अमीरी का नशा (विश्व के महान दार्शनिकों की कहानियाँ) MB (Official) द्वारा लघुकथा में हिंदी पीडीएफ

Featured Books
श्रेणी
शेयर करे

अमीरी का नशा (विश्व के महान दार्शनिकों की कहानियाँ)

अमीरी का नशा;

विश्व के महान दार्शनिकों की कहानियाँद्ध

Matrubharti



© COPYRIGHTS

This book is copyrighted content of the concerned author as well as Matrubharti.

Matrubharti has exclusive digital publishing rights of this book.

Any illegal copies in physical or digital format are strictly prohibited.

Matrubharti can challenge such illegal distribution / copies / usage in court.

अमीरी का नशा ;विश्व के महान दार्शनिकों की कहानियाँद्ध

अमीरी का नशा

लेव तोल्सतोय

एक गरीब किसान बड़े सवेरे अपने हल के साथ खेत पर पहुँचा। नाश्ते के लिए उसके पास रोटी थी। उसने अपने हल को ठीक किया। अपने कोट को उतारकर उसी में रोटी को लपेटकर पास की झाड़ी की ओट में रख दिया और अपने कार्य में जुट गया।

कुछ समय पश्चात जब उसके बैल थक गये और उसे भूख भी लगी तो उसने हल चलाना बन्द कर दिया। उसने बैलों को खोल दिया और अपने कोट में रखी रोटी लाने के लिए झाड़ी की ओर बढ़़ा। किसान ने कोट उठायाए लेकिन वहाँ रोटी न थी। उसने इधर.उधर देखाए कोट को झाड़ाए लेकिन रोटी नदारद। किसान समझ न सका कि मामला क्या हैघ्

उसने सोचा.ताज्जुब हैए मैंने किसी को इधर आते.जाते नहीं देखाए क्या यहाँ कोई पहले से बैठा थाए जो मेरी रोटी ले गयाघ्

वहाँ एक शैतान थाए जिसने रोटी उस समय चुरा ली थी जबकि किसान हल जोत रहा था। जब किसान झाड़ी के पास आयाए उस समय भी वह झाड़ी के पीछे था। वह इस इन्तजार में था कि किसान प्रेतों के राजा को कुछ गालियाँ दे।

किसान अपनी रोटी खोकर दुखी था। उसने सोचा.इस तरह काम नहीं चलेगा। मुझे भूखों नहीं मरना है। इसमें कोई शक नहीं कि जो कोई भी रोटी ले गया होगाए उसको मुझसे ज्यादा जरूरत रही होगी। भगवान उसका भला करे।

वह कुएँ पर गया। पानी पीकर अपनी भूख मिटायी और थोड़ी देर तक आराम किया। फिर अपने बैलों को लेकर खेत जोतने लगा।

शैतान बहुत दुखी हुआ। उसे दुख इस बात का था कि वह किसान से गलत काम कराने में सफलता न पा सका। उसने अपने मालिक प्रेतों के राजा के पास जाकर आज की घटना की सूचना देने का निश्चय किया। वह प्रेतों के राजा के पास पहुँचाए उसे बताया कि किस प्रकार उसने किसान की रोटी ली और किसान ने गालियाँ देने के बजाय ये शब्द कहे.भगवान उसका भला करे।

इस बात को सुनकर प्रेतों का राजा बहुत क्रुद्ध हुआ। उसने कहा.यदि मनुष्य ने तुम्हारे साथ भलाई की है तो इसमें तुम्हारी गलती है। तुम्हें अपने कार्य का ज्ञान नहीं है। यदि किसान और किसान की स्त्री इसी प्रकार के नेक कार्य करते रहे तो हम घाटे में पड़ जाएँगे। तुम वापस जाओ और अपनी गलतियों को सुधारो। यदि तीन साल के अन्दर तुम अपने कार्य में सफल न हुए तो मैं तुम्हें पवित्र जल में फेंक दूँगा।

शैतान डर गया। वह तुरन्त धरती पर वापस आया। वह सोचने लगा कि किस प्रकार वह अपना काम बनाए। सोचते.सोचते उसे एक उपाय सूझा। उसने एक मजदूर का रूप बनाया और गरीब किसान के साथ काम करने लगा। पहले साल उसने किसान को सलाह दी कि अनाज निचली सतह की जमीन में बोओ। किसान ने उसकी सलाह मान ली। उस साल सूखा पड़ गया। अन्य किसानों की फसलें सूखा पड़ने के कारण नष्ट हो गयींए लेकिन इस किसान की फसल बहुत अच्छी हुई। उसके पास इतना अनाज हो गया कि साल भर खाने के बाद भी काफी अनाज बच रहा।

शैतान ने सोचा कि फिर गलती हो गयी। अतः अगले साल उसने किसान को सलाह दी कि वह ऊँचे स्थान पर फसल बोये। उस साल अधिक वर्षा के कारण अन्य किसानों की फसल बरबाद हो गयीए लेकिन किसान की फसल लहलहाती रही। उसके पास इतना अनाज हो गया कि वह समझ नहीं पा रहा था कि उसका क्या करेघ्

तब शैतान ने उसे अनाज से शराब बनाने की सलाह दी। किसान ने शराब बनायी। वह स्वयं पीने लगा और अपने दोस्तों को भी पिलाने लगा।

इतना सब करने के पश्चात शैतान प्रेतों के राजा के पास गया। उसने अपनी सफलता की कहानी उसे सुनायी। प्रेतों के राजा ने कहा.मैं स्वयं चलकर देखूँगा कि तुमको कितनी सफलता मिली हैघ्

वह किसान के घर आया। उसने देखा कि किसान ने अपने अमीर दोस्तों को दावत दी है और उन्हें शराब पिला रहा है। किसान की स्त्री उसके दोस्तों को शराब दे रही है। इसी बीच किसान की स्त्री के हाथ से एक गिलास छूट गया और शराब फर्श पर फैल गयी।

किसान ने गुस्से से अपनी पत्नी की ओर देखा और बोलाए श्तुम क्या कर रही होघ् बेवकूफ स्त्रीघ् क्या तुम सोचती हो कि यह शराब मामूली पानी हैए जिससे फर्श धोया जाएघ्श्

शैतान ने प्रेतों के राजा की ओर देखा और बोलाए श्देखिएए यह वही व्यक्ति हैए जिसे किसी समय अपनी रोटी खो जाने का जरा भी गम न था और आज अपनी प्यारी बीवी को डाँट रहा है।श्

किसान अब भी गुस्से में था। वह स्वयं अपने मेहमानों को शराब देने लगाए उसी समय एक गरीब किसानए जिसे कि निमंत्रण नहीं मिला थाए काम पर से लौटते समय वहाँ आया। उसने देखा कि लोग शराब पी रहे हैं। वह दिन भर के परिश्रम से बहुत थका हुआ था। उसे भूख लगी थी। अतः वह भी वहीं बैठ गया। उसे बहुत जोर से प्यास लग रही थीए लेकिन किसान ने उसे पूछा भी नहीं। केवल इतना ही बोला कि यहाँ कोई खैरातखाना नहीं खुला है कि जो भी आ जाए उसे मैं खिलाता.पिलाता रहूँ।

प्रेतों का राजा इससे बहुत प्रसन्न हुआ। शैतान खुशी से उछल पड़ा और बोलाए श्रुकिएए अभी आगे देखिएए क्या.क्या होता है।श्

किसान ने अपने अमीर दोस्तों के साथ खूब शराब पी। वे एक.दूसरे की चापलूसी में झूठ.मूठ की तारीफें करने लगे। प्रेतों का राजा किसान और किसान के मित्रों की बातें सुन.सुनकर आनन्दित होता रहा। उसने शैतान की खूब तारीफ की और कहाए श्शराब ने इन किसानों को लोमड़ी की तरह बना दिया है। वे एक.दूसरे की चापलूसी करके एक.दूसरे को बेवकूफ बना रहे हैं। शीघ्र ये हमारे हाथों में होंगे।श्

श्आगे क्या होता हैए इसका इन्तजार कीजिएश्.शैतान बोलाए श्उन्हें एक गिलास और तो पीने दीजिए। अभी तो वे लोमड़ी की तरह व्यवहार कर रहे हैं। एक.दूसरे की तारीफ कर रहे हैं। शीघ्र ही आप उन्हें खूँखार भेड़िए की तरह लड़ते देखेंगे।श्

