अथ लेखन चालीसा dilip kumar द्वारा हास्य कथाएं में हिंदी पीडीएफ

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अथ लेखन चालीसा


अथ लेखन चालीसा
चुनाव के विशेष शस्त्रों यानी नारों की दुकान में आपका हार्दिक स्वागत है। दुकान पर न भी आएँ तो भी दूसरे विकल्प उपलब्ध हैं। इस हेतु हमारा प्रतिष्ठान ख्यातिलब्ध है। किसी भी माध्यम से आप हमसे सम्पर्क करिये और अपने काम को लेकर निश्चिन्त हो जाइये। क्योंकि हमारी दुकान में नारे एवं भाषण का काम ठेके पर होता है। जैसे चाहो वैसे कारगर नारे व भाषण लिखवा लो। हमारे नारे व भाषण की धाक सिर्फ अपने प्रदेश में ही नहीं, बल्कि अन्य प्रदेशों में भी है। क्या कहा आपने? वहां की भाषा और समस्या अलग है।

‘‘नहीं महोदय, बिल्कुल गलत’’। भारत देश की अनेकता में एकता हमारे लेखन में सर्वत्र व्याप्त है। हमारे नारे और भाषण हर प्रदेश में कारगर है, क्योंकि हर जगह मतदान होता है और हर जगह मतदाता हैं। मतदाता है तो नारे भी हैं। पूरे भारतवर्ष में अगर विकट समस्यायें हैं तो उनकी काट के लिए लोक लुभावन नारे भी हैं। ये नारे इतने असरदार है कि पूंछिये ही मत। इन नारों की शक्ति का अन्दाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि ये सत्ता उखाड़ते भी हैं और स्थापित भी करते हैं। हम अपने कार्यक्षेत्र यानी चुनावी नारों पर शोध भी करते है और उनका सतत एवं व्यापक मूल्यांकन भी करते हैं। हमें कम मत समझिये, किसी बहुराष्ट्रीय कम्पनी के उत्पाद की भांति हम भी बहुराष्ट्रीय हो चुके हैं यानी कि हमारे नारे विदेशों से भी आते हैं और हम अपने नारे विदेशों को भी भेजते हैं, क्षमा कीजिये बेचते हैं। वैसे तो अपनी व्यापारिक साख की खातिर हम अपने ग्राहकों ने नाम नहीं बताते, फिर भी अगर आपको विश्वास न हो तो अमेरिका में व्हाइट हाउस से पत्र-व्यवहार करके पूंछ लीजिये कि ओबामा को अमेरिकी राष्ट्रपति चुनाव में ‘‘यस, वी कैन’’ (हाँ, हम कर सकते हैं) का नारा हमने ही दिया था। हमारे नारे हमारी भाँति ही राष्ट्र भक्ति से ओत-प्रोत होते हैं जिस तरह हम शत्रु देशों जैसे चीन, पाकिस्तान को नारे नहीं बेचते उसी तरह हमारे नारे भी शत्रु दलों यानी विपक्षी पार्टियों को नहीं मिल सकते। हमारे हर नारे पर हमारा कापीराइट है। मान लीजिये हमारे नारे से चुनाव जीतकर कोई नेता अगर विपक्षी दल में जा मिले तो भी वो हमारे नारे का इस्तेमाल वहाँ खुलकर नहीं कर सकता। क्योंकि हम अपने नारे प्रत्याशी को नहीं बल्कि पार्टियों को बेचते हैं। निराश मत होइये और विश्वास करिये हम अपने प्रत्येक ग्राहक के प्रति बहुत वफादार हैं। जिसने हमारा सामान खरीद लिया उससे हमारा प्रेम-बन्धन कभी भी नहीं टूटता। जैसे कि चुनाव जीतने के बाद या पहले नेता किसी दूसरी पार्टी में चला जाता है और केन्द्रीय नेतृत्व में उसे एक धांसू नारे का आवंटन कर दिया हो, तो भी उस नारा आवंटित व्यक्ति को हम अपनी व्यापारिक निष्ठा दिखाते हुए उसी पुराने नारे के टक्कर का एक नया नारा तुरन्त लिखकर दे देते हैं, वो भी आधे दामों में। निर्दलीय एवं अक्सर दल-बदल करते रहने वाले नेताओं पर हमारी ये शर्तें लागू नहीं होती क्योंकि वे हमारे नियमित ग्राहक हैं। उनके लिये हमने और कई प्रोत्साहन योजनायें चला रखी हैं।

