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दोस्त गणेशा

ट्रिन-ट्रिन, ट्रिन-ट्रिन... अलार्म की आवाज़ सुनते ही अर्णव झट-से उठकर बैठ गया। इतने में मम्मी भी अर्णव के कमरे में आ पहुंची और बोली, ‘‘अरे, क्या बात है अर्णव? आज तो तुम अलार्म की आवाज़ से ही उठ गए। रोज़ तो मेरे उठाने से भी नहीं उठते।’’ बिस्तर से उठकर बाथरूम की ओर जाते हुए अर्णव बोला, ‘‘हाँ, मम्मी आज मेरा दोस्त घर आ रहा है। तो मुझे तो जल्दी उठना ही था।’’ मम्मी ने हैरानी से पूछा, ‘‘तुम्हारा दोस्त, तुम्हारा कौन-सा दोस्त घर आने वाला है।’’ अर्णव कुछ नहीं बोला। मम्मी भी कमरे से चली गईं।

कुछ देर बाद अर्णव नहा-धोकर ड्राइंग रूम में पहुंचा। अर्णव को देखकर दादी ने पूछा, ‘‘अर्णव आज तुम इतनी सुबह...’’ अर्णव बोला, ‘‘हां दादी मेरा दोस्त घर आने वाला है आज। लेकिन आप ये क्या बना रही हैं।’’ दादी हंसते हुए बोली, ‘‘मैं तुम्हारे दोस्त के लिए मोदक बना रही हूं। उसे बहुत पंसद हैं न।’’ बीच में ही पापा बोले, ‘‘आज बहुत खुश हो अर्णव।’’ हां पापा, अर्णव ने बोला। मम्मी ने अर्णव व उसके छोटे भाई आरव को पीले रंग के कपड़े पहनाए थे। पापा से कहते हुए दादी बोलीं, ‘‘हो भी क्यों न? आज उसका प्यारा दोस्त गणेश जो घर आने वाला है।’’

मम्मी-पापा, दादा-दादी सभी गणेश को घर लाने की तैयारी में लगे थे। अर्णव को तो कई दिनों से इस दिन का इंतजार था। पापा ने मंदिर को रंग-बिरंगी लाइटों व फूलों से सजाया था। बस अब तो गणेश के आने का इंतजार था। मम्मी ने सभी को आवाज़ लगाते हुए कहा, चलो, सब जल्दी करो, हमें मंदिर जाना है। अर्णव तुम भी जल्दी चलो।’’

अर्णव बोला, ‘‘हां मम्मी, हम तो कब से तैयार हैं।’’ मम्मी हँसते हुए, ‘‘हां-हां, चलो अब।’’

सभी सोसाइटी में बने गणेश मंदिर में पहुंच गए। वहां पहले से ही कई लोग मौजूद थे। थोड़ी ही देर में आरती शुरू होने वाले थी। सभी ने हाथ जोड़कर आरती शुरू की। अभी कुछ देर ही हुई थी कि अचानक अर्णव ने देखा कि मंदिर के गणपति मूर्ति से निकलकर कहीं जा रहे हैं। अर्णव को कुछ समझ नहीं आया। वह बस हैरानी से गणेश को जाते देख रहा था। वह मम्मी को गणेश के जाने की बात बताना चाहता था, लेकिन कुछ बोल ही नहीं पाया। अब अर्णव भी गणपति के पीछे-पीछे चल दिया। अभी भी उसे कुछ समझ नहीं आ रहा था कि ये सब क्या हो रहा है। गणेश कहां जा रहे हैं।

थोड़ी दूर जाकर गणेश पास ही बनी मंदिर की सीढ़ियों पर जाकर बैठ गए। अर्णव भी डरते-डरते उनके पास जाकर बैठ गया। अर्णव को लगा कि गणेश परेशान हैं और कुछ कहना चाहते हैं। अर्णव बोला, ‘‘अरे, बप्पा आप यहां आकर क्यों बैठ गए। वहाँ सब आपकी आरती कर रहे हैं और आप यहां आकर बैठ गए।’’ गणपति कुछ नहीं बोले। ‘‘अरे, गणपति कुछ तो बताइए। हम सब कितने दिनों से आपको घर लाने की तैयारियां कर रहे हैं। चारों ओर कितनी खुशियाँ हैं। सभी बहुत खुश हैं। पापा ने भी घर के मंदिर को लाइटों और फूलों से सजाया है और हां, दादी ने तो आपके लिए मोदक भी बनाए हैं। आपको बहुत पसंद हैं न।’’ गणपति अभी भी उदास थे। कुछ देर बोले, ‘‘मैं नहीं चाहता कि लोग मेरी पूजा करें।’’ अर्णव ने हैरानी से पूछा, ‘‘क्यांे गणपति, आप ऐसा क्यों कह रहे हैं। वहां मंदिर में देखिए, लोग कितने उत्साह से आपकी आरती कर रहे हैं। शाम को सभी आपको अपने-अपने घर में लेकर जाएंगे। धूमधाम से पूजा की जाएगी। कई दिनों तक इस त्योहार को मनाया जाएगा। ...और आप कहते हैं कि लोग आपकी पूजा न करें।’’

गणपति बोले, ‘‘मुझे घर लाने का कोई फायदा नहीं, तुम सब मुझसे प्यार नहीं करते, सिर्फ मुझे घर लाते हो और कुछ दिन घर में रखकर समुद्र व नदियों में बहा देते हो।’’ अर्णव ने हंसते हुए कहा, ‘‘ऐसा नहीं है। हम सब आपसे बहुत प्यार करते हैं। हम आपको नदियों व समुद्र में बहाते नहीं हैं, बल्कि विसर्जन करते हैं ताकि आप अगले साल फिर से आ सको।’’ गणपति बोले, ‘‘एक ही बात है। मुझे बहाने से नदियों व समुद्रों में कितना कूड़ा करकट होता है। जानते हो? कूड़ा-करकट....? अर्णव ने पूछा।

‘‘हां, कूड़ा-करकट, हर साल लाखों की संख्या में मेरी छोटी व बड़ी मूर्तियां बनाई जाती हैं। उन्हें बनाने व सजाने में तुम लोग हानिकारक रंगों व चीजों का इस्तेमाल करते हो? विसर्जन के बाद वही सारी मूर्तियां समुद्रों व नदियों में बहा दी जाती हैं। पानी में मिलकर हानिकारक रंग समुद्री जीवों को नुकसान पहुंचाते हैं। हजारों मैट्रिक टन कचरा समुद्र व नदियों में पहुंच जाता है। चारों ओर कूड़ा-करकट।’’ गणपति ने निराश होकर कहा, ‘‘मैं हर साल ये सब देखता हूं। लेकिन कुछ कर नहीं पाता। तुम मनुष्य नहीं जानते कि ये सब प्रकृति के लिए कितना हानिकारक है।’’

अर्णव चुपचाप बड़े ध्यान से गणपति की बातें सुन रहा था। हिचकिचाते हुए वह बोला, ‘‘.... लेकिन।

गणपति बोले, ‘‘अब बहुत हो गया। मुझसे ये सब नहीं देखा जाता।’’ इसलिए मैं मंदिर छोड़कर जा रहा हूं।’’

अर्णव बोला, ‘‘नहीं-नहीं गणेशा, आप ऐसा मत कीजिए। आप ही बताइए, मैं क्या कर सकता हूं। आप जैसा चाहेंगे, मैं वैसा ही करूंगा।’’

गणपति बोले, ‘‘अब तुम्हें ही कोई उपाय करना होगा। मैं कुछ नहीं जानता। बस मैं इतना चाहता हूं कि मेरी वजह से किसी को कोई नुकसान न हो और सभी खुश रहें।’’

यह कहकर गणपति वहां से चले गये। अचानक अर्णव की आंखें खुलीं। उसे लगा कि जैसे वह गहरी नींद से जागा हो। आरती खत्म हो चुकी थी। उसने गणपति की मूर्ति की ओर देखा तो उसे लगा कि मूर्ति उसे देखकर मुस्कुरा रही है। मां ने आवाज लगाई, ‘‘अर्णव, चलो देर हो जाएगी। हमें गणेश को लेने चलना है।’’

अर्णव मंदिर की सीढ़ियों की ओर भागता हुआ बोला, ‘‘मैं कहीं नहीं जाऊंगा, मुझे नहीं लाना गणेश को घर। मैं घर जा रहा हूं।’’ मम्मी-पापा, दादा-दादी सभी उसका पीछे करते हुए घर जा पहुंचें। अर्णव अपने कमरे में बिस्तर पर जा लेटा। पापा उसके पीछे कमरे में आए और पूछा, अर्णव क्या हुआ? तुम तो कई दिनों से गणेश को लाने के दिन का इंतजार कर रहे थे। अब अचानक से तुम्हें क्या हो गया? बताओ, मेरे बेटे। अर्णव ने रोते-रोते कहा, ‘‘मेरा दोस्त गणेश हम सबसे बहुत नाराज है। वह हमें छोड़कर चला गया है।’’ पापा ने हैरानी से पूछा, ‘‘ये तुम क्या कह रहे हो? छोड़कर चला गया है। ऐसा नहीं कहते बेटा। वह सदा हमारे साथ हैं।’’ पापा मैं सच कह रहा हूं। मंदिर में स्वयं गणेश मेरे पास आए और बोले, ‘‘हम सब की वजह से प्रकृति को बहुत नुकसान हो रहा है। इसलिए वे दुखी हैं और यहां से जा रहे हैं।’’ यह कहकर अर्णव ने पापा को सारी बात बताई। अर्णव अभी भी रो रहा था।

अर्णव को चुप कराते हुए पापा बोले, ‘‘तुम चुप करो, मैं देखता हूं कि मैं क्या कर सकता हूं।’’ बाहर जाकर उन्होंने सारी बातें घर के अन्य सदस्यों को भी बताई। सब परेशान हो गए। वे जानते थे कि गणेश विसर्जन के कारण से नदियों व समुद्रों में कितना कूड़ा-करकट होता है। साथ ही वे गणेश को भी घर लाना चाहते थे। कुछ सोचकर पापा तेजी से घर से बाहर चले। किसी को कुछ समझ नहीं आया कि पापा क्या करने वाले हैं।

अब तक शाम हो चुकी थी। सभी को पापा की चिंता हो रही थी कि वे कहां चले गए। तभी दरवाजे की घंटी बजी। ट्रिंग-ट्रिंग, ट्रिंग-ट्रिंग.....। अर्णव ने भागकर दरवाजा खोला। बाहर पापा हाथ में गणेश की एक छोटी-सी मूर्ति लेकर खड़े थे। अर्णव ने चिल्लाते हुए कहा, ‘‘पापा, आप फिर गणेश की मूर्ति ले आए। मैं नहीं चाहता था कि हम मूर्ति कर विसर्जन नदी को गंदा करें। ’’

‘‘ऐसा कुछ नहीं होगा। मेरी बात ध्यान से सुनो।’’ पापा ने अर्णव को समझाने की कोशिश की। परंतु अर्णव जिद पर अड़ा था। पापा ने उसे समझाया, ‘‘अर्णव यह फिटकरी से बनी एक छोटी सी मूर्ति है। इससे नदी को नुकसान नहीं होगा।’’ ‘‘ऐसे कैसे पापा’’ अर्णव ने पूछा। ‘‘फिटकरी में कोई कैमिकल नहीं मिलाया जाता है और इससे मूर्ति बनाई जाती है। और हां, यह फिटकरी पानी को साफ भी करती है। पापा ने बताया।

‘‘अच्छा’’, यह सुनकर अर्णव की खुशी का ठिकाना न रहा। वह तुरंत गेट की ओर भागा। पापा ने चिल्लाकर पूछा, ‘‘कहां जा रहे हो अर्णव’’? पापा मैं अभी आता हूं।, अर्णव बोला।

शाम को घर पर सभी ने बड़ी धूमधाम से गणपति की स्थापना की। गणपति विसर्जन तक पूरे उत्साह के साथ रोज गणपति की पूजा की गई। अर्णव बहुत खुश था। गणपति विसर्जन का दिन नजदीक आ गया। पूरी सोसाइटी के लोग अपने-अपने गणपति के साथ सोसाइटी के गेट पर इकट्ठे हो गए। अर्णव के पापा अचानक चैंक गए।

उन्होंने देखा कि सभी के हाथों में फिटकरी से बनी मूर्तियां थीं। पापा ने अर्णव की ओर देखा और मुस्कुराए।

तभी शर्मा अंकल ने बताया, ‘‘गणपति स्थापना के दिन अर्णव सोसायटी के सभी घरों में आया और अपने साथ घटी सारी कहानी बताई। तभी हम लोगों ने सोच लिया थी कि हम सभी फिटकरी से बनी मूर्ति का ही विसर्जन करेंगे। अर्णव के परिवार को अर्णव पर बहुत गर्व हुआ।

पापा ने अर्णव और आरव के हाथों से ही गणपति का विसर्जन कराया। विसर्जन करते समय अर्णव ने गणपति की मूर्ति की ओर देखा। उसे लगा कि गणपति उसकी ओर देखकर मुस्कुरा रहे हैं जैसे उसे धन्यवाद दे रहे हों। उसके बाद से अर्णव व उसकी सोसायटी में केवल फिटकरी से बनी मूर्तियों का ही विसर्जन किया गया।

ट्रिन-ट्रिन, ट्रिन-ट्रिन... अलार्म की आवाज़ सुनते ही अर्णव झट-से उठकर बैठ गया। इतने में मम्मी भी अर्णव के कमरे में आ पहुंची और बोली, ‘‘अरे, क्या बात है अर्णव? आज तो तुम अलार्म की आवाज़ से ही उठ गए। रोज़ तो मेरे उठाने से भी नहीं उठते।’’ बिस्तर से उठकर बाथरूम की ओर जाते हुए अर्णव बोला, ‘‘हाँ, मम्मी आज मेरा दोस्त घर आ रहा है। तो मुझे तो जल्दी उठना ही था।’’ मम्मी ने हैरानी से पूछा, ‘‘तुम्हारा दोस्त, तुम्हारा कौन-सा दोस्त घर आने वाला है।’’ अर्णव कुछ नहीं बोला। मम्मी भी कमरे से चली गईं।

कुछ देर बाद अर्णव नहा-धोकर ड्राइंग रूम में पहुंचा। अर्णव को देखकर दादी ने पूछा, ‘‘अर्णव आज तुम इतनी सुबह...’’ अर्णव बोला, ‘‘हां दादी मेरा दोस्त घर आने वाला है आज। लेकिन आप ये क्या बना रही हैं।’’ दादी हंसते हुए बोली, ‘‘मैं तुम्हारे दोस्त के लिए मोदक बना रही हूं। उसे बहुत पंसद हैं न।’’ बीच में ही पापा बोले, ‘‘आज बहुत खुश हो अर्णव।’’ हां पापा, अर्णव ने बोला। मम्मी ने अर्णव व उसके छोटे भाई आरव को पीले रंग के कपड़े पहनाए थे। पापा से कहते हुए दादी बोलीं, ‘‘हो भी क्यों न? आज उसका प्यारा दोस्त गणेश जो घर आने वाला है।’’

