इश्क एक अधूरे शब्द की कहानी - 5 Author Pawan Singh द्वारा फिक्शन कहानी में हिंदी पीडीएफ

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इश्क एक अधूरे शब्द की कहानी - 5

इश्क एक अधूरे शब्द की कहानी

पवन सिंह सिकरवार

  • 5 - अध्याय – प्रेम का अंत
  • सुबह का समय, नई दिल्ली रेलवे स्टेशन के प्लेटफार्म नंबर बारह पर प्रयागराज शताब्दी एक्सप्रेस ट्रैन आकर रुकी, प्लेटफार्म पर चारो तरफ कुली की भीड़ और चाय समोसे के बेचने वालो की आवाजे तभी एक डिब्बे से आलोक प्लेटफार्म पर उतरता है पांच साल से ज्यादा हो गए थे उसे दिल्ली छोड़े और शायद वह वापस भी नहीं आता अगर उसे अपने सपने स्कूल को सीबीएसई की मान्यता प्राप्त करवाने के लिए साकी से मिलना अब मज़बूरी ना होती तो

    आलोक काफी खुश था क्योकि साकी इतनी बड़ी अफसर बन चुकी है लेकिन अब शायद यही उसका सबसे बड़ा दुःख भी था लेकिन वह जानता था की साकी उसे प्यार करती है इसलिए तो आज भी गुस्सा है बस उससे साकी को मानना था लेकिन बिना सच बताये

    तभी आलोक की नजर पवन पद पड़ती है जो उससे लेने आया हुआ था लेकिन पवन का ध्यान अभी आलोक को ढूढ़ने में नहीं एक मैगज़ीन को पड़ने पर ही था तभी आलोक पवन के कंधे पर अपना हाँथ रखता है

    अरे बस करो लेखक साहब पूरी दुनिया में अपनी कहानियो से प्रसिद्ध हो चुके हो अब पढ़ कर क्या कलक्टर बनोगे! आलोक ने हॅसते हुए कहा

    अरे आलोक कुमार तिवारी! कैसा है मेरे भाई

    बढ़िया एकदम!

    चल पहले घर चल खाना खाते हुए बात करेंगे

    चल ठीक है! इतना कहकर दोनों कार में बैठ जाते है

    क्या बात है ठाकुर साहब बड़ी तरक्की की है कार और दिल्ली में घर मतलब मेरा भाई लेखक बन ही गया है

    पढ़ी थी तेरी मेने उपन्यास एडवेंचर ऑफ़ करूँ नायर रहस्य भरतपुर का, क्या कमाल लिखा है भाई मान गए पवन! आलोक ने पवन की तारीफ करते हुए कहा

    धन्यवाद भाई बस आपकी कृपा है! इतना कह कर पवन गाड़ी रोक लेता है पुलिस बेर्रियर लगा कर सभी गाड़ियों को रोक कर चेक कर रही थी तभी धीरे धीरे पवन की गाड़ी की बारी थी लेकिन उसकी गाड़ी पुलिस कमिश्नर ने पहचान ली थी जो की पवन की कहानियो को काफी पसंद करता था इसलिए उसने अपने हवलदार को गाड़ी को जाने के लिए कह दिया

    घर पहुंचे तो आलोक देखता ही रह गया एक बांग्ला जिसमे नौकर चाकर थे जो साफ़ सफाई कर रहे थे, खाने की मेज पर नाश्ता सजा रहे थे। पवन ने कहा हैरान मत हो ये सब करुण नायर का है

    करुण नायर का है मतलब?

    मतलब करुण नायर की किताबों से जो कमाई हुई उसका खेर अब बताओ आलोक कुमार तिवारी पहले तो तुमने उस बिचारी को बिच मंझधार में छोड़ दिया था अब एकदम से उसे मिलने को दिल्ली कैसे आना हुआ

    आलोक पवन को सब बता देता है यार पवन तू ही बता मै उस समय क्या करता उसकी जान ख़तरे में थी मुझे उस समय यही सही लगा भाई इतना कह कर आलोक रोने लगता है आलोक की सबसे बड़ी खासियत शायद यही थी की वह रो लेता था इंसान को दुःख में रो लेना चाहिए उससे इंसान कमजोर नहीं कहलाता वह एक सच्चा इंसान कहलाता है जो दर्द को दर्द की तरह समझता है पवन आलोक को गले लगा लेता है

    देख आलोक कल साकी के ऑफिस जाना और वंहा बात करना हो सकता है की साकी तुम्हे यंहा देखकर पिघल जाये! पवन उसे समझाते हुए कहता है

    आलोक अगले दिन साकी से मिलने उसके ऑफिस जाता है लेकिन साकी उससे नहीं मिलती वह व्यस्त होने का बहाना बना देती है ऐसे पूरा हफ्ता बीत जाता है आलोक का साकी से बात करना तो दूर शक्ल तक नहीं देख पाता इसलिए जैसे ही साकी अपना काम खत्म करके ऑफिस से घर जाने को निकलती है आलोक सामने आकर खड़ा हो जाता है

    तुम्हारी हिम्मत कैसे हुई हमारा रास्ता रोकने की हम चाहे तो तुम्हे पुलिस के हवाले कर सकते है

    बुला लो पुलिस को, कर दो अंदर हमें लेकिन हम बिना अपनी बात किये नहीं जायेंगे! आलोक एकदम निडर होकर कहता है

    अरे साकी तुम तो मेरी जिंदगी का वो पन्ना हो जिसको मेने अपनी खुशियों का गुलाब दे दिया था लेकिन मुझे क्या पता था किताब में रखा हुआ गुलाब अक्सर मुरझा ही जाता है

    तुम इसलिए दुखी हो ना की मै तुम्हे अकेला छोड़कर चला गया था

    और पांच साल बाद भी मुस्करा रहा हु लेकिन साकी तुम भूल जाती हो ये दुनिया राधा का दर्द तो समझती है लेकिन कृष्ण की मुस्कान में दबी राधा की वो बिछड़न का दर्द नहीं जान पाती

    क्यों मै हर बार उस भूल की माफ़ी मांगता रहु तुमसे

    जो मेने सिर्फ तुम्हारे लिए की थी

    साकी के बिना ये आलोक हमेसा ही अधूरा रहिएगा और ऐसे ही अधूरे इश्क का दुनिया उदहारण पेश करती रहयेगी

    की कभी इश्क मत करना क्योकि उसका अंत हमेसा बिछड़न से होता है

    तो मुझे बताओ आलोक कुमार तिवारी क्या भूल थी मेरी क्या भूल थी तुम्हारी क्यों तुम बिना बताये चले गए! साकी ने चिल्लाकर कहा

    मै तुम्हे नहीं बता सकता साकी! आलोक ने गर्दन निचे किये हुए कहा

    तो कान खोलकर सुन लो मिस्टर आलोक कुमार तिवारी तुमसे मुझसे दूर ही जाना चाहते थे न तो ठीक है कल शाम को मेरी सगाई है आ जाना

    इतना कह कर साकी अपनी कार में बैठकर घर चली जाती है लेकिन कार में बैठकर साकी रो रही थी वह जानती थी की आलोक कुछ तो है जो उससे छुपा रहा था और आलोक की आँखों में आंसू थे वो ना तो अपना दर्द साकी को बता सकता था और ना ही उसे किसी की होने से रोक सकता था वह भी घर को रवाना हो जाता है एक टेक्सी पकड़कर लेकिन घर आते ही वह अपने कमरे में जाकर अपना बेग पैक करने लगता है वह कुछ भी हो जाये साकी की सगाई नहीं देख सकता था इसलिए वह भी कल शाम की ट्रैन पकड़ कर वापस इलाहबाद चला जायेगा तभी पीछे से पवन कमरे में आता है

    अरे क्या हुआ आलोक कुमार तिवारी कँहा चल दिए?

