आफ़िया सिद्दीकी का जिहाद - 9 Subhash Neerav द्वारा फिक्शन कहानी में हिंदी पीडीएफ

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आफ़िया सिद्दीकी का जिहाद - 9

आफ़िया सिद्दीकी का जिहाद

हरमहिंदर चहल

अनुवाद : सुभाष नीरव

(9)

आफिया ने पढ़ाई और लैब का सारा काम समाप्त कर लिया था। अब वह पी.एच.डी. के लिए अपना थीसिस लिख रही थी। अमजद ने भी अपनी रेज़ीडैंसी खत्म कर ली थी। उसने सेंट विन्सेंट होस्पीटल में इंटर्नशिप शुरू कर ली थी। वे दोनों बॉस्टन से पैंतीस-चालीस मील दूर पड़ने वाले शहर वोरैस्टर में मूव हो गए। वोरैस्टर में केयरब्रदर्स के बहुत सारे सदस्य रहते थे। यहाँ की स्थानीय मस्जिद का इमाम मुहम्मद मासूद था। यह पुराना एम.एस.ए. का सदस्य रह चुका था। इसके अलावा मुहम्मद मासूद का भाई पाकिस्तानी आतंकवादी ग्रुप लश्करे तायबा का लीडर था। इन बातों के कारण आफिया को वोरैस्टर बहुत पसंद आया। यहाँ लश्करे तायबा संगठन का औरतों का एक विंग भी था, जिसकी उमा हमाद प्रधान थी। मगर आफिया को उमा हमाद अच्छी न लगी। उसने सोच लिया कि वह यहाँ अपना एक पृथक संगठन बनाएगी। उसकी माँ उसका नवजन्मा बच्चा जिसका नाम अहमद रखा था, को संभालती थी। आफिया इस वक़्त फुर्सत में होने के कारण आसपास के इस्लामिक संगठनों की जांच-पड़ताल कर रही थी। तभी आफिया का पिता बीमार हो गया। उसकी माँ ने काफी सोच-विचार किया और इस नतीजे पर पहुँची कि आफिया का बेटा कई महीनों का हो चुका है और वह उसकी खुद देखरेख कर सकती है। इसके अगले सप्ताह ही इस्मत पाकिस्तान चली गई। अगले दिनों में घर में काफी भूचाल आ गया। अब तक तो आफिया को माँ के होते किसी काम की चिन्ता ही नहीं थी, पर अब घर का ही नहीं बल्कि अहमद का भार भी उस पर आ पड़ा। उसने अहमद के लिए बाहर किसी बेबी सिटर के यहाँ प्रबंध कर लिया। उसको वहाँ छोड़ने भी अमजद ही जाता था और लेकर भी खुद आता था। आफिया को अपने कामों से ही फुर्सत नहीं थी। एक दिन अमजद घर लौटा तो अहमद रो रहा था जबकि आफिया किसी के साथ फोन पर हँस हँसकर बातें कर रही थी।

“आफिया ?“ अमजद बैग एक तरफ रखता हुआ चिल्लाते हुए ऊँची आवाज़ में बोला।

“क्या है ? क्यों धरती सिर पर उठा रहे हो ? खै़र तो है।” आफिया दूसरी ओर फोन होल्ड करने को कहकर धीमे स्वर में बोली।

“क्यों ? तुझे नहीं दिख रहा कि बच्चे का रो रोकर बुरा हाल हो रहा है और तुम हो कि बातों से ही फुर्सत नहीं है।”

“बच्चे को तो तुम भी चुप करवा सकते हो। यूँ कूदने की क्या ज़रूरत है।”

“क्यों, कूदूँ नहीं तो और क्या करूँ ? सवेर के समय अहमद को बेबी सिटर में छोड़ने मैं जाता हूँ। शाम के वक़्त मैं ही उसको वापस लेकर आता हूँ। तू सारा दिन खाली रहकर क्या इतना भी नहीं कर सकती। इसकी छोड़, पर जब वो घर आ गया, उसके बाद तो उसको तू संभाल सकती है।”

