आफ़िया सिद्दीकी का जिहाद - 11 Subhash Neerav द्वारा फिक्शन कहानी में हिंदी पीडीएफ

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आफ़िया सिद्दीकी का जिहाद - 11

आफ़िया सिद्दीकी का जिहाद

हरमहिंदर चहल

अनुवाद : सुभाष नीरव

(11)

अमजद दुविधा में फंस गया। उसके घरवाले उसको आने को कह रहे थे। उधर आफिया भी दिन रात उसको आ जाने के लिए फोन किए जा रही थी। आखि़र ऊबकर उसने यूनिवर्सिटी से अनुमति ली और पाकिस्तान के लिए चल पड़ा। जब अमजद घर पहुँचा तो बाकी परिवार उसके आने पर खुश तो हुआ, साथ ही उनको अफ़सोस भी था कि उसकी पढ़ाई का नुकसान हो गया। पर आफिया इतनी खुश थी कि धरती पर उसके पैर नहीं लग रहे थे। उस रात वह अमजद के करीब बैठते हुए बोली, “अमजद, तू बड़े सही मौके पर आया है।“

“क्या मतलब ?“

“मतलब यह कि इस वक़्त सुलेमान अहमर भी यहीं है।“

“कौन सुलेमान ?“ अमजद उसकी बात सुनकर हैरान हुआ।

“तू शायद उससे मिला तो होगा, पर उसको निजी तौर पर नहीं जानता होगा।“

“पर ऐसी क्या बात है कि मैंने अभी घर में पांव रखा ही है और तू कुछ ज्यादा ही उत्साहित हुई फिरती है ?“

“क्योंकि बात ही ऐसी है। जिस समय का मुझे बहुत दिनों से इंतज़ार था, वह वक़्त आ पहुँचा है।“

अमजद बिना कुछ कहे उसकी तरफ देखता रहा तो वह आगे बोली, “सुलेमान अहमर, बोनेवोलैंस इंटरनेशनल संगठन, चिकागो का डायरेक्टर था। अब वह स्थायी तौर पर अमेरिका छोड़ आया है। यहाँ उसने अपनी एक अन्य चैरिटी शुरू कर ली है। जिसके जरिये वह फंड इकट्ठा करके अफगानिस्तान में लड़ रहे तालिबानों की मदद करता है। इसके अलावा, वह नए जिहादियों को भर्ती करके भी अफगानिस्तान भेज रहा है।“

“फिर मैं क्या करूँ ?“ अमजद ने त्यौरी चढ़ाई।

“मैंने उसके साथ तेरे बारे में बात कर ली है।“

“मेरे बारे में ? किस काम के सिलसिले में ?“

“पहले पूरी बात सुन ले, फिर बोलना।“

अमजद कुछ न बोला। वह चुपचाप आफिया के मुँह की ओर देखता रहा तो आफिया फिर से बोलने लगी, “मैंने सारी बातचीत पक्की कर ली है। सुलेमान अहमर तुझे अपने ग्रुप में लेने के लिए राजी हो गया है। तू यहाँ से चलकर बार्डर पर पड़ने वाले बिलोचिस्तान के शहर क्वेटा जाएगा। वहाँ सुलेमान के आदमी तुझे बार्डर पार करवाकर अफगानिस्तान के शहर कलट पहुँचाएँगे। वहाँ के लोकल अस्पताल में सुलेमान ने तेरे लिए काम का इंतज़ाम कर रखा है।“

“आफिया, तेरा दिमाग तो खराब नहीं हो गया ?“

“क्यों ?“

“तू मुझे यह बता कि मैं क्यों क्वेटा जाऊँ। क्यों मैं बार्डर पार करके अफगानिस्तान जाऊँ। और रही बात अस्पताल में काम करने की, तुझसे मैंने कब कहा कि मुझे नौकरी की ज़रूरत है ?“

