जब मैंने उसे देखा था तब वो महज 13 साल का था खाली पेट सो जाया करता था, पर कभी किसी के सामने हाथ नहीं फैलाया, कपडे फटे थे उसके पर कभी भी अपनी टांग किसी दुसरे की चादर से ढकने की कोशिश नहीं किया. बहुत ही खुद्दार हुआ करता था. होटलों में गिलास धोया, रात को सडको पर सोया ,मैंने बहुत बार कोशिश की उसकी मदद करने की पर उसे उसकी माँ ज़िन्दगी के कुछ वसूल सिखा कर गयी थी. कभी किसी के सामने हाथ न फ़ैलाने की.
तब एक दिन मैंने उसे पास बुला कर कुछ पैसे दिए और बोला तू यहाँ एक चाय की टपरी खोल जब पैसे आएँगे तो लोटा देना. इस बात से सहमत हो गया पर मैंने उस वक़्त घर का पता नहीं बताया था.
माफ़ कीजियेगा मैंने कहानी बीच से शुरू किया अब शुरू से आता हूँ. शुरुवात में खुद्दार नहीं था वो ज़िन्दगी तब बदली है उसकी जब उसकी माँ की मौत हुई थी. उसकी माँ एक टांग से लंगड़ी थी फिर भी खुद्दार थी. घर में तीन लोग थे बेवडा बाप लंगड़ी माँ और वो खुद. उसकी माँ दूसरों के घरो में बर्तन धो कर दोनों को पाल रही थी. बेवडा बाप दारू पिने के लिए उसकी माँ को भी बेचना चाहा तो उसकी माँ ने उसे घर से भगा दिया. वो दिन भर आवारा गर्दी करता बाप के संगत में वो भी दारू पीना शुरू कर दिया था जब तक बाप था उसकी बोतल से गुजारा चल जाता अब क्या ?
दारू के लिए भीख मांगना शुरू कर दिया, उसकी माँ उसे बार बार समझाती की ये दारू पीना भीख माँगना छोड़ दे पर उसके कानो में जूँ नहीं रेंगती थी. अपनी माँ से बहुत प्यार करता था इसलिए जब जब बोलती उस दिन भीख नहीं मांगता पर कुत्ते की दुम कहाँ सीधी हुई है.
बेटा अगर तेरा बाप सही होता तो आज तु पढाई कर रहा होता, उसकी माँ का सपना था की उसकी औलाद पढ़े लिखे पर औलाद को फुर्सत कहाँ भीख मांगने से.
दुनिया का सबसे ज्यादा भूखा गरीबी होता है ये इंसान को अन्दर ही अन्दर खा जाती है. यही हुआ उसकी माँ के साथ गरीबी और चिंताओं ने उसे इस कदर खाया की अस्पताल जाना पड़ा. मरते वक़्त उसकी माँ बोलीं बेटा मुझे माँ मानते हो न?
हाँ माँ तुम्हे कुछ नहीं होगा तुम जो कहोगी मैं वो करूँगा .
उसकी माँ की आंखे बंद होने लगी थी उसे सब कुछ धुन्दला दिखाई दे रहा था ऐसा लग रहा था मानो वो अपने सामने अपनी मौत को देख रही है.
बेटा तुम कहा हों ?
हाँ माँ मैं यहीं घबराओ मत माँ .
बे बेटा एक बात मानेगा ?
हाँ माँ कहों न मैं सुन रहा हूँ ...!
आपको पता है ऐसी हालात में हर कोई समझदार हो जाते हैं, वो जानते हैं की सामने वाला बचेगा नहीं फिर भी उनमे ज़िन्दगी की उम्मीद जगाये रखने की कोशिश करते रहते हैं, शायद इन्ही सब कारणों से तो हम इंसान हैं . यही दोनों की हालत थी अभी माँ की चिंता थी मेरे बाद इसका क्या होगा ? क्या ये भी अपने बाप की तरह बेवडा होगा, ये भी ज़िन्दगी भर भीख मांगता फिरेगा ?
