एक अपवित्र रात - 5 MB (Official) द्वारा लघुकथा में हिंदी पीडीएफ

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एक अपवित्र रात - 5

एक अपवित्र रात

(विश्वकथाएं)

(5)

तीन दिलचस्प किस्से

सादी

सादी (जन्म 1200 ईस्वी) की पुस्तक ‘गुलिस्ताँ’ ने उसे न केवल ख्याति ही दी, उसे विश्व-साहित्य में भी स्थान दिला दिया। इस संग्रह की सभी कहानियाँ, किसी न किसी उपदेशात्मक टिप्पणी को रेखांकित करती हैं। यहाँ सादी की तीन कहानियाँ दी जा रही हैं।

1

एक आदमी ने अपने काम में महारत हासिल कर ली थी। वह कुश्ती कला में सर्वगुण सम्पन्न था। अपनी कला के तीन सौ साठ दाँव वह जानता था और लगभग हर दिन वह कोई-न-कोई नया दाँव दिखाता रहता था। एक खूबसूरत नौजवान शागिर्द को वह बहुत पसन्द करता था। इसलिए उसने उसे तीन सौ उनसठ दाँव सिखा दिये थे। केवल एक नहीं सिखाया था।

नौजवान शागिर्द में कुश्ती कला को एक और महारथी मिल गया था - वह ताकत से भरपूर था, इसलिए कोई भी पहलवान उसके सामने टिक नहीं पाता था। आखिर एक दिन उसने सुलतान के सामने जाकर कहा कि अब उसका उस्ताद इतना बूढ़ा हो चुका है कि वह उसे अपने से बेहतर पहलवान मानने से इनकार करता है। “मैं ताकत में उससे किसी नज़र से कम नहीं हूँ।” वह बोला, “मुझे सभी दाँव भी मालूम हैं।”

सुलतान को उसकी यह बात पसन्द नहीं आयी। उसने हुक्म दिया कि मुकाबला होना चाहिए। मुकाबले के लिए एक बड़े मैदान की खोज की गयी। मुकाबले के दिन वजीर और दूसरे दरबारी मैदान में इकट्ठा हुए। नौजवान शागिर्द किसी झूमते हुए मस्त हाथी की तरह अखाड़े में दाखिल हुआ। ऐसा लगता था जैसे वह लोहे के मजबूत पहाड़ को भी हिलाकर रख देगा। उस्ताद जानता था कि उसका शागिर्द ताकत में उससे इक्कीस है, इसलिए उसने उस पर वही दाँव आजमाया, जो उसने उसे नहीं सिखाया था। शागिर्द चकरा गया। उस्ताद ने उसे दोनों हाथों से उठा लिया और उसे अपने सिर से भी ऊँचा उठाकर जमीन पर पटक दिया।

दर्शकों की भीड़ हो-हल्ला करने लगी। सुलतान ने आज्ञा दी कि उस्ताद को फौरन शाही लिबास और धन इनाम में दिया जाए। तब सुलतान ने नौजवान शागिर्द की इस बात के लिए भर्त्सना की कि वह अपने आपको अपने उस्ताद से बेहतर पहलवान समझता था।

नौजवान बोला, “शाहे आलम, मेरे उस्ताद ने अपनी ताकत और क्षमता के बल पर मुझे नहीं हराया। उन्होंने एक ऐसे दाँव से मुझे पीट डाला, जो उन्होंने मुझे सिखाया ही नहीं था।

उस्ताद ने कहा, “मैंने आज के जैसे मौके के लिए ही उसे बचा रखा था। सयानों ने कहा भी है : ‘अपने दोस्त को भी इतनी ताकत मत सौंपो कि तुम्हारा दुश्मन हो जाने पर वह उसी ताकत से तुम्हें गिरा दे।’ क्या तुमने उस आदमी की बात नहीं सुन रखी, जिसे उसके किसी शागिर्द ने ही नुकसान पहुँचाया था? या तो इस दुनिया में एहसान नाम की चीज कभी थी ही नहीं, या फिर आज उसका वजूद नहीं रह गया है। मैंने आज तक कोई ऐसा आदमी नहीं देखा है, जिसे मैंने तीर चलाना सिखाया हो और उसने आखिर में मुझे ही अपना निशाना न बनाया हो!”

2

उन्होंने एक आलिम से पूछा, “किसी खूबसूरत दोशीजा के साथ अगर कोई छुपकर आराम से बैठा हो, दरवाजे बन्द हों, दुश्मन सो रहे हों, तमन्नाएँ सुलग रही हों। जवानी छलक रही हो, जैसी कि अरबी कहावत है, खजूरें पक गयी हों, रखवाला कोई अड़चन न डाल रहा हो, क्या तब आदमी जब्र करके खुद को रोक सकता है?”

आलिम ने जवाब दिया, “अगर वह दोशीजा से अपने को बचा ले जाए, तब भी बदनामी से नहीं बच पाएगा। अगर आदमी जब्र करके खुद को रोक ले, तब भी दुनिया उसके बारे में गलत ही सोचती रहेगी। आदमी चाहे अपनी आग को दबा जाए, पर दुनिया की जबान बन्द नहीं कर पाएगा!”

और अल्लाह जानता है, आलिम ने गलत नहीं कहा था। दुनिया में कौन ऐसा इनसान है, जिसे दुनिया की जबान ने काटा नहीं है?

3

एक बार की बात है कि उमर-उल-ऐस का एक गुलाम भाग गया। एक आदमी उसके पीछे भेजा गया। वह उसे पकड़कर ले आया। वजीर उस गुलाम का दुश्मन था, इसलिए उसने हुक्म दिया कि उसका सर कलम कर दिया जाए, ताकि दूसरे गुलामों को भी सबक मिले कि भागने का क्या नतीजा होता है।

गुलाम उमर-उल-ऐस के सामने जमीन पर लेट गया और बोला, “माई-बाप, आपकी आज्ञा से मेरी जो गत बनायी जाए, वह कानून की नजर में उचित होगी। मालिक के सामने गुलाम की बिसात ही क्या है! पर यह देखते हुए कि मैं आपके घर के ऐश्वर्य में पला और बड़ा हुआ हूँ, इसलिए मैं नहीं चाहता कि कयामत के दिन आप पर मेरे खून का इल्जाम लगाया जाए। अगर आपका इरादा गुलाम को मार डालने का ही है, तो यह काम भी आप कानून के तहत ही कीजिए, जिससे कयामत के दिन आपको तकलीफ न उठानी पड़े।”

राजा ने पूछा, “तो यह काम कैसे किया जाए?”

गुलाम ने कहा, “आप मुझे इस बात की इजाजत दे दीजिए कि मैं वजीर का खून कर दूँ और तब, इसके बदले में, आप मुझे कत्ल कर देने का हुक्म दे सकते हैं - तभी आपका मुझे मारना न्यायसंगत भी होगा।”

राजा हँस पड़ा और उसने वजीर से पूछा कि उसकी इस सम्बन्ध में क्या राय है।

वजीर बोला, “शहनशाह, अपने मरहूम वालिद के मकबरे के लिए इस बदमाश को छोड़ दीजिए, ताकि मैं भी संकट से बच सकूँ। जुर्म मैंने किया है, क्योंकि मैंने सयानों के शब्दों को भुला दिया, जो कहते हैं कि अगर तुम किसी ऐसे आदमी के साथ लड़ोगे, जो तुम पर ढेले फेंकता है, तो अपनी बेवकूफी की वजह से तुम अपना ही सिर फोड़ोगे। अपने दुश्मन पर तीर चलाते वक्त तुम्हें खुद उसके निशाने की पहुँच से बाहर ही रहना चाहिए।”

***