इश्क एक अधूरे शब्द की कहानी - 4 Author Pawan Singh द्वारा फिक्शन कहानी में हिंदी पीडीएफ

Featured Books
श्रेणी
शेयर करे

इश्क एक अधूरे शब्द की कहानी - 4

इश्क एक अधूरे शब्द की कहानी

पवन सिंह सिकरवार

  • 4 - अध्याय – पांच साल बाद
  • 5 साल बाद आलोक और साकी काफी बदल चुके थे इन 5 सालो में उन्होंने एक दूसरे को देखना तो दूर बात भी नहीं की थी शायद प्यार की सबसे बड़ी खासियत भी यही होती है की वो हर सूरत में हमारे अंदर बना रहता है इसलिए मेरा तो ये मनाना है की कुछ कहानिया अधूरी शायद इसलिए होती है जिससे उन्हें कोई पूरा कर सके खेर इन सालो में आलोक एक अध्यापक बनकर अपने मां के स्कूल में गरीब बच्चो को पढ़ाने का काम करने लगा

    भले ही उसके स्कूल को अभी तक CBSE से मान्यता नहीं मिली थी लेकिन वह अपनी पूरी कोशिश कर रहा था जिसकी वजह से वो आये दिन शिक्षा मंत्रालय में पत्र लिख के भेजता रहता था उसकी मां उसी स्कूल की प्रधानचार्य थी जो की आलोक के लिए दुखी थी वह हमेशा से आलोक को एक जिम्मेदार लड़के के रूप में देखना चाहती थी औऱ वो आज एक जिम्मेदार लड़का था लेकिन उसकी मां उसके अंदर छुपे वो दर्द को भी समझती थी उसकी उम्र अब शादी की थी लेकिन जब भी आलोक से इस बारे में बात करती तो आलोक बस चुपचाप उठकर चला जाता या ये कह देता की अभी तो स्कूल को CBSE की मान्यता प्राप्त करवानी है

    दूसरी तरफ साकी अब आलोक से नफरत करने लगी थी उसने अपने पुराने दोस्तों के साथ रहना चालू कर दिया था वह इतनी नफरत करती थी की आलोक नाम भी कोई उसके सामने नहीं ले सकता था वह आलोक की दी हुई सभी चीज़ो से जो उसने उसके लिए सस्ती करवाई थी उसने जला दी थी अब वह चिड़चिड़ी हो गई थी और शिक्षा मंत्रालय में एक बड़ी पद की अफसर थी

    वह बस आलोक को उसे अकेला छोड़कर चले जाने की सजा देना चाहती थी वह अपने प्यार की बेज़्ज़ती का बदला लेना चाहती थी वह इस बात को सोच कर रो देती की उसने कितने गलत इंसान से प्यार किया और फिर एकदम से गुस्से में खड़ी होती और अपने कमरे में तोड़ फोड़ कर देती

    उसके पिता को समझ में नहीं आता की उसने सही किया आलोक के बारे में न बता कर या गलत किया लेकिन साकी का गुस्सैल बर्ताव दिनों दिन बस बड़ ही रहा था

    लेकिन दोनों में एक चीज़ अब भी एक जैसी थी और वो था दोनों का शादी न करना शायद यह कारण काफी था अनुमान लगाने के लिए की दोनों के अंदर अभी भी एक दूसरे के लिए प्यार बचा था

    आज आलोक काफी खुश था उसने अपनी क्लास को भी आधे में छोड़ कर घर की तरफ दौड़ लगा दी थी क्योकि मां स्कूल नहीं आई थी इसलिए शायद उन्हें कुछ आलोक को बताना था वह अम्मा अम्मा चिल्लाता हुआ घर में प्रवेश करता है

    अरे क्या हो गया क्यों चिल्ला रहा है

    अरे अम्मा बहुत बड़ी खुशखबरी है इतना बोलकर आलोक अपनी मां को गोद में उठा लेता है

    अरे निचे उतार गिर जाउंगी मै!

    आलोक अपनी मां को निचे उतर देता है!

    अब बताओ क्या हुआ है क्यों इतना खुश हो!

    बहुत जल्द हमारा सपना पूरा होने वाला है अम्मा!

    सपना?

    अरे हाँ अम्मा शिक्षा मंत्रालय से चिठ्ठी आई है की निरीक्षण अधिकारी अगले हफ्ते हमारे स्कूल में आएंगे निरीक्षण करने दिल्ली से

    सच्ची?

    हाँ अम्मा !

    ये तेरी ही मेहनत है मेरे बच्चे

    चलो अम्मा अब मुझे चलना चाहिए स्कूल को और अच्छा बनाना होगा समय भी कम है इतना कह कर आलोक वंहा से चला जाता है

    आलोक पुरे हफ्ते स्कूल को अच्छा बनाने में मेहनत करता है स्कूल में पुताई करना पौधे लगवाना और जगह जगह पर गमले रखवाना, पुस्तकालय में नई पुस्तके मंगवाना आदि आलोक की मेहनत दिख रही थी उसका स्कूल किसी आदर्श विधालय लग रहा था और उसके स्कूल के बारे में कई गाँवो से बच्चे भी पढ़ने आते है

    आखिरकार वो दिन आ ही गया था आलोक और उसकी मां और दो

    प्रबंधक भी स्कूल के दरवाजे पर खड़े थे तभी वंहा एक कार जिसपर भारत सरकार लिखा हुआ था आकर रुकी

    सभी लोगो में काफी उत्साह था तभी कार का दरवाजा खुलता है जिसमे एक लम्बा चौड़ा कद का आदमी बहार आता है और फिर वह उतर कर पीछे वाली सीट का दरवाजा खोलता है उसमे से एक पतली लड़की जिसने साड़ी पहनी हुई थी उतरती है जिससे देखकर आलोक के होश उड़ जाते है ये कोई और नहीं साकी ही थी

