वो अजनबी Bansari Rathod द्वारा सामाजिक कहानियां में हिंदी पीडीएफ

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वो अजनबी

आज फिर आफ़िस से घर जाने में देरी हो गई, ये कॉलसेन्टर की जोब भी न.
पर न चाहते हुए भी उस लैम्पपोस्ट पे जाते जाते नज़र चली ही गई।आज भी वो वही खड़ा एकटक सामने देख कर मुश्कुरा रहा था ,बस रोज़ की तरह चुपचाप।
मैं रोज़ की तरह नज़र भर देख के फिर आगे चल पड़ी।
ये सिलसिला लगभग तीन महीनों से चल रहा था।
आज से तीन महीने पहले में ऑफिस से निकल ही रही थी कि सड़क पे भीड़ लगी हुई थी , एक लड़का ज़मीन पे गिरा कराह रहा था , उसकी बाइक स्लिप होने कारण उसके पैरों में फैक्चर आ गया था पर सब उसकी मदद करने की बजाय तमाशा देख रहे थे,मुझसे देखा न गया और मैने उसे ऑटो में बिठा के अस्पताल रवाना किया,वो तभी एकटक सामने देख रहा था जैसे आभार प्रगट करना चाहता हो,पर असह्य दर्द के कारण बोल न पाया।
अगले दिन जब मैं ऑफिस से निकली वो सामने वाले लैम्पपोस्ट के पास खड़ा था। फिर क्यां ये रोज़ की बात हो गई थी ,वो चुपचाप वहाँ खड़ा रहकर मुश्कुरा कर देखता रहता।
कुछ भी बोले बिना बस देखता रहता। अब तो मुझे भी जैसे उसकी आदत हो गई थी,न चाहते हुए उसकी तरफ नज़र चली जाती थी।
एक दिन अचानक में ऑफिस से निकली और रोज़ की तरह लैम्पपोस्ट पे नज़र गई ,वो आज नहीं दिखा वहाँ, न चाहते हुए मन उसके ख़यालो में खो सा गया , क्या हुआ होगा क्यों न आया आज वो!!
अगले दिन से मेरी भी ड्यूटी बदल गई थी, रात को देर हो गई मैं ऑफिस से जैसे ही निकली वो उसी जगह वैसे ही मुश्कुराता हुआ खड़ा मिला।
अब वो दिन की जगह रात में आने लगा था।और पता नहीं क्यों पर मुझे उस से कोई डर नही बल्कि हिफाज़त मेहसूस होती थी।
पर आज तो मैंने ठान लिया था कि उस से बात करनी ही हैं,
बस ऑफिस से निकली ,रोज़ की तरह वो वही खड़ा था,मैं उसके पास गई , और कहा आप रोज क्यों यहाँ खड़े रहते हो मेरा इंतज़ार करते हो ,पर कभी बात करने की कोशिस नहीं करते!!
आखिर क्यों??
तभी वो बोला उस दिन जब सब मुजे तड़पता देख रहे थे एक आपने ही मेरी मदद की थी,बस उसी दिन से मैं आपको पसंद करने लगा था ,इसलिए रोज़ आपके ऑफिस के सामने खड़ा रहता था बस इतना कहने के लिए के मुजे आपसे प्यार हो गया हैं, पर कभी चाहकर भी बोल न पाया।
अच्छा , तो अब आप रात को क्यों आने लगे ! आपको कैसे पता मेरी ड्यूटी चेंज हो गई!
मुजे ये सब नहीं पता पर उस दिन मैं पूरी हिम्मत करके आपको बोलने आ रहा था , बावलों की तरह तभी एक ट्रक ने हमको ठोकर मार दी ,उस दिन भी मेरी नज़र उसी आस के साथ बंद हुई कि शायद आप आ जाओ और मुझे बचालों, पर मेरी किश्मत की उस दिन आपकी आश मेरी जान के साथ चली गई पर आपके प्यार ने मुझे जाने न दिया ,इसलिए आज भी यहाँ मैं उसी ईन्तज़ार में आता हूं कि आप मुझे हाँ कहदो।
मैं ये सब सुनकर स्तब्ध रह गई , कुछ बोल न पाई, और वो बोला ,बताओ न प्लीज् क्यां आप भी मुझे पसंद करती थी??
मैं क्यां बोलती सच तो ये था कि मैं भी प्यार करने लगी थी। जो मेरे प्यार में इस जहाँ से जा चुका था।
मैंने पूरी हिम्मत लगाके उसको कहा , " हाँ, मैं भी आपको प्यार करने लगी हूँ।" इतना बोलके मैं वही गिर गई और मेरी हिम्मत ने जवाब दे दिया मैं फुट फुट के रोने लगी , और वो बस इतना बोला तुम रो मत अगर मेरा फिर जन्म हुआ तो उस से तुज़े मांग लूंगा इस जन्म में इश्क़ इतना ही था।बस इतना बोलकर वो चला गया।शायद उसे मुक्ति मिल गई।
पर मुझे अपने बंधन में बाँध दिया।
अभी भी मैं जब भी वहाँ से गुज़रती हूँ, उस लैम्पपोस्ट पे नज़र चली ही जाती हैं, उसी आश में की शायद वो मिल जाए।।।