“तुम्हें मैं खाली नज़र आती हूँ। तुम्हें पता है कि मैं और मेरा संगठन आजकल क्या कर रहा है ?“

“तू ही बता दे।” अमजद खीझा हुआ बोला।

“हम बॉस्निया के जिहादी परिवारों के लिए फंड इकट्ठा कर रहे हैं।”

“अब तो बॉस्निया में शांति हो चुकी है। अब तो तू इस बात का पीछा छोड़ दे।”

“मिस्टर अमजद, जिहाद कभी ख़त्म नहीं होगा। यह तब तक चलता रहेगा जब तक सारे संसार में इस्माल का झंडा न फहराने लग पड़े। अब लड़ाई बॉस्निया में नहीं हो रही तो क्या हुआ। अगला फ्रंट चेचनिया और कास्वो में खुल चुका है।”

“तेरे इस जिहाद मेरा घर बर्बाद कर देगा, आफिया।”

“और जिनके घरघाट पहले ही उजड़ चुके हैं। काफ़िरों ने हमारे जिहादियों का छोड़ा ही क्या है ? तुझे इस अपने छोटे से घर की चिंता है, पर बड़े संसार की और झांक कर देख।”

इस बीच अहमद रोने लग पड़ा तो उनकी बहस कुछ देर के लिए थम गई। अमजद बच्चे के करीब हुआ तो आफिया ने पहले ही उसको उठाकर छाती से लगा इससे अमजद का गुस्सा कुछ ठंडा पड़ गया। पर अहमद के चुप होते ही आफिया फिर बोली, “कुरान में लिखा है कि घर चलाना आदमी का काम है। तू नौकरी की वजह से मेरे पर यूँ रौब न झाड़ा कर।”

“कुरान में तो फिर यह भी लिखा है कि औरत घर संभाले, बच्चे संभालें अगर तू सच्ची मुसलमान है तो अपनी जिम्मेदारी समझ।”

“जिम्मेदारी तुझे समझने की ज़रूरत है। मेरी सहेलियों के खाविंद जिहाद में सेवा निभा रहे हैं और एक तू है कि अमेरिकी बनकर मौजें कर रहा है।”

“मैं मौजें नहीं करता, अपना काम करता हूँ।”

अहमद सोने लग पड़ा तो आफिया उसको थपथपाने लग पड़ी। उसका ध्यान झगड़े से हटकर सो रहे अहमद के चेहरे की ओर चला गया। वह बोलना बंद करके उसके मासूम चेहरे की ओर देखती रही। जब वह सो गया तो आफिया ने एक ओर पड़ी फाइलें उठा लीं और उनमें काट-पीट करने लग पड़ी।

“मुहतरमा, यह कैसी लिखा-पढ़ी चल पड़ी।” अमजद का गुस्सा भी खत्म हो गया था। इस कारण उसकी आवाज़ में कड़वाहट न रही।

“अमजद, कुछ लोग मुझे अपनी टैक्स रिटर्न्स दे गए थे। मैं इनमें से गलतियाँ वगैरह निकाल कर ठीक कर रही हूँ।”

“इससे क्या होगा ?“

“कम से कम उनके दो-दो, चार-चार डॉलर रिफंड हो ही जाएँगे।”

“ये दो-दो, चार-चार डॉलर गवर्नमेंट के भी तो काम ही आएँगे।”

“अमेरिकन सरकार का सारा पैसा एक ही काम आता है। वह है, मुसलमानों को मारने का काम।”

“आफिया तू हर बात को उल्टी तरफ सोचती है।”

“सिर्फ़ सोचती ही नहीं, मैं करती भी वैसा ही हूँ जिससे मुसलमानों का भला हो।”

“कभी अपने खाविंद का भला भी सोच लिया कर।” अमजद ने उबासी ली।

“तुझे शरम नहीं आती मेरा खाविंद कहते हुए।” पता नहीं क्यों आफिया एकदम भड़क उठी।

“क्यों, अब क्या हो गया ?“ अमजद ने हैरान होकर आफिया की ओर देखा।

“मैं ब्याही हुई हूँ, इसलिए किसी भी जलसे-समूह में अकेली नहीं जा सकती। तूने कभी इस बात की ओर ध्यान दिया है कि बेगम के साथ जाने में उसकी मदद करनी चाहिए।”