    साकी भी आलोक को देखकर चौंक जाती है लेकिन अपने हाव् भाव छुपाते हुए बिलकुल सीधी खड़ी हो जाती है स्कूल प्रबंधक साकी और उस आदमी को माला पहनाते है तभी साकी आलोक की मम्मी की तरफ बढ़कर उन्हें प्रणाम करती है और आलोक की मां भी उसे नमस्ते करती है अब आलोक और साकी पांच सालो बाद फिर आमने सामने थे आलोक काफी खुश था वह बस एकदम से बोलता है साकी तुम

    आपको एक बड़े अधिकारी का नाम लेते हुए शर्म नहीं आती जब आप ही इस तरह से बोलते है तो फिर बच्चो को भी ये ही सिखाते होंगे मै अपने काफी व्यस्त समय से समय निकलकर आई हूँ अगर आपको स्कूल दिखाना है तो कृपया जल्दी कीजिये

    साकी के ऐसे बर्ताव के बाद आलोक मनो जम गया हो उससे लगता था की साकी उससे मिलकर खुश हो गई होगी लेकिन साकी का ऐसे डांटना मानो आलोक को बेज़्ज़ती महसूस हुई

    माफ़ कीजिये मेम ! आप इतनी दूर से आये है पहले कुछ खा लीजिये उसके बाद स्कूल देख लेना आलोक की मां माहौल को सँभालते हुए कहती है

    साकी बस हाँ में सर हिला कर आलोक की मां के साथ आगे बढ़ जाती है सभी लोग प्रधानचार्य के कमरे में बैठकर खाना कहते है आलोक बस एक कोने में खड़ा साकी को देखकर रहा होता है और साकी उससे नजरअंदाज करते हुए बस खाना खाने में व्यस्त थी आलोक समझ जाता है की उसके पिता ने उससे कुछ नहीं बताया है लेकिन आलोक भी ठीक ही समझता है साकी को वो सब न ही पता हो तो ज्यादा अच्छा है इसलिए बस वो चुपचाप देखता रहता है

    बाद मे सभी लोग स्कूल का निरीक्षण करने के लिए उठ बैठते है आलोक सभी को स्कूल के बारे में और स्कूल को दिखाते हुए चलता है आलोक बिलकुल नहीं बदला था अगर किसी बच्चे के जूत्ते के फीते भी खुले होते तो वह बांध देता साकी लेकिन इस बात से दूर बस ये सोच रही थी की इस इंसान ने इतनी बड़ी गलती करने के बाद भी इससे बिलकुल भी फर्क नहीं पड़ा है ये सोच कर तो साकी को और गुस्सा आ रहा था

    अब वह बस आलोक से बदला लेना और उससे सजा देनी की ही सोच रही थी आखिर में आलोक और उसकी मां और साथ के सभी लोग निरिक्षण अधिकारी की रिपोर्ट सुनने के लिए बेचैन थे आलोक निशिचन्त था क्योकि वह जानता था की साकी उसके सपने को नहीं तोड़ेगी और फिर इतने अनुशासित स्कूल प्रकृति का सौंदर्य जंहा फैला हो अब तो आलोक का सपना पूरा हो ही जायेगा आलोक निश्चिंत था

    लेकिन साकी स्कूल की छोटी छोटी गलतिया बता कर मान्यता देने से मना कर देती है आलोक चौंक जाता है उसने इस बारे में बिलकुल नहीं सोचा था लेकिन जब तक आलोक को होश आता है तब तक साकी अपने होटल की तरफ जा चुकी थी आलोक की माँ समझ जाती है की ये ही वो लड़की है जिससे आलोक ने दिल्ली में प्यार किया था वो बस आलोक के कंधे पर हाँथ रखकर कहती है

    वो बस गुस्सा है लेकिन जल्दी मान जाएगी जब उससे सच पता चलिएगा की तू उसे उसकी जान बचाने के लिए बिना मिले चला आया था इतने सुनते ही आलोक अपनी माँ को पकड़कर रोने लगता है उसका सपना एक झटके में टूट जाता है आलोक एक दम से खड़ा होता है और अपने स्कूल के गरीब बच्चो के लिए वो साकी से माफ़ी मागेगा शायद उस गलती के लिए जो उसने साकी के लिए ही की थी

    अगले दिन सुबह तड़के ही आलोक उठ जाता है और उस होटल के सामने खड़ा हो जाता है जंहा साकी रुकी हुई थी साकी जैसे ही दिल्ली रवाना होने के लिए निचे आती है वह आलोक को देखकर रुक जाती है और आलोक भी तुरंत उसके पास जाता है

    साकी ये तुम कैसे कर सकती हो वो गरीब बच्चे है मेरी गलती की सजा तुम उन बच्चो को क्यों दे रही हो

    देखिये मिस्टर आलोक कुमार तिवारी मेने बस अपना काम किया है अगर तुम्हारा स्कूल सीबीएसई की मान्यता के लायक नहीं है तो इसमें मेरी क्या गलती है! इतना कहकर साकी आगे बढ़ जाती है

    आलोक साकी का हाँथ पकड़ लेता है ये तुम गलत कह रही हो मेरा स्कूल मान्यता प्रपात कर सकता है उसकी योग्यता भी है लेकिन तुम बस मुझसे बदला ले रही हो

    हाँ मै ले रही हूँ बदला तुमने मेरा दिल तोडा है इसके आगे तो ये कुछ भी नहीं है आलोक कुमार तिवारी! इतना कह कर साकी चली जाती है आलोक के हांथो से साकी का हाँथ ऐसे फिसल रहा था मानो एक दर्द की आह दोनों के दिल में समा गई हो

    ***