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छुटकारा

छुटकारा

गाँव में घूमते हुए उस पागल के शरीर पर नाममात्र के कपड़े थे, दाड़ी बढ़ी हुई और धूल भरी, सिर के बालों की जटाएँ बन गयी थी। उस पागल के एक हाथ में ईंट का छोटा टुकड़ा था जिसे वह किसी को भी फेंक कर मार देता था, इस तरह कई बच्चों को घायल कर चुका था। भीष्म पहले तो उसे देखता रहा लेकिन जब वही पागल ईंट का टुकड़ा लेकर उसकी तरफ दौड़ा तो वह घबरा गया तभी उसके बचपन के मित्र हितेन ने अचानक आकर भीष्म को पीछे खींचा और लाठी दिखाकर उस पागल को डराकर भगाया।

भीष्म को गाँव छोड़े काफी समय हो गया था, पुणे में एक आई टी कंपनी में अच्छी नौकरी मिल गयी थी तब से वहीं रह रहा था। कई साल बाद गाँव आया तो गाँव में काफी बदलाव आ चुका था, गलियाँ, नालियाँ और मकान सब पक्के हो गए थे, सभी घरों में जहां कई कई बैल बंधे रहते थे वहाँ ट्रैक्टर खड़े थे। लाल, नीले, हरे पीले औरे मटमैले रंग के ट्रैक्टर अब सफ़ेद, गौरा, खरा, कालू और चितेरे बैलों की जगह ले चुके थे।

हितेन ने आगे बढ़कर भीष्म को गले लगाया और उसके हाथ से बैग लेकर घर की तरफ चल पड़ा। रास्ते में भीष्म ने पूछा, “हितेन भाई! यह पागल कौन है?” हितेन ने बताया, “भाई! आप दीपे को जानते हो?” भीष्म बोला, “हाँ! वो लंबा चौड़ा पहलवान! क्या हुआ उसको?” “भाई ये पागल दीपे ही है, जो किसी समय लंबा चौड़ा पहलवान हुआ करता था आज पागल बना घूम रहा है, धूल धूसरित, निर्वस्त्र, गंदा शरीर लिए अपने कर्मों का फल भोग रहा है, मैला खाते हुए भी कई बार लोगों ने देखा है।”

भीष्म को यह बात सुन कर बड़ा आश्चर्य हुआ कि एक सुंदर सुडौल शरीर वाला आदमी ऐसी हालत में कैसे पहुंच गया और यही सवाल हितेन से पूछ लिया........

हितेन बोला, “भाई! यह एक लंबी कहानी है, आप अभी घर चलो, नहा धोकर कुछ खा लो, थोड़ा आराम कर लो, सफर में थके होंगे, मैं भी तब तक खेत में होकर आता हूँ, रात में दोनों भाई साथ में खाना खाएँगे और उसके बाद मैं आपको पूरी कहानी सुनाऊँगा।”

हितेन ट्रैक्टर लेकर खेत में चला गया, पूरे खेत की जुताई की और शाम को वापस आ गया। अपने घर में ट्रैक्टर खड़ा करने के बाद, हाथ मुंह धोकर सीधा भीष्म के पास आ गया तब तक भीष्म भी थोड़ी नींद ले चुका था और लंबे सफर की थकान भी मिट गयी थी अब भीष्म खुद को तरो ताज़ा महसूस कर रहा था।

हितेन बोला, “चाची आज मैं और भीष्म बहुत दिनों बाद एक साथ खाना खाएँगे।” भीष्म की माँ को हितेन चाची कहता था, माँ ने दोनों को खाना परोस दिया।

खाना खाकर दोनों बात करने लगे लेकिन भीष्म की जिज्ञासा तो दीपे और उसके पागलपन में थी अतः उसने आग्रह किया, “भाई मुझे दीपे की पूरी कहानी बताओ।”