“यह काम तू अपनी नौकरी की ज़रूरत पूरी करने के लिए नहीं कर रहा।“

“तो फिर यह सब क्या है ?“

“वो अस्पताल जिहादियों के लिए खोला गया है। वहाँ जाकर तू जिहाद की खिदमत करेगा। जब तू वहाँ पहुँच जाएगा तो मैं भी तेरे पीछे पीछे ही आ जाऊँगी। उसके बाद हम पूरे जोश-ओ-खरोश के साथ जिहाद के लिए काम करेंगे।“

“पर मैं इस राह का राही नहीं हूँ। तुझे मैंने पहले भी कई बार बताया है कि मैं एक अच्छा मुसलमान बनने की कोशिश कर रहा हूँ। मैं ये डिगरियाँ लेने और पढ़ाई करने अमेरिका जैसे देश में इस कारण नहीं गया कि तालीम हासिल करने के बाद जिहाद जैसे कामों में शामिल होऊँ।“

“अमजद, यह काम तो तुझे करना पड़ेगा।“

“क्यों ? मेरा मतलब है क्यों करना पड़ेगा यह काम मुझे ?“

“क्योंकि तुझे मैं कह रही हूँ। तुझे अपनी बेगम की बात माननी पड़ेगी। यही मज़हब सिखाता है।“

“आफिया, मेरी बात सुन। हो सकता है कि मैं तेरी बहुत सारी बातों से सहमत होऊँ। पर सहमत या असहमत होना और बात है, किसी के खिलाफ लड़ना और। अब तू ही बता कि अमेरिका जिसने मुझे मेडिकल क्षेत्र में इतना आगे बढ़ने का अवसर दिया, जिसने मुझे इतना बड़ा ज्ञान का भंडार दिया है, तू चाहती है कि मैं उसी देश के खिलाफ सिर्फ़ इसी वजह से बंदूक उठा लूँ कि मेरी पत्नी को यह अच्छा लगता है। मेरा दिल तो यह कहता है कि जिस काबिल मुझे अमेरिका ने बनाया है, वो काबलियत मुझे लोगों में बाँटनी चाहिए। डॉक्टर होने के नाते मुझे ज़रूरतमंदों की मदद करनी चाहिए।“

“तूने अमेरिका की तारीफ के पुल तो बांध दिए, पर यह भूल गया कि आज अमेरिका दुनिया में मुसलमानों पर कितने अत्याचार कर रहा है। इस्लाम की जितनी बर्बादी आज अमेरिका कर रहा है, उतनी आज तक किसी ने नहीं की होगी।“

“आफिया, यह राजनीतिक बातें हैं। तूझे पता है कि राजनीति में ऊपर-नीचे होता रहता है। जो शक्तिशाली होता है, वह ज़रा ज्यादा कर जाता है और कमज़ोर कम। कसूर तो हरेक का ही होता है।“

“तू बड़ा फिलॉस्फर बनता है तो मुझे यह बात समझा कि फलस्तिनियों का क्या कसूर है जो इन्हें आज जगह-जगह मारा जा रहा है।“

“आफिया, तू मुझे पहले यह बता कि जो ट्विन टॉवरों में हज़ारों लोग मारे गए, उनका क्या कसूर था ?“ गुस्से में आए अमजद ने भी प्रत्युत्तर में सवाल कर दिया।

“उनमें ज्यादा अमेरिकी ही मरे हैं जो कि यहूदियों के चमचे बनते हैं। हर जगह यहूदियों का समर्थन करते हैं। मैं कहती हूँ कि यहूदी वो कौम है जिस पर कभी भी एतबार नहीं करना चाहिए। जो भी इनका भला करता है, ये उसी की पीठ में छुरा मारते हैं। संसार को इनसे मुक्ति दिलाना बहुत ज़रूरी है।“

“आफिया, एक बात ध्यान से सुन ले कि मरने वाले का कोई धर्म नहीं होता। वह सिर्फ़ और सिर्फ़ इन्सान होता है।“