“आफिया, देख मेरे लिए पहले अपना परिवार है और फिर मेरी पढ़ाई। और फिर तुझे पता ही है कि अब मुझे कालेज वाले पहले से भी ज्यादा काम देते हैं। मुझे वीक एंड पर लेख लिखने होते हैं। तू अपनी बात तो फटाक से कह देती है, पर मेरी मज़बूरी नहीं समझती।”

“तुझे पता होना चाहिए कि तेरा पहला काम जिहाद है। पर मेरी ही किस्मत खराब है जो ऐसा खाविंद मिला है जिसको जिहाद के मायने भी नहीं पता।”

“तू जान तेरा जिहाद जाने। मुझे तेरी इन बातों में कोई दिलचस्पी नहीं।”

आफिया को एकदम गुस्सा चढ़ आया, मगर वह उठ न सकी। उसका शरीर इसकी इजाज़त नहीं दे रहा था। इस वक़्त वह दूसरी बार गर्भवती थी। वह कड़वाहट से भरी वही ढेरी हो गई और सो गई। उधर अमजद भी सो चुका था।

कुछ महीनों के बाद आफिया ने एक बच्ची को जन्म दिया। जिसका नाम उन्होंने मरियम बिंत मुहम्मद रखा। नवजन्मे बच्चे के कारण कुछ देर आफिया घर में टिक गई। उनके मध्य फिर से बढ़िया पारिवारिक माहौल बन गया। दोनों समीप वाले पॉर्क में घूमने जाते। कई बार ग्रॉसरी लेने जाते तो बच्चों को संग ले जाते। अमजद को लगा कि शायद अब आफिया बच्चों के कारण ही घर में मन लगा ले। पर यह उसका भ्रम था। आफिया ने फोन पर सबसे सम्पर्क रखा हुआ था। बच्ची के जन्म के बाद वह पहली बार केयर ब्रदर्ज़ की मीटिंग में गई तो सभी को बहुत उत्साह मिला।

“आफिया, अब तू बच्चों की तरफ से फुर्सत पाकर एम.एस.ए. और बोनेवोलैंस का काम संभाल।” सुलेमान अहमर बोला। वह आज की इस ख़ास मीटिंग में चिकागो से खासतौर पर आया था।

“यह बात सही है। बस, मुझे कुछ दिन दो। मैं किसी ऐसी औरत का प्रबंध कर लूँ जो मेरे घर रहकर मेरे बच्चों की देखभाल कर सके। फिर मैं खाली ही खाली हूँ।”

“दोस्तो, कुछ महीनों के बाद नया साल आने वाला है जो कि हमारे लिए नई ज़िन्दगी लेकर आएगा। सब जानते हैं कि बीसवीं सदी खत्म होते ही काफ़िरों का खात्मा हो जाएगा और हर तरफ इस्लाम का झंडा फहरेगा।”

“इंशा अल्ला ! इंशा अल्ला!!“ हर तरफ से आवाजें उठीं। इसके बाद कई अन्य वक्ताओं ने अपनी बात रखी। ज़रूरी मसलों पर विचार-विमर्श किया गया। आखि़र में सुहेल उठा और बोलने लगा, “हमें बड़ा गर्व है कि हमारा साथी और केयर ब्रदर्ज़ का जिहादी बसम कुंज बड़ा मार्के का काम कर रहा है। वह वापस लिबनान आ गया है। उसने वहाँ नए जिहादियों को ट्रेनिंग देने के लिए कैम्प भी शुरू कर लिया है। हालांकि यह काफी कठिन है क्योंकि वहाँ की सरकार हमको सहयोग नहीं देती, मगर उसने नामुमकिन को मुमकिन कर दिखाया है।”

