सम्बोधन Krishna manu द्वारा लघुकथा में हिंदी पीडीएफ

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सम्बोधन

//सम्बोधन//

रात काफी बीत चुकी थी। वह सोच रहा था। उसकी निगाह सामने की दीवार घड़ी पर टंगी थी। कभी-कभी सामने रखे मोबाइल पर भी नजर फेर लेता था।

आज  वह तीन दिनो से चल रहे 'चैट चैट' के खेल का अंत कर देना चाहता था। बहुत हुआ मजाक। उसकी सोच दो दिनो पूर्व की घटना पर केंद्रित हो गई। उस दिन भी रात कुछ गहरी हो चली थी।  वह एक मैटर पोस्ट कर के ही सोना चाहता था। उनकी उंगलियां तेजी के साथ मोबाइल के की बोर्ड पर चल रही थीं कि तभी झन्न की आवाज के साथ गोल वृत में एक कमसीन लड़की की सुंदर छवि स्क्रीन पर प्रकट हुई। वह प्रिंट करना छोड़कर उत्सुकतावश टैप किया। मैसेंजर पर आते ही वह उस नाम को पहचान गया। अभी दो दिन पहले ही तो उसने उसके मित्र अनुरोध की स्वीकृत दी थी और आज चैट की पहल।

- हाय।
- हलो।

चैटिंग शुरू हो चुकी थी।

- कैसे हो?
- ठीक हूं।
- इतनी रात तक जगे हो। नींद नहीं आ रही।

बेमन की चैटिंग मेें उसे थोड़ी रूची जग गई थी।

- तुम भी तो जगी हो।
- मैं एक्जाम की तैयारी कर रही हूं। और तुम?

- मैं....बस ऐसे ही। नींद नहीं आ रही।
- हा हा हा। आएगी कैसे? टानिक ली?
- टानिक, कैसी टानिक?
- बीवी नहीं है तुम्हारी? सिंगल हो क्या? हा हा हा... ।

फिर हंसी? अब एहसास हुआ लड़की उससे फ्लर्ट कर रही है।एक अंतराल के बाद।

- चुप क्यों हो गए? बुरा लगा क्या?
- नहीं।
- तब ठीक है। एक बात पूछूं, बताओगे?
- हां, पूछो।
- तुम सेक्स पसंद करते है?

उसे काटो तो खून नहीं। सन्न रह गया सवाल देखकर।
उसने सोचा- लड़की मेरा प्रोफाइल नहीं देखी है शायद। भला  सीनियर सिटीजन से कोई लड़की ऐसी बात पूछती है क्या ?

- अरे यार , किस सोच में पड़ गए? सिम्पल सा जवाब है। हां या ना।
वह किंकर्तव्यविमुढ सा सोचता रहा- 'ठीक है फ्लर्ट ही सही। मैं भी तो इस खेल का आनंद लूं।'

- हां , खूब पसंद करता हूं सेक्स। मरते दम तक सेक्स पीछा नहीं छोड़ता।
- हे, तब तो खूब जमेगी हमारी। कोई आ रहा है। मैं फोन ऑफ करती हूं।

उस दिन वह देर तक पहेली बनी लड़की को समझने की कोशिश करता रहा था।

दूसरी रात। ठीक उसी वक्त झन्न के साथ लड़की स्क्रीन पर प्रकट हुई।

- हाय
- हलो
- रात को ठीक से नींद आई थी?
- नहीं ,देर तक जागता रहा था। तुम्हारे बारे में सोचता रहा था।
- सोचने और पाने में फर्क होता है यार।
- मतलब?
- मतलब तुम बुद्धू हो। हा हा हा हा।
- बुद्धू ही सही।

- एक प्रोबलम हो गई।
- क्या हुआ?
- मैं तुम्हें कोई हाट सी गिफ्ट भेजना चाहती थी। अपनी सेल्फी। लेकिन......।
- लेकिन क्या हुआ? भेजो न।
- भेजें कैसे?   नेट पैक खत्म हो रहा है।

उसका माथा ठनका। किसी मित्र से सुना था। आजकल फेक आइ डी द्वारा इसी तरह ऊल्लू बनाकर नेट पैक भरवाया जाता है। ठीक है। सौ पचास से क्या जाता है। लड़की कहां तक जाती है? जरा देखूं तो सही।

- बस दम निकल गया इतने में ही।
- नहीं, फोन नंबर भेज दो। प्रोसेस में भी समय लग जाता है।
उसने पचास रुपए का नेट पैक रिचार्ज कर दिया।

- रिचार्ज हो गया? अब सेल्फी भेज दो।
- कोशिश कर रही हूं।

वह कुछ देर इंतजार करता रहा।

- नहीं भेज पाऊंगी? सारी यार।
- अब क्या हुआ?
- लगता है फोन खराब हो गया। बहुत पुराना था न।
- तब?
- तब क्या? एक फोन भी गिफ्ट नहीं कर सकते। कैसे फ्रेंड हो तुम ?

वह लड़की की चालाकी पर मुस्कुरा उठा।

- हां हां, क्यों नहीं? मंहगा वाला फोन दूंगा जो कभी खराब होगा ही नहीं।
- फिर एकाउंट नम्बर देती हूं। रुपए डाल दो।
- वो तो ठीक है। लेकिन तुम मुझे बदले में क्या दोगी?
- जो चाहिए वो सब दूंगी।
- तो आ जाओ फिर।
- नहीं, तुम आ जाओ। कानपुर इस्ट में रहती हूं।
- ठहराओगी कहां? घर पर।
- ना बाबा, घर पर ममा, भैया रहते हैं
- फिर?
- होटल में कमरा बुक कर लेना। फोन करोगे। मैं आ जाऊंगी।
- चलो फिर ठीक है। बंद करता हूं । कोई आ रहा है।

इस तरह दूसरी रात समाप्त हुई थी। आज तीसरी रात है। उसके चिंतन में अचानक झन्न की आवाज ने ब्रेक लगा दी।

- हाय।
- हलो।
- तुमने रुपए नहीं भेजे। ममा के फोन से चैट कर रही हूं।
- मैं गिफ्ट तुम्हारे हाथ में देना चाहता हूं।
- तुम आ रहे हो क्या?
- हां, रास्ते में हूं।
- ओह यार, इतनी जल्दी।
- हां, संयोग है आफिसियल टूर  निकल आया उधर का। अच्छा छोड़ो। तुम खुश हो न?
- हां हां क्यूं नहीं।
- तुम्हारा गिफ्ट भी है साथ में।
- ओ माई गाड!
- मेरे लिए क्या सोची हो फिर?
- पहले आओ तो सही। जन्नत की सैर कराउंगी।

वह संजीदा हो उठ।

- नहीं बेटी, दोजख मिले या जन्नत। मेरे पांव तो श्मशान की तरफ बढ़ने लगे हैं।

एकाएक चमत्कार सा हो गया। चैटिंग तो बंद हुई ही। वह ब्लाक भी कर दिया गया। ?

✍कृष्ण मनु