“मैं इस तरह नहीं सोचती। मुझे फलस्तिनी मरते दिखते हैं तो लगता है कि यह मुसलमान मर रहे हैं। और किसी का मुझे पता नहीं।“

“तुझे फलस्तिनियों के मरने से अफसोस होता है। पर जब वे निर्दोषों को मारते हैं तो तू बोलती तक नहीं।“

“क्योंकि वो अपने अस्तित्व के लिए लड़ रहे हैं। पहल तो यहूदियों ने की थी।“

“टैरेरिज़्म सबसे पहले तेरे इन फलस्तिनियों ने ही शुरू किया था।“

“कब ? क्या कह रहा है तू ?“

“यह कैसे हो सकता है कि तू इस बारे में जानती न हो। पर फिर भी जितना मुझे मालूम है, बता देता हूँ। यह 1972 में आयोजित समर ओलम्पिक खेलों के समय घटित हुआ था। दुनिया भर के खिलाड़ी ओलम्पिक गाँव में ठहरे हुए थे। तब सिक्युरिटी भी इतनी नहीं हुआ करती थी क्योंकि तब आतंकवादी घटनाएँ होती ही नहीं थीं। पर फलस्तिनियों जिहादियों ने इसी बात का लाभ उठाया और अवसर पाकर ओलम्पिक गाँव में दाखि़ल हो गए। सवेरे करीब चार बजे का समय था और सब सोये हुए थे। फलस्तिनियों ने इज़राइल की टीम की निशानदेही पहले ही की हुई थी। वह सबसे पहले उनके कमरों में जा पहुँचे जहाँ इज़राइली टीम ठहरी हुई थी। एकदम हमला करके उन्होंने इज़राइलियों को बंदी बना लिया। इन बंदी बनाये लोगों में एथलीट, कोच और अन्य मेंबर शामिल थे। वहाँ उनको बंदी बनाकर किसी दूसरी बिल्डिंग में ले गए। ख़ैर, उसके बाद मारा मारी हुई। दोनों धड़ों के लोग मारे गए। पर मेरा यह बात बताने का मतलब सिर्फ़ इतना ही है कि फलस्तिनियों ने कैसे आतंकवादी कार्रवाई शुरू की थी।“

“कोई बात तो होगी जो फलस्तिनियों को यह कदम उठाना पड़ा।“

“वे इज़राइल की जे़लों में से अपने सज़ायाफ्ता क़ैदियों को छुड़वाना चाहते थे।“

“अपने हक लेने के लिए सबकुछ करना जायज़ है।“

“इज़राइल भी तो अपने अस्तित्व को कायम रखने के लिए ही लड़ रहा है। इस तरह देखें तो हर एक का अपना नज़रिया है।“

“तू कब से इज़राइल भक्त बन गया ?“ आफिया ने गुस्से में त्यौरियाँ चढ़ाईं।

“मैं इस मारा मारी के हक में नहीं हूँ। कुछ न कुछ ले देकर यह मसला सुलझाया जा सकता है। यहूदियों का भी बहुत नुकसान हुआ है। दूसरी बड़ी जंग के समय हिटलर ने साठ लाख यहूदी मारे थे।“

“यह सब झूठ है। मेरे ख़याल में कोई हालोकास्ट हुआ ही नहीं। यहूदियों ने संसार की हमदर्दी प्राप्त करने के लिए ऐसी बातें अपने मन से घड़ी हैं। यह सब बकवास है।“

“ओह, कम ऑन आफिया। तू एक साइंटिस्ट होकर कैसी बातें कर रही है। मैं तो हैरान हूँ कि तू कुछ भी बोली जा रही है।“

“चल, तू मेरी सारी बातों को बकवास समझ, पर मेरी आखि़री बात का जवाब दे।“ आफिया असली मुद्दे की ओर मुड़ आई।