सभी ने तालियाँ बजाईं। आफिया, मार्लेन की ओर देखती मन ही मन सोचने लगी, ‘यह कितनी अच्छी किस्मत वाली है जिसका घरवाला जिहाद लड़ रहा है। नए जिहादी पैदा कर रहा है। और मेरा अपना पति क्या कर रहा है ? वह तो ऐसी बैठकों में आना भी नहीं चाहता। बल्कि मुझे खुद को उससे छिपकर ऐसी मीटिंगों में आना पड़ता है। उसको तो सिर्फ़ पढ़ाई की पड़ी हुई है जब कि इस वक़्त सारा मुस्लिम समाज पूरी तनदेही से जिहाद का काम कर रहा है। मैं क्या करूँ। कैसे अमजद को जिहाद की ओर खींचूँ। यदि मैं ज़ोर डालूँ तो उसको मानना ही पड़ेगा। मेरे साथ उसे गहरी मुहब्बत जो है। मुहब्बत तो ख़ैर मुझे भी उससे बहुत है, पर मुझे उसकी यह एक ही बात बर्दाश्त नहीं होती कि उसको जिहाद से कोई सरोकार नहीं है।’

इसके पश्चात उसके नाम की घोषणा हुई तो वह ख़यालों में से निकली। उसने अपने भाषण के दौरान नए जिहादी भर्ती करने पर ज़ोर दिया। चैरिटी के लिए तो हमेशा ही वह ज़ोर देती थी। उसने सभी को बसम का उदाहरण देते हुए कहा कि आज हरेक को बसम बनने की ज़रूरत है।

मीटिंग समाप्त हुई। वह घर आ गई। उसने आकर देखा, बच्चे सोये हुए थे। उसने दूसरी ओर देखा। अमजद भी गहरी नींद में था। वह उसके पास होकर उसके चेहरे को निहारती रही। अमजद के माथे पर चुम्बन देने के लिए वह ज़रा-सा झुकी, फिर रुक गई कि कहीं उसकी नींद खराब न हो जाए। फिर वह भी अपने बैड पर जा पड़ी और सोचते सोचते उसको काफी देर बाद नींद आई। अगली सवेर ज़ोर-ज़ोर से फोन बज रहा था। वह हड़बड़ाकर उठी।

उसने आसपास देखा। वहाँ कोई नहीं था। अमजद बच्चों को तैयार करके निकल चुका था। वह ऐसे ही किया करता था। जिस दिन आफिया देर रात में लौटती तो अगले दिन वह बच्चों को खुद ही बेबी सिटर के यहाँ छोड़ने जाता था। फोन कट गया तो आफिया बिस्तरे में से निकली। तभी दुबारा घंटी बजी। उसने आगे बढ़कर फोन उठा लिया। उधर सुहेल बोल रहा था। फोन ऑन होते ही वह बोला, “आफिया, बहुत बुरी ख़बर है।”

“क्यों ? क्या हुआ ?“

“बसम कुंज शहीद हो गया।”

“क्या !“ आफिया के शरीर में कंपकंपी छिड़ गई। मगर फिर वह अपने आप को संभालने लगी। उधर सुहेल दुबारा बोलने लगा, “बसम ने लिबनान फौज के दो सिपाही किडनैप कर लिए थे। वह उनके माध्यम से अपनी कुछ मांगें मनवाना चाहता था। मगर इस बीच ही फौज ने उसके कैंप पर हमला कर दिया। इसी लड़ाई में वह शहीद हो गया।”

“अल्लाह उसकी रूह को सुकून दे। पर अब आगे का क्या प्रोग्राम है ?“

“आज शाम, उसको श्रद्धांजलि देने के लिए मीटिंग रखी गई है। तू वक़्त से पहुँच जाना।”

“ठीक है।” फोन कट गया। आफिया सोचने लगी कि कितना किस्मत वाला परिवार है। आप तो वह जिहादी शहीद बनकर बहिश्त में चला ही गया, साथ ही मार्लेन के लिए बहिश्त के दरवाजे़ खोल गया।

उस शाम मीटिंग हुई। हर एक ने बसम की तारीफ़ करते हुए उसके काम को आगे बढ़ाने का प्रण लिया। इसी दौरान एक पच्चीसेक साल का युवक उठा और बोला, “अगर आप सबकी इजाज़त हो तो मैं उस महान शहीद बसम की विधवा से शादी करना चाहता हूँ।”

