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लव स्ट्रीट

वक्त न जाने कब करवटें बदल कर बाल्य अवस्था से युवा अवस्था में प्रवेश कर चुका था। कोमल गालो पर भूरी-भूरी सुनहरी दाढ़ियों संग मुलायम-मुलायम मूँछें अपनी अस्तित्व बढ़ाने को तत्पर्य था। उम्र का सोलह सावन देख चुका अक्षत अपने देह विन्यास में आये अचानक परिवर्तन से बहुत ज्यादा ही इक्साइटेड था। आखों में अजीब सी चमक!!! एकदम मदमस्त हाथी के समान, हमेशा ख्याली घोड़े पर सवार। दिल में झिंग-झिंग-झिंग-झिनक बजने लगा था। टवैल्थ क्लास का सबसे क्यूट माचो बॉय जो पूरे स्कूल के लड़कियों की दिल की धड़कन बना हुआ था। तत्काल शारिरिक परिवर्तन से अक्षत उम्र से पहले मच्योर मेन के तरह व्यवहार करने की कोशिस करता रहता। शायद यही इस उम्र की खासियत भी है। भँवरों सा गुंजन, कलियों पर मडराना, दिल हमेशा अशिकी की चाहे गीत गाना। पर यहाँ ये सब तो था लेकिन इसके उल्टा। कलियाँ इंताज़ार करती थी अक्षत के एक मुस्कान की। पलक पाँवरें बिछाए कई लड़कियाँ तो अक्षत मियाँ के इश्क में कमली हुए जा रही थी। काश एक नज़र दे देता तो मानों कुड़ियों के दिल में झंकार बीट डिस्को करने लग जाता।


वैसे तो हरियाणे के छोड़े में एक खासियत है और वो ये कि कुदरत उन्हें गज़ब की रूप सज्जा से सदैव नवाजते हैं। लड़कियाँ जहाँ अधिकांशतः मर्दानी प्रवृति की होती वहीं लड़के कोमल हृदय, सुंदर सुगठित मजबूत बदन व आकर्षक पौरुषत्व के धनिक। पर अपना अक्षत तो कुछ विशेष ही सोना मुंडा था। पढ़ाई में जितना इंटेलिजेंट उस से कहीं ज्यादा मुख-मंडल पर कांति। फिर क्यों न मरती कुड़ियाँ।


स्पोर्टस वालों के राज्य में अक्षत मियाँ को रेडियो जॉकी का भूत सवार था। रूप रंग के साथ-साथ आवाजों का भी धनी जो था। अमीन स्यानी और निलेश मिश्रा का अनुशरणकर्ता बिल्कुल पगला सा रेडियो मिर्ची के नावेद के जैसा। हर-पल मिमीकिरी करने  में व्यस्त................॥


उफ्फ्फ्फ........!!! इस अदा पर तो कोई मर जाये। पर अपने अक्षत साहब का दिल तो बगल के मुहल्ले की नगर-निगम विद्यालय में पढ़ने वाली लड़की अनुवा पर जा कर अटक गया था। गौरवर्णी, बिलौरी आखों वाली अनुवा उत्तर प्रदेश की रहने वाली थी। हरियाणा में अपने परिवार के संग रहती थी। पिता साईकिल कंपनी में कार्यरत थे। एवरेज कद-काठी के पिता की खूबसूरत बिटिया। टेंथ पास करके एलेवेंथ में प्रवेश ली थी। स्कूल से आते हुए अक्षत का नज़र अनुवा पर पड़ा था। क्या दिलकश अंदाज था.............। घुटनों तक लंबी चोटी, आसमानी कुर्ती-पजामें पर नागिन सी बलखाती हुई हिरणी के चाल में अपने घर को जा रही थी। सखियों के झुंड में मानों खरगोश उच्छवास भर रहा हो। रंग तो देखो जरा...........!!!! दूध से मल-मल कर नहा आयी हो जैसे। ओस के बूँद सी शीतल कांति देख अक्षत का दिल देखते ही फिसल गया था।


रातों की नींदे दिन का चैन, दिल का करार सबकुछ खो आया था शायद उस "लव-स्ट्रीट" में जहाँ स्कूली युगल प्रेमियों का जमावाड़ा लगा करता था।


"लव-स्ट्रीट" हाँ..........!!!  स्कूलिया आशिक "लव-स्ट्रीट" ही कहा करते थे उस गली को। बी-ब्लॉक, सी-ब्लॉक और दिल्ली-डेवियर्स स्कूल के पिछुवारे वाली गली.............!!! जहाँ तीनों स्कूल के आशिकों का पिकनिक स्पॉट था। स्कूल के छूट्टी के बाद सब ऐसे वहाँ आकर मिला करते थे जैसे "कब के बिछुड़े हुए" आज यहाँ आकर मिले हो। जन्मों का प्यार मिनटों में निपटा लिया जाता "लव-स्ट्रीट" में॥