“कौन-सी असली बात ?“

“तू मुझे यह बता कि क्वेटा के लिए कब कूच कर रहा है ? क्या मैं आज रात तेरी सारी तैयारी कर दूँ। आगे वहाँ से अफगानिस्तान जाने में भी कई दिन लग जाएँगे।“

“तू तो ऐसे बात कर रही है जैसे मैं जाने के लिए तैयार ही बैठा होऊँ। आखि़री बात, मैं कहीं नहीं जाऊँगा।“

“जाना तो तुझे पड़ेगा। तू मेरी बात नहीं टाल सकता। मैं तेरी घरवाली हूँ। तेरी दुख-सुख की साथिन।“

अमजद ने ध्यान से आफिया की ओर देखा। इस वक़्त आफिया की आँखों में मोह झलक रहा था। उसको भी आफिया पर प्यार आया। वह उसके करीब होता हुआ उसको अपनी बाहों की जकड़ में लेता हुआ बोला, “आफिया, अपने दो प्यारे-प्यारे बच्चे हैं। अपनी बढ़िया ज़िन्दगी है। मुझे यह भी पता है कि हम एक दूजे को बेइंतहा मुहब्बत करते हैं। एक-दूजे के बग़ैर एक पल नहीं रह सकते। मैं चाहता हूँ कि हम अल्लाह की दी हुई इस रहमतोंभरी ज़िन्दगी का आनन्द उठाएँ। तू प्लीज़ इस जिहाद वाली बात को भूल जा।“

“अमजद, तेरी सभी बातें सही हैं। तू मुझे दुनिया की हर शै से प्यारा है, पर जिहाद मेरे लिए अल्लाह का एक पाक काम है। उसके लिए मैं कुछ भी कुर्बान कर सकती हूँ।“

अमजद चुप हो गया। वह समझ गया कि यह इसके साथ बात करने का सही समय नहीं है। वह यह भी जानता था कि यह हद से ज्यादा जिद्दी है। जो बात एक बार कह दे, उससे पीछे नहीं हटती। उस वक़्त उसने फिर सोचने का कहकर बात बदल ली। रात गुज़र गई। पर अमजद को सारी रात एक पल भी चैन नहीं पड़ा। उसको कोई राह नहीं सूझ रहा था। वह आफिया को नहीं छोड़ सकता था और आफिया जिहाद को नहीं। आखि़र सुबह के समय उसको ख़याल आया कि इस्लाम यह भी कहता है कि मुश्किल के समय घर के बड़े-बुजुर्गों की मदद लेनी चाहिए। वह अपने बड़े भाई के पास चला गया और उसके साथ हिचकिचाते हुए बात की, “भाई जान, मैं तो मुसीबत में फंस गया हूँ। मेरी रहनुमाई करो।“

“क्यों अमजद, क्या हुआ ?“

इस पर अमजद ने सारी बात बता दी कि कैसे आफिया उसको जिहाद में जाने के लिए मज़बूर कर रही है और उसके पास पत्नी की बात मान लेने के सिवा और कोई चारा भी नहीं है। उसकी बात सुनकर भाई के तो होश ही उड़ गए। उसने स्वयं कोई बात नहीं की, बल्कि वह अमजद की बांह पकड़कर सीधा अपने अब्बा के पास ले गया और उसको सारी हुई-बीती सुना दी। नईम खां भड़कता हुआ बोला, “अमजद, यह क्या बकवास है ? क्या तुझे अच्छी तालीम यही सिखाती है कि तू ऐसे उल्टे काम करे ?“