“क्यों नहीं, क्यों नहीं। यह तो बड़े फख्र का काम है। जिहादी शहीद की विधवा से निकाह करवाने का मान किसी किसी को मिलता है।” कई आवाज़ें उठीं और उस युवक की बात मान ली गई। उसका नाम अनवर अल मीराबी था जो कि सउदी अरब का बाशिंदा था और आजकल हूस्टन, टैक्सास में रहता था। अगले दिन मस्जिद में दोनों का निकाह हो गया। अनवर अल मीराबी अपनी नई बेगम मार्लेन को उसके पाँच बच्चों सहित लेकर हूस्टन को चला गया। शाम के वक़्त आफिया घर लौटी तो उदास थी। पर अमजद ने उसकी ओर ख़ास ध्यान न दिया। वह समझता था कि यह तो इसका नित्य का काम है। यह किसी न किसी चैरिटी समागम से आई होगी। इससे आगे अमजद का न ही कभी ध्यान गया था और न ही जा सकता था कि यह तो बहुत समर्पित जिहादी है।

उधर केयर ब्रदर्ज़ और आफिया वगैरह समझते थे कि उनकी कार्रवाइयों का किसी को पता नहीं है। मगर यह सच नहीं था। क्योंकि एफ.बी.आई. हरेक चैरिटी संगठन के पीछे पड़ी हुई थी। केयर ब्रदर्ज़ के तो विशेष तौर पर। केयर ब्रदर्ज़ के सारे फोन टेप होते थे। जैसे ही एफ.बी.आई. को पता चला कि बसम कुंज मारा गया तो वह आगे की कार्रवाई देखने के लिए सावधान हो गए। इसी कारण मार्लेन और अनवर अल मीराबी के निकाह का एफ.बी.आई. को तुरंत पता लग गया। उन्होंने हूस्टन ब्रांच में इसकी सूचना दी और वह अनवर अल मीराबी के पीछे लग गए।

आफिया ने अपना थीसिस पूरा करके सबमिट करवा दिया। इसके साथ ही उसने मास्टर डिगरी भी पूरी कर ली थी। यह सब कुछ उसने तय समय अर्थात चार साल से भी पहले कर लिया। यह एक रिकार्ड था। वह भी तब जब कि उसने इस बीच बच्चों को जन्म दिया और अपनी दूसरी सरगर्मियों में भी पूरी तरह वह व्यस्त रही। इसके बाद उसके मन-मस्तिष्क से एक किस्म का बोझ-सा उतर गया। वह पढ़ाई और कालेज का पीछा छोड़ चुकी थी। यही नहीं, उसने अपना पहरावा भी बदल लिया। वह लम्बा बुर्का पहनने लगी। जिसमें से उसकी सिर्फ़ दो दिपदिपाती आँखें ही नज़र आती थीं। उधर अमजद ने पढ़ाई में बहुत अच्छा स्थान लिया था। उसने अपनी अनैस्थिसीऑलाजी की रैजीडेंसी में पूरी क्लास में टॉप किया था। उसकी इस प्राप्ति से प्रभावित होकर उसको अमेरिकन एसोसिशन ऑफ़ अनस्थिसीऑलाजी के नेशनल न्यूज़लैटर का चीफ़ एडिटर बना दिया गया। वह डॉक्टरी के क्षेत्र में हद से बढ़कर उपलब्धियाँ प्राप्त कर रहा था। इसके बाद उसने हावर्ड यूनिवर्सिटी के हैल्थ सेंटर में मास्टर की डिगरी के लिए आवेदन कर दिया। उसको प्रवेश मिल गया और उसने पढ़ाई प्रारंभ कर दी। परंतु आफिया का ध्यान इस वक़्त कहीं ओर था। वह इस वक़्त जिहादी वेबसाइट पर बहुत सारा काम कर रही थी। आजकल वह जिहाद में मारे जा रहे जिहादियों की बॉयोग्राफी वेबसाइट पर डाल रही थी। वह हर ऐसा आर्टिकल वेबसाइट पर डालती जिससे नए लोगों को जिहाद में शामिल होने की प्रेरणा मिले। इसके अलावा वह इंटरनेट पर इस्लामिक बहसों में भी हिस्सा लेती थी। सारा दिन उसका इस तरह की बहसों में हिस्सा लेते ही गुज़रता था। मगर वह कभी भी कुछ ऐसा नहीं सुन सकती थी जो कि जिहाद की सराहना न करता हो। अगर कोई कहता कि मुसलमानों को कुरान का पालन करते हुए शांति और सद्भावना से इस देश में रहना चाहिए तो उसको लगता कि इस प्रकार की बोली बोलने वाले मुसलमान कौम के गद्दार हैं।

