Swabhiman - Laghukatha - 53 books and stories free download online pdf in Hindi

स्वाभिमान - लघुकथा - 53

चमक

सुनो लड़के! जरा इस गार्डन की साफ़-सफाई कर दोगे? कितने पैसे लोगे?” बाहर गली में कबाड़ वाले लड़के की आवाज सुनकर रजनी बाहर आई.

“पूरे तीन सौ रूपये लगेंगे मेमसाब! मगर काम देखने के बाद आप भी याद करोगी.” लड़के ने अपनी तारीफ खुद ही की. थोड़ी देर के मोलभाव के बाद दो सौ रूपये में सौदा तय हुआ और लड़का अपना झोला एक तरफ रख कर काम में जुट गया. 3-4 घंटों की मेहनत का नतीजा साफ़ दिख रहा था. लड़का संतुष्ट हो कर भीतर गया.

“देख लीजिये मेमसाब! सारी खर पतवार उखाड़ दी, गमलों को करीने से सजा दिया और सारा कचरा भी साफ़ कर दिया. अब जरा जल्दी से हिसाब कर दीजिये. बहुत भूख लगी है.” डाइनिंग पर नाश्ता करते बच्चे को देखकर उसकी आँखों में एक चमक सी कौंध गई. तभी “छन्न...” की आवाज से वह वर्तमान में आया. बच्चे ने खाने की प्लेट जमीन पर पटक दी थी.

“ठीक है! आती हूँ... तब तक तुम जरा गमलों में पानी डाल दो.” रजनी ने जमीन पर गिरा हुआ खाना समेटते हुए कहा.

“ये लो तुम्हारे दो सौ रूपये... और ये नाश्ता भी कर लेना.” रजनी ने उसे रुपयों के साथ-साथ एक थैली में कुछ खाने का सामान दिया.

लड़के ने सामान को देखा... सड़क पर आया... गली में घूम रहे आवारा कुत्ते के सामने खाने की थैली पलटी... थैली को अपने झोले में ठूंसा... रुपयों को जेब के हवाले किया और अपना झोला कंधे पर डाल कर मुस्कुराता हुआ चल दिया.

उसके चेहरे पर स्वाभिमान की चमक साफ़ नजर आ रही थी.

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इंजी. आशा शर्मा

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