    कल की ट्रैन पकड़कर बस वापस इलाहबाद कोई बात नहीं अगर नहीं मिली मान्यता ऐसे ही स्कूल चला लेंगे नहीं चाहिए हमे कोई एहसान

    अरे हुआ क्या बताएगा

    कल शाम को सगाई है उसकी

    तो कल जाकर उसको सच बता दे ना

    नहीं बता सकता मेने उसके पिता को वादा किया है

    अरे वादा ही था ना तुम एक वादे के चक्कर में साकी को किसी और की होते देखते रहोगे अबे बोर्रा गए हो का देखो आलोक कुमार तिवारी कल जाओ और सच बता दो साकी को उसके वाद देखा जायगा की साकी फिर भी किसी और से सगाई करती है या नहीं

    समझे आलोक कुमार तिवारी

    ठीक है कल हम साकी को सच बता देंगे

    ये हुई न बात मेरे भाई चलो अब सो जाओ

    अगले दिन आलोक कुमार तिवारी साकी के घर जाता है दरवाजा खटखटाने पर उसके पिता दरवाजा खोलते है जिससे वह एकदम से चौंक जाते है इतने दिनों बाद आलोक कुमार तिवारी को देखने की शायद उम्मीद नहीं थी

    नमस्ते अंकल

    अरे अंदर आ जाओ आलोक यंहा कैसे ?

    आलोक अंदर आकर सारी बाते उसके पिता को बता देता है उसके पिता घबरा जाते है की कंही आलोक साकी को सब सच ना बता दे और आलोक उनका चेहरा देखकर समझ जाता है

    दिक्कत मत लीजिये अंकल मेने अभी तक साकी को कुछ नहीं बताया है और न ही बताऊंगा मै तो बस आखिरी बार उससे मिलने आया था लेकिन शायद अब वो भी नसीब में नहीं है चलिए मै चलता हूँ अब

    शाम को मुझे इलाहबाद भी जाना है नमस्ते

    इतना कह कर आलोक वंहा से चला जाता है शायद उसके पिता को उसकी गलती का अहसास हो चूका था वह समझ चुके थे

    आलोक वंहा से चला जाता है तभी उससे सामने से साकी नजर आती है लेकिन वह कोई हाव् भाव न दिखाकर सीधा चला जाता था साकी बस आलोक को देखती है

    शाम ढल रही है साकी सजी धजी किसी दुल्हन जैसी प्रतीत हो रही है अपने कमरे में शीशे के सामने वह बैठी रो रही है क्योकि शायद आज वो आलोक को अपने दिल से अलग करने को तैयार हो चुकी थी तभी कमरे में साकी के पिता प्रवेश करते है और साकी को रोता देखकर समझ जाते है वह साकी के पीछे खड़े हो जाते है

    मुझे तुम्हे कुछ बताना है बेटा

    जी पापा बोलिए!

    साकी के पिता उस दिन की साडी सच्चाई साकी को बता देते है साकी इतना सुनकर रोने लगती है

    मेने बहुत बड़ी गलती करदी पापा मेने उस गलती की सजा दी है उससे जो उसने की भी नहीं

    कोई बात नहीं बेटा जाओ उससे रोक लो इससे पहले वो वापस इलाहबाद चला जाये

    लेकिन लड़के वाले तो आ गए पापा

    कोई बात नहीं मै सम्भाल लूंगा तुम जाओ बेटा

    साकी अपने दुल्हन लिबास में ही घर के पीछे वाले दरवाजे से निकल जाती है वह सड़क पर ऑटो वाले के लिए आवाज लगाती है लेकिन कोई नहीं सुनता तभी एक कार वंहा आकर रूकती है जिसमे पवन बैठा हुआ था

    आ जाओ भाभी इससे पहले की देर हो जाये

    साकी तुरंत कार में बैठ जाती है और पवन कार को तेज़ी से चलाता है मानो गाड़ी हवा से बाते कर रही हो

    तुम तो पवन सिकरवार हो वो प्रसिद्ध लेखक लेकिन तुम मुझे कैसे जानते हो?

    मै और आलोक हॉस्टल के एक ही कमरे में रहते थे

    अच्छा आप वो ही पवन है सॉरी मेने पहचाना नहीं

    क्या आप गाड़ी और तेज़ चला सकते है

    कोई बात नहीं

    इतना कह कर पवन पुलिस बेर्रिएर तोड़ते हुए गाड़ी को आगे बड़ा देता है और पुलिस वाले उसका पीछा करने लगता है

    गाड़ी रेलवे स्टेशन के बाहर छोड़कर पवन और साकी प्लेटफार्म की तरफ भागते है लेकिन पुलिस वाले उसके पीछे ही होते है