आफिया की बड़ी बहन फौज़िया विवाहित और बाल-बच्चेदार थी। वह अपने डॉक्टरी क्षेत्र में न्यूरोलॉजी में फैलोशिप करने के लिए बॉस्टन आई और अपने बच्चों को भी यहाँ ले आई। यहाँ आकर उसने देखा कि आफिया, पहले वाली आफिया नहीं रह गई थी। फौज़िया को लगा कि उसकी चंचलता और मासूमियत गायब हो चुकी है। भीतरी बातों का उसको कुछ पता नहीं था। उसने इसका कारण यही निकाला कि शायद अमजद आफिया को तंग करता है। उसने इस बारे में आफिया से लम्बी-चौड़ी बातचीत की। जब आफिया ने उसकी बातों में अधिक दिलचस्पी न दिखाई तो फौज़िया को लगा कि शायद इसको अमजद ने बहुत डरा-धमका रखा है। उन्हीं दिनों में आफिया अमजद को किसी फंड रेजिंग समारोह में ले गई। वहाँ वह इतनी भावुक हो गई कि उसने अमजद की ओर से किसी समय भेंट की गई कीमती अंगूठी दान कर दी। इससे अमजद चिढ़ उठा। उसने आफिया को इशारे से समझाया कि जो हो गया, सो हो गया, अब वह यहाँ से उठकर घर चले। परंतु आफिया तो भावुकता के सागर में डूबी हुई थी। उसने अमजद की कोई बात न सुनी। वह अपना भाषण देती रही। उधर बच्चे भी घर जाने की जिद्द कर रहे थे। अमजद अपसेट हो गया। वह आफिया को अकेला छोड़कर भी नहीं जा सकता था। आखि़र कहीं देर रात समारोह खत्म हुआ। बच्चे कार में सोये पड़े थे। कार में बैठकर वे घर की ओर चले तो अमजद ने आफिया को अंगूठी दान करने के बारे में बुरा-भला कहा। इस बात पर आफिया ने उसका मजाक उड़ाया। आहिस्ता आहिस्ता चलती बातें आखि़र गरमी पकड़ गईं। जब वे घर पहुँचे तो वे बुरी तरह आपस में बहस रहे थे। घर पहुँचकर अमजद, बच्चे को बोतल से दूध पिलाने लगा। आफिया बहस करती हुए उसके साथ हाथापाई पर उतर आई और बोतल उसके मुँह पर अनायास बज गई। परिणामस्वरूप उसके मुँह पर ज़ख़्म हो गया और खून निकलने लगा। अमजद ने उसी वक़्त किसी दोस्त डॉक्टर को फोन किया और आफिया के ज़ख़्म की स्टिचिंग करवाकर लाया। उसके बाद दोनों के बीच तल्ख़ी लगभग ख़त्म हो गई। अगले रोज़ आफिया फौज़िया के पास बच्चे छोड़ने गई तो उसने मुँह पर स्टिचिंग के निशान देखकर पूछा। आफिया द्वारा सारी हकीकत बयान करने के बाद फौज़िया ने सबसे पहले आफिया के मुँह के चित्र लिए। फिर वह उसको भड़काने लगी। आखि़र, आफिया उसकी बातों में आ गई। शाम के समय जब अमजद वहाँ पहुँचा तो फौज़िया ने दरवाज़ा नहीं खोला। अमजद को यह बात खटक गई कि फौज़िया ने बीच में पड़कर उसके आपसी मामले को तूल दिया है। अगले दिन वह फोन करता रहा, पर किसी ने फोन नहीं उठाया। उसका मन बहुत खराब हो गया। तीसरे दिन उसने फोन किया तो आफिया ने फोन उठाकर हौले से ‘हैलो कहा।