किसान और किसान के दोस्तों ने शराब का दूसरा गिलास पिया। उनकी हरकतों में जंगलीपन आने लगा था। मधुर बातों के स्थान पर अब वे गुस्से में बोल रहे थे। एक.दूसरे को गालियाँ देने लगे। शीघ्र ही वे लड़ने लगे। इस मारपीट में किसान को खूब पीटा गया।

प्रेतों का राजा बड़ी प्रसन्नता के साथ यह सब कुछ देख रहा था। वह बोलाए श्यह बहुत अच्छी बात हुई।श्

शैतान बोलाए श्रुकिएए अभी और देखिए। इसको तीसरा गिलास तो पीने दीजिए। अभी तो ये भेड़ियों की तरह लड़ रहे हैंए एक गिलास और पीते ही ये सूअरों का.सा व्यवहार करने लगेंगे।श्

किसान और किसान के दोस्तों ने शराब का तीसरा गिलास पिया। वे अब जंगली जानवरों का.सा व्यवहार करने लगे। वे भयानक आवाजें करने लगे। वे स्वयं नहीं समझ पा रहे थे कि वे क्यों इस प्रकार शोर मचा रहे हैं।

धीरे.धीरे मेहमान जाने लगे। किसान उन्हें बाहर पहुँचाने लगा। जब वह मेहमानों को पहुँचाकर जाने लगा तो एक गढ़़े में गिर पड़ा। वह नीचे से ऊपर तक कीचड़ में सन गया। गिरते ही वह सूअर की तरह चिल्लाने लगा।

प्रेतों का राजा इससे बहुत प्रसन्न हुआ। उसने कहाए श्तुमने आदमी को गिराने के लिए शराब जैसी चीज का आविष्कार करए अपनी पिछली भूल को अच्छी तरह सुधार लिया है। लेकिन मुझे बताओ यह शराब तुमने किस प्रकार तैयार करायी हैघ्श्

शैतान ने कहाए श्मैंने केवल इतना ही किया है कि किसान के पास जरूरत से ज्यादा अनाज हो गया। जानवरों का खून मनुष्य में हमेशा ही रहता है। लेकिन मनुष्य के पास जब आवश्यकता भर को ही अनाज होता है तो वह शान्ति से रहता है। उस समय किसान को एक रोटी खो जाने पर कष्ट नहीं हुआ था। लेकिन जब उसके पास आवश्यकता से अधिक अनाज हो गया तो वह उससे आनन्द की खोज करने लगा। और मैंने उसे गुमराह करके आनन्द का रास्ता दिखाया.वह था शराब का सेवन। और जब वह अपने आनन्द के लिए ईश्वर की दी हुई तमाम बरकतों को शराब में उड़ाने लगा तब लोमड़ीए भेड़िये और सूअरों का स्वभाव उसके अन्दर से आप से आप प्रकट हो गया। यदि वह ऐसे ही पीता रहा तो वह हमेशा के लिए जंगली जानवर बन जाएगा।श्

प्रेतों के राजा ने शैतान की खूब तारीफ की। उसकी पहले की भूल माफ कर दी और उसे शैतानों का मुखिया बना दिया।

'''

वनमानुस की चुप्पी

जहूर बख़्‌श

बहुत पुरानी बात है। रूस में एक गाँव था। वहाँ एक गरीब बूढ़़ा और उसकी बुढ़़िया रहा करती थी। एक बार बहुत सर्दी पड़ी। उस सर्दी में बुढ़़िया चल बसी।

रात हो गयी थी। सड़क पर खूब कोहरा फैला हुआ था। लेकिन बुढ़़िया की लाश तो दफनानी थी। इसलिए अपना पुराना कोट पहनकर बूढ़़ा घर से बाहर निकला। उसने अपने पड़ोसियों के दरवाजे खटखटाये। उन्हें बुढ़़िया की मृत्यु का समाचार बताया। फिर उसे दफनाने के लिए विनय की। पर उस कड़ाके की सर्दी में उसके साथ जाकर बुढ़़िया को दफनाने के लिए कोई तैयार न हुआ।

अन्त में बूढ़़ा गाँव के पादरी के पास गया। उसने सोचा कि पादरी दयालु हृदय का हैए वह जरूर मदद करेगा। लेकिन पादरी ने जब बूढ़़े का दुख सुना तो पहले चुप रहा। फिर बोला. तुम्हारे पास रुपये हैंघ् जानते होए तुम्हें मुझे इस काम के लिए कुछ रुपये देने पड़ेंगेघ्

. मैं तो गरीब बूढ़़ा हूँ. हाथ जोड़कर बूढ़़े ने कहा. इस समय तो मेरे पास एक पैसा भी नहीं है। लेकिन मैं वायदा करता हूँ कि तुम्हारे रुपये मैं दे जाऊँगा।

. तब इस सर्दी में मुझे फुर्सत नहीं हैए जाओ। . इतना कहकर पादरी ने किवाड़ बन्द कर लिये। बेचारा बूढ़़ा गिड़गिड़ाता ही रह गया। जब किसी तरफ से मदद की आशा न रही तो उसने कुदाल उठायी और कब्रिस्तान पहुँचकर कब्र खोदने लगा।

अचानक बूढ़़े की कुदाल एक घड़े से टकरायी। बूढ़़ा चक्कर में आ गया। उसने गड्ढे की मिट्टी हटायी। देखा तो सोने की अशर्फियों से भरा सोने का एक घड़ा रखा है। वह खुशी से फूला नहीं समाया। उसने सोचा कि अब उसकी बुढ़़िया बहुत अच्छे ढ़ंग से दफना दी जाएगी। फिर वह पादरी और रिश्तेदारों को दावत भी दे सकेगा।

बस उसने चटपट उस घड़े को उठाया और घर लौट आया। जेब में दस अशर्फियाँ डाल लीं। बाकी छिपाकर रख दीं।

बूढ़़ा फिर से पादरी के पास गया। पादरी पहले तो झल्लायाए लेकिन जब उसने दस अशर्फियाँ देखीं तो उसको लालच आ गया। उसने सोचा इतना धन तो बड़े.बड़े रईसों को दफनाने पर भी नहीं मिलता। इसलिए वह बूढ़़े के साथ चल दिया।

बुढ़़िया को दफनाने के बादए बूढ़़े ने सबको बढ़़िया दावत दी। पादरी ने ठूँस.ठूँसकर खाया। सबने उस दावत की तारीफ की।

जब सब चले गये तो पादरी ने उस बूढ़़े को अकेले में बुलाकर पूछाए श्जब तुम मेरे पास पहली बार आये थेए तब तुम्हारे पास एक पैसा भी नहीं था। अचानक इतना धन तुम्हारे पास कहाँ से आ गयाघ् क्या किसी के यहाँ डाका डाला हैघ् या किसी का खून करके लूट लिया हैघ् सच.सच बता दोए वरना तुम्हें पाप लगेगा और ईश्वर सजा देगा।श्

पादरी की बात सुनकर बूढ़़ा घबरा गया। उसने कहाए श्सच बात यह है कि मुझे जमीन में गड़ा हुआ सोने का एक घड़ा मिला। उसमें अशर्फियाँ भरी हुई थीं।श्

श्ठीक है! मौज उड़ाओ!श् . कहकर पादरी चला गया।

बूढ़़ा निश्चिन्त हो अपने काम में लग गया। लेकिन पादरी के मन में चौन न था। वह उस धन को हथियाने की योजना बनाता रहा। उसने एक तरकीब सोची और रात होने का इन्तजार करने लगा।

पादरी कद में बहुत छोटा था पर था बहुत चालाक। उसके पास एक बूढ़़ा बकरा भी था। रात हुई तो उसने बकरे का वध किया। फिर उसकी खालए सींग और दाढ़़ी निकाली। खाल को ओढ़़कर पत्नी से बोला कि उसे सूई.डोरे से सी दे। इसके बाद बकरे के सींग अपने सिर पर लगाये। उसकी दाढ़़ी के बाल अपनी दाढ़़ी में लगाये।

अब पादरी एक भयानक शैतान की शक्ल का दिखने लगा। वह बूढ़़े के घर की ओर चला। रात बढ़़ रही थी। बूढ़़ा सो रहा था। पादरी ने बूढ़़े के घर की खिड़की खटखटायी।

बूढ़़े ने पूछाए श्कौनघ्श्

पादरी नाक से आवाज निकालकर बोलाए श्मैं शैतान हूँ।श्

श्यह तो पवित्र जगह है। तुम्हारा यहाँ क्या कामघ्श् बूढ़़े ने घबराकर कहा।

श्तुम मेरा धन ले आये हो। मैंने तुम्हारी गरीबी पर दया की थी। सारा धन इसलिए दिखाया था कि जितनी जरूरत हो ले लो। पर तुम ठहरे लालची। तुमने सारा धन ले लिया। अब तुम्हारा काम हो गया है। मेरा धन वापस कर दो।श्

बूढ़़े ने सोने का घड़ा उठाया। खिड़की खोली। शैतान की भयानक शक्ल देखकर डरते.डरते घड़ा उसके हाथों में थमा दिया।

पादरी इतना सारा धन पाकर बहुत खुश हुआ। वह घर आया। धन को सन्दूक में बन्द किया। फिर पत्नी से बोला कि उसकी खाल के टाँके काट दे। पत्नी ने जैसे ही चाकू चलाया तो पादरी चीख पड़ा। उसके शरीर से खाल चिपक चुकी थी। जिस जगह काटा था वहाँ से खून बहने लगा था।

दोनों बड़े चक्कर में पड़ गये। उन्होंने खाल निकालने की बहुत कोशिश की। पर सफल न हुए। अब सींग और दाढ़़ी के बाल भी निकालने की कोशिश की पर वे भी चिपके हुए थे। मजबूर होकर पादरी उसी शक्ल में रहा। उसे अपने पाप का बदला मिल गया था। उसने बूढ़़े का धन भी लौटाना चाहा। पर बूढ़़े ने उसे शैतान का धन कहकर नहीं लिया। जब तक पादरी जिन्दा रहाए अपनी इस करनी के लिए पछताता रहा। लोग भी उसे बहुत बुरा.भला कहते रहे।

'''

चाँदनी की बाँहें

एडिसन मार्शल

एडिसन मार्शल अमरीकी लेखक हैंए उन्होंने एशियायी पूर्व देशों की यात्राएँ की हैं और उन देशों के सामाजिक तथा सांस्कृतिक जीवन का अध्ययन किया है। प्रस्तुत कहानी उनके ष्लव स्टोरीज अॉफ इण्डियाष् कथा संग्रह से ली गयी है।

जेम्स कार्पेण्टर मुझे जहाज पर मिला था। जहाज न्यूयॉर्क से जेनेवा जा रहा था। उस रात जहाज पर फैंसी ड्रेस का कार्यक्रम था। जेम्स रोमन संसद सदस्य के रूप में शो में आया था। उसने अपने बिस्तर की सफेद चादर लपेट ली थीए पर उसका शरीर कुछ ऐसा था कि वह बिलकुल रोमन संसद का सदस्य लग रहा था। उसे ही पहला पुरस्कार मिला।

जब जहाज जेनेवा पहुँचाए मैं कुछ जरूरी कामों में लग गया। जेम्स से मेरी ज्यादा बातें नहीं हुईं। पर इतना पता चला कि वह हिन्दुस्तान जा रहा है। कॉलेज की डिग्री उसके पास है और वह कलकत्ता में लाइफ इन्श्योरेंस का काम करेगा। उसकी अमरीकन कम्पनी ने राह खर्च दिया है। कलकत्ता के बारे में मैं खूब जानता था। वायसराय महोदय के जश्नों का मुझे अन्दाज था। पर मुझे डर लग रहा था कि जेम्स जैसा सीधा.सच्चा नौजवानए जिसकी आँखों में चतुराई की चमक तक नहीं आयी है.वहाँ कैसे सफल हो सकेगा! वह अनुभवी भी नहीं था। न कोई लड़की पीछे छोड़कर आया था। न किसी लड़की को वचन देकर आया था। क्योंकि अमरीकन लड़कियाँ उसे अपने बौद्धिक स्तर तक आती नहीं मिली थीं। उसे पढ़़ाई.लिखाई के कारण इतना वक्त ही नहीं मिला था कि वह लड़कियों की तरफ ध्यान देता।

तोए दूसरी सुबह जेम्स अपना सारा सामान लेकर इटैलियन जहाज पर चला गया जो बम्बई जा रहा था। उसकी कम्पनी ने फर्स्‌ट.क्लास का टीकट दिया था ताकि वह रास्ते में ही अच्छे और प्रख्यात लोगों से सम्बन्ध बनाता हुआ जाए।

उस इटैलियन जहाज पर बहुत से हिन्दुस्तानी भी थे जो योरप में गर्मियाँ बिताकर वापस जा रहे थे। उनमें से एक महाराजा भी थे। रात के खाने पर सब जमा होते थेण्ण्ण् उनमें से एक विदेशी सिनेमा स्टार थाए बंगाल लांसर्स के एक कप्तान थे। एक वाणिज्य दूत थे और तमाम ऐसे थे जिन्हें अँग्रेजों ने पद औैर पदवियाँ दी हुई थीं।

जेम्स ने महाराजा बाकरतन को देखा तो सहसा उसे विश्वास नहीं हुआ कि हिन्दुस्तानी महाराजा ऐसे भी हो सकते हैं। वे ट्‌वीड का सूट पहने हुए थेण्ण्ण् न हीरों से लदे थे न सोने से मढ़़े थे। जेम्स ने सोचाए नाम के लिए यह महाराजा होंगेण्ण्ण् बाकी सब कुछ तो अँग्रेजों के मातहत होगा। ताज्जुब उसे सिर्फ महाराजा के रंग को देखकर हुआ। वे अँग्रेजों से भी गोरे ही थे और उसने सोचा शायद यह महाराजा किसी अँग्रेज के वीर्य की देन होंगे क्योंकि वह सोच ही नहीं सकता था कि कोई हिन्दुस्तानी इतना गोरा हो सकता है।

महाराजा के साथ उनके कुछ मंत्रीए सेवकए सेक्रेटरी थे। उनकी रानीए एक लड़का और एक लड़की भी थी। लड़की फ्रांस में पढ़़ती थी। वह अपनी आया के साथ डेक पर बैठती थी। जेम्स ने पहली बार राजकुमारी को देखा तो चकित रह गया था। वह विश्वास नहीं कर पाया कि हिन्दुस्तान में इतनी सुन्दर लड़की भी हो सकती है। जेम्स की अजानकारी पर मुझे आश्चर्य भी हुआ। उसे नहीं मालूम कि हिन्दुस्तानी लड़कियों की आँखें हम जैसे ज्यादा उम्र के लोगों को भी डाँवाडोल कर देती हैं। वे फरिश्तों की आँखों से भी ज्यादा चमकदार होती हैंण्ण्ण् अगर जेम्स यह खूबसूरती न देख पाता तो मुझे आश्चर्य होता। हिन्दुस्तानी राजकुमारियों की बाँहें और हाथ इतने कोमल और रेशमी होते हैं कि उनकी तुलना असम्भव है। चाँदनी की बाँहेंण्ण्ण् बस यही कहा जा सकता है।

राजकुमारी को देखकर जेम्म अपने को रोक नहीं पाया। उसने डेक के तीन.चार चक्कर लगाये कि बात कर सकेण्ण्ण् पर हिन्दुस्तानी लड़कियों को खुद अपना परिचय देना शायद शालीनता नहीं समझी जाती। जेम्स ने यह ठीक ही सोचा था।

डिनर पर उसे वह सोलह वर्षीयए दुबली.पतली पर अनिन्द्य सुन्दरीए चाँदी की बाँहोंवाली राजकुमारी फिर दिखाई दी। पर कुछ ही देर बाद वह अद्रश्य हो गयी। सिर्फ एक बार जेम्स की नजर उससे मिली थी और वह हक्का.बक्का रह गया था। किसी अमरीकन लड़की के देखने पर कभी ऐसा ज्वार नहीं उठा था।

जेम्स फौरन यात्रियों की लिस्ट देखने गया। पता चला कि राजकुमारी का नाम लीरा किरनपाला है।

डिनर और डांस समाप्त हो चुके थे पर जेम्स को नींद नहीं आ रही थी। वह ऊपरवाले डेक पर गयाण्ण्ण् जहाँ महाराजा के केबिन थे। एक केबिन से रोशनी आ रही थी पर उसमें दिखाई कुछ नहीं दे रहा था। वह साँस रोके खड़ा रहा कि वह रोशनी भी बुझ गयी। हताश होकर वह लौट ही रहा था कि किन्नर कन्या के रूप में एक आकार उसे चाँदनी में नहायाए आता हुआ दिखाई दियाण्ण्ण् उसकी साँस रुकी की रुकी रह गयीए जब उसने देखा कि वह राजकुमारी ही थी। इससे पहले कि जेम्स प्रकृतिस्थ हो और यथार्थ को देख सकेए राजकुमारी खुद ही बोलीए माफ करनाए मैं और पहले नहीं आ सकीण्ण्ण् तुमने मेरा इन्तजार कियाए यही बहुत है!

श्मैं विश्वास नहीं कर पा रहा हूँण्ण्ण्श् जेम्स जैसे.तैसे बोला।

श्तुम्हारा नाम क्या हैघ्श् राजकुमारी ने पूछा।

श्जेम्स कार्पेण्टरण्ण्ण्श् जेम्स बोला. श्तुम मुझे जिम कह सकती हो।श्

श्जीम साहबश्ए कहकर वह मुस्करायीए श्मेरा नाम जानना चाहोगेघ्श्

श्लीरा! यही नण्ण्ण् मुझे मालूम हैएश् जेम्स ने कहा।

वक्त बहुत कम था। जल्दी.जल्दी दोनों ने बातें कीं। जेम्स ने सबकुछ अपने बारे में बताया और चलते.चलते राजकुमारी लीरा ने कहाए श्तुम कृष्ण की तरह लगते होण्ण्ण्श्

जेम्स ने कृष्ण का नाम सुना थाण्ण्ण् पर वह ज्यादा नहीं समझ पाया। वह सोच ही रहा था कि लीरा ने कहाए श्तुम अब मुझसे मिलनेए मुझे देखने या पहचानने की कोशिश मत करनाए समझेण्ण्ण् यदि तुमने कुछ भी जाहिर किया तो अनर्थ हो सकता है!श्

श्कैसा अनर्थ लीराण्ण्ण्श्

श्तुम नहीं समझ पाओगेण्ण्ण् तुम साहबों के दिल पत्थर के होते हैं और तुम लोग जीते.जागते लोगों की बलि चढ़़ा देने से नहीं हिचकतेएश् लीरा ने कहा।

श्बलि! क्या कह रही हो लीराए मैं ईसाई हूँण्ण्ण् बलि से हमारा क्या लेना.देनाघ्श् जेम्स ने हकलाते हुए कहा।

वह मुस्करा दी। जेम्स को लगा कि चाहे उसकी बात सही न होए या वह उसके अर्थ न समझ पाया होए पर कोई आसन्न संकट है जरूर। फिर भी उसने कहाए श्मिलने की कोशिश करनाण्ण्ण्श्

लीरा चली गयी।

दूसरे दिन वह मिली तो इतना ही कह पायीए श्जीम साहबए अँग्रेजी कानून बहुत ओछा है। हिन्दुस्तान पहुँचकर तुम्हें मालूम होगा कि एक हिन्दुस्तानी लड़की को प्यार करने का हश्र क्या होता है।श् और वह चली गयीए श्अच्छा अलविदा!श्

श्पर मैं कल भी इन्तजार करूँगा! यह अलविदा नहीं हैएश् जेम्स ने कहा और अकेला खड़ा रह गया।

फिर लीरा नहीं आयी।

जब जहाज पोर्ट सईद पहुँचा तो लीरा दिखाई दी। जेम्स के केबिन का यात्री पोर्ट सईद में उतर गया था। रात को लीरा मिली तो बहुत दुखी थी। जेम्स ने उसे बताया कि वह उसके बिना नहीं रह सकता। अगर लीरा इजाजत दे तो वह महाराजा से बात करेगा कि वह लीरा से शादी करना चाहता है।

श्हिश्एश् लीरा ने उसके होठों पर उँगली रख दी। फिर बोलीए श्वक्त बहुत कम है जीम साहबण्ण्ण् सिर्फ सात दिन! हम हिन्दुस्तान के तट पर पहुँच जाएँगेण्ण्ण् और फिर हम कभी नहीं मिल पाएँगे।श्

जेम्स उसे देखता रह गया। लीरा की गर्म साँसें उसने महसूस कीं और जैसे स्वप्न में सबकुछ हुआ होए वह लीरा को अपने खाली केबिन में ले आया। शेष रातों को भी वे केबिन में मिलते और प्यार करते रहे। आखिरी रात लीरा की आँखों में आँसू थे। जेम्स की बाँहों में वह उद्विग्न थी। उन्होंने चुपचाप ही अलविदा कह ली थी और स्वीकार भी कर ली थी। पर लीरा यह भी जान रही थी कि उसका जीम साहब शायद उसके बरजने को मान न पाए और हिन्दुस्तान पहुँचने पर मिलने की कोशिश करेण्ण्ण् इसलिएए उसने सोचाए अब सब कुछ बता ही देना श्रेयस्कर होगा। वह उसकी बाँहों से निकलकर बैठ गयी और बहुत उदास स्वर में बोलीए श्जीम साहब! अब तुम्हें बता ही दूँण्ण्ण् मेरा पति चुना जा चुका है। वह है हमारे राज्य के पासवाले राज्य शन्दौर का राजा! उम्र पचास साल। दो रानियों को छोड़ चुका हैए क्योंकि वे उसे बच्चा नहीं दे सकीं। अब बच्चा देने के लिए उस राज्य को मेरी जरूरत हैण्ण्ण्श्

श्ओह लीराए क्या कह रही होण्ण्ण्एश् जेम्स माथा पकड़कर बैठ गया।

लीरा ने उसका सिर अपने कन्धे से सटा लिया. श्दुखी मत होओ जीम साहब। यह कोई बहुत बड़ा दुर्भाग्य नहीं हैण्ण्ण् हमने जो तीन.चार रातें साथ गुजारी हैं. वे पूरे जीवन को रौशन रखने के लिए काफी हैंण्ण्ण् मेरा होनेवाला पतिए सुना हैए बहुत उदार है। पश्चिम में पढ़़ा हैण्ण्ण्श्

श्तो क्या हम सचमुच अब कभी नहीं मिल पाएँगेघ्श् जेम्स अपने दुख में डूबा था।

श्अब इस जन्म में कभी नहीं जीम साहब! मेरा सुहाग का जोड़ा तैयार हैण्ण्ण् सुहाग काण्ण्ण्एश् कहते हुए वह किंचित हिकारत से हँसीए फिर बोलीए बस यही अन्त है हमारे मिलन का। और फिर जीम साहबण्ण्ण् एक दिन तुम अपनी मेमसाहब के साथ रहते हुए मुझे भी भूल जाओगेण्ण्ण्श्

श्भूल जाऊँगा! हुँ!श् जेम्स ने कहा।

श्शायद हम दोनों ही नहीं भुला पाएँगे एक.दूसरे कोण्ण्ण् इस जीवन मेंए या शायद सब जन्मों मेंण्ण्ण् शायद तब भूल पाएँगे जब ब्रह्मा स्वप्न देखना बन्द कर देंगेण्ण्ण्जब सृष्टि का अन्त होगा। खैरण्ण्ण्एश् लीरा ने गहरी साँस लेकर कहाए श्जीम साहबए तुम कभी मुझसे मिलने की कोशिश नहीं करोगे!श्

श्तुम्हारी खातिरण्ण्ण्श्

श्कहीं एक शब्द भी हमारे मिलने के बारे में न सुनाई पड़ेण्ण्ण् क्योंकि जीम साहबए इससे तुम्हारी जिन्दगी खतरे में पड़ जाएगीएश् लीरा ने कहा।

श्मैं वचन देता हूँ लीराए न मैं तुम्हें खत लिखूँगाए न पहचानूँगाए न मिलूँगाए न किसी से कभी कुछ कहूँगाण्ण्ण्एश् भारी दिल से जेम्स ने कहा।

श्और कभी तुम अगर मेरे पिता या पति के राज्य से गुजरोए तो कभी इन राज्यों में किसी स्टेशन पर नहीं उतरोगेण्ण्ण्एश् लीरा ने और चेतावनी दीए फिर प्यार से आप्लावित होकर बोलीए तुम मेरे होण्ण्ण् तब तकए जब तक ब्रह्मा स्वप्न देखना बन्द नहीं कर देतेण्ण्ण् और मैं तुम्हारी हूँण्ण्ण्श्

और क्षण भर बाद ही लीरा उठकर चली गयी। स्वप्नपरी.सी!

कई वर्ष बीत गये। जेम्स कार्पेण्टर कलकत्ता में अपना काम करता रहा। उसने बड़ी.बड़ी सफलताएँ भी पायीं। पर पता नहीं क्यों जेम्स को हमेशा यह एहसास होता रहा कि उसका और लीरा का मिलन छुपा नहीं रह पाएगा।

लीरा की शादी शान्दौर के महाराजा के साथ धूमधाम से हो गयी थी। चारों तरफ शोर हुआ था। राज्य में जो जश्न मनाये गये थेए उनमें कलकत्ता के साहब लोग भी शामिल हुए थे और शान.शौकत की खबरें लाये थे। जेम्स सबकुछ सिर्फ सुनता रहा था।

लेकिन उसी वर्ष जुलाई में ऐसा मौका हुआ कि जेम्स को उत्तर.पूर्वी भारत की ओर अपने काम से जाना पड़ा। उसकी ट्रेन शान्दौर राज्य के एक हिस्से को काटती हुई गुजरी। एक बार पहले भी वह इसी ट्रेन और इसी रास्ते से गुजरा थाण्ण्ण् और उसने अपने को बेहद संयत रखा था। वह डिब्बे के बाहर तक नहीं झाँका थाए क्योंकि वह ब्रिटीश राज की धरती में पहुँचकर ही बाहर निकलना चाहता था।

रात का वक्त था। गाड़ी चली जा रही थी। जेम्स अपने कपड़े बदल रहा था ताकि आराम से सो सके कि तभी गाड़ी शान्दौर राज्य के किसी छोटे से स्टेशन पर रुकी। और उसके दरवाजे पर दस्तक हुई। डरते.डरते उसने दरवाजा खोला तो देखा कि रेलवे का ही कोई बंगाली बाबू हिन्दुस्तानी में टीकट पूछ रहा था। पूछते.पूछते वह भीतर आ गया। गाड़ी एक मिनट रुककर चल पड़ी।

जैसे ही जेम्स कुछ प्रकृतिस्थ हुआए उसने देखा वह बंगाली पिस्तौल ताने खड़ा था और कह रहा था. श्साहबए सीट पर बैठ जाइए। चीखने.चिल्लाने की जरूरत नहीं है।श्

जेम्स पत्थर के बुत की तरह बैठ गया। कुछ सँभलकर उसने कहाए श्तुम क्या चाहते होघ्श्

पिस्तौलवाले आदमी ने अदब से कहाए श्मुझे कुछ नहीं चाहिए। मैं मालिक का हुक्म पूरा कर रहा हूँ। मुझे हुक्म मिला है कि शान्दौर.राज्य के अगले स्टेशन पर आपको उतार लिया जाए। बस।श्

और दस मिनट बाद ही गाड़ी एक और अँधेरे स्टेशन पर रुक गयी। रुकते ही चार आदमी डिब्बे में आये और जेम्स को सामान समेत उतार लिया गया।

दूसरे दिन सुबह जेम्स ने अपने को एक सजे.धजे आरामदेह कमरे में पाया। लग रहा था कि जैसे यह महाराजा का कोई दूसरा महल हो। उसकी पूरी आवभगत की गयी और नाश्ते के बाद जब वह उस कमरे में अकेला रह गया तो महाराजा की तरह दिखनेवाला एक पचास वर्षीय रोबीला आदमी उस कमरे में आया। जेम्स उसके सम्मान में उठ खड़ा हुआ।

श्बैठिएए बैठिए जेम्स साहब!श् महाराजा ने कहाए श्मैं शान्दौर का महाराजा हूँण्ण्ण् घबराइए मतण्ण्ण्श्

श्पर मुझे यहाँ इस तरह क्यों लाया गया हैघ्श् जेम्स ने पूछा।

श्बात जरा नाजुक है!श् महाराजा ने कहाए श्पर घुमा फिराकर कर कहने से भी क्या फायदा। सीधी बात यह है जेम्स साहब कि मैंने जो यह तीसरी शादी की हैए यही मेरी अन्तिम उम्मीद है! कि शान्दौर राज्य को एक वारिस मिल सकेगा। अगर मैं पुत्रहीन ही मर जाता हूँ तो यह राज्य मेरे सौतेले भाइयों को चला जाएगाए जिसे अँग्रेज सरकार भी नहीं चाहती। ण्ण्ण्कुछ महीने पहले मेरे राज्य भर में यह खबर बिजली की तरह फैल गयी कि महारानी लीरा गर्भवती हुई हैं! पर इस सूचना से मेरे सारे सपने बिखर गयेए क्योंकि महारानी लीरा की देखभाल करने वाले डॉक्टरों ने बताया था कि यह गर्भ शादी से पहले का है!श्

श्मुझे क्या मालूम हो सकता हैघ् आप यह सब मुझे क्यों बता रहे हैंघ्श् जेम्स ने कहा।

श्जेम्स साहबए बनने की कोशिश मत कीजिए! मैं अब सिर्फ सच्चाई जानना चाहता हूँए जो सिर्फ आप ही बता सकते हैं। मुझे मालूम है कि जहाज पर राजकुमारी लीरा और आप मिलते रहे थे!श् महाराजा ने कहा।

श्मुझे कुछ भी नहीं मालूम!श् जेम्स ने सीधा जवाब दिया।

अपना गुस्सा पीते हुए महाराजा ने कहाए श्आप झूठ बोलते हैं!श्

श्मैं सच बोल रहा हूँ!श् जेम्स तिलमिलाकर बोला।

श्अगर सच्चाई मेरे सामने नहीं आती तो आपके बदन की बोटी.बोटी नुचवा ली जाएगी जेम्स साहब! समझे!श्

श्सचमुचए मुझे कुछ नहीं मालूम!श् जेम्स का चेहरा फक हो गया था पर वह द्रढ़़ था।

श्मैं कल सुबह तक का वक्त देता हूँए अगर आप सच्चाई को मंजूर कर लेंगे तो आपकी जान बख्श दी जाएगी। नहीं मंजूर करेंगे तो मौत के सिवा दूसरा अन्त नहीं हैए समझे!श् कहते हुए महाराजा कमरे से निकल गये।

रात हुई ही थी कि जेम्स के कमरे में एक दासी आयी। उसने जेम्स को चुपचाप पीछे आने का इशारा किया। जेम्स भी क्या। मौत से बेहतर तो कुछ भी हो सकता था। गलियों से गुजरकर वह जिस कमरे में दाखिल हुआए वहाँ पास ही लीरा एक रत्नजटीत बिस्तर पर लस्त लेटी थी। उसी बेड में उसका नवजात शिशु सो रहा था।

श्जीम साहब!श् लीरा ने जेम्स की आँखों में देखते हुए कहा।

श्नहीं महारानीए मैं एक कैदी हूँ जिसे महाराजा ने बेबात के लिए बन्दी बनाया है।श् जेम्स बोला।

श्धीमे बोलो कैदीए नहीं तो मेरा बच्चा जाग जाएगा!श् महारानी बोली।

और पसीने से नहाये खड़े जेम्स ने अपनी पूरी बदहवासी में भी अनुभव किया कि आज लीरा उसके जितने निकट थीए उतनी तो तब भी नहीं थीए जब वह उसकी बाँहों में थी।

श्मुझे यहाँ क्यों लाया गया हैघ्श् जेम्स ने अपरिचित की तरह कहा।

श्मुझे क्या मालूम कैदी! पर मैं इतना ही कह सकती हूँ कि मैं तुम्हारे लिए कुछ भी नहीं कर सकती!श् महारानी लीरा ने कहा।

और जेम्स फौरन समझ गया कि यह मिलन महाराजा का रचा हुआ है कि वह अपने गुनाहों को मानने के लिए पिघल उठेगा। वह यह सोच ही रहा था कि कमरे में महाराजा दाखिल हुए और बोलेए श्जेम्स साहबए आपको यहाँ खामख्वाह नहीं लाया गया हैण्ण्ण् यहाँ आकर भी आपने अपने बच्चे के रहस्य को नहीं खुलने दियाए यह सिर्फ एक अँग्रेज साहब ही कर सकता है। क्योंकि अँग्रेजों की यही खसलत है। अब मुझे कोई शक नहीं है कि यह बच्चा आपका ही है।श् महाराजा ने एक गहरी साँस ली और फिर दर्प से बोलेए श्पर यह राज्य मेरे सौतेले भाइयों को जाएए यह मैं कभी मंजूर नहीं करूँगा! इसलिए यह बच्चा मेरा नाम धारण करेगा और राजकुमार बनेगा!श्

जेम्स के पास कोई शब्द नहीं थे। वह बुत की तरह खड़ा था।

श्जेम्स साहब!श् महाराजा ने कहाए श्तुम्हें सौगन्ध लेकर वचन देना पड़ेगा कि आज से तुम महारानी लीरा और इस राज्य के वंशधर राजकुमार को कभी जानने.पहचानने की कोशिश नहीं करोगे। इनके रास्ते में कभी नहीं आओगे!ण्ण्ण्श् इसी शर्त पर तुम्हें आजाद किया जा सकता है।

जेम्स ने आँखेंए झुकाये.झुकाये ही स्वीकृति में सिर हिला दिया।

श्ठीक! तो फिर जेम्स साहबए आप आजाद हैं। मैं आपके लिए दुखी भी हूँए आपके प्रति मेरे मन में संवेदना भी हैण्ण्ण् और मैं आपको सलाम भी करता हूँ!श् और दूसरे ही क्षण महारानी लीरा और बच्चे को बिना देखे ही जेम्स कमरे से बाहर निकल गया।

'''

तीन पैगम्बर

वॉल्तेयर

फ्रेंच लेख वॉल्तेयर;फ्रैंकुई मेरी ऐरुए.1694.1774द्ध फ्रेंच गद्य के श्रेष्ठतम लेखकों में से था। उसकी कहानियों को प्रायः नीतिकथाएँ माना गया हैए जो निश्चित तौर पर उसके अपने समय की माँग थीं।

तीन पैगम्बर थे। तीनों महत्त्वाकांक्षी थे और अपनी स्थिति से असन्तुष्ट थे। तीनों राजा बनना चाहते थे। यों तीनों पैगम्बरों के स्वभाव और रुचियों में बड़ा अन्तर था। पहला अपने समक्ष एकत्र हुए बन्धुओं को शानदार उपदेश देता था और सुननेवाले तालियाँ बजाकर उसकी प्रशंसा करते थे। दूसरे को संगीत का बेहद शौक था और तीसरे को औरतें बहुत अच्छी लगती थीं।

एक दिन की बात है। वे तीनों शाही सम्मान की चर्चा कर रहे थे कि फरिश्ता इथूरियल उनके सामने प्रकट हुआ।श्सृष्टि के संचालक ने मुझे आपके पास भेजा हैएश् वह बोला।श्आप न केवल राजा ही बनेंगेए बल्कि अपनी मुख्य रुचियों को भी निरन्तर सन्तुष्ट कर पाएँगे।श् इसके बाद फरिश्ते ने उन तीनों को क्रमशः मिस्रए फारस और भारत का राजा बना दिया।

जो पैगम्बर मिस्र का राजा बनाया गया थाए उसने अपने शासन की बागडोर दरबारियों की सभा बुलाकर सँभालीए इस सभा में दो सौ सन्त ही थे। उनके समक्ष उसने एक लम्बा भाषण दिया। श्रोताओं ने जोर.जोर से तालियाँ बजाकर प्रशंसा की और राजा उस प्रशंसा के नशे में चूर हो उठा। अन्य सभाओं में यही हुआ और जल्दी ही मिस्र के इस राजा की ख्याति संसार भर में फैल गयी।

फारस के पैगम्बर.राजा ने अपना शासन एक इतालवी अॉपेरा से शुरू कियाए जिसके कोरस में पन्द्रह सौ जनखे थे। उनकी आवाज उसके कानों को बींध कर आत्मा तक जा पहुँची। फिर इसके बाद एक और अॉपेरा हुआए और उसके बाद एक औरण्ण्ण् एक औरण्ण्ण् एक औरण्ण्ण्

भारत के राजा ने अपनी प्रेमिका के साथ अपने को महल में बन्द कर दिया। वह वासना में डूब गया और जब भी उसे अन्य दोनों पैगम्बरों का ध्यान आताए तो उसका हृदय उनके लिए दया से भर उठता। काश! उन्होंने भी स्त्री.सुख माँगा होता!

अब हुआ यह कि कुछ ही दिनों में तीनों राजा अपने.अपने ष्कामष् से ऊब गये। तीनों को एक दिन अपनी.अपनी खिड़की के बाहर कुछ लकड़हारे दिखाई दियेए जो किसी मयखाने से चले आ रहे थे और जंगल की तरफ जा रहे थे। वे अपनी पत्नी.प्रेमिकाओं की बाँहों में बाँहें डालकर चल रहे थे और बेहद खुश थे। तीनों राजाओं ने तब फरिश्ते इथूरियल को पुकारा और उससे गुजारिश करने लगे कि दुनिया के शासक से कहो कि वह हमें लकड़हारा बना दे।

'''

नाश्ते के बाद

सेई शोनागोन

सेई शोनागोन दसवीं सदी में जापान की सम्राज्ञी सादाको की एक ऐसी सहचरी थीए जो महल में उसके साथ तो रहती ही थीए अपने आसपास के लोगों को भी बड़ी बारीकी से पढ़़ा करती थी। उसने अपनी डायरी में अपने वक्त का बड़ा सजीव और विशद वर्णन किया है। शाही जिन्दगी का एक चित्र यहाँ दिया जा रहा है।

और तब शाही रसोई के प्रबन्धकों को हमने नौकरों से यह कहते सुना कि अब वे जाएँ। एक क्षण बाद ही सम्राट फिर आ गये। उन्होंने मुझे कुछ स्याही तैयार करने को कहाण्ण्ण् और फिर एक सफेद कागज कोए जिस पर कविता लिखी हुई थीए तह करते हुए हम महिलाओं से बोलेए श्हमारे लिए प्राचीन काव्य की कुछ पंक्तियाँ लिखो.कुछ भीए जो भी तुम्हें याद आए।श् मैंने सामंत कोरेचीका से पूछा कि वह मुझे क्या चुनने की सलाह देते हैं।श्मुझे मत पूछिएएश् उन्होंने कहाए श्कुछ भी जल्दी से लिखिए और दे दीजिए। यह पूरी तरह आपका निजी मामला है। हम पुरुष लोग आपकी मदद नहीं कर सकते।श् और दवात को मेरे पास रखते हुए वह बोलेए श्सोचने के लिए रुकिए नहीं! ष्नानीवाजूष् ;पहली कविता जिसे बच्चे लिखना सीखते हैंद्धए या कुछ भीए जो आप जानती होंण्ण्ण्श्

दरअसल डर की कोई बात नहीं थी। पर जाने किस वजह से मुझे बड़ी परेशानी होने लगीए और मेरा मुख लाल हो उठा। दो या तीन उच्च वर्गीय महिलाओं ने लिखा भी रू एक ने एक वसन्त.गानए दूसरी ने किसी फूल के बारे में। तब कागज मेरे पास पहुँचा और मैंने यह कविता लिख दी रू ष्बरस बीतते जाते हैंय बुढ़़ापा और उसकी बुराइयाँ मुझ पर घिरी आती हैंए पर जो कुछ भी होए जब तक देखने को फूल यहाँ हैंए मुझे कुछ भी दुख नहीं।ष् लेकिन ष्फूलष् के बदले मैंने लिखा ष्मेरे प्रभुष्।

श्मैंने केवल उत्कण्ठावश ही ऐसा करने को कहा थाएश् सम्राट बोले। वह मेरा लिखा पढ़़ रहे थे।श्लोगों के माथे में क्या चल रहा हैए यह देखना कितना मजेदार रहता है!श् तब बातचीत होने लगीए जिसके दौरान वह बोलेए श्मुझे याद आता हैए एक बार मेरे पिता सम्राट एनयू ने अपने दरबारियों से कहा था रू ष्लोए यह पुस्तक लो। तुममें से हरेक इसमें एक.एक कविता लिखेगा।ष् उनमें से कई.एक को बड़ी कठिनाई हुई। ष्अपने हस्तलेख की चिन्ता मत करोएष् मेरे पिता ने कहाए ष्इस बात की भी नहीं कि तुम्हारी कविताएँ मौसम के अनुरूप हैं या नहीं। मेरे लिए सब बराबर हैं।ष् प्रोत्साहन मिलने पर ;फिर भी भार.सा महसूस करते हुएद्ध वे लिखने लगे। उनमें से एक वर्तमान प्रधानमंत्री भी थे! तब वह मात्र तीसरे दर्जे के कप्तान ही थे। जब इनकी बारी आयीए तो इन्होंने वही पुरानी कविता लिख दी रू ष्इजूमो के किनारे पर उठनेवाली लहर की तरह मेरा प्यार तुम्हारे लिए गहरे.से.गहरा होता चला जाता है.हाँए मेरा प्यार! लेकिन इन्होंने ष्मेरा प्यार तुम्हारे लिएष् के स्थान पर लिखा था ष्प्रभु ;सम्राटद्ध में मेरी भक्तिष् . जिससे मेरे पिता बेहद खुश हो उठे थे।ष्

'''

किस्सा पनचक्कीवाले का

ज्यॉफ्री चॉसर

अँग्रेजी में साहित्यिक कहानियों की शुरुआत करनेवाली चॉसर;1340.1400द्ध की ष्केण्टरबरी टेल्सष् से यह किस्सा लिया गया है। अलग धन्धों के चौबीस यात्री केण्टरबरी के प्रसिद्ध मेले में जा रहे हैं। रास्ते में समय काटने के लिए हर आदमी एक किस्सा सुनाता है। एक बढ़़ई ने एक पनचक्की वाले का किस्सा सुनायाए जिसमें पनचक्कीवाले की टाँग घसीटी गयी थी। तब पनचक्कीवाले ने जो किस्सा बयान कियाए वह यहाँ पढ़़िए .