हम बेरोजगारों और किसानों के लिए भी नारे लिखते हैं, मगर चुनावी मौसम में कदापि नहीं। आफ सीजन में हम किसानों और बेरोजगारों के लिए बहुत रियायती दर पर नारे लिखते हैं मगर पूरा पैसा एडवांस ओर नकद ही लेते हैं। न उधार, न चेक। क्योंकि कि वे बहुत ही खराब ग्राहक सिद्ध होते हैं। एक बार उनकी माँगे मान लेने के बाद वे कभी लौटकर भुगतान करने नहीं आते। पैसा न देने के अलावा बेरोजगारों और किसानों में एक कमी और है कि ये आग जनी, तोड़-फोड़ और आत्महत्या आदि में हमारे नारों का बढ़-चढ़ कर प्रयोग करते हैं, जिससे हमारा विज्ञापन तो मुफ्त में होता है मगर नकारात्मक। लोग हमसे घिन्नाने लगते हैं ‘कि देखो इसका लिखा हुआ नारा लगाते हुए उसने आत्म हत्या कर ली’’। ये हमारे व्यापार के लिए बहुत बुरी बात है कई बार पुलिस की भी समस्या हो जाती है, भला हो रिश्वत का जो हर घाव भर देती है। विपक्षी दुकानदारों ने हमारा दुष्प्रचार किया और हम पर संगीन आरोप लगाये कि हमारे प्रोत्साहन से ही ये आत्महत्यायें हुई है। वो तो कहिए कि हमने एक शोक-संतप्त भाषण लिखकर कुशल अभिनेताओं से वहां वाचन कराया तब जाकर मामला शांत हुआ। दुख के साथ बताना पड़ रहा है कि राजनीतिक दलों से जो कुछ भी कमाया था वो सब पुलिस को देना पड़ा। तब से किसान और बेरोजगार हमें फूटी आँख भी नहीं सुहाते।

हमारे नारों की विविधता एवं महत्व बताने के चक्कर में हम अपने लेखन की दुकान का एक दूसरा महत्वपूर्ण उत्पाद बताना भूल ही गये। वो है हमारा लच्छेदार भाषण। चुनावी भाषण लिखने में हमारा कोई मुकाबला नहीं। विगत चुनाव में हमारे भाषण की इतनी धूम रही कि हमारे भाषणों का डंका बजाते हुए आज भी कई मंत्री महत्वपूर्ण दौरों से पहले हमारी सेवायें नहीं भूलते। हमारे भाषण इतने ओजस्वी एवं कारगर साबित हुए कि एक पूर्वमन्त्री जी ने अपने जनसम्पर्क अभियान का ठेका हमें ही दे दिया था। चुनावी भाषण में हम विपक्षी दल के नेताओं के चरित्र-हनन पर विशेष ध्यान देते हैं, जिससे जनता मंहगाई, विकास और बेरोजगारी आदि पर विशेष ध्यान न दे सके। हमारे लिए नारे एवं भाषण का लेखन केवल रोजगार का जरिया नहीं बल्कि मिशन भी है। नये नेताओं हेतु हम लिखे हुए भाषणों को बोलने के लिए अभ्यास सत्र भी आयोजित करते हैं, जिसमें राजनीति के पुराने एवं धुरंधर भाषणबाज प्रशिक्षुओं को भाषण देने की कला सिखाते हैं। कुछ लोकप्रिय विधायें हैं जैसे बिना क्रीम के आँसू निकालना, रूंधे गले से बोलना, विपक्षी नेताओं की हू-ब-हू नकल उतारना यानी मिमिक्री करना एवं गोल-मोल शब्दों में आरोप लगाना। ताकि चुनाव आयोग या अदालत में मान हानि का मुकदमा न चल सके। कुछ विशेष अवसरों पर हम नारे लगाने वाले लोगों एवं भाषणों पर तालियाँ बजाने वाले लोगों का भी प्रबन्ध करते हैं। वैसे तो इस देश में हमारे नारे-भाषण पर तालियां बजाने वाले निठल्लुओं की कमी नहीं है फिर भी हमारी कुछ प्रमुख सशुल्क सेवाओं में राजनीतिक रैलियों में जिन्दाबाद आदि के नारे लगाने में विशेषज्ञता भी है।

