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ईश्वर की मर्जी

ऐसा आपने लोगों को अक्सर कहते हुए सुना होगा कि ईश्वर की मर्जी के बिना एक पत्ता भी नहीं हिल सकता। इस सिद्धांत को मानने वाले लोगों के अनुसार, इस सृष्टि में जो भी घटना घटती है उसके पीछे ईश्वर ही जिम्मेवार है। अर्थात ईश्वर की मर्जी के बिना कोई भी घटना इस जगत में घट हीं नहीं सकती।


यदि इस सिद्धांत को हैं हम सही मान बैठें, तो इसके बड़े दुष्परिणाम हो सकते हैं। यदि कोई अपराधी किसी की हत्या करता है तो इस सिद्धांत का उपयोग करते हुए अपनी जिम्मेदारी से बच जाता है और सारी की सारी जिम्मेवारी ईश्वर को सौंप देता है। यदि कोई चोर चोरी करें तो उसमें भी उस चोर की कोई जिम्मेदारी नहीं बनती क्योंकि इस सिद्धांत के अनुसार कोई भी घटना ईश्वर की मर्जी के बिना घट ही नहीं सकती। अर्थात इस जगत में जो भी अच्छे या बुरे कर्म हो रहे हैं आपके पीछे ईश्वर ही है। इस तरह के सिद्धांत एक आदमी को दुविधा की स्थिति में डाल देता है। इस सृष्टि में इतनी हिंसा हो रही है, इतने अपराध हो रहें है क्या इन सब के लिए ईश्वर ही जिम्मेवार हैं?


एक बार श्री रामकृष्ण परमहंस जी से उनके शिष्य ने इसी तरह का एक प्रश्न पूछा था। पूछा था कि इस जगत में घटने वाली सारी घटनाओं के लिए यदि ईश्वर ही कारण है, तो फिर एक आम आदमी की क्या जिम्मेवारी है? जगत में कोई हिंसा हो रही है, कोई अपराध हो रहा है, तो निश्चित ही तरीके से इसमें एक आम आदमी की कोई जवाबदेही नहीं है, क्योंकि इस जगत में ईश्वर की मर्जी के बिना तो एक पत्ता भी नहीं हिल सकता। रामकृष्ण परमहंस के उत्तर ने इन सारी शंकाओं को निर्मूल कर दिया।


रामकृष्ण परमहंस जी ने कहा कि एक गाय एक खूंटी में बंधी होती है। उस गाय का गर्दन एक रस्सी के द्वारा एक निश्चित स्थिति में बंधा हुआ रहता है। इस कारण गाय एक परिधि के भीतर उस खूंटी से बंधी हुई घूम सकती है ,या कोई भी काम कर सकती है। यह बात तय है कि वह उस परिधि के बाहर कुछ भी नहीं कर सकती। लेकिन उस परिधि के भीतर का जितना जगह है, उसमे अपनी ईक्षानुसार कुछ भी करने को स्वतंत्र है।


ठीक इसी तरीके से ईश्वर ने भी आदमी की गर्दन कुछ विशेष तरह के नियमों के अंदर डाल रखा है। आदमी का शरीर उन विशेष तरह के नियमों के अंदर ही काम कर सकता है। कि यदि आदमी आग में जाएगा तो जल जाएगा। यदि पानी में जाएगा करने की कोशिश करनी ही पड़ेगी अन्यथा वह डूब कर मर जाएगा। इस तरह से इस सृष्टि में अनगिनत ऐसे नियम है जिसका पालन करते हुए एक आदमी अपना जीवन व्यतीत करता है।


जिस तरीके से एक गाय के पास यह पूरी स्वतंत्रता है कि वह एक परिधि के भीतर कुछ भी करें। अपनी इच्छा के अनुसार गाय अपनी परिधि के भीतर कुछ भी करने को स्वतंत्र है। उस परिधि के भीतर गाय जो कुछ भी करती है उसके परिणाम उसको भुगतने होते हैं। यदि अपने दायरे के भीतर वह जहरीली वस्तु को खाती है तो इसे उसके परिणाम इस गाय को ही भुगतने होते हैं। अपने परिधि के भीतर वह अपने मालिक को सिंह से मारने की कोशिश करें तो इसके परिणाम उसको ही भुगतने होंगे।


ठीक इसी तरह से आदमी को भी अपनी इच्छा अनुसार कुछ भी करने की स्वतंत्रता है, पर वह ईश्वर के द्वारा बनाए गए नियमों का उल्लंघन नहीं कर सकता। यदि वह ईश्वर के द्वारा बनाए गए नियमों का पालन करता है और अपनी स्वतंत्रता का उपयोग गलत कर्म करने के लिए करता है तो निश्चित रुप से परिणाम उसको ही भुगतने होंगे। इस सृष्टि में जितनी भी हिंसा हो रही है या जितने भी अपराध हो रहे हैं उसमे ईश्वर की कोई मर्जी शामिल नहीं है। यह सारी हिंसा है , यह सारे अपराध एक व्यक्ति के द्वारा किए गए अपनी स्वतंत्रता के अधिकार के दुरुपयोग का परिणाम है। यदि कोई एक आदमी अपनी इच्छा से कोई अपराध करेगा तो निश्चित रुप से इसकी जिम्मेवारी एक आदमी की ही बनती है ईश्वर की नहीं।


यह बात सही है कि ईश्वर की मर्जी के बिना इस जगत में कुछ भी नहीं घट सकता। यह बात भी सही है कि ईश्वर की मर्जी के बिना एक पत्ता भी नहीं हिल सकता। पर वह पत्ता कैसे हिलेगा या किस दिशा में मिलेगा इसपर ईश्वर का कोई भी अधिकार नहीं। हर एक पत्ता अपनी इच्छा के अनुसार अपनी दिशा में हिलने को स्वतंत्र है, और हर एक पत्ते को अपनी इस स्वतंत्रता का का उपयोग करने के कारण जो भी सुपरिणाम या दुष्परिणाम होते हैं, उसे स्वयं ही भुगतने होते हैं।


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