चरित्रहीन... Bansari Rathod द्वारा महिला विशेष में हिंदी पीडीएफ

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चरित्रहीन...

"आ गई मेमसाब गुलछर्रे उड़ाके!! "

अभी श्यामली के कदम घरमें पड़ने ही वाले थे की वहीं जम गए. 

"अरे! आप अभी तक सोए नहीं!!"बड़े ही मधुर स्वर में श्यामली ने सुबोध से कहा,, "और खाना खाया या नहीं?? "


"मैं मर भी जाऊं तो तुम्हें क्याँ फर्क पड़ेगा!! तुम्हें तो आज़ादी मिल जाएगी, बंधन भी तो नहीं रहेगा कोई",सुबोध बहुत गुस्से में था... 
सुबोध एक बहुत बड़ी कंपनी मैं नौकरी करता था, आय भी अच्छी थी, फिर श्यामली जैसी सुंदर लड़की से शादी हुई, वो तो जैसे हवा में उड़ चला, न पैसे की कमी थी न प्यार की, और इस ख़ुशी में चार चांद लग गए जब सलोनी का जन्म हुआ प्यारी सी चुलबुली चांद जैसी परी जैसे उस के घर आई... 
पर कहते हैं ना खुशी के दिन जल्दी बसर होते हैं, कम्पनी में एक हादसे में सुबोध के दोनो पैर चले गए, अपाहिज सुबोध को नौकरी खोनी पड़ी, कम्पनी मे से कोम्पनसेसन के जो पैसे आए थे वो भी कब तक चलते!!
आखिर कार श्यामली ने सारी जिम्मेदारी अपने सर ले ली, और नौकरी की तलाश करने लगी, पर खुबसुरत होने के कारण हर जगह गलत नज़रों का सामना करना पड़ता, फिर सुबोध के एक दोस्त की कंपनी में उसे नौकरी मिल ही गई..
वे सुबह उठके घर का सब काम करती फिर खाना बना के अॉफिस जाती और वहाँ भी पुरी निष्ठा से काम करती, घर खर्च और सुबोध की दवा और सलोनी की स्कूल सब खर्च पुरा करना कठिन होता था सो उसने ओवरटाइम करना शुरू कर दिया, घर में सलोनी की देखभाल और खाना बनाने के लिए बाई रख ली, 
शुरु शुरु में सब ठीक चला फिर श्यामली का घर देर से आना सुबोध को अखरने लगा, आज फिर वहीं बात पर सुबोध गुस्सा था, पर श्यामली हमेशा की तरह शांत.. 
"मेरे लंगड़ेपन का जमके फ़ायदा उठाओं तुम,अब तो पुरी आज़ादी मिल गई ना रघु के साथ घूमने की!! "
ये क्याँ बोल रहे हो आप वे मेरे बोस ही नहीं भाई जैसे हैं, और आपका भी तो दोस्त हैं, आप भी तो जानते हो वे ऐसे नहीं हैं.. "
"मौका मिलते ही सबकी नियत बदल जाती हैं, और ये भाई-बहन के मुखौटे लगाकर क्याँ खेल चल रहा क्याँ मैं नहीं जान सकता!!अपाहिज हुं, कम अक्ल नहीं.. "
श्यामली नत मस्तक आँखों में आँसू लिए अपने देवता की अविश्वसनीयता देख रही थी..... 