हमारे पास उद्घाटन, शिलान्यास एवं लोकार्पण के अवसर के आजमाये हुये कुछ बेजोड़ भाषण भी हैं। यह तत्काल उपलब्ध कराये जाते हैं। टेªनों के तत्काल टिकट की तरह तत्काल की तरह इनका शुल्क भी थोड़ा ज्यादा है। यह भाषण इतने लोकप्रिय एवं सर्वमान्य हैं कि भाषणों में सिर्फ व्यक्तियों के नाम एवं जगह बदल दीजिये और फास्ट-फूड की तरह ये तुरन्त तैयार हो जाते हैं। आफ सीजन में हम वरिष्ठ अधिकारियों के पत्नियों की कविताएं भी छद्म नाम से लिखते हैं और उनकी पुस्तक के प्रकाशन से पुरस्कार भाषण तक का सारा प्रबन्ध हम बड़ी तत्परता एवं सफलता से कहते हैं। अगर हमें रकम तगड़ी दी जाये तो हम अपने बुद्धजीवियों के द्वारा देश की नामी गिरामी पत्रिकाओं एवं अखबारों में छद्म एवं झूठे नामों से लेख भी प्रकाशित करवाते हैं जिससे किसी की भी छवि स्थाई रूप से धूमिल हो सकती है। एक बार जिसने हमारी सदस्यता ले ली हम आजीवन उसके बच्चों का स्कूलों में निबन्ध कविता वाद-विवाद आदि मुफ्त में लिखकर देते हैं। अवकाश प्राप्त एवं जीवन भर बदनाम रहे अधिकारियों हेतु भी हमारे पास एक विशेष योजना है जिसमें हम उनके समय का सदुपयोग करते हुए उन्हें लेखन सिखा देते हैं। जिससे वे सदाचार का प्रचार-प्रसार करते हुए कुछ ही वर्षों में अमरता एवं महानता के दावेदारों में शामिल हो जाते हैं, जिससे अतीत में किए गये उनके घपले-घोटाले और कदाचार को लोग भूल जाये। किसी धनवान व्यक्ति के मृत्यु की शोक सभा में हम संवेदनशील भाषण तैयार करवाते हैं जिससे उनके महान गुणों का उल्लेख विशेष तौर से किया जाता है भले ही वो धन-सम्पदा उन्होंने लूट-खसोट एवं बेईमानी से अर्जित की हो। विशेष परिस्थितियों में हमारे आवासीय कार्यालय के निकट रहने वाले लोगों के बच्चों के गृह कार्य भी हम कर देते हैं वो भी बहुत कम दरों पर। अब क्या ये पुनः बताने की आवश्यकता है क्या? जिस प्रकार भारत अपने पड़ोसी देशों पर एक तरफा उदारता करता रहता है उसी तरह हम भी अपने पड़ोसियों को उदारता एवं रियायत का एक तरफा प्रस्ताव देते रहते हैं।

कृपया ध्यान दीजिये महान एवं सज्जन व्यक्तियों के बारे में निःशुल्क लेखन कर पाने में हम असमर्थ हैं इसलिए कृपा करके भारत की संयुक्त राष्ट्र की सुरक्षा परिषद में दावेदारी की तरह दबाव न बनायें और पुनः
‘‘एक बार सेवा का अवसर दें।’’
@दिलीप कुमार