“अब्बू आफिया कहती है कि...।“

“कौन क्या कहता है, तू यह बात छोड़। तुझे पहले यह सीखने की ज़रूरत है कि जिहाद क्या होता है। हर लड़ाई जिहाद नहीं होती। राजनीतिक लोग अपने निजी स्वार्थों के लिए इस पाक लफ़्ज का हर जगह इस्तेमाल करके नौजवानों को भड़का देते हैं और फिर वे वही करते हैं जो ये राजनीतिक लोग चाहते हैं। मैं तो जिया उल हक के वक़्त से ही कहता आ रहा हूँ कि यह एक राजनीतिक खेल है। पच्चीस साल से भी ऊपर का समय हो गया बेचारे गरीब अफगानिस्तान को इस गंदी राजनीति की बलि चढ़ते हुए। अफगानिस्तान आज मिट्टी का ढेर बनकर रह गया है। और सुनो, यह कहते हैं कि अफगानिस्तान ही एक ऐसा मुल्क है जहाँ सच्चा इस्लामी राज है। पर वहाँ की जनता से पूछकर देख कि उनके साथ क्या घटता है। वे पशुओं से भी खराब हालत में ज़िन्दगी व्यतीत कर रहे हैं। इन उजड्ड लोगों ने उनका जीना दूभर करके रख दिया। अब की जो हालत है, इसके लिए तालिबान जिम्मेदारी हैं। क्योंकि उन्होंने उस कातिल आदमी ओसामा बिन लादेन को अपने मुल्क में पनाह दी हुई है। इस सारे का जिम्मेदारी वही है और उसकी सज़ा भुगत रहा है, अफगानिस्तान का गरीब आदमी।“

“पर अब्बू, मुझे क्या हुक्म है ?“ अमजद डरता हुआ बोला।

“तू भूल जा इन बातों को और अपनी पढ़ाई पर ध्यान दे।“

अमजद ऊपर गया और उसने आफिया को बता दिया कि उसके अब्बू ने जिहाद में जाने से मना कर दिया है।

“पर तू उसकी सलाह लेने गया ही क्यों ?“ आफिया ऊँचे स्वर में बोली तो नीचे खड़े नईम खां को उसकी आवाज़ सुनाई दे गई। उसके पूरे बदन में आग लग गई। पर वह फिर भी ज़ब्त में रहा। अमजद सीढ़ियाँ उतरने लगा तो नईम खां ने ऊँची आवाज़ में कहा, “अमजद, अगर तू वहाँ गया तो फिर कभी इस घर में पैर न रखना।“

अपने ससुर की यह बात सुनकर आफिया हवा की तरह नीचे उतरी और आते ही अमजद के गिरेबान में हाथ डालकर तेज़ आवाज़ में बोली, “अभी फैसला कर। या अपने माँ-बाप के साथ रह या मेरे साथ।“

अमजद कुछ न बोला तो आफिया और अधिक गुस्से में आ गई। वह फिर चिल्लाई, “ठीक है अगर तूने मेरी बात नहीं माननी तो मुझे अभी तलाक दे। समझा तू ? तलाक दे मुझे। अभी इसी वक़्त।“

फिर वह चीखती-चिल्लाती ऊपर कमरे में चली गई। घर में मुकम्मल चुप पसर गई। आखि़र नईम खां ने अपनी बेगम को कहा कि अगर ये मियाँ-बीबी और कुछ दिन अपने साथ रहे तो ज़रूर इनका तलाक हो जाएगा। हम ऐसा करें कि इन्हें अपने से दूर रहने दें। तब तक इनका आपसी फर्क भी मिट जाएगा और शायद हालात कुछ और ही करवट ले लें। इसके बाद उनके जाने का इंतज़ाम कर दिया गया। अमजद बच्चों और आफिया को लेकर इस्लामाबाद की ओर चल पड़ा। आफिया का कहना था कि अगर जाना ही है तो वह अपने मामा एच.एस. फारूकी के पास इस्लामाबाद जाना पसंद करेगी। शाम तक वे फारूकी के पास पहुँच गए। कुछ दिन आराम से गुज़रे कि एक दिन आफिया फिर नई स्कीम लेकर अमजद के सामने आ खड़ी हुई।