           कोई बाँहों में भर बैठा।
                    कोई खुद मे ही था ऐंठा॥
          कोई उँगली घुमा-घुमा कर।
                    खेलें गेसू से खेल सुघर॥
          कहीं प्यास है तन पाने का।
               कहीं अरज प्रेम निभाने का॥
          कोई मनुहार करे प्यार' में।
                 कोई माँगे दिल इबादत में॥
          मौसम दे रहा चित्त धोखा।
              जब सतरंगी फिज़ा अनोखा॥
          आफरीन सी लगती चाहत।
           फिर आशिकी बना अब आदत॥

अब इसे गलती कहें या कहें रव की इनायत जो इत्तेफाकन दोनों पहुँच गये थे "लव-स्ट्रीट" में। उम्र की इनायत, दोस्तों की आदत, खींच कर ले गया था दोनों को "लव-स्ट्रीट" में........... जहाँ देखते ही दोनों का अकेला तन्हा दिल एक बार जोर से ट्रेन  का हॉर्न बजाने लगा था। दिल के साईकिल के हैंडिल पर अक्षत अनुवा को बैठा कर पूरा शहर घूमा देना चाह रहा था एक पल में; पर क्या ये संभव था अचनाक.....................!!!

हा हा हा हा.............!!!मन के अंदर का हँसी जो लब पर बिखर कर रह मचल उठी। और निकला एक एहसास..............

फैल कर जू-जू उड़े जब प्यार तेरा हमसफर बन-
सोचिए   फिर   राब्ता-ए-गुल   का   क्या   होगा॥

वक्त ने चरखी चला, पहली मुलाकात को परवान भर दिया!!! इश्क का जादू सिर चढ़ कर बोलने लगा। हर रोज का मुलाकत अब हो गया था आम बात। दोनों आशिकी में बिना पंख के गगन को चूम रहे थे।
और तभी एक सच जिससे अक्षत अभी तक बेखबर था का खुलासा हुआ..................

न क्यों बातों-बातों में अक्षत उस दिन अनुवा को उस "लव-स्ट्रीट" की कहानी सुनाने लगा जो उसने अपने दोस्तों से सुना था। काफी भावुक होकर अनुवा सुने जा रही थी कैसे यहाँ कभी बहुत सुंदर बगीचा हुआ करता था। सुंदर-सुंदर फूल-पत्तियों से सजा हुआ। मोर-पपीहे कोयल का गूँज और उसमें एक युगल प्रेमी उच्च कुल की विजेता चौधरी और हरिजन राघव रत्नाकर का प्यार पनपा था। साल-दो-साल नहीं बल्कि बचपन से ही दोनो एक दुसरे के प्रति समर्पित थे। राघव का पिता विजेता के घर का नौकर था और अपने मालिक के लिए जान कुर्बान करने वाला वफादार समर्पित यौद्धा जो हमेशा मालिक का ढ़ाल बन सामने खड़ा रहता। और हुआ भी वही................ एक दिन दो जाति गुटों में झगड़ा हुआ जिसका पंचायत विजेता का पिता करने गये थे। पर........ साजिश कुछ और रची जा चुकी थी। मालिक को बचाने में राघव का पिता वहीं सामने से आयी गोली का निवाला बन गया। तब से राघव का ड्योढ़ी में मान-सम्मान का कद बड़ा हो गया था। पिता की कमी न महसूस हो अतः मालिक अपनी निगरानी में राघव का परवरिश करवाने लगे। पर.........

पर.........."क्या"???  - अनुवा गंभीर मुद्रा में बोल उठी॥

पर.............  पर चौधरी साहब की एक बेटी भी थी जो हमेशा उस नौकर के बेटे संग समय बिताती थी। शायद ये भूल गये थे चौधरी साहब राघव के बौद्धिक मोह के आगे। बचपन में एक दुसरे का ख़्याल रखना जवानी का प्यार बन गया। कब? कुछ पता ही न चला॥ जो जमाने को खलने लगी। एक नौकर के बेटे के संग चौधरी साहब के बेटी संग इश्क फरमाये ये कहाँ कबूल था जमाने को। और फिर वही हुअा जो लैला-मजनू, हीर-रांझा, सिरीन-फराज़ के संग हुआ॥ चौधरी साहब तक जब ये बातें गयी तो उन्होंने गुस्से में राघव का सिर धर से कलम कर दिया। अचानक हुये वार को समझे बिना ही इस दुनियाँ से जा चुका था। कहते है "लव-स्ट्रीट" के कोने वाले चंदन के पेड़ के नीचे राघव और विजेता का आत्मा रहता है और हर प्यार करने वाले पर अपनी इनायतें रखता है"। - अक्षत बोले जा रहा था और अनुवा बेहोश हो चुकी थी। अनुवा के बेहोशी का अहसास अक्षत को तब हुआ जब अक्षत के सीने से फिसल कर नीचे गिरने लगी।

