विषय - भारत के रत्न (GEMS OF INDIA)------------------------------ ------------------------------
अटल बिहारी वाजपेयी
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घोर नैतिक क्षरण और राजनैतिक अधोपतन के इस कालखंड में पूर्व प्रधानमंत्री मा.अटल बिहारी वाजपेयी जी का जाना, भारतीय राजनीति का वह प्रस्थान बिंदु है, जहाँ से राजनीतिक चेतना अपना रास्ता बदल देती है, शालीनता की परंपराएं और मान्यताएँ अपने अर्थ खो देती हैं और समय, समाज और परिवेश से राजनीतिक शुचिता, मर्यादा और आदर्श का लोप हो जाता है, और चतुर्दिक अंधकार के सिवा कुछ भी नजर नहीं आता।
राजनीति में अटल जी 16 वर्ष की उम्र से ही सक्रिय हो गये थे।ब्रिटिश शासन और दमन के प्रति उनके मन में प्रतिशोध की भावना बचपन में ही अंगड़ाइयां लेने लगी थीं और अपने देश के लिए अपना सर्वस्व निछावर कर देना है, शायद इस महान भावना के बीज उनके हृदय में तभी पड़ गये थे।आजादी के बाद चार दशकों तक वे सांसद रहे।चाहे विपक्ष में रहे या सत्ता के केंद्र में, पर हमेशा उनके लिए देश हित ही प्रमुख रहा।
नेहरू जी के बाद मा. अटल बिहारी वाजपेयी ही ऐसे प्रधानमंत्री थे, जो सर्वप्रिय थे, सबके दिलों पर राज करते थे, सभी के हृदय में बसते थे।उनकी वाणी में ओज था, स्वभाव में शिष्टता थी, शब्दों में सच्चाई थी, जो उनके व्यक्तित्व को विशाल बना देती थी।दिखावा, झूठ, आडंबर, प्रचार और आत्मप्रदर्शन उन्हें कतई पसंद नहीं था। उनका पूरा जीवन सादगी का पर्याय था, जो कहीं-न-कहीं उन्हें उनकी जड़ों से जोड़े रखता था समस्त भारतीय जनमानस से उन्हें जोड़ता था। वे जो कहते थे, वही करते थे।सत्य, सिद्धांत, परंपरा, संस्कार और नैतिकता तो उनके सहचर थे।तभी तो, बाबरी मस्जिद विध्वंस के समय जब उनकी पूरी पार्टी जश्न मना रही थी, उन्होंने कहा था कि यह राजधर्म नहीं है और यह सही नहीं हुआ।उस दौर में उनका यह कथन आज के नेताओं के लिए मूल्यों की स्थापना और राजनीतिक नैतिकता की राह में मील का एक पत्थर है।
हम कैसे भूल सकते हैं उस गौरवशाली क्षण को जब संयुक्त राष्ट्र संघ में वाजपेयी जी ने हिन्दी में वह प्रभावशाली भाषण दिया था और " बसुधैव कुटुम्बकम " की युगयुगीन भारतीय अवधारणा को पुनर्स्थापित करते हुए पूरे विश्व को यह संदेश दिया था कि भारत कभी शत्रुता और वैमनस्य का समर्थक नहीं रहा, वह तो सभी देशों से मैत्रीपूर्ण संबंध चाहता है।किसी पर प्रभुत्व स्थापित करना उसका उद्देश्य नहीं है।मानव समाज और विश्व समुदाय के लिए न्याय, शांति और गरिमापूर्ण जीवन की कामना और उसकी पुनर्स्थापना ही उसका एकमात्र उद्देश्य है। मा. वाजपेयी जी के वे विचार काफी हद तक आज भी प्रासंगिक हैं।
वैश्विक अशांति के उस दौर में 11 व 13 मई 1998 को जब अटल जी ने पोखरण में परमाणु परीक्षण किया, तो " ऑपरेशन शक्ति " का उद्देश्य देश को न केवल परमाणु शक्ति संपन्न राष्ट्रों की श्रेणी में खड़ा करना था, बल्कि यह भी स्पष्ट और आश्वस्त करना था कि भारत किसी से कम नहीं है।उन्होंने यह भी स्पष्ट किया कि परमाणु हथियारों का इस्तेमाल वे उन देशों के खिलाफ नहीं करेंगे, जो भारत के प्रति बुरी भावना नहीं रखते हैं।मगर दुश्मनों को तो नेस्तनाबूद भी करने की क्षमता रखते हैं। यह हमारा शक्ति प्रदर्शन नहीं था, हमारा स्वाभिमान था।