“अमजद, कश्मीर और अफगानिस्तान की पहाड़ियों के बीच पड़ने वाले बालकट शहर में आजकल जैशे मुहम्मद का कैम्प चल रहा है।“

“क्या !“ अमजद को बात समझ में नहीं आई। वह हैरान होता हुआ बोला, “यह जैशे मुहम्मद किस शै का नाम है ?“

“तुझे पता ही होगा कि दिसंबर 1999 में कुछ जिहादी, इंडियन एअरलाइन्ज़ जहाज अगवा करके काबुल ले गए थे। उन्होंने यह सब अपने लीडर मौलाना मसूद अजहर को छुड़वाने के लिए किया था जो कि उस वक़्त इंडिया की जे़ल में बंद था। वो आपरेशन सफल रहा और मौलाना मसूद अजहर को छुड़वा लिया गया। बाद में मसूद ने यहाँ आकर एक नया संगठन बना लिया। उसी का नाम जैशे मुहम्मद है। जैशे मुहम्मद वालों के कैम्प इन पहाड़ियों में हैं। इनके परिवार भी इनके संग ही रहते हैं।“

“पर ये क्या करते हैं ?“

“ये जिहाद लड़ते हैं।“ आफिया ने यह बात कही तो अमजद का मुँह कसैला हो गया। उसने सोचा कि जिस बात से डरता वह यहाँ आया है, वही बात फिर सामने आ खड़ी हुई है। वह कुछ देर सोचता रहा तो आफिया बोली, “हम वहाँ चलते हैं। तू वहाँ अस्पताल में काम करना और मैं जिहादियों के बच्चों के लिए स्कूल चला लूँगी।“

अमजद फिर भी कुछ न बोला। आखि़र उसको एकाएक एक विचार कौंधा और वह आफिया से बोला, “हम यूँ करते हैं कि पहले एबटाबाद चलते हैं। वहाँ से बालकट कुल मिलाकर पाचेसेक मील होगा। वहाँ जाकर देखेंगे कि आगे क्या करना है।“

आफिया खुशी-खुशी तैयार हो गई। उसको लगा कि अमजद सही राह पर आता जा रहा है। अगले दिन वह एबटाबाद चले गए। रात के समय वे किसी होटल में ठहरे। रात भर आफिया भविष्य की योजनाएँ बनाती रही। अगली सवेर अमजद ने अपनी योजना बताई, “आफिया, मैं यहाँ किसी अस्पताल में नौकरी कर लेता हूँ। बच्चों को हम यहाँ के मशहूर मिशनरी स्कूल में पढ़ने के लिए दाखि़ला दिला देते हैं। हर इतवार हम बालकट जाकर जैशे मुहम्मद का कैम्प अटैंड कर आया करेंगे। एक तो हम उनके बारे में कुछ सीख लेंगे, और साथ ही यहाँ तब तक हम सैट हो जाएँगे। फिर अगर तू चाहेगी तो हम पक्के तौर पर वहाँ चले जाएँगे।“

“जैसे तेरी मर्ज़ी।“ आफिया चुप-सी हो गई। मगर उसको लगा कि शायद इस तरह वह अमजद को मना ही ले।

अगली सुबह आफिया उठते ही बोली, “अमजद, सारी रात बम धमाके होते रहे हैं, तूने सुने ही होंगे ?“

“आफिया, यह शहर फौज का बहुत बड़ा केन्द्र है। ऐसा होना यहाँ कुदरती है। कोई ट्रेनिंग वगैरह चल रही होगी।“

“नहीं, यह वो धमाके नहीं। ये तो उन बमों के धमाके हैं जो अमेरिकी हवाई हवाज़ अफगानिस्तान में फेंक रहे हैं।“

“हो सकता है, तेरी बात सच हो।“

“मैं तो रात में एक पल भी नहीं सो सकी। सारी रात यही सोचती रही कि अमेरिकी हमारे मुसलमान भाइयों को किस तरह मार रहे हैं।“