    आप जाइये मै इन पुलिस वालो को रोकता हु

    इतना सुनते ही साकी प्लेटफार्म की तरफ भागती है और पवन उन पुलिस वालो रोकने की कोशिश करता है

    साकी प्लेटफार्म पर देखती है तो गाडी उसके सामने ही जा चुकी थी वह रोने लगती है

    तभी उसे आलोक की आवाज सुनाई देती है जो अपना बेग लिए टिकट अफसर से लड़ रहा था

    देखिये सर अगर आपने टिकट ली है तो आपको फिर जाना चाहिए था न आपको पैसे वापस कैसे मिल सकते है

    क्यों नहीं मिल सकते अरे गलती से टिकट करवा ली तो क्या टिकट रिफंड नहीं कर सकते

    ये कभी नहीं सुधर सकता कंजूस कंही का ! साकी मुस्कराने लगती है धीरे धीरे से अपने आँशु पोछ लेती है

    और भाग कर आलोक को गले लगा लेती है साकी को देखकर वह चौंक जाता है

    अरे साकी तुम यंहा तुम्हारी तो सगाई थी ना आज! आलोक चौंकते हुए बोला

    तभी साकी थपड़ मारती है और रोने लगती है आलोक को गले लगा कर

    तुमने मुझे पहले क्यों नहीं बताया आलोक क्यों मुझे अपने से पांच साल दूर रहने दिया

    पता है मै उस दिल्ली के आलोक से नफरत करने लगी लेकिन उस इलाहबाद के बेटू को नहीं भुला पाई

    मेने तुम्हारे पिता से वादा किया था साकी

    मेने तुम्हारा सपना तोडा तुम्हारा दिल दुखाया आलोक और तुम सब सहते रहे मै बहुत बुरी हूँ

    कोई बात नहीं साकी जो हो गया उससे भूल जाओ ये सब पुरानी बाते है अब हम अपनी कहानी दुबारा से शुरू करेंगे

    लेकिन इससे पहले मुझे मेरे पैसे वापस चाहिए साकी आलोक को सबके सामने किस कर लेती है चारो तरफ सभी आलोक और साकी को ही देखते है

    तभी प्लेटफार्म पर लगी टीवी पर एक ब्रेकिंग न्यूज़ आती है की भारत के सस्पेंस लिखने वाले एक प्रसिद्ध लेखक पवन सिंह सिकरवार दिल्ली के प्लेटफार्म पर की पुलिस के साथ हाथापाई और उन्हें जेल ले जाया जा रहा है

    तभी आलोक और साकी बाहर भागते है तो पवन पुलिस वालो के साथ बाहर बाते कर रहे थे

    आलोक समझ जाता है और हसने लगता है

    पुलिस वाले जेल क्यों नहीं ले गए पवन को! साकी अजीब नजरो से आलोक की तरफ देखती है

    वो इसलिए क्योकि पुलिस कमिश्नर पवन का फैन है उसकी किताबे पढ़ता है

    इतना सुनकर साकी भी हसते हुए आलोक के साथ बैठ जाती है

    वैसे तुम्हारा निक नाम क्या है साकी! आलोक ने साकी का हाँथ पकड़कर पूछा

    क्यों पूछ रहे हो?

    याद नहीं है तुमने बेटू नाम का कितना मजाक बनाया था अब बताओ क्या नाम है तुम्हारा भी

    साक्षी!

    साक्षी?

    हाँ!

    तो फिर ये कहानी तो आलोक और साकी की नहीं बेटू और साक्षी की है

    वैसे इस बात को अब ३ साल हो चुके है और आलोक उर्फ़ बेटू और साक्षी भाभी का एक लड़का भी है आलोक के स्कूल को सीबीएसई की मान्यता भी मिल गई है और आलोक की माँ और साक्षी भाभी की काफी बनती है फ़िलहाल तो दोनों ही अमेरिका में छूटी के लिए गए है और मै तो तब भी लेखक था और अब भी लेखक हूँ

    तो यह थी मेरी कहानी - इश्क एक अधूरे शब्द की कहानी

    लेखक - पवन सिंह सिकरवार

    विशेष धन्यवाद

    आलोक कुमार तिवारी और साक्षी भाभी का

    ***