15 अगस्त 2003 का पहला चंद्र मिशन चंद्रयान -1 राष्ट्र का वह अभियान था, जिसमें इसरो ने चंद्रमा पर पानी तलाशने में सफलता पाई। अंतरिक्ष अनुसंधान की दिशा में भारत का यह कीर्त्तिमान पूरे विश्व के लिए एक विलक्षण उपलब्धि थी।
उनका मानना था कि देश का समग्र और समावेशी विकास तभी संभव है, जब देश के शहरों का गाँवों से सीधा संपर्क रहे।इस बदलते समय में अलग-थलग रहकर विकास की कल्पना करना भी बेमानी है।नेशनल हाईवे डेवलपमेंट प्रोजेक्ट(NHDP) उनकी ऐसी ही स्वप्न-परियोजना थी, जिसके पहले चरण में दिल्ली, मुंबई, चेन्नै और कोलकाता जैसे महानगरों को आपस में जोड़ने के लिए करीब 5846 कि.मी. लंबी सड़कें बनायी गईं। इसे आज " स्वर्णिम चतुर्भुज योजना " के नाम से भी जाना जाता है।
दूसरे चरण में देश के उत्तरी भाग को दक्षिणी भाग और पूर्वी भाग को पश्चिमी भाग से जोड़ने के लिए करीब 7142 कि.मी.सड़कें बनाई गयीं और श्रीनगर को कन्याकुमारी तथा सिलचर को पोरबंदर से जोड़ दिया गया। ये सड़कें आज पूरे देश की धमनियां हैं।
देश कैसे भूल सकता है 1999 के उस कारगिल युद्ध को, जब पाकिस्तान ने हमारी ही सीमा में घुसने की धृष्टता की थी। प्रधानमंत्री वाजपेयी के नेतृत्व में देश की पूरी सैन्यशक्ति ने जिस तरह अपनी अतुलनीय वीरता और शौर्य का परिचय देते हुए, बिलकुल ही विपरीत राजनीतिक परिस्थितियों में देश की सीमाओं को घुसपैठियों से मुक्त कराया था, उसकी एक अलग ही विजयगाथा है।अटल जी के इन दूरदर्शितापूर्ण प्रयासों से न केवल देश के सुदूर छोर एक-दूसरे से जुड़ गये हैं, बल्कि अनेकानेक व्यापारिक मार्ग भी खुले हैं।
भारत की आत्मा गाँवों में बसती है।गाँव को उन्होंने काफी नजदीकी से जिया था, देखा था।उन्होंने महसूस किया था कि गाँवों के बिना न तो शहरों का ही अस्तित्व है, न शहरों के बिना गाँवों का। इसलिए गाँवों को सड़कों के माध्यम से शहरों से जोड़ा जाए।प्रधानमंत्री ग्राम सड़क योजना उनके इसी सपने का मूर्त् रूप है, और यह राष्ट्र के लिए मा. अटल जी का अमूल्य योगदान है।आज विकास सही अर्थों में शहरों से चलकर सड़कों द्वारा भारत के गाँव-गाँव में पहुँच रहा है।खासकर कृषि और कृषि आधारित उद्योगों को इससे बहुत लाभ हुआ है, जहाँ उपज में कई गुनी वृद्धि तो हुई ही है, ग्रामीण अर्थव्यवस्था में भी अपेक्षाकृत सुधार हुआ है।
किसी भी समाज और राष्ट्र की प्रगति का संकेतक होती है वहाँ की शिक्षा व्यवस्था। मूल्य आधारित शिक्षा ही व्यक्ति को सशक्त और आत्मनिर्भर बनाती है, सामाजिक, क्षेत्रीय और लिंग आधारित दरारों को पाटने का काम करती है और एक स्वस्थ,सुसंगठित और संस्कारित समाज का निर्माण करती है।इसी उद्देश्य को ध्यान में रखते हुए मा. अटल जी ने सर्व शिक्षा अभियान का शुभारंभ किया, जहाँ 6 - 14 वर्ष तक के बच्चे-बच्चियों के लिए अनिवार्य शिक्षा का प्रावधान संविधान में संविधान संशोधन के जरिये किया गया।