बेटा ज़िन्दगी में किसी भी हालत में किसी के सामने अपना हाथ मत फैलाना भगवान् के सामने भी नहीं. पेट में दो निवाला ही डालना पर अपनी मेहनत का डालना.
हाँ माँ मैं मैं.... कभी भीख नहीं मंगुगा बस आप ठीक हो जाओ जल्दी .
एक और वादा करेगा ?
हाँ माँ बोलो ....
मरने के बाद मेरे लाश को लावारिश लाश में मत ले जाने देना अपनी हाथो से चिता को जलाना तुम्हे जो भी करना पड़े करना पर कभी चोरी मत करना भीख मत मांगना ..भीख मत मांगना ..भीख मत मांगना कहते कहते उसकी जान चली गयी आखिर जान भी कब तक एक की गरीब कहलाते रहेगी. उसे भी अमीरों का शौक होगा उस बच्चे की दुःख से उसे क्या लेना देना जब अस्पताल वालो की पड़ी नहीं है.
उसकी माँ की लाश को मुर्दाघर ले जाया गया. उसकी मानो तो दुनिया ही उजड़ गयी थी उसके सामने माँ के सारे चेहरे घुमने लगे थे वो प्यार से उसे खिलाना, घर देर से आने पर डांटना, रात को अपने गोदी में सुलाना बाप के मार से बचाना. वक़्त जैसे ठहर सा गया था ज़िन्दगी जवाब दे रही थी ,ऐसा लग रहा था कोई जरा सा धक्का उसे मौत के मुंह में ले जायगी.
तेरा बाप कहाँ हैं ? स्टाफ ने पूछा
‘नही है’ रूखे लहजे में उसने जवाब दिया.
तो पैसे कौन देगा ?
कितने पैसे देने होंगे और क्यूँ ?
पोस्टमार्टम होने के बाद पैसे जमा करना और लाश को ले जाना’ स्टाफ ने कहा
‘लाश नहीं माँ है वो मेरी’ उसने छिख कर बोला.
अरे चिलाता काहेको है माँ थी अब नहीं है, छोड़ मेरेको क्या करना का तुम पैसा जमा करो और कल ले जाना.. स्टाफ ने कहा
क..की...कितना पैसा जमा करना पड़ेगा ?
दवाई के लगे 800 और एक खम्भा ....इतैच लगा
उसने सर उठा कर उस स्टाफ को ऐसे देखा जैसे उसने पैसे के बदले उससे जान मांग ली हो, कहाँ से लाता वो इतनी बड़ी रकम, कमाएगा तो कैसे कमाएगा कुछ काम भी तो नहीं जानता था.
‘पर मेरे पास तो 50 है बस’ उसने कहा.
उसके इस जवाब में ढेरो सारी मिन्नतें शामिल थी मानो कह रहा हो की इतना ही में माँ मेरे पास अगर आप मेरी माँ को दे दे तो बड़ी मेहरबानी होगी.
स्टाफ ने कड़क आवाज में कहा- जाओ घर से ले आओ भीख मांगो पर ले आओ.
अस्पताल से निकल गया किसी अपने के तलाश में, कोई तो होगा जिसे उसपे तरस आये, और मदद कर दे.
दौड़ते हुए वह अपने रिश्तेदारों के दरवाजा खटखटाता है पर वहां भी उसे ताने और नाउम्मीदी के सिवा कुछ न मिलता है. लोगो को अपनी समस्या सुनाने की कोशिश करता है पर ऐसा लगता है मानो सारी दुनिया ही बहरी और अंधी हो गयी है. उस मासूम बच्चे की दर्द न किसी को सुने दे रही थी और न ही दिखाई.
मानो सारी दुनिया आगे बढ़ रही थी बस उसका वक़्त ठहर गया था, भरी दोपहर में सड़क पर इस उम्मीद से चलता जा रहा था की कहीं से कोई फ़रिश्ता आएगा और उसकी मदद करेगा. उसे चिढ होने लगी थी लोगो की ख़ुशी देख कर बिच चोराहे पर खड़े हो कर जोर से रोता रहा, पर शायद वाकई में लोग बहरे और अंधे हो गये थे. रोते-रोते जब थक गया तो वहीँ सर झुका कर बैठ गया. कहतें हैं जिसका कोई नहीं होता उसका भगवान् होता है वो किसी न किसी रूप में अपने बच्चो की मदद करने भेज ही देता है. यहाँ भी यही हुआ अचानक किसी ने उसके कंधे पर हाथ रखा ‘बेटा क्या हुआ ?
पीछे पलट कर देखा की आदमी सहानुभूति भरे आवाज में उससे पूछ रहे थे.
कल से कुछ न खाने के कारन वो बहुत कमजोर हो चूका था उसके जुबान से आवाज नहीं निकल रही थी.
म्मम्म ...माँ ....! उसने कहा
चलो पहले मेरे साथ.... उस भले पुरुष ने उसे पास वाले दुकान में ले गया और बोला मैं तुम्हे बहुत देर से देख रहा हूँ रोये जा रहे हो, पहले कुछ खा लो फिर बताना अपने बारे में...
उसने खाना को मना किया और सिर्फ पानी पिने के बाद सारी घटना बता दिया. वहां मौजूद सभी की आँखों में आंसू आ गयी,
सारी ज़िन्दगी ज़िल्लत भरी ज़िन्दगी जिया है कमसेकम मेरी माँ की मौत को जायज तो जाने दूँ, उसने कहा ..
मतलब ?
मतलब मुझे काम चाहिए चाचा , भीख नहीं ... उसकी इस बार की आवाज में आत्मविश्वास था, कुछ कर गुजरने की आश थी.
पर बेटा तुम महज 13 वर्ष के हो अगर मैं काम दूँ तो ये तो बालश्रम हुआ और मुझे पाप की भागीदारी नहीं बनना ...उस पुरुष ने कहा
‘तब चाचा रहने दीजिये’ बोल कर वो चलने लगा.
‘रुको बेटा कौनसे दुनिया से आये हो यार एक मेरी औलाद है जो मेरी एक बात नहीं मानती और एक तू है जो अपने माँ की मौत के बाद भी ऐसी हालात में खुद्दारी दिखा रहे हो. ये सामान लो और इस पत्ते पर पहुंचा दो’ चाचा ने रोकते हुए कहा.
पहुंचा तो दिया था उसने सामान को पर उसके बदले उसे महज 50 रूपये ही मिले थे अब भी 750 बच रहे थे एक दिन में कहाँ से लायेगा. यही सोचते हुए जा रहा था की तभी उसे सड़क के किनारे कुछ लोग ताबूत बनाते हुए दिखे , वहां कुछ लड़के भी काम कर रहे थे. पास जा कर उस ताबूत बनाने वाले से पूछा एक दिन का का कितना देते हैं काम करने का ?
उस बूढ़े ने उसे गौर से ऊपर से लेकर निचे तक निहारा फिर खांसते हुए कहा – 8 घंटे काम का 250 पर तुम क्यूँ पूछ रहे हो?
उसने बिनती भरे आवाज में कहा ‘मुझे मुझे भी काम चाहिए ?
नहीं यहाँ बच्चे काम नहीं करते ..कड़क आवाज में उस बूढ़े ने कहा.
उसने उस बूढ़े आदमी के पैर पकडे कई विनातें किये तब कहीं जा कर वो बुढा आदमी माना.
अच्छा ठीक है करो काम पर आज का पगार आधा मिलेगा क्यूंकि आधा दिन बीत गया है. कहते हुए बूढ़े आदमी ने उसे रंग का डब्बा थमाते किसी और काम में व्यस्त हो गया.