=>आज सुबह से ही श्यामली बहुत खुश थी पैरों में जैसे पंख लग गए थे, सूरज अभी जगा भी नहीं था उस से पहले श्यामली की नींद उड़ गई थी, 
आज से ठीक पांच साल पहले उसकी ज़िन्दगी बदल सी गई थी ,सुबोध से उसकी शादी जो हुई थी,सुबह से घर की साफ़ सफ़ाई में लगी हुई थी,
सुबोध अभी गहरी नींद में था,और हर साल की तरह इस साल भी उसको ये दिन याद नहीं था,पर श्यामली को इस बात का कोई गिला नही था,वो तो बस चाहती थी कि इतने दिनों से दुखी सुबोध को आज वो अनकही खुशीओ से भर देना चाहती थी..
"मेमसाब आज आप ने तो मेरे आने से पहले ही घर को चमका दिया,मेरी राह नहीं देखी!में कर लेती न ये सब?"बाहर से कनु की आवाज़ आइ।
"नहीं कनु!ऐसी बात नहीं हैं, आज मेरी नींद जरा जल्दी खुल गई थी सो मेने सोचा थोड़ा काम निपटालू।तुम सलोनी को टाइम पे स्कूल भेज देना और साहब उठे तो उनको जो भी पसंद हो वो नास्ता बना कर रूम में दे आना।"
श्यामली, सुबोध को शाम को सरप्राइज देना चाहती थी इस लिए उसने कनु को भी नहीं बताया।और वो तैयार होके ऑफिस की और निकल पड़ी।।
शाम को उसने बॉस से जल्दी जाने की परमिशन ले ली,और काम सब जल्द खत्म करके जल्दी घर जाना था ,आज जैसे समय मंद गति से चल रहा लगता था।
घड़ी में पांच बजे और श्यामली उत्सुकता और आज की रात के सपनों को दिल मे संजोती निकल पड़ी ,रास्ते मे से केक ली,कनु को सुबह बोल दिया था कि बेडरूम की चद्दर पर्दे बदल दे आज वो अपनि शाम को पहले दिन जैसी खूबसूरत बनाना चाहती थी, रास्ते मे से थोड़े फूल और सुबोध के लिए गिफ्ट ली,फिर जैसे घर के लिए उड़ चली ।।
रास्ता जैसे लंबा हो चला और श्यामली हसीन सपनों में खोई हुई.. 
घर की चाबी उसके पास थी उससे घर खोलके अंदर आई वो सोच रही थी कि सुबोध उसको अभी देखके खुश भी होगा और सरप्राइज भी,हॉल में कोई नहीं था उसे लगा शायद कनु कुछ लेने बाहर गई होगी,यहीं सही समय है सुबोध को सरप्राइज देने का,वो तो खुश होकर मुझे बाहों में ही भर लेगा और फिर एक दूजे में हम खो जाएंगे।
बड़े कदमो से बेडरूम की तरफ गई और चुपके से दरवाजा खोला, और दरवाजे के पास फिसल पड़ी आंखों में अश्रु धार थी ,आंखोसे देख रही थी अपने सपनों को दम तोड़ते हुए।।
जिस जगह उसने नई ज़िन्दगी की शुरुआत की थी जहाँ प्यारभरा हर लम्हा बिताया था ,उसी जगह उसने देखा अपने प्यार को अपने विश्वास को एक दूसरे की बाँहों में निर्वस्त्र लिपटे हुए।।।।
=>उस दिन के हादसे को भुला पाना शायद श्यामली के लिए बहुत ही मुश्किल हो गया था। पर सुबोध को कोई फ़र्क नहीं पड़ा था वो तो बस ऐसे जी रहा था जैसे कुछ हुआ ही न हो।

