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राज की बात

राज की बात ”
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                               दिसम्बर का द्वितीय सप्ताह लगा था . वातावरण में अच्छी सर्दी छायी हुयी थी .स्वेटर ,शाल, कोट ,पैंट , मफलर सब निकल आये थे .रिसेप्शन की दावत में लजीज भोजन ,मिठाईयों के साथ ही अनेक गर्मागर्म पेयों की बहार थी .
                               जगह जगह तापने के लिये लकड़ियों के अलाव भी लगाये गये थे .ओल्ड इज गोल्ड .
                                 फिर भी युवतियां खुली खुली, फैशनेवल पोशाकें ,लंहगे इत्यादि पहनें बिना गर्म कपड़ों के इधर उधर घूम रहीं थीं ,मानो तितलिंयाँ उड़ी फिर रहीं हों . प्रौढ़ता की ओर अग्रसर और वयोबृद्ध दो दो गर्म कपड़े पहन ओढ़कर गप्पें लड़ाते बैठे थे.
                          रिश्तेदारी में एक शादी हुयी थी . आज रिसेप्शन था , इसलिये जो मेहमान शादी में शामिल नहीं हो पाये थे , आते जा रहे थे .
                           मेरे मौसाजी एवं मौसी जी भी आज ही आये. कल उनका वापसी का रिजर्वेशन था. रिसेप्सन पर जब वे दूल्हा दुल्हिन को उपहार दे रहे थे , दूल्हे के मामा जी मौज में थे बोले- उपहार के साथ साथ इन दोंनो को सफल दांपत्य के लिये कुछ शिक्षा भी देते जाईये.
                         -जरुर .ये ले बेटा पांच सौ का नोट . उन्होंने दूल्हे को हंसते हुये एक नोट दिया , बोले -बेटा अब इसे मसलकर फेंक दे .
                          हम सब हैरान थे कि मौसा जी ये क्या सीख दे रहे हैं, दूल्हा भी हैरान रह गया-  लक्ष्मी का अनादर कैसे करुँ ?
                          -हाँ बेटा !! यही बात तुम्हारी पत्नी के संदर्भ में लागू होती है. ये अब तुम्हारे घर की लक्ष्मी है , इसका भी कभी अनादर न करना , सुखी रहोगे .
                           जिस घर में स्त्री का सम्मान किया जाता है , वहां लक्ष्मी जी सहित उसकी सभी बहनें सुख ,शान्ति, यश ,उन्नति निवास करतीं हैं.
                            दूल्हे के साथ साथ हम सब भी आश्चर्यचकित थे .एक जरा से उदाहरण के साथ उन्होंने इतनी बड़ी बात कह दी थी. 
                             फिर भोजन करते हुये हम सब बातों में जुट गये . अनायास मेरी ननद को कुछ सूझा ,वह बोली - मौसाजी, मौसी जी, आप दोंनों की शादी को कितने वर्ष हो गये ? मौसी जी ने गिनते हुये बताया ४८ वर्ष .
                             - अटेंशन प्लीज ,वह किसी रिपोर्टर की भांति माईक थमाने का अभिनय करते हुये पूछने लगी -मौसा जी ,मौसी जी , आपके सुखद दांपत्य का राज क्या है ?      
                               जवाब मौसा जी ने दिया – ये सुबह से स्नान करके पूजा पाठ करना पसंद करती हैं . मैं मौसम के अनुसार चलता हूँ.
                                अब हमें प्रातः साढ़े चार की ट्रेन से आना था, तो ये तीन बजे उठकर स्नान एवं पूजा करके तैय्यार हुयीं . और मुझे ऐसी ठंड में इतनी सुबह स्नान करना पसंद नहीं .बस चाय पीने की तलब थी .सो मैंने चाय बनाई ,इन्हें दी ,खुद भी पी और सीधे तैय्यार हो गया.
                               इसे कहते हैं आपस की समझ,और आजादी . इन्हें टी.वी.देखना पसंद है और मुझे पढ़ना .ये धीमा करके टी.वी.देखतीं हैं और मैं पढ़ता लिखता हूँ .           
                             ना अपने जीवन साथी को अपने जैसा होने के लिये दबाव दो .न ही पूरी तरह उसके जैसे बनने का दबाव झेलो. थोड़ा स्पेस दो एवं थोड़ा लो .
                             अपने जैसे बने रहो और थोड़ा उसकी निजता बनी रहे , अपनी पसंद का ख्याल रखो और उसकी पसंद भी बनाये रखो . हम सब ताली बजाने लगे. वाह क्या कहने .
                             - हम इसे याद रखें तो किसी क्लेश की संभावना ही नहीं है तो बेटा लक्ष्मी उसकी सभी बहनें , साथ ही सरस्वती भी घर में ही निवास करेंगी . वो कहावत है न लाख टके की बात .मौसा जी के साथ ही हम सब भी ठहाका लगा रहे थे .
इति शुभम.
कहानीकार - शोभा शर्मा .@सर्वाधिकार सुरक्षित.
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                       आदरणीय पाठकगण ,छोटी सी कहानी में राज की बातें लेकर आई हूँ इस बार .जो पता सबको है परन्तु जीवन में अमल कोई कोई ही कर पाते हैं
                        जो कर पाते हैं वह बहुत सारी उलझनों से परे रहते हैं .पढ़िये पसंद आये तो अवश्य समीक्षा के जरिये मुझ तक अपने विचार भेजिये. 
                         मेरे लेखन के लिये प्रोत्साहन आपके भेजे विचारों से ही है .आपसे विचार शेयर करके ही मेरी कहानी सम्पूर्णता पाती है. शुक्रिया .शोभा शर्मा .

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