मम्मी-पापा, दादा-दादी सभी गणेश को घर लाने की तैयारी में लगे थे। अर्णव को तो कई दिनों से इस दिन का इंतजार था। पापा ने मंदिर को रंग-बिरंगी लाइटों व फूलों से सजाया था। बस अब तो गणेश के आने का इंतजार था। मम्मी ने सभी को आवाज़ लगाते हुए कहा, चलो, सब जल्दी करो, हमें मंदिर जाना है। अर्णव तुम भी जल्दी चलो।’’

अर्णव बोला, ‘‘हां मम्मी, हम तो कब से तैयार हैं।’’ मम्मी हँसते हुए, ‘‘हां-हां, चलो अब।’’

सभी सोसाइटी में बने गणेश मंदिर में पहुंच गए। वहां पहले से ही कई लोग मौजूद थे। थोड़ी ही देर में आरती शुरू होने वाले थी। सभी ने हाथ जोड़कर आरती शुरू की। अभी कुछ देर ही हुई थी कि अचानक अर्णव ने देखा कि मंदिर के गणपति मूर्ति से निकलकर कहीं जा रहे हैं। अर्णव को कुछ समझ नहीं आया। वह बस हैरानी से गणेश को जाते देख रहा था। वह मम्मी को गणेश के जाने की बात बताना चाहता था, लेकिन कुछ बोल ही नहीं पाया। अब अर्णव भी गणपति के पीछे-पीछे चल दिया। अभी भी उसे कुछ समझ नहीं आ रहा था कि ये सब क्या हो रहा है। गणेश कहां जा रहे हैं।

थोड़ी दूर जाकर गणेश पास ही बनी मंदिर की सीढ़ियों पर जाकर बैठ गए। अर्णव भी डरते-डरते उनके पास जाकर बैठ गया। अर्णव को लगा कि गणेश परेशान हैं और कुछ कहना चाहते हैं। अर्णव बोला, ‘‘अरे, बप्पा आप यहां आकर क्यों बैठ गए। वहाँ सब आपकी आरती कर रहे हैं और आप यहां आकर बैठ गए।’’ गणपति कुछ नहीं बोले। ‘‘अरे, गणपति कुछ तो बताइए। हम सब कितने दिनों से आपको घर लाने की तैयारियां कर रहे हैं। चारों ओर कितनी खुशियाँ हैं। सभी बहुत खुश हैं। पापा ने भी घर के मंदिर को लाइटों और फूलों से सजाया है और हां, दादी ने तो आपके लिए मोदक भी बनाए हैं। आपको बहुत पसंद हैं न।’’ गणपति अभी भी उदास थे। कुछ देर बोले, ‘‘मैं नहीं चाहता कि लोग मेरी पूजा करें।’’ अर्णव ने हैरानी से पूछा, ‘‘क्यांे गणपति, आप ऐसा क्यों कह रहे हैं। वहां मंदिर में देखिए, लोग कितने उत्साह से आपकी आरती कर रहे हैं। शाम को सभी आपको अपने-अपने घर में लेकर जाएंगे। धूमधाम से पूजा की जाएगी। कई दिनों तक इस त्योहार को मनाया जाएगा। ...और आप कहते हैं कि लोग आपकी पूजा न करें।’’

गणपति बोले, ‘‘मुझे घर लाने का कोई फायदा नहीं, तुम सब मुझसे प्यार नहीं करते, सिर्फ मुझे घर लाते हो और कुछ दिन घर में रखकर समुद्र व नदियों में बहा देते हो।’’ अर्णव ने हंसते हुए कहा, ‘‘ऐसा नहीं है। हम सब आपसे बहुत प्यार करते हैं। हम आपको नदियों व समुद्र में बहाते नहीं हैं, बल्कि विसर्जन करते हैं ताकि आप अगले साल फिर से आ सको।’’ गणपति बोले, ‘‘एक ही बात है। मुझे बहाने से नदियों व समुद्रों में कितना कूड़ा करकट होता है। जानते हो? कूड़ा-करकट....? अर्णव ने पूछा।