"सुनो!अब चाय के लिए कितना इंतज़ार करना पड़ेगा!!आज के आज मिलेगी या नहीं!"
श्यामली ने जल्दी से चाय का कप सुबोध के हाथों में थमाया।मनमे लाखों तूफान उठ रहे थें, जिसे रोके रोक पाना नामुमकिन सा था। "अगर वे ठीक होते तो छोड़ भी देती पर इस हालत में गर छोड़ा तो क्यां होगा उनका!!नहीं नहीं ऐसे तो खयाल भी लाना पाप हैं।"
सब काम खतम करकर ऑफिस की और चल दी। हा!अब उसने ऑटो में जाना छोड़ दिया और ओवरटाइम करना भी,अब ज्यादा पैसे नहीं कमाने पर बचाने की कोशिश करति हैं।वो घंटे भर का रास्ता चल कर पार करती हैं।
कांटा जब गहरा चुभता हैं ना दोस्तों तो कोई और दर्द बडा नहीं लगता।।
श्यामलीके दिल में भी ऐसा ही दर्द भरा था,रघु कई दिनों से ये नोटिस कर रहा था पर पूछने की हिम्मत नहीं थी।पर एक बार ऑफिस टाइम खत्म होने के बाद उसने श्यामली को कहा, "एक जरूरी काम है आज तो साथ आना और बादमे में तुम्हे घर छोड़ जाऊँगा।।"
श्यामली जिजक रही थी वो अब कैसे बताए कि दोनो के बारे में सुबोध क्यां सोचता हैं, और गर साथ देख लिया तो फिर भूचाल आ जाएगा, पर करे भी तो क्या मना भी तो नहीं कर सकती बॉस जो ठहरे।"ठीक हैं, आऊँगी।"श्यामली ने हामी भरी और काम मे लग गई।।
घड़ी में पांच के घंटे पड़े,रघुनाथ श्यामली दोनो ऑफिस से निकले ।गाड़ी एक रेस्टोरेंट के आगे खड़ी हुई , श्यामली नतमस्तक पीछे पीछे चल पड़ी।
अंदर जाके रघुनाथ ने चाय का ऑर्डर दिया और शायमली के लिए कॉफी। 
"श्यामली! सच सच बताओ क्यां हुआ हैं तुम्हारे और सुबोध के बीच!!"
अचानक ये सवाल सुनके श्यामली पीली पड़ गई, "आपने तो कहां था न काम हैं क्याँ काम था,हम यहाँ किस काम से आए हैं!! "
"श्यामली!बात को बदलों मत, यहीं काम था, वहाँ बताया तो तुम न आती सो नहीं बताया अब बताओं ,देखो!कुछ परेशानी हैं तो मैं सुबोध से बात करूंगा, वो मेरा बचपन का दोस्त हैं ।"
श्यामली सकपका कर चुप हो गई अब क्या कहे रघु से की वो उन दोनों के चरित्र पर उंगली उठाके बैठा हैं, क्यों समझेगा कोई बात वो।।
"नहीं, वो बस थोड़ा घर का टेन्सन, और सुबोध की तबियत की भी थोड़ी फिक्र हैं, बस बाकी कुछ नहीं।चलो मैं चलती हूँ, सुबोध मेरा घर पर ईन्तजार कर रहा होगा।" श्यामली खडी हुई। रघुनाथ ने छोड़ ने को कहा पर श्यामली ने मना कर दिया, और घर के लिए निकल पड़ी।
इधर रघुनाथ के मनमें ये बात खटक रही थी।उसने बिल के पैसे दिए और घर की और निकल पड़ा पर मनमें अभी भी वहीं बातें घुम रही थी।
इतवार की सुबह थी,आज अॉफिस में छुट्टी थी तो श्यामली साफसफाई कर रही थी। सुबोध बाल्कनी में चाय का कप धरे पेपर पढ़ रहा था। तभी दरवाज़े पर दस्तक हुई, श्यामली ने दरवाजा खोला तो सामने रघुनाथ खड़ा था।श्यामली के पैर जैसे ज़मीन में गड़ गए,और आवाज़ जैसे चली गई, मन ही मन डर गई कि सुबोधने इसका अपमान कर दिया तो नॉकरी भी जाएगी और इन लोगों की दोस्ती भी खत्म हो जाएगी।
"क्यों भाभी ,अंदर नहीं बुलाओगी क्याँ!"
श्यामली हड़बड़ाहट में बोली, "हाँ,क्यों नहीं!आईए न।"
"सुबोध! रघुनाथ जी आए हैं, आपसे मिलने।"
सुबोध व्हिलचेयर से अंदर आया और रघुनाथ को अपने साथ कमरे में आने को कहा।रघु पीछे चल पडा़,पीछे श्यामली भी आई,उसके मन में ड़र था कि, सुबोध रघु को कुछ खरीखोटी न सुना दे।
" अब तुम क्याँ सिर पे खडी़ रहोगी!चाय नास्ता ले के आओ।" सुबोध गुर्राया।।
श्यामली के जाने के बाद रघु ने कहा,"ये कौनसा तरीका हैं भाभी से बात करने का!" 
"रघु!यार मुझे माफ़ करदे पर मैं ये सब उसीकी भलाई के लिए कर रहा हू, मैं जानता हूँ कि वो मुझसे बहुत प्यार करती हैं और उस प्यार को नफरत में बदलने की मैं हर वो कोशिस करता हूँ,क्योंकि मैं चाहता हूँ कि मेरे लिए वो अपनी पूरी ज़िंदगी बर्बाद न करे,और दोस्त उसके लिए मैं हर हद पार कर चुका हूँ इतना नीचे गिरा दिया हैं खुदको,पर क्यां करु मैं भी नहीं तो वो मुझे नहीं छोड़ेगी, और मैं उसकी जिंदगी बिगड़ना नहीं चाहता, दोस्त तेरा भी तो कोई नहीं, प्लीज तू श्यामली को अपनाले, मुझपर एक एहसान कर दे।"सुबोध की आँखों मे से आँसू रुक नहीं रहे थे।
"और तू?" रघु ने पुछा।
"मैं अपना रास्ता कर लूंगा,मैं श्यामली से बहुत प्यार करता हूं उसे इस तरह नहीं देख सकता।"
तभी दरवाज़े पर कुछ गिरने की आवाज़ आई,श्यामली ने सब कुछ सुन लिया था,और उसके आँखों से मानो अविरत झरना बह रहा था।"इतना प्यार सुबोध के मन मे भरा हैं मेरे लिए । और मैं पागल समझ ही नही पाई उनके मन का हाल, थु हैं मुज़ पे।"
"मैं आपको छोड़कर कहीं नहीं जाउंगी,वो सात वचन आप भूल गए होंगे मैं नहीं।"
"अरे पगली!वहीं वचन मैं भी निभा रहा हूँ, की कभी तूमको दुःख न दू। तुम क्यां सुख पाओगी मेरे साथ!!"
"मेरा सुख दुख सब आपके साथ हैं,अब कुछ भी बोले तो सलौनी की कसम।"श्यामली ने उसके मुँह पे ऊँगली धर दी।
रघु अब तक जो चुप था वो बोला ,"अरे पागल! तू ये कयाँ करने जा रहा था,वो तुझे जान से ज्यादा प्यार करती हैं, उसे अलग करने जा रहा था!!और सुन तुझे लगता है कि तू बोझ है तो मैं तुजे काम देता हूँ आज से मेरी ऑफिस का सारा कंप्यूटर वर्क मैं शायमली के साथ घर भिजवा दिया करूँगा और तू उसे पूरा करके श्यामली के साथ वापस भिजवा देना और कोई अहसान नहीं, तुम काम करोगे उसकी तनख्वाह मिलेगी।"
ये सुनकर सुबोध रघु के गले लग कर रोने लगा।
पीछे से श्यामली ने मिठाई लेकर दोनों को खिलाई और बोली,"मेरे पति की नौकरी की खुशी में।"
सब के चेहरे पे एक अप्रतिम सी ख़ुशी थी,जैसे कोई बड़ा तूफान गुज़र गया हो और उसके बाद कि रिमझिम बारिश ने चारों तरफ़ हरियाली फ़ैलाई हो।।