बिना खाए पिए वो लगातार काम करता रहा, जब अँधेरा हुआ तो दूकान बंद करने का समय हो गया था.
लो आज का पगार 150 रूपये तु मेहनत कर रहा था इसलिए दिया जाओ कल से नहीं आना, कहते ही बूढ़े ने दरवाजा बंद कर दिया.
भागा-भागा सीधा अस्पताल गया..
‘लो पैसे’ हाफ्ते हुए उसने पैसे स्टाफ के हाथो में थमा दिया.
इतना से क्या होगा और चाहिए अभी 650 रूपये और एक खम्भा सुबह तक वक़्त है वरना ,.......
व..व..वरना क्या ? उसके सवाल में डर साफ़ झलक रहा था.
‘वरना लावारिश लाश वाले आयंगे और सैकड़ो के साथ जला देंगे’ ....
‘नहीं नहीं ऐसा मत करना मैं कुछ करता हूँ’ कहते हुए वो वहीँ बैठ जाता है ..
थकन की वजह से उसे कब नींद आ गयी पता ही नहीं चला .
सुबह जब उठा तो देखा सामने ट्रक है और पास में ही वही स्टाफ खड़ा था.
‘तब भाई पैसा हुआ ? नहीं न जाओ अब देखना अपने माँ की चिता जलते हुए जलाना तो नशीब नहीं हुआ यही सही’स्टाफ उसके पास आते हुए कहता है.
उसके सामने जैसे माँ कड़ी हो जाती है और कहती है ‘ मेरी आखिरी इक्षा भी पूरी न कर सके तुम, पर कोई बात नहीं तूने भीख नहीं मांगी ये सही किये.’
‘अपनी माँ को देख कर वो रोने लगा मुझे माफ़ कर देना तुमसे किया हुआ वादा पूरा न कर पाया.’ कहते हुए वो घुटने के बल बैठ जाता है.
कोई बात नहीं बेटा शुरुवात तुने अच्छी की है और बस ऐसे ही करते रहना, आगे बढ़ो..आगे बढ़ो अरे आगे बढ़ो...!
जैसे किसी ने उसे गहरी नींद से जगाया हो . होश आया तो देखा साफ करने वाली जोर जोर से उसे हटने को बोल रही थी.
'बहरा है क्या कबसे बोले जा रही हूं हटने को'
उसने स्टाफ के पांव पकड़ लिया और बोला मुझे बस दो दिन का वक्त दे दो मैं तुम्हारा पैसा जमा कर दूंगा लेकिन मेरी मां को नहीं ले जाने दो..!
और मैं ऐसा क्यूं करूं ? स्टाफ ने पूछा
'मैं तुम्हारे लिए दो खंभा का इंतजाम कर दूंगा बस मेरी मां को मत लेे जाने देना'
ऐसा लग रहा था जैसे सारी दुनिया उसकी दुश्मन हो,ये दिन हो या रात सुबह हो या शाम वक़्त भी दुश्मन था, आस पास के लोग भी दुश्मन थे, अब कहां जाए क्या करे कैसे इतने पैसों का होगा इंतजाम ?
क्या वाकई में मैं मां से किया हुआ वादा नहीं पूरा कर पाऊंगा ? यही सोचते हुए उसी ताबूत बनाने वाले के पास पहुंच जाता है..!
'तु फिर आ गया पर काम नहीं मिलेगा" कहते हुए बूढ़ा अपने काम में व्यस्त हो गया.
इस बार उसने बूढ़े के पैर पकड़े गिड़गिड़ाया
"बस मुझे दो दिन काम पर रख लो ज़िन्दगी भर एहसान मंद रहूंगा"
शायद इस बार उस बूढ़े को उसपे तरस आ गया और उसे काम पर रख लिया. वो पूरे दिन काम करता रहा शाम को जब सबको छुट्टी मिली तब उसने बूढ़े आदमी से आग्रह किया कि वो और काम करेगा अभी ..
क्यूं ? वैसे भी दिन में तुने कुछ खाया भी नहीं था पहले खा कर आओ घर से.बूढ़े ने इस बार नरमी से बोला.
"नहीं है कोई घर में "
क्यूं कहां गए हैं तेरे मा बाप ?
तत्पश्चात उसने सारी कहानी एक ही सांस में बयां कर दिया और बोला मैं अपनी मां की आखिरी इक्षा पूरी करना चाहता हूं .
बूढ़े के आंखो में आंसू आ गए उसकी जुबान से एक भी लब्ज़ नहीं फूट रहे थे. कहना बहुत कुछ चाहता था पर जुबान साथ से तब ना उसने कुछ ना कहकर गले लगाना ही सही समझा.
जब दो दर्द आपस में गले मिलते हैं ना दर्द बढ़ता नहीं कम होता है यही दोनों को हो रहा था बूढ़े के भी ज़िन्दगी में उसके औलाद छोड़ के जा चुके थे.
"चल बेटा पहले खाना खा ले उसके बाद काम करना"बूढ़ा कहते हुए खाना निकालने लगा।
दो दिन बीत गए थे जैसे ही उसे पैसे मिले उसके आंखो से आंसू टपकने लगे, इस बार आंसू ना ही खुशी के थे और ना ही गम के इस बार के आंसू थे कुछ हासिल कर लेने की, एक नई उम्मीद की ,अपनी जिम्मेदारी को सही तरीके से कर लेने की दौड़ते हुए अस्पताल जाता है.
ये क्या वो ट्रक वहां आज फिर से खड़ा था स्टाफ उसके पास था।
"लो सारे पैसे में लेे आया अब मेरी मां को लौटा दो ." हांफते हुए उसने पैसे देते हुए बोला.
देर करदी तुने अभी अभी ट्रक में लोड हुआ है सब बॉडी. स्टाफ उसे गुस्साते हुए देख कर बोला.
लोड पर मैंने तो आज तक का समय मांगा था तुम ऐसे कैसे कर सकते हो, अरे मां है वो मेरी मेरे जीते जी उसकी बॉडी के साथ लावारिश की तरह सुलूक किया जाए तो मेरा जीने का क्या फायदा? मैं भी मर जाता हूं मेरे बॉडी को भी साथ जला देना.!
पैसे को वो स्टाफ को थमाते हुए सड़क की ओर जाने लगा तभी
सबकुछ तो हो गया तो कफ़न कहां से लाओगे ? स्टाफ ने चिल्लाते हुए कहा.
कफ़न ? ...
स्टाफ ने उसे बॉडी थमा दी पर उसके ऊपर कफ़न का बोझ छोड़ कर चला गया .
अपनी मां के छाती पर सर टिकाए बस एक ही बात रटे जा रहा था कोई मदद करदो मेरी इन्हे कबिरतान तक ले जाने में..
तभी पीछे से कोई उसके कंधे पर हाथ रखते है "बेटा"
चलो मां से अलविदा कहने का समय हो गया है."
पीछे मुड़ कर देखा तो वहीं बूढ़े थे.
काका ...
कफ़न फ्री में आता है इसमें तुम्हे भीख मांगने या काम करने की जरुरत नहीं पड़ेगी.
जब उसकी को दफना रहे थे तब उसे उसकी मां उससे दूर जा जाते दिखाई दे रही थी।
अगर हमारे बस में होता तो जिसे ज्यादा चाहते हैं उसे कभी अपने ज़िन्दगी से दूर ना करते । पर दुनिया का नियम है जो आया है वो जाएगा ही, शरीर नश्वर होता है कोई किसी का अपना नहीं होता। बस प्यार, लगाव यादें यही सब होते हैं जिसकी वजह से सब अपने लगते हैं।
बेटा तेरा क्या नाम है ? बूढ़े ने कब्रिस्तान से आते वक़्त पूछा .
काका मेरा मेरा नाम और काम दोनों अब से 'कफ़न' ।
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