हितेन बोला”, “भाई! आप उस राजे कहार को जानते हो?” “हाँ! जानता हूँ लेकिन उसका इससे क्या संबंध है?” भीष्म ने पूछा, तब हितेन बोला कि उस राजे के माँ बाप दोनों ही दीपे के खेतों में काम करते थे, बचपन से ही राजे भी उन दोनों के साथ खेत में काम करने जाने लगा। राजे बड़ा हुआ तो उसकी शादी मंशा से हो गयी, राजे की पत्नी मंशा बहुत सुंदर थी और राजे उससे प्यार भी बहुत करता था। राजे कभी भी मंशा को खेत में काम करवाने नहीं ले जाता था बल्कि कभी कभी शहर ले जाकर उसे सिनेमा जरूर दिखा लाता था, मंशा बहुत खुश थी और एक वर्ष में ही माँ भी बन गयी। उसने एक सुंदर कन्या को जन्म दिया जिसे देखकर पूरा घर चहक उठा और उसका नाम रखा धरा।

कुछ दिन बाद राजे के बूढ़े माँ बाप एक एक करके स्वर्ग सिधार गए, दीपे के खेतों में काम करने अब राजे अकेला ही रह गया था अतः जब भी ज्यादा काम होता तो बाहर से और मजदूर बुलवा कर काम करवा लिया जाता।

धरा छः वर्ष की हो गयी थी, राजे ने गाँव के ही एक स्कूल मे उसका दाखिला करवा दिया, धरा स्कूल जाने लगी तो मंशा घर पर अकेली रह जाती। एक दिन मंशा ने राजे से कहा, “मैं भी आपके साथ खेत में काम करने चला करूंगी।” राजे ने मंशा की बात मान ली और उसको अपने साथ खेतों में काम के लिए लेकर जाने लगा।

नवम्बर महीने कि शुरुआत थी, हल्की हल्की सर्दी शुरू हो गयी थी, गन्ने की फसल बड़ी हो गयी थी, गन्ने के खेत में खड़ा हुआ आदमी दिखाई नहीं देता था.........

मंशा सुंदर तो थी ही, उसकी सुंदरता से आकर्षित होकर हो सकता है दीपे बहुत दिनों से मन ही मन मंशा को भोगना चाह रहा हो लेकिन उसको मौका नहीं मिल रहा था। उस दिन राजे और मंशा उस खेत में आलू खोद रहे थे जिसके चारों तरफ लंबे घने गन्ने के खेत थे.........

कोई दूसरा मजदूर भी नहीं मिला था और दीपे ने जान बूझ कर राजे को गेंहू की बुआई में डालने के लिए खाद लेने शहर भेज दिया। मंशा अकेले ही खेत में काम कर रही थी, चारों तरफ से लंबे लंबे गन्ने के खेतों से घिरे, उस सर्द मौसम में एकांत पाकर दीपे ने मंशा को पकड़ लिया और उसके भरपूर विरोध के बावजूद मंशा को खींच कर गन्ने के खेत में ले गया। जब मंशा नहीं मानी और भरपूर विरोध करती रही तो दीपे ने बल प्रयोग किया, पहलवान तो वह था ही और उसने अपनी वासना पूरी कर ली, इस दौरान दीपे ने मंशा के मुंह को एक हाथ से दबाये रखा जिससे वह शोर न मचा सके, लेकिन दम घुटने से मंशा की वहीं मृत्यु हो गयी। तब तक राजे शहर से आकर खेत में पहुँच गया, खेत में मंशा को न पाकर परेशान हो गया तभी उसे खेत से बाहर आता दीपे दिखाई दिया।

राजे ने पूछा, “मालिक! मंशा कहाँ हैं?” दीपे बोला, “गन्ने के खेत में गयी थी, अभी तक वापस नहीं आई मैं वही देखने गया था।”

राजे तुरंत वहीं गन्ने के खेत में जहां से दीपे बाहर आ रहा था, जैसे ही घुसा तो देखकर हैरान रह गया, मंशा के सभी वस्त्र अस्त व्यस्त थे उसके जिस्म पर चोटों के निशान थे, राजे ने उसकी नब्ज और सांस देखी तो वह मर चुकी थी।

राजे बड़ी ज़ोर से दहाड़ा और एक घायल चीते की तरह दीपे पर टूट पड़ा। दीपे भी पहलवान था इतनी आसानी से राजे के कब्जे में आने वाला नहीं था लेकिन उस दिन राजे में न जाने कहाँ से इतनी ताकत आ गयी कि वह दीपे को बुरी तरह मारने लगