आज चौधरी हरपाल सिंह की हवेली पर बहुत रौनक हो रही है।
हो भी कियूं न ,उनका बेटा' चेतन 'आज डॉक्टरी पास कर के गांव लौट कर आ रहा है।
उन्होंने पूरे गांव के जलपान की व्यवस्था कर रखी है, और मन मे एक विचार भी रखा है कि, किस शान से वह अपने चेतन को गांव बालो से मिलायेगे ।
"मिलिए मेरे बेटे डाक्टर चेतन चौधरी से जो अपने गांव वालों की सेवा खातिर डॉक्टर बन कर आया है , अब कोई लाइलाज न मरेगा गांव में।"
उन्होंने तो अपनी एक एकड़ जमीन जो राजमार्ग से बस 500 मीटर अंदर है ,उस पर अस्पताल निर्माण की योजना भी बना रखी है।
क्या शान होगी गांव की जब दूर दूर से लोग उनके गांव आएंगे इलाज़ के लिए ।
बड़े शहर की सारी सुबिधा रखाएँगे हम अपने अस्पताल में, और गांव बालों से बस दवाई का मूल्य लिया जाएगा।
बाहर के लोगों के आवाजाही से गांव के कई लोगन को रोजगार भी तो मिलेगा।
अभी हरपाल सिंह अपने मधुर दिवास्वप्न में खोये थे कि किसी ने उनको झिंझोड़ा अरे चौधरी साब ,"भैया आ गए" आएं स्वागत करें।
एक हर्ष मिश्रित शोरगुल उठा डाक्टर साब आ गए डाक्टर साब आ गए।
आ गया बेटा ,,,देख सारा गांव तेरे स्वागत को आया है।
ओ डैड ये क्या जाहिलों की भीड़ इकट्ठा कर रखी है आपने ।
कितने डर्टी-डर्टी लोग है जर्म्स से भरे।
उफ्फ !!!मुझे तो घुटन होती है।
चेतन ने कहा और हवेली में अंदर चला गया उसने किसी को सम्मान या अभिवादन तक भी न किया।
चौधरी साब भी उसके पीछे पीछे अंदर आये।ये क्या व्यभार है ,चेतन !!??
गांव के सारे मौजूद बुजुर्ग और गणमान्य लोग तुम्हें आशीर्वाद देने आए थे ओर तुमने किसी को राम राम तक भी न की।
ओह्ह!! डैडी क्या है ये सब ,मुझे अभी निकलना है आज रात 10 बजे मेरी फ़्लाइट है अमेरिका की।
बाहर गाड़ी में आपकी बहु मेरा इंतज़ार कर रही है ,
मैं तो आपको कहने आया था कि आप भी यहां का सारा कारोबार समेट लो मैं अगले महीने आऊंगा और आपको भी हमेशा के लिए अपने साथ ले जाऊँगा।
बहु!!!!!!!!@!! अमेरिका!!!????
हरपाल सिंह पर तो जैसे वज्रपात ही हो गया हाथ पांव सुन्न हो गए।
कितने अरमान से उन्होंने अपने एकलौते बेटे चेतन को पाला था ।अकेले मां और बाप दोनो बन कर।
उनकी पत्नी सरिता देवी की 16 साल पहले डेंगू से मौत हो गई थी , तब से बस यही एक सपना एक उम्मीद पल रही थी उनके मन मे कि," उनका चेतन डाक्टर बनेगा और किसी गांव बाले को लाइलाज नही मरने देगा"।
लेकिन ये क्या ,,,,, चेतन डाक्टर तो बन गया लेकिन हरपाल सिंह का सपना,,,,,, !!!
और बहु,,,!!
,यानी तुमने बिना पूछे शादी भी कर ली ??
कौन है लड़की? किस खानदान की है,?, क्या कुछ भी मायने नही रखता तुम्हारे लिए,,,??
क्लासमेट है डैड ,और हमने शादी नही की बस हम 2 साल से साथ रहते हैं लिवइन में।
और आजकल शादी का झंझट कोन करता है डैडी।
अच्छा छोड़ो आप नहीं समझोगे ये सब ,मैं और रश्मि एक साथ डॉक्टरी पढ़े हैं ।
और और दो साल से लिवइन रिलेशन में हैं सोच था आपको बता दूं ,लेकिन रश्मि ने कहा कि पढ़ाई पूरी होने पर बताएंगे।
हमे अमेरिका में जॉब और हायर स्टडी दोनो का आफर है आज ही निकलना है ।
आपको बताने आये है कि अब हम वहीं अमेरिका में सैटल हो जाएंगे ,आपभी इधर का जमीन जायदाद बेचकर अगले महीने हमारे साथ ही आकर रहो।
अच्छा डैड अब चलते हैं अभी रश्मि के घर भी जाना है।
तो क्या बहु !गाड़ी से भी नही उतरेगी??