सूचना तकनीकी के उस विकासोन्मुख दौर में देश के सुदूरवर्ती, पहाड़ी और जनजातीय इलाकों को मुख्यालय से जोड़ने के लिए, ताकि वहाँ के वासियों की तकलीफों, समस्याओं, कठिनाइयों से रूबरू हुआ जा सके और उनका त्वरित समाधान और निदान किया जा सके, प्रधानमंत्री वाजपेयी जी ने राष्ट्रीय दूरसंचार नीति लागू की, जिसके अंतर्गत जगह-जगह टावर बनाकर सैटेलाइट के माध्यम से टेलीफोन सुविधाएं पहुँचाई गयीं। आज इसके सकारात्मक परिणाम पूरी तरह परिलक्षित हो रहे हैं। आज मोबाईल नेटवर्क के विस्तार से देश के उन हिस्सों के भी विकास की मुख्य धारा में जुड़ने का विश्वास हो चला है।
पाकिस्तान से संबंध सुधारने के लिए वाजपेयी जी ने 1999 में समझौता एक्सप्रेस योजना प्रारंभ की, जो उस वक्त की स्थितियों में अकल्पनीय-सा था।2004 में जब क्रिकेट डिप्लोमेसी शुरू करते हुए प्रधानमंत्री वाजपेयी भारतीय कप्तान सौरभ गाँगुली और पूरी टीम से मिले तो यही कहा - " खेल भी जीतिए, और दिल भी। " वे पाकिस्तान से शांति प्रयास के प्रति बहुत गंभीर थे।उनका मानना था कि बंदूक से कोई समस्या नहीं सुलझ सकती, पर भाईचारा सुलझा सकता है।इसीलिए तो उन्होंने कहा था - " इंसानियत, जम्हूरियत और कश्मीरियत सारी समस्याओं को सुलझाने का अल्टीमेट तरीका है।वे कहा करते थे कि - " हम दोस्त बदल सकते हैं, मगर पड़ोसी नहीं।" यह उनके उदात्त चरित्र को दर्शाता है और पूरे विश्वपटल पर एक गरिमामय और संकल्प शक्ति से भरपूर नेता के तौर पर उनकी पहचान बनाता है।
घमंड और अहंकार तो अटल जी में रंचमात्र भी नहीं था। वे व्यक्ति का मूल्य पहचानते थे, उसका सम्मान करना जानते थे।तभी तो 1977 में विदेश मंत्री बनने पर जब वे अपने दफ्तर गये और वहाँ से नेहरूजी की तस्वीर गायब पायी,तो इसके लिए न सिर्फ उन्होंने अफसरों को फटकार लगाई, बल्कि तुरंत नेहरूजी की तस्वीर वापस अपने कक्ष में लगवाई।आज तो विपक्षी राजनीतिक नामों और उनके प्रतीकों को नष्ट करने, हटाने और उनके पुनर्नामकरण की ऐसी होड़ लगी है कि सारी मर्यादाएँ तार-तार हो रही हैं, शालीनता की सारी सीमाएं टूट रही हैं।
खुद प्रधानमंत्री नेहरू अटल जी के व्यक्तित्व और उनकी विद्वता, वाक्पटुता और भाषण कौशल से इतने प्रभावित हुए थे कि उन्होंने उनके प्रधानमंत्री बनने की भविष्यवाणी उसी समय कर दी थी, जब वे छात्र नेता हुआ करते थे। ऐसे विलक्षण प्रतिभावान व्यक्ति का राष्ट्र का प्रधानमंत्री बनना उस संवैधानिक पद की गरिमा को और बढ़ा देता है।
गठबंधन राजनीति के उस दौर में जब सरकारें लगातार बन और गिर रही थीं, वाजपेयी जी ने अपने सूझबूझ और नेतृत्व कौशल से सोलह से अधिक दलों के सहयोग से सरकार बनाई और देश को स्थिरता दी।एक समय ऐसा भी आया जब संख्या बल के समक्ष वे हार गये थे।मगर उन्होंने कोई समझौता नहीं किया, और तुरंत पद त्याग दिया।भारतीय राजनीति में आज जहाँ सत्ता और पदलोलुपता का ही वर्चस्व है, उनका त्याग एक मिसाल बन कर रह गया है।उनका यह कथन कि सरकारें आएँगी, जाएँगी, मगर ये देश रहना चाहिए....भारतीय राजनीति में नैतिकता का चरमोत्कर्ष है।
1960 में बिहार के नवादा में अटल जी का भाषण होने वाला था। अटल जी जनसंघ के नेता गौरीशंकर केसरी के साथ रिक्शे पर बैठकर माइक से अपने ही भाषण का प्रचार करने निकल पड़े।बाद में मंच पर लोगों ने मुख्य अतिथि के रूप में उन्हें भाषण देते देखा, तो सभी चौंक गये।यह थी उनकी आडंबर विहीन सरलता, सौम्यता और सहजता।