“युद्ध में तो ऐसा होता ही है। दोनों ओर की फौजें एक दूजे को मारती ही हैं।“

“मुझे तो यह सोच सोच कर ही अफसोस हुआ जा रहा है कि यह कुछ ही मील दूर बार्डर के पार जिहाद चल रहा है और हम उसमें शामिल नहीं हो सकते।“

अमजद ने उसकी बात का कोई उत्तर न दिया तो वह पुनः बोलने लगी, “अमजद, मैं बच्चों को किसी मिशनरी स्कूल में पढ़ने के लिए नहीं भेजूँगी। और न ही तुझे यहाँ कोई नौकरी करने की ज़रूरत है।“

“फिर मैं यहाँ निठल्ला घूमता क्या करूँगा ?“

“हम आज ही जैशे मुहम्मद के कैम्प चलते हैं। वहाँ जो काम मिलेगा, कर लेंगे।“

“आफिया, मेरी बात ध्यान से सुन ले कि मैं यह काम नहीं करूँगा।“ अमजद ने दो टूक जवाब दे दिया।

“क्यों नहीं करना ? अब तो हम जिहादियों के बिल्कुल करीब बैठे हैं। बस, दो घंटों का रस्ता है। चल उठ, चलें। मैं बच्चों को तैयार करती हूँ।“ आफिया शांत होकर बोली।

“आफिया, तुझे एक बार कही बात समझ में नहीं आती ? मैं तुझे आखि़री बार बता रहा हूँ कि मैं किसी जिहाद में हिस्सा नहीं लूँगा।“ अमजद भड़क उठा।

इसके पश्चात दोनों के बीच बहस शुरू हो गई। मगर आज आफिया अमजद को मारने के लिए नहीं बढ़ी। वह पता नहीं किस दुनिया में गुम थी। वह अंदर जाकर बैड पर लेट गई। अमजद बैठा सोचता रहा कि वह क्या करे। आखि़र उसके मन ने कहा कि वह कहीं भी चला जाए और कुछ भी कर ले, पर आफिया तब तक खुश नहीं होगी जब तक वह जिहाद में शामिल नहीं हो जाता। उसने एकदम वापस लौटने का फैसला कर लिया। उसने आफिया को उठाया। वह जली-भुनी उसके साथ कार में बैठ गई और वे वापस चल पड़े। घर आकर जब अमजद ने सभी को आफिया की जैशे मुहम्मद वाली बात बताई तो उसका पिता बहुत ही चिंतित होते हुए बोला, “कहीं यह न हो कि हम देखते ही रह जाएँ और पता तब चले जब यह आतंकवादियों के किसी गिरोह से जा मिलें।“

“अमजद के अब्बू, फिर इसका क्या इलाज है ?“ जाहिरा खां उदास लहजे में बोली।

“तुम अमजद को मेरे सामने बुलाओ।“

अमजद को बुलाया गया। वह यहाँ अकेला ही आया था। एबटाबाद से लौटते हुए आफिया बच्चों को लेकर मायके चली गई थी। अमजद आया तो नईम खां कठोर लहजे में बोला, “अमजद, तू तुरंत फ्लाइट लेकर अमेरिका रवाना हो जा।“

“और अब्बू, आफिया ?“

“फिलहाल तू सब कुछ भूल जा और वहाँ जाकर अपनी पढ़ाई पूरी कर। बाद में देखते हैं कि क्या होता है।“

अमजद ने अगले दिन की ही टिकट ले ली। इसके बाद उसने आफिया को फोन करके इतना ही बताया कि यूनिवर्सिटी की पढ़ाई के कारण वह वापस जा रहा है और कल शाम की उसकी फ्लाइट है। अगले दिन आफिया बच्चों सहित उसको एअरपोर्ट पर विदा करने आई। दोनों की बीच कोई ख़ास बात नहीं हुई। आफिया हद से ज्यादा उदास थी।

(जारी…)