला, “तू हमारी बहादुर लिटिल सिस्टर कब से डरपोक बन गई। यह तुझे क्या हो गया। इस तरह तो सारे मुसलमान अमेरिका छोड़कर चले जाएँगे। तुझे डरने की ज़रूरत ही नहीं। शांत रह।“
“पल्ले शांति ही रह जाएगी। वे उठाकर जेल में फेंक देंगे।“
“कुछ नहीं होता। यूँ ही न घबरा।“
उसका भाई भी बार बार पूछता रहा कि वह किस बात से इतना डर रही है, पर आफिया ने कोई जवाब नहीं दिया। आखि़र वह चुप हो गई और काँपती-सी सोफे पर बैठ गई। मगर उस रात वह पल भर भी न सोई। वह सारी रात कमरे में चक्कर लगाती रही। अमजद को उसकी हरकतें बहुत परेशान कर रही थीं। उसे चिंता भी थी कि कहीं इसके दिमाग पर ही बोझ न पड़ जाए। सुबह होते ही उसने बॉस्टन के मशहूर वकील को फोन करके सारी बात बताई। साथ ही यह भी बताया कि उसकी पत्नी इस घटना से बहुत ही डरी हुई है। वकील ने सलाह दी कि इसके लिए तुम खुद ही एफ.बी.आई. वालों से मुलाकात का समय लेकर इंटरव्यू वाला काम पूरा कर सकते हो। बल्कि इस तरह तुम्हें लम्बे समय तक एफ.बी.आई. के डर तले दिन नहीं गुज़ारने पड़ेंगे। अमजद के हाँ कहते ही वकील ने एफ.बी.आई. को फोन करके उनके साथ इंटरव्यू की तारीख़ तय का ली। अमजद ने आफिया को बताया तो वह और अधिक डर गई और भड़क गई। वह कहने लगी कि वह किसी भी हालत में एफ.बी.आई. के सामने नहीं जाएगी।
“पर तुझे तकलीफ़ क्या है। तू किसी भी बात पर कान नहीं धर रही। अब वकील ने इंटरव्यू का प्रबंध कर दिया है तो तू कह रही है कि तू एफ.बी.आई. वालों से नहीं मिलेगी। तुझे पता होना चाहिए कि यह सरकारी हुक्म है कि हम इंटरव्यू के बिना यहाँ से नहीं जा सकते।“
“अमजद, क्या तुझे इस बात का ज़रा-सा अहसास भी है कि यदि कोई पंगा पड़ गया तो क्या होगा ?“
“आफिया, यह तो तुझे तब सोचना था जब मेरे रोकने के बावजूद चैरिटी के कामों में हिस्सा लेने से नहीं हटा करती थी। अब यूँ डरी जा रही है। जितने भी केयर ब्रदर्ज़ या बोनेवोलैंस इंटरनेशनल के सदस्य हैं, सबके साथ एफ.बी.आई. ने बातचीत की है। किसी को कुछ नहीं कहा।“
“उनकी और मेरी बात में अंतर है।“
“क्या ! क्या कहा ? तेरे में और उनमें क्या फर्क है ?“ अमजद का दिल ज़ोर से धड़का।
“ये बातें तू नहीं समझ सकता। ये चैरिटी के अपने काम करने के ढंग होते हैं।“ आफिया के मुँह से कोई दूसरी बात निकलने ही वाली थी, पर उसने चुस्ती के साथ बात को गोल कर दिया। फिर अमजद धैर्य से बोला, “देख आफिया, हमने बहुत बहस कर ली। अब मैं एक पति के अधिकार से तुझसे कह रहा हूँ कि कल सवेरे दस बजे हम वकील के दफ़्तर जा रहे हैं। वहीं एफ.बी.आई. वाले आएँगे और वहीं अपनी इंटरव्यू होगी। अब इस मसले पर कोई बात नहीं होगी।“ इतना कहकर अमजद घर से बाहर चला गया। शाम के वक़्त वह लौटा तो आफिया मुँह-सिर लपेटकर बैड पर पड़ी हुई थी। अमजद ने सोचा कि यह शायद इस कारण गुस्सा दिखा रही है कि मैं इसकी बात नहीं मान रहा। परंतु आफिया के अंदर बहुत बड़ी उठा-पटक मची हुई थी। उसको पूरा विश्वास था कि कल उसको गिरफ़्तार कर लिया जाएगा।
(जारी…)