“आफिया, क्या बात हो गई ? न तू लौटकर घर आई है और न ही फोन उठा रही है ?“

“वो फौज़िया आपा...।” इतना कहकर वह चुप हो गई।

“आफिया, देख यह अपना आपसी मामला है। अच्छा है कि इसको हम आप ही निपटाएँ।”

“अच्छा, आज शाम को आ जाना। उस वक़्त फौज़िया घर पर नहीं होगी।”

उस शाम अमजद फौज़िया के घर गया तो आफिया ने दरवाज़ा खोल दिया। उसका चेहरा उतरा हुआ था। वैसे भी वह काफी उदास दिख रही थी। अमजद ने उस दिन के लिए माफ़ी मांगी। आफिया का रंग एकदम बदल गया। वह ऊँची आवाज़ में बोलने लगी। बोलते बोलते वह अमजद के करीब आ गई और उसकी छाती पर मुक्के मारने लगी। अमजद चुपचाप खड़ा रहा। आहिस्ता आहिस्ता आफिया के हाथ रुकते चले गए। फिर उसने अमजद को अपनी बांहों में लपेट लिया और ज़ोर ज़ोर से रोने लगी। अमजद ने उसको शांत किया। जब शाम के समय फौज़िया घर आई तो उसने देखा कि आफिया अपने बच्चों सहित वहाँ से जा चुकी थी। इसके बाद अमजद ने सोचा कि यहाँ से कहीं दूर मूव हुआ जाए ताकि भविष्य में फौज़िया हमारे घरेलू मसलों में दख़ल न दे सके। जून 2001 को उसने ग्रैंडा हाईटस नाम के इलाके में बड़ा-सा अपार्टमेंट ले लिया। यह काफी बड़ा था। इस कारण उसने इसका एक कमरा अपने साथ काम करते एक सउदी अरब के बाशिंदे को किराये पर दे दिया। ज़िन्दगी फिर से बढ़िया ढंग से गुज़रने लगी। इन्हीं दिनों में ओसमा बिन लादेन की वीडियो टेप चैनलों पर दिखाई जाने लगी। पहली बार वह बहुत ही खुलकर बोल रहा था। अमेरिका के वह बहुत ही खिलाफ़ था। सुनने वाले अपने अपने कयास लगाने लगे कि इसका मतलब क्या हुआ कि ओसमा बिन लादेन एकदम पब्लिक के सामने इतने ज़ोरदार ढंग से आया है। केयर ब्रदर्ज़ जैसे संगठन भी कुछ समझ न सके।

उधर मार्लेन अपने नए पति अनवर अल मीराबी के साथ हूस्टन से चलकर बॉस्टन पहुँची। यह सारा सफ़र उन्होंने कार से तय किया। बड़ी बात उस वक़्त मार्लेन गर्भवती थी और बच्चे की डिलीवरी में भी ज्यादा वक़्त नहीं था। एफ.बी.आई. इस जोड़े की हरकतों को नोट कर रही थी, मगर उनको यह समझ में नहीं आया कि ये इस प्रकार बॉस्टन में क्या करने आए हुए हैं। मार्लेन ने वहाँ के दोस्तों को बताया कि पहले बच्चे की डिलीवरी वह बॉस्टन में चाहते हैं, इसलिए वे यहाँ आए हैं। इस बीच वे ख़ास मित्रो से मिलते रहे। उन्हें बहुत अधिक मान-सम्मान दिया गया। कई दिनों के बाद 29 अगस्त 2001 को मार्लेन ने बेटे को जन्म दिया। इसके सप्ताह भर बाद वे दोनों ही कार से वापस चले गए। जाने से पहले मार्लेन आफिया को एक तरफ ले जाकर बोली, “वह बड़ा दिन आने वाला है जिसकी हमें मुद्दत से प्रतीक्षा है।”

