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संस्कार...

भलेराम भालू के बच्चे शेर सिंह जी से लड़ रहे थे ,क्या शेरू काका आप भी हमेशा उलझे रहते हो, कभी हमारे साथ खेलते भी नही और यूँ उदास बैठे रहते हो,और पिताजी ने आपको हमारी सुरक्षा के लिए रखा है किंतु आपको तो अपना ही ध्यान नहीं रहता।
तभी भोलू भालू कहीं से आ गए और बच्चों से कहने लगे, क्या है ये सब?? ऐंसे बात करते हैं अपनो से बड़ो से, यही संस्कार दिए हैं हमने तुम लोगों को।
लेकिन पापा ये तो हमारे नोकर ही हैं ना, दोनो बच्चे एक साथ कहने लगे।
देखो बच्चों किसी के काम से उसकी हैसियत का कभी अंदाज मत लगाओ क्या पता कोई मजबूरी उसे छोटा काम करने पर मजबूर कर रही हो।
लेकिन शेरू काका की क्या मजबूरी है पापा , बच्चों ने पूछा।
आओ मेरे साथ आज मैं तुम्हे इनकी कहानी सुनाता हूँ,भोलू ने कहा।
गुफा के अंदर जाकर भोलू ने शेर सिंह की कहानी बताना शुरू किया,,
देखो बच्चों श्री शेर सिंह सभी पशुओं में श्रेष्ठ हैं जिन्हें वनराज कहा जाता है।
हमारे शेरसिंह जी उत्तम वन के राजा हुए करते थे उनके दो बच्चे थे एक बेटा और एक बेटी।
शेर सिंह जी ने अपने बेटे को शिकार और अन्य चपलता सीखने के लिए अपने मंत्री वाघ के पास भेज दिया ,सब कुछ ठीक चल रहा था।
एक दिन एक सियार शेर सिंह की सेवा में आया और अपनी चापलूसी से उनका विश्वस्त बन गया।
वह उनके बच्चों के साथ खेलता शेर सिंह ने कभी उनमे भेदभाव नहीं किया ।
एक दिन उनका बेटा उनके सामने वाघ की बेटी के साथ आ कर खड़ा हो गया और बोला पिताजी हम दोनों ने शादी कर ली अब से हुन साथ ही रहेंगे, शेर सिंह जी ने उसे बाबत समझाया कि बेटा हमारा ओर बाघों के कोई मेल नही है
आगे बच्चे भी शंकर वर्ण के होंगे बहुत परेशानी होगी और बाकी समाज भी हमें ताने मरेगा। तुम्हे तो पता है हमारा समाज और संस्कार कितने सनातन हैं।
किन्तु उनके बेटे ने उनकी एक न सुनी ज्यादा समझाने पर वह राज्य छोड़कर कहीं और चला गया बेचारे शेर सिंह कुछ न कर सके बस उन्होंने ये सोच कर सन्तोष कर लिया कि अपनी जाति ना सही बाघ हैं तो उनके समाज के ही कभी तो बेटा लौट ही आएगा।

अभी शेर सिंह बेटे के गम से उबरे भी ना थे कि एक दिन उनकी बेटी स्यार के साथ आ कर कहने लगी पिता जी हमें इनसे विवाह करना है।
शेर सिंह जी के तो पैरों तले से जैसे जमीन ही निकल गई, उनकी पत्नी ने बेटी को डाँट लगा दी, शादी विवाह मज़ाक है क्या जो किसी से भी कर लो अरे जाती न सही समझ का तो ख्याल करो आखिर हमें रहना तो इसी समाज में है।
और हमारे पूर्वज कह गए हैं कि शंकर वर्ण की संतान जब जब पैदा हुई हैं विनाश ही होता है।
अरे स्यार का खून क्या कभी  शेर के गुण रख सकता है।
और फिर इनका रहना खाना रीति रिवाज भी तो बहुत भिन्न होंगे तुम कैसे ढल पयोगी शेर होकर स्यार समाज में।
किन्तु इनकी बेटी ने इनकी एक न सुनी और चली गई घर छोड़ कर सियार के साथ।
इसी गम में इनकी पत्नी बीमार रहने लगी और एक दिन उसने भी इनका साथ छोड़ दिया, इधर पूरा शेर बाघ ओर चीता समाज एक जुट होकर इनके विपक्ष में ख़ड़ा हो गया और लगे इनको रोज ताने मारने की जो शेर अपनी बेटी के सियार संग भागने पर भी कुछ नहीं कर पाया वह राज्य की सुरक्षा क्या कर पायेगा इन्हें अब राजा रहने का कोई अधिकार नहीं।
अरे इन्हें शर्म भी नही आती लोगों के सामने आने पर इतनी कालिख पुत गई मुंह पर फिर भी शान से मुंह दिखाते फिरते है, गुलदार ने कहा।
और एक दिन दुखी होकर बेचारे शेर सिंह जी रात के अंधेरे में अपना  राज्य छोड़ आये।
लेकिन पप्पा शेर की बेटी सियार के संग कैसे राह सकती है उनका तो कोई मेल ही नहीं है, जिस शेर की सिर्फ दहाड़ से सारा जंगल हिलता हो उसकी बेटी साबस डरपोक सियारो के साथ,, बच्चे कुछ परेशान से हो गए।
प्यार के नाम का अंधापन ये सब सोचने की क्षमता कहाँ छोड़ता है मेरे बच्चों उस समय तो हर शुभचिंतक शत्रुतुल्य नज़र आता है, भोलू ने कहा।
किन्तु पिता जी शेर सिह जी की बेटी कैसे राह पाई सियार समाज मे?उसे तो बहुत सी समस्याएं आई होंगी, बच्चो को कोतुहल हुआ।