‘‘हां, कूड़ा-करकट, हर साल लाखों की संख्या में मेरी छोटी व बड़ी मूर्तियां बनाई जाती हैं। उन्हें बनाने व सजाने में तुम लोग हानिकारक रंगों व चीजों का इस्तेमाल करते हो? विसर्जन के बाद वही सारी मूर्तियां समुद्रों व नदियों में बहा दी जाती हैं। पानी में मिलकर हानिकारक रंग समुद्री जीवों को नुकसान पहुंचाते हैं। हजारों मैट्रिक टन कचरा समुद्र व नदियों में पहुंच जाता है। चारों ओर कूड़ा-करकट।’’ गणपति ने निराश होकर कहा, ‘‘मैं हर साल ये सब देखता हूं। लेकिन कुछ कर नहीं पाता। तुम मनुष्य नहीं जानते कि ये सब प्रकृति के लिए कितना हानिकारक है।’’

अर्णव चुपचाप बड़े ध्यान से गणपति की बातें सुन रहा था। हिचकिचाते हुए वह बोला, ‘‘.... लेकिन।

गणपति बोले, ‘‘अब बहुत हो गया। मुझसे ये सब नहीं देखा जाता।’’ इसलिए मैं मंदिर छोड़कर जा रहा हूं।’’

अर्णव बोला, ‘‘नहीं-नहीं गणेशा, आप ऐसा मत कीजिए। आप ही बताइए, मैं क्या कर सकता हूं। आप जैसा चाहेंगे, मैं वैसा ही करूंगा।’’

गणपति बोले, ‘‘अब तुम्हें ही कोई उपाय करना होगा। मैं कुछ नहीं जानता। बस मैं इतना चाहता हूं कि मेरी वजह से किसी को कोई नुकसान न हो और सभी खुश रहें।’’

यह कहकर गणपति वहां से चले गये। अचानक अर्णव की आंखें खुलीं। उसे लगा कि जैसे वह गहरी नींद से जागा हो। आरती खत्म हो चुकी थी। उसने गणपति की मूर्ति की ओर देखा तो उसे लगा कि मूर्ति उसे देखकर मुस्कुरा रही है। मां ने आवाज लगाई, ‘‘अर्णव, चलो देर हो जाएगी। हमें गणेश को लेने चलना है।’’

अर्णव मंदिर की सीढ़ियों की ओर भागता हुआ बोला, ‘‘मैं कहीं नहीं जाऊंगा, मुझे नहीं लाना गणेश को घर। मैं घर जा रहा हूं।’’ मम्मी-पापा, दादा-दादी सभी उसका पीछे करते हुए घर जा पहुंचें। अर्णव अपने कमरे में बिस्तर पर जा लेटा। पापा उसके पीछे कमरे में आए और पूछा, अर्णव क्या हुआ? तुम तो कई दिनों से गणेश को लाने के दिन का इंतजार कर रहे थे। अब अचानक से तुम्हें क्या हो गया? बताओ, मेरे बेटे। अर्णव ने रोते-रोते कहा, ‘‘मेरा दोस्त गणेश हम सबसे बहुत नाराज है। वह हमें छोड़कर चला गया है।’’ पापा ने हैरानी से पूछा, ‘‘ये तुम क्या कह रहे हो? छोड़कर चला गया है। ऐसा नहीं कहते बेटा। वह सदा हमारे साथ हैं।’’ पापा मैं सच कह रहा हूं। मंदिर में स्वयं गणेश मेरे पास आए और बोले, ‘‘हम सब की वजह से प्रकृति को बहुत नुकसान हो रहा है। इसलिए वे दुखी हैं और यहां से जा रहे हैं।’’ यह कहकर अर्णव ने पापा को सारी बात बताई। अर्णव अभी भी रो रहा था।