“मार्लेन, ज़रा विस्तार से बता।” आफिया को खुशीभरा अचंभा हुआ।

“बस, इस वक़्त मैं इतना ही कह सकती हूँ कि बहुत कुछ बड़ा होने जा रहा है, जो सारी दुनिया को हिलाकर रख देगा।”

“इंशा अल्ला, ऐसा ही हो।” आफिया को यह तो पता था कि ओसामा बिन लादेन की हिदायत पर जिहादी ग्रुप कुछ ऐसा करने वाले हैं जो वाकई तहलका मचा देगा। पर वह है कि इस बारे में उसको कुछ पता नहीं था। न ही उसने मार्लेन से इस विषय में विस्तार से पूछना आवश्यक समझा।

एफ.बी.आई. अपने अंदाज़ लगाती रही कि इस युगल का इस मुकाम पर यहाँ आने का क्या काम हो सकता है। टी.वी. चैनल अपने दिमाग लड़ाते रहे कि ओसामा बिन लादेन की कुछ ही दिन पहले आई ज़ोरदार टेप का क्या संदेश हुआ। उधर आफिया अपना दिमाग खपाती रही कि मार्लेन की बात का क्या अर्थ हुआ। सबके अपने अपने कयास थे। मगर 11 दिसंबर 2001 के दिन सबके भ्रम दूर हो गए। उस दिन आफिया सुबह के समय समाचार सुन रही थी। किसी ख़ास ख़बर ने उसकी आँखें टी.वी. स्क्रीन से चिपका दीं। ख़बर आ रही थी -

“आज सवेरे अमेरिकन एअरलाइन्ज़ की फ्लाइट नंबर 11 ने वर्ल्ड ट्रेड सेंटर के नॉर्थ टॉवर को आठ बजकर छियालीस मिनट पर हिट किया। इसके ठीक सत्रह मिनट बाद युनाइटिड एअरलाइन्ज़ की फ्लाइट संख्या 175 सेंटर के साउथ टॉवर से टकरा गई। दोनों प्लेन बॉस्टन के लोगन इंटरनेशनल एअरपोर्ट से उड़े थे। वहाँ से उड़ान भरने के बाद इन्हें हाईजैकरों ने अगवा कर लिया और फिर स्वयं ही इन हवाई जहाज़ों को उड़ाकर वर्ल्ड ट्रेड सेंटर के नॉर्थ और साउथ टॉवरों में ला मारा। हज़ारों आदमी मर चुके हैं। हज़ारों ही ढह रहे टॉवरों के अंदर घिर हुए हैं। इसके अलावा एक प्लेन पेंटागन से जा टकराया है। एक अन्य अगवा किया गया प्लेन हाईजैकरों ने पैन्सलवेनिया के खेतों में गिरा दिया है।”

टी.वी. चैनल ने कुछ देर के लिए कैमरा ताश के पत्तों की भांति गिरती इमारतों की ओर कर दिया। वहाँ मौत का तांडव-नृत्य हो रहा था। हर तरफ ऊपर से नीचे गिरकर मरते लोग दिखाई दे रहे थे। सैकड़ों लोग बचने के उम्मीद में दफ़्तरों से बाहर निकलकर खिड़कियों से लटक गए थे। जिस किसी का भी हाथ फिसलता, वह आधे आसमान से नीचे आ गिरता। हर तरफ लोगों की दर्द भरी चीखें सुनाई दे रही थीं। आसपास गहरी गर्द छा गई थी। हर कोई रो रहा था। बल्कि सारा अमेरिका रो रहा था। वहाँ से बचकर निकल भागते लोगों के साथ सड़कें भरी पड़ी थीं। दोनों ट्विन टॉवर धू-धू करके जल रहे थे। समाचार वाचिका फिर से बोलने लगी, “सरकार को पूरा शक है कि आज की इस अति क्रूर घटना के लिए इंतहापसंद इस्लामी आतंकवादी जिम्मेदार हैं। बॉस्टन शहर में अलकायदा सदस्यों और उनके हमदर्दों के घरों में छापे लगने शुरू हो चुके थे। समाचार जारी रहेंगे।”

(जारी…)