यही हुआ मेरे बच्चों कुछ दिन तो चला किन्तु जो शेरनी ताजा शिकार खाने में भी नाक सिकोड़ती थी जल्द ही सियार ने इसके सामने सूखी हड्डियां रख दीं, तो वह नाराज होकर बोली यह क्या है हमारे यहां तो हमने तुम्हे भी कभी हड्डी नही चूसने दी और तुम हमारे सामने ये,,,
तो सियार बोला यहां तो यही मिलेगा चुप चाप से खा ले वरना मरम्मत कर दूंगा,
क्या!! शेरनी अवाक रह गई किन्तु उसने हड्डियों को हाथ नही लगाया, लगाती भी कैसे उसे तो ताज़ा शिकार खाने की आदत थी तो उसने कहा तुमसे नहीं होता तो मैं खुद शिकार कर लूँगी अपने लिए।
किन्तु उसकी इस बात पर पूरा सियार परिवार उसके खिलाफ हो गया, सियार की मां बोली, ऐ लड़की हमारे यहां पर्दा प्रथा है घर की बहुएं यूँ खुले में शिकार करती नहीं घूमती चुप चाप जो मिल रहा है खाले नहीं तो,,,
नहीं तो क्या?? शेरनी का ज़मीर जाग उठा अपनी औकात देखी तुम लोगों ने कभी,??
अरे में शेरनी हूँ और तुम लोग तो मेरेे यहां नोकर बनने के भी लायक नहीं हो, शेरनी तमक कर बोली।
उसकी बात सुनकर सारे सियार हँसने लगे और बोले शेरनी नहीं ,,अब तू सियारनी है चुप चाप से हमारे समाज के कायदे में रह वरना अच्छा नहीं होगा।
क्या कर लोगे तुम लोग ??अरे तुम सबको तो मैं अकेली ही काफी हूँ, कहकर शेरनी गुर्रा उठी।
किन्तु आठ दस सियार उस पर पिल पड़े वे उसे बेइज्जत कर रहे थे और जिस सियार से प्रेम करके वह अपना घर अपना समाज छोड़ आई थी वह उनका साथ दे रहा था , शेरनी की आत्मा कराह उठी ,अब उसे अपनी भूल का एहसास हो रहा था किंतु अब बहुत देर हो चुकी थी अब सब खत्म हो चुका था।
अपनी इज्जत बचाने की जद्दोजहद में शेरनी चार पांच सियारों को खत्म कर चुकी थी जिनमे एक उसका कथित प्रेमी भी था।
किन्तु इस लड़ाई में वह भी बहुत घायल हो चुकी थी और जब तक शेर सिंह जी वहां पहुंचे वह अंतिम सांस ले रही थी।
इन्हें देखकर उसने पछतावे का अंतिम आंसू गिराया और दुनिया छोड़ गई।
उस सदमें में शेर सिंह जी अपनी जान देने ही वाले थे कि मैंने पहुंच कर इन्हें संभाल लिया और अपनी पुरानी दोस्ती का वास्ता देकर यहां ले आया।
ये हमारे नोकर नहीं हैं बच्चों ये तो राजा हैं भोलू ने गर्व से कहा, तब तक शेर सिंह भी आ गए जो उनकी सारी बातें सुन रहे थे।
दोनो बच्चे शेर सिंह से क्षमा मांगने लगे कि काका जी हमसे भूल हो गई हम आपको समझ नहीं पाए, और शेर सिंह ने उन्हें गले लगाते हुए कहा, भाई भोलू बस यही एक चीज़ मैं अपने बच्चों को नही दे पाया जो तुम देते हो संस्कार
और जो हर मां बाप को अपने बच्चों को देने चाहिएँ।
(ये कहानी बस एक कल्पना है इसे मनोरंजन के रूप में ही लें)

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