यह विधि का विधान ही है कि भाजपा की स्थापना करने और वर्षों तक इसे सिंचित-पुष्पित-पल्लवित करने के बाद, आज जब यह देश में पूर्ण सत्ता के चरम पर पहुँची है, तो भारतीय राजनीति की शुचिता के प्रतीक और भीष्म पितामह राष्ट्रीय परिदृश्य से हमेशा हमेशा के लिए अंतर्ध्यान हो गये हैं। कदाचित् आज की राजनीति में नैतिकता के क्षरण को देखना उस कविहृदय महामानव को गवारा न था। इसे विधि की विडंबना नहीं तो और क्या कहेंगे कि जिसकी आवाज की दुनिया दीवानी थी, जो अपनी " विट " और अपने कवित्वपूर्ण भाषण से रग-रग में जोश और रवानी भर दिया करते थे, वही आवाज जीवन के आखिरी दस वर्षों तक खामोश रही, और हम सभी उनके शब्द-अमृत की वर्षा से भींगे बिना ही जीते चले आए।और आखिरकार, उसी मौन नि:शब्दता में वे इस नश्वर संसार से महाप्रयाण कर गये। नियति इतनी कठोर कैसे हो गई कि उसने उनसे उनकी स्मृति और चेतना तक छीन ली थी ? शायद प्रारब्ध का इशारा यह भी हो सकता है कि आगत समय ऐसा होने वाला है, जहाँ शब्द और वाणी के माधुर्य की राजनीति में कोई आवश्यकता ही न हो।और, जब शब्द और वाणी निरंकुश होने लगे, तो नि:शब्द हो जाना शायद सबसे अच्छा है।
हम धन्य हैं कि हमारे देश को मा.अटल बिहारी वाजपेयी जैसे महान युगद्रष्टा, विचारक और दूरदर्शी व्यक्तित्व का कुशल नेतृत्व मिला, जिसने भारतीय राजनीति के संक्रमण काल में प्रजातंत्र को दिशाहीन होने से बचा लिया।
अटल जी का जीवन एक राजनेता का जीवन नहीं है, बल्कि एक कोमल हृदय कवि की कविता ही है, जिसका न तो कोई आदि होता है न ही कोई अंत।वह तो चिरंतन, चिरकालिक, सर्वकालिक होता है।
आज मा. अटल बिहारी वाजपेयी जी हमारे बीच नहीं हैं ,पर उनका यश, उनके गीत, देशहित में किए गये उनके कार्य, उनकी यादों की असंख्य कीर्त्ति-रश्मियां देदीप्यमान सितारा बनकर मानवता के आसमान में सदा-सर्वदा विद्यमान रहेंगी और संपूर्ण वांगमय को अपनी रोशनी और आभा से आलोकित और अनुप्राणित करती रहेंगी।
वे जहाँ भी हैं, नई पीढ़ी और नये युग का आह्वान अपनी इन पंक्तियों से करते रहेंगे......
भरी दुपहरी में अँधियारा।
सूरज परछाईं से हारा।
अंतरतम का नेह निचोड़ें।
बुझी हुई बाती सुलगाएँ।
आओ मिलकर दिया जलाएँ।
और, यह भी कि.....
बाधाएँ आती हैं आएँ।
घिरें प्रलय की घोर घटाएँ।
पावों के नीचे अंगारे।
सिर पर बरसे यदि ज्वालाएँ।
निज हाथों में जलते-जलते।
आग लगाकर चलना होगा।
कदम मिलाकर चलना होगा।
जन-जन के चितेरे और भारत के सच्चे रत्न मा. अटल बिहारी वाजपेयी जी हम सब को शांति और सौहार्द्रपूर्ण जीवन जीने का एक नया मंत्र देकर चले गये, एक नया गीत रचकर चले गये, एक नयी गाथा सुनाकर चले गये, जो ताउम्र हर सच्चे देशवासी का जीवन-संबल बना रहेगा....
टूटे हुए सपनों की कौन सुने सिसकी,
अंतर को चीर व्यथा अधरों पर ठिठकी।
हार नहीं मानूँगा।
रार नई ठानूँगा।
काल के कपाल पर लिखता मिटाता हूँ।
गीत नया गाता हूँ।
गीत नया गाता हूँ।
- विजयानंद विजय
पता -
आनंद निकेत
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पो. - गजाधरगंज
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मो. - 9934267166
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