आक्सफर्ड में एक बढ़़ई रहता था। पैसा उसके पास थाए पर अक्ल नहीं। उसकी बीवी बड़ी हसीन थी। उम्र में उससे आधी। मस्तूल की तरह लम्बी थी वह। मछली की तरह चपल और चिकनी। ताज्जुब की इसमें बात ही क्या कि वह एक रँगीले विद्वान की आँखों में गड़ गयी। उस विद्वान का नाम था निकोलस और तखल्लुस ष्चिनगारीष्। चिनगारी साहब के घर में ही हसीना का पति किराये पर रहता था। उस हसीना ने चिनगारी साहब को इतना सता दिया कि एक दिन उन्होंने उसे पकड़ लिया . श्नाजनीन! अगर तुम मुझे प्यार नहीं करोगीए तो मैं मर जाऊँगा।श्

हसीना बिगड़ गयी। उसने चिनगारी साहब को दुत्कार दियाए पर आशिक कहाँ माननेवाला था। आखिर हसीना मान गयी और मिलने का एक दिन और वक्त मुकर्रर हुआ। हसीना ने कहाए श्पर मेरा मर्द बड़ा शक्की हैण्ण्ण् उसे हवा भी लग गयीए तो मेरी बोटी.बोटी उड़ा देगा!श्

चिनगारी साहब ने तब एक तरकीब सोची। हसीना को बतायी और निश्चिन्त हो गये। पर मोहब्बत करनेवालों के रास्ते में काँटे बिछे होते हैं। एक और दिलफेंक साहब थे। उनका नाम था एबसलोन। वह भी इस हसीना पर मरते थे। जरा महीन और धनी आदमी थे। वह जानते थे कि कुछ औरतों को पैसे से पाया जा सकता हैए कुछ को चिकनी.चुपड़ी बातों से और कुछ को चूमा.चाटी करके।

बढ़़ई कभी बाहर नहीं जाता थाए इसलिए हसीना और चिनगारी साहब बात तक नहीं कर पाते थे। आखिर एक रोज बढ़़ई कुछ देर के लिए बाहर गयाए तो चिनगारी साहब और हसीना ने तरकीब सोची कि कैसे ष्मिलन की रातष् आए। चिनगारी साहब तेज आदमी थे। जैसे ही बढ़़ई आयाए उन्होंने जाकर फौरन उससे कहाए श्दोस्तए किसी से कुछ कहना मत। बड़े भेद की बात है। मुझे ईश्वरीय ज्ञान से पता चला है कि अगले सोमवार की रात को प्रलय आने वाली है। बाढ़़ में सारी दुनिया डूब जाएगी जैसा कि हजरत नूह के वक्तों में हुआ था।श्

श्खुदा हमारी हिफाजत करे!श् बढ़़ई चीखा।

श्अगर तुम बचना चाहते होएश् चिनगारी साहब ने कहाए श्तो एक काम करो। छत से तीन टब लटकाओ। अपने तीनों के लिए। उनमें एकाध रोज का खाना रख लोए क्योंकि यह जल.प्रलय छोटी होगी। एक कुल्हाड़ी भी रखोए ताकि जब बाढ़़ का पानी टबों के पेंदों तक आ जाएए तब हम रस्सियाँ काट सकेंए बसए हम तीनों टबों में होंगे और हमारे टब हजरत नूह के बक्से की तरह तैरते रहेंगे।श्

सोमवार की शाम को आने पर बढ़़ई ने वैसा ही किया और तीनों टबों में लेट गये। जब बढ़़ई अपने टब में सो गयाए तो अपनी तरकीब के अनुसार चिनगारी साहब और हसीना रस्सी के सहारे उतर आये और कमरे में जाकर रँगरेलियाँ मनाने लगे।

उधर दिलफेंक साहब रातों को परेशान घूम रहे थे। वह भी उसी रात आहें भरते हुए उन दोनों के कमरे की खिड़की पर आये और उन्होंने धीरे से आवाज लगायीए श्मेरे दिल की मलिका! मुझे सिर्फ एक बोसा दे दो!श्

उसे टरकाने के लिए हसीना ने यही सोचा कि कुछ किया जाएय नहीं तो रंग में भंग हो जाएगा। अँधेरा तो था हीए वह खिड़की के पास गयी और अपनी पीठ करके खिड़की पर बैठ गयी और धीरे से बोलीए श्लोए अपने दिल की बात पूरी करो!श्

दिलफेंक साहब ने उसकी पीठ पर अपने ओठ रख दियेए पर जब वह अँधेरे में लौटने लगेए तो उन्हें लगा कि हसीना ने ओठों का बोसा न देकरए कहीं और का बोसा देकर बड़ी ज्यादती की है। वह उन्हें समझती क्या हैघ् वह ताव में आ गये।

थोड़ी देर बाद दिलफेंक साहब एक गरम सलाख लिये हुए लौटे और खिड़की पर आकर बोलेए श्मेरे दिल की मलिका! एक बोसा और मिल जाएए बस!श्

चिनगारी साहब के मन में जलन हुई। अँधेरा तो था ही। चिनगारी साहब ने सोचाए वह आदमी.औरत में क्या फर्क कर पाएगाए इसलिए वह जाकर खिड़की पर अपनी पीठ करके बैठ गये।

बस फिर क्या थाए दिलफेंक साहब ने वह गरम सलाख उनकी पीठ पर चिपका दी और भाग लिये। बेहद तकलीफ में चिनगारी साहबश्पानी! पानी!श् चिल्लाते हुए भागे।

इस हड़बोंग में बढ़़ई की आँख खुल गयी। वह समझा प्रलय आ गयी। एकदम वह चीखाए श्प्रलयए प्रलय!श् और उसने अपनी रस्सियाँ काट दीं। टब समेत वह फर्श पर आ गिरा। वह इतनी जोर से गिरा कि उसकी हड्डी.पसली चूर.चूर हो गयी।

श्मार डाला! मार डाला!श् आवाजें सुनकर पड़ोसी जुड़ गये। तब चिनगारी साहब और हसीना ने पड़ोसियों से कहाए श्बढ़़ई का दिमाग बिगड़ गया हैए यह प्रलय.प्रलय चिल्ला रहा था।श्

तब कराहते हुए बढ़़ई ने उन दोनों की कारस्तानी बतायी। पर पड़ोसी उसकी कहानी पर भरोसा नहीं कर पाये।श्यह पगला गया है!श् कहते हुए पड़ोसी चले गये।

और इस तरह बढ़़ई का सब कुछ चला गया। उसकी ईर्ष्‌या और चौकसी भी उसकी बीवी को नहीं रोक पायी।श्भगवान हम सबकी रक्षा करे!श् पनचक्कीवाले ने कहा।

'''

सुनहरा अखरोट

हंसराज रहबर

बहुत दिनों की बात है। किसी गाँव में एक लोहार और उसकी पत्नी रहते थे। उन्हें धन.दौलत किसी चीज की कमी नहीं थी। दुख सिर्फ यह था कि इनके कोई सन्तान नहीं थी। एक रात लोहार की पत्नी ने सपना देखा। उसे एक घने जंगल में एक पेड़ दिखाई दिया। जिसकी टहनी फल के बोझ से झुकी हुई थी। इस टहनी पर एक बड़ा.सा सुनहरा अखरोट लटक रहा था।

जब वह यह सपना बराबर तीन रात तक देखती रहीए तब उसने अपने पति से कहाए श्तुम जंगल में जाओ और मुझे वह सुनहरा अखरोट ला दो।श्

लोहार को इस बात का विश्वास तो नहीं आयाए पर वह चल पड़ा। चलते.चलते आखिर वह एक घने जंगल के बीच में पहुँच गया। वहाँ उसे वही पेड़ नजर आयाए जिसकी टहनी झुकी हुई थी और उस पर सुनहारा अखरोट लटक रहा था।

ज्यों ही उसने हाथ बढ़़ाकर टहनी से अखरोट तोड़ाए पास से एक गिलहरी क्रोध में भरकर बोल उठीए श्तुमने यह अखरोट तोड़ने का साहस कैसे कियाघ्श्

वह गिलहरी कोई साधारण गिलहरी नहीं थी। उसके बाल बर्फ की तरह सफेद थे और गले में सुनहरे अखरोटों की एक माला थी।

श्जंगल की महारानीए आप मुझसे नाराज मत हों. लोहार ने विनम्रता से कहाए मुझे मालूम नहीं था कि इसे तोड़ने की मनाही है। मैं इसे अपनी बीमार बीवी को दूँगा।श्

गिलहरी बोलीए श्तुमने सच बात कह दीए इसलिए मैं यह अखरोट तुम्हें उपहार देती हूँ। अपनी पत्नी से कहना कि वह इसका गूदा खाकर खोल रख छोड़े। तुम्हारे घर दो जुड़वाँ लड़के होंगे। जब उनकी उम्र बीस साल हो जाए तो उन्हें आधा.आधा खोल दे देना। वे दोनों जंगल में चले आएँ और जहाँ पेड़ पर हुदहुद की ठक.ठक सुनें वहाँ ये खोल धरती पर फेंक दें। तब उन दोनों के भाग्य का निर्णय हो जाएगा।श्

सफेद गिलहरी ने जैसा कहा थाए वैसा ही हुआ। लोहार.पत्नी के जुड़वाँ लड़के हुए। लेकिन दोनों रंग रूप में एक.दूसरे से काफी भिन्न थे। एक लड़के की आँखें गहरी स्याह थीं जबकि दूसरे की भूरी थीं। धीरे.धीरे दोनों जवान हो गये। दोनों सुन्दर और सुडौल थे। लेकिन काली आँखोंवाला लड़का स्वभाव से क्रूर और निष्ठुर था और भूरी आँखों वाला सहृदय और दयालु।

जब वे बीस साल के हुए तो पिता ने उन्हें अखरोट का आधा.आधा खोल दिया। लड़के जंगल में चले गये। ज्यों ही हुदहुद के ष्ठक.ठकष् की आवाज कान में पड़ीए उन्होंने वे खोल धरती पर फेंक दिये और दूसरे ही क्षण अपने आपको एक कलकल करते स्रोत के किनारे खड़ा पाया। सफेद गिलहरी उनके सामने एक टहनी पर बैठी थी। नीचे एक पेड़ के ठूँठ पर दो अखरोट पड़े थे। उनमें से एक सादा और खुरदरा था और दूसरा खूब चमक रहा था।

गिलहरी बोलीए श्अपनी मर्जी का एक.एक उठा लो। पर उतावले मत बनोए क्योंकि इससे तुम्हारी किस्मत का फैसला होगा।श्

काली आँखोंवाले लड़के से न रहा गया। वह तुरन्त झपटा और उसने चमकता हुआ अखरोट उठा लिया। खुरदरा अखरोट दूसरे भाई के हाथ लगा।

सफेद गिलहरी ने कहाए श्अब अपना.अपना अखरोट तोड़ो। जो कुछ निकलेए उसी पर सन्तोष करोए क्योंकि इसमें किसी तीसरे का दखल नहीं है।श्

वह पूँछ हिलाती हुई जंगल में गायब हो गयी।

काली आँखोंवाले भाई ने अपना अखरोट पहले तोड़ा। उसके सामने काले रंग का एक कोतल घोड़ा खड़ा था। घोड़े की काठी से एक वर्दी बँधी थीए जिस पर सुनहरी फीता लगा हुआ था। इसके अलावा एक तलवार थीए जिसका दस्ता सोने का था।

श्अहा! इस तलवार के बल पर तो मैं दुनिया भर का धन इकट्ठा कर लूँगा।श् उसने उल्लास में भरकर बड़े गर्व से कहा।

इसके बाद भूरी आँखोंवाले लड़के ने अपना अखरोट तोड़ा। उसके सामने भार ढ़ोने.वाला साधारण टट्टू खड़ा था। उसकी पीठ पर एक थैला थाए जिसमें मन.डेढ़़.मन बीज थे।

दोनों भाई अपने.अपने घोड़े पर सवार होकर अलग.अलग दिशा में चल पड़े।

भूरी आँखोंवाला एक दिन जंगल में और दो दिन मैदानों में भटकता रहा। तीसरे दिन शाम को वह एक गाँव में पहुँचा और रात बिताने का कोई ठिकाना ढ़ूँढ़़ने लगा। जब वह एक झोंपड़ी के सामने जाकर रुका तो एक किसान ने बाहर आकर उसका स्वागत किया और विनम्रतापूर्वक कहाए श्आप खुशी से हमारे पास ठहर सकते हैं। हमें खेद है कि हम आपकी अधिक सेवा नहीं कर पाएँगे। एक डाकू हमारी फसलें लूट ले जाता है।श्

श्आप उसे पकड़ते क्यों नहींघ्श् भूरी आँखोंवाले लड़के ने पूछा।

किसान ने उत्तर दियाए श्हम कैसे पकड़ेंघ् वह आदमी थोड़ा है। वह तो गर्म हवा है जो फसलें झुलसा देती है।श्

वह अपना बीज का थैला सिरहाने रखकर किसान के आँगन में लेट गया। उसे यों महसूस हुआ कि बीज हिल रहे हैं।

श्हमें बो दोए हमें बो दो।श् थैले में से आवाज आयी . श्हम ऐसी घनी दीवार बना देंगेए जो गर्म हवा को खेतों में आने से रोक देगी।

अगले दिन लड़के ने किसान से कहाए श्क्या मैं आपके साथ रह सकता हूँघ् शायद हम दोनों गर्म हवा को रोकने में सफल हो जाएँ।श्

किसान यह प्रस्ताव सुनकर बहुत खुश हुआ और वे दोनों एक साथ रहने लगे। अब भूरी आँखोंवाले नौजवान को वहाँ रहते साल.दो साल नहींए बीसियों साल बीत गये। यहाँ तक कि उसके सिर के बाल सफेद हो गये। उसने जो बीज बोये थेए वे जैतून के लम्बे.लम्बे घने पेड़ बन चुके थे। गर्म हवा उनसे टकराकर लौट जाती थी और खेतों में खूब गेहूँ उगता था। वे हर साल बढ़़िया.से.बढ़़िया फसल काटते थे। गेहूँ की पकी हुई बालियाँ देखकर भूरी आँखोंवाला व्यक्ति उल्लास से खिल उठता और अपने भाई को याद करके सोचता. यही मेरा सोना है। जाने उसका क्या हाल होगाघ्

एक बार वह किसी दूसरे गाँव में से गुजर रहा था। उसने देखा कि एक नन्हा लड़का अखरोट के खोल से खेल रहा था। खोल आधा सोने का और आधा लोहे का था।

श्तुम्हें यह खोल कहाँ से मिलाघ्श् भूरी आँखोंवाले ने लड़के से पूछा।

श्मेरे पिता लड़ाई के मैदान से इसे लाये थे।श् लड़के ने उत्तर दिया . श्किसी सेनापति ने हमारे देश पर हमला किया। घमासान युद्ध हुआ। सेनापति और उसके सिपाही मारे गये। जब लोग सेनापति को दफनाने को ले चले तो उसकी वर्दी में से यह खोल धरती पर गिर पड़ा था।श्

श्उस सेनापति का नाम क्या थाघ्श् भूरी आँखोंवाले ने पूछा।

श्यह मुझे मालूम नहीं। खुद पिताजी उसका नाम भूल गये थेए इसलिए उन्होंने मुझे नहीं बताया।श् .लड़के ने उत्तर दिया और मुँह बनाकर कहाए श्हमें उसका नाम जानने की जरूरत ही क्या हैघ् जो शत्रु बनकर किसी का देश हड़पना चाहेए उसका नाम कौन याद रखेगाघ्श्

काली आँखोंवाले सेनापति भाई का यह अन्त हुआ। लेकिन सदियाँ बीत गयींए इस भूरी आँखोंवाले भाई को लोग अब भी याद करते हैं और उसका नाम बड़े आदर और प्यार से लेते हैं।