बेहोश होना अब आम बात हो गया था अनुवा के लिए। कभी भी किसी बात पर अक्सर बेहोश हो जाया करती थी  "लव-स्ट्रीट" के गलियेरे में॥

ज़रा सी आहट पर बेहोश! एक गंभीर समस्या विलेन बनके उनके बीच मुहब्बत के सुनहरी पलों को बिखरा दिया करता॥ बेहोश होना अब अक्षत को खलने लगा था। काफी हिम्मत करके एक दिन वह अनुवा के घर पहुँच गया॥ अक्षत आशिक था एक सच्चा प्यार करने वाला। आखिर कब तक अपनी प्रेयसी को इस हालत में सँभालता और कहाँ तक..............!!!

पहले तो अनुवा की माँ दुत्कार दी लेकिन पिता गंभीरता से अक्षत की बातें सुनी और फिर जो उन्होंने बताया वो सचमुच अक्षत के लिए विदारक पल था।

"बेटा.....!!! एक पिता के तौर पर शायद मैं आपको स्वीकार न करूँ लेकिन एक इंसान होने के नाते मैं आपका कद्र करने लगा हूँ। अनुवा के स्थिति को देखते हुए मौकापरस्त लड़के फायदा उठा सकते थे लेकिन आपने हमारे पास आकर हमसे चिंता व्यक्त की जो बाँकय काबिले तारीफ है। और चूँकि आप सच्चे इंसान है इसलिए आपको यह जनना अत्यंत आवश्यक है कि अनुवा कभी भी बेहोश नहीं होती"॥

अक्षत चौंकते हुए अंकल के तरफ देखने लगा। उसकी आँखें प्रश्न करने लगे। अक्षत के समझ में कुछ न आया। 
बस अबाक था.............

"बेटा.........!!! कभी आपने उसकी बेहोशी पर ध्यान दिया क्या??? वो बेहोशी के अवस्था में भी सबकुछ सुन रही होती है समझ रही होती है। वास्तव में वो बेहोश न होकर सो जाया करती है। ये बिमारी जन्मजात ही है बचपन में हम नहीं समझते थे लेकिन जैसे-जैसे वो बड़ी होती गयी हमारे लिए चिंता की विषय बनती गयी। हमने कहाँ-कहाँ नहीं उसका ईलाज करवाया पर हर जगह एक ही बात ये बीमारी कभी ठीक नहीं हो सकती। इस बीमारी को "नार्कोलेप्सी" कहते है। जिसमें रोगी किसी तेज आवाज से, भय से या किसी घटना विशेष को सोचने मात्र से ही सो जाया करते। वही अनुवा के साथ है। शायद कोई घटना आप दोनो के मध्य हुआ होगा जिस कारण वो अक्सर सो जाया करती है"।

अक्षत के समझ में आ चुका था एक ऐसा सच जिसके साथ अब जीवनप्रर्यंत निर्वहन करनी होगी। 
अनुवा अपने जीवन के कड़वे सच से वाकिफ़ अक्षत से खुद में ग्लानी महसूस कर रही थी...........किंतु प्यार तो प्यार है जी.........!!!

अनुवा - "अब जबकि तुम्हें सब मालूम हो गये है तो क्या तुम अनकंफर्टेबल महसूस कर रहे या टाईम पास............

अक्षत - "हा हा हा हा हा..........!!! अनकंफर्टेबल???
--------- क्या तुम जानती हो मैं दुनिया का सबसे खुशनशीब बंदा हूँ।

अनुवा - "वो कैसे"?

अक्षत - (हँसते हुए)"इस से बड़ी खुशनशीबी और क्या हो सकती कि तुम अपने ही घर नें सोयी रहो और मैं अपनी मनमानियाँ करता रहूँ"।

इस छेड़खानी से अनुवा अक्षत को चिमटी काटती हुई लिपट गयी अपने लव के गले से हँसते हुए उसी "लव-स्ट्रीट में॥



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©-राजन-सिंह
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