अरे डैड उसे गांव के पॉल्युशन से एलर्जी है इसलिए गाड़ी में ही (ऐ सी )चला कर बैठी है ,अच्छा अब निकलता हूँ बहुत लेट हो गया।
कहकर चेतन ने अपना सामान उठा लिया,,,,,।
बेटा!!!!!
हरपाल सिंग ने दबी आवाज से पुकारा ।
"जी डैड कहो।"
क्या "तुम और बहु "यहीं रहकर एक अस्पताल नही खोल सकते ??मेरे सपनों का अस्पताल ।
मे तुम्हारी शादी भी स्वीकृत कर लूंगा, लड़की की जाती कुल खानदान भी नही पूछूंगा , बस तुम मुझे छोड़कर मत जाओ। ये देखो घर का आंगन जो तुम्हारी माँ ने अपने हाथों से लीपा था ,मैने आज तक उसे बैसा ही रखा है। बहुत गहरी यादें जुड़ी हैं मेरी इस मिट्टी से । मुझसे अलग ना हुआ जाएगा उन यादों से। मैं तेरे हाथ जोड़कर भीख मांगता हूं तू यहीं रह कर अस्पताल खोल ले। मैं अपना सब बेच कर शहर से ज्यादा सुबिधायें तुझे यहीं उपलब्ध करा दूँगा मेरे बेटे।
ओह डैड !!
आप तो बेकार में सेंटी हो रहे हो, मैं लेट हो रहा हूँ आप आराम से सोचना पूरा एक मंथ है आपके पास ,बता देना मुझे सोच समझ कर ।
अच्छा चलता हूँ बाय।
कह कर चेतन झटके से निकल गया।
हरपाल सिंह एकदम सुन्न पड़ गए ,जैसे उन्हें लकवा मार गया हो।
बाहर गाड़ी स्टार्ट होने की आवाज आई , गांव बालों को कुछ समझ नहीं आया कि क्या हुआ डाक्टर बाबू यूं अचानक आये और अचानक चले गए। अंदर जाकर देखा तो हरपाल सिंह जमीन पर उनकी पत्नी के हाथ से लीपे आंगन के कोने में जमीन पर बैठे है एकदम जड़, उनकी आंखों से अश्रु धारा अनवरत वह रही है ।
गांव बाले सन्न रह गए।
करीब तीन दिन बाद चौधरी साब कुछ संयमित हुए और उन्होंने एक वकील बुलाया। और बोले, वकील बाबू मैं अपनी सारी जायदाद से चेतन को बेदखल करके अपनी सारी चल अचल पूंजी से एक ट्रस्ट बनाना चाहता हूं , जिसमे एक अस्पताल और एक धर्मशाला हो ,जहां सस्ते में लोगों को इलाज़ की सारी सुबिधायें मिलें बहुत कम खर्चे पर।
उसका नाम हो ,सरितादेवी आयुष ट्रस्ट।
वकील ने वसीयत तैयार कराई और अस्पताल का काम सुरु हो गया ।
इस बीच चैधरी साब ने चेतन से कोई बात नही की, आज महीने का आखिरी दिन है ,चेतन आज उन्हें लेने आने वाला है।
चैधरी साब अभी अस्पताल के दफ्तर कक्ष का उदघाटन करके लौटे हैं । जहां उनकी पत्नी और उनकी मूर्तियां बनी हैं। उनकी ही इच्छा थी कि ये काम एक महीने में हो जाये। और अब उनके मुख पर उदासी मिश्रित गर्व है।
चौधरी साब पत्नी के लीपे आंगन में आकर बैठ गए ,जैसे कोई मुसाफिर मंज़िल पाने पर थक कर प्रसन्नता से बैठ जाता है।
उनके मुख पर प्रसन्नता और गर्व है।
चेतन आ गया , ,,,
डैड चलो मैं आपको लेने आया हूँ , अब आप हमारे साथ ही रहेंगे।
लेकिन उधर से कोई प्रतिक्रिया न पाकर उसने चैधरी साब के कन्धे पर हाथ रखा ,,,, लेकिन ये क्या मुख पर विजय मुस्कान लिए उनकी निष्प्राण देह इनकी पत्नी की याद से लिपट गई। और उनकी निस्वार्थ आत्मा अपना स्वप्न्न पूरा करके अपनी आत्मा अपनी प्राण प्रिया के पास चिरलोक में चली गई। रह गए तो उदास गांव वाले, और पछतावे के भाव लिए निष्ठुर चेतन।
एक ऐंसा पछतावा लिए जो ताउम्र उसके मन पर बोझ रहेगा।
"नृपेंद्र"