अर्णव को चुप कराते हुए पापा बोले, ‘‘तुम चुप करो, मैं देखता हूं कि मैं क्या कर सकता हूं।’’ बाहर जाकर उन्होंने सारी बातें घर के अन्य सदस्यों को भी बताई। सब परेशान हो गए। वे जानते थे कि गणेश विसर्जन के कारण से नदियों व समुद्रों में कितना कूड़ा-करकट होता है। साथ ही वे गणेश को भी घर लाना चाहते थे। कुछ सोचकर पापा तेजी से घर से बाहर चले। किसी को कुछ समझ नहीं आया कि पापा क्या करने वाले हैं।

अब तक शाम हो चुकी थी। सभी को पापा की चिंता हो रही थी कि वे कहां चले गए। तभी दरवाजे की घंटी बजी। ट्रिंग-ट्रिंग, ट्रिंग-ट्रिंग.....। अर्णव ने भागकर दरवाजा खोला। बाहर पापा हाथ में गणेश की एक छोटी-सी मूर्ति लेकर खड़े थे। अर्णव ने चिल्लाते हुए कहा, ‘‘पापा, आप फिर गणेश की मूर्ति ले आए। मैं नहीं चाहता था कि हम मूर्ति कर विसर्जन नदी को गंदा करें। ’’

‘‘ऐसा कुछ नहीं होगा। मेरी बात ध्यान से सुनो।’’ पापा ने अर्णव को समझाने की कोशिश की। परंतु अर्णव जिद पर अड़ा था। पापा ने उसे समझाया, ‘‘अर्णव यह फिटकरी से बनी एक छोटी सी मूर्ति है। इससे नदी को नुकसान नहीं होगा।’’ ‘‘ऐसे कैसे पापा’’ अर्णव ने पूछा। ‘‘फिटकरी में कोई कैमिकल नहीं मिलाया जाता है और इससे मूर्ति बनाई जाती है। और हां, यह फिटकरी पानी को साफ भी करती है। पापा ने बताया।

‘‘अच्छा’’, यह सुनकर अर्णव की खुशी का ठिकाना न रहा। वह तुरंत गेट की ओर भागा। पापा ने चिल्लाकर पूछा, ‘‘कहां जा रहे हो अर्णव’’? पापा मैं अभी आता हूं।, अर्णव बोला।

शाम को घर पर सभी ने बड़ी धूमधाम से गणपति की स्थापना की। गणपति विसर्जन तक पूरे उत्साह के साथ रोज गणपति की पूजा की गई। अर्णव बहुत खुश था। गणपति विसर्जन का दिन नजदीक आ गया। पूरी सोसाइटी के लोग अपने-अपने गणपति के साथ सोसाइटी के गेट पर इकट्ठे हो गए। अर्णव के पापा अचानक चैंक गए।

उन्होंने देखा कि सभी के हाथों में फिटकरी से बनी मूर्तियां थीं। पापा ने अर्णव की ओर देखा और मुस्कुराए।

तभी शर्मा अंकल ने बताया, ‘‘गणपति स्थापना के दिन अर्णव सोसायटी के सभी घरों में आया और अपने साथ घटी सारी कहानी बताई। तभी हम लोगों ने सोच लिया थी कि हम सभी फिटकरी से बनी मूर्ति का ही विसर्जन करेंगे। अर्णव के परिवार को अर्णव पर बहुत गर्व हुआ।

पापा ने अर्णव और आरव के हाथों से ही गणपति का विसर्जन कराया। विसर्जन करते समय अर्णव ने गणपति की मूर्ति की ओर देखा। उसे लगा कि गणपति उसकी ओर देखकर मुस्कुरा रहे हैं जैसे उसे धन्यवाद दे रहे हों। उसके बाद से अर्णव व उसकी सोसायटी में केवल फिटकरी से बनी मूर्तियों का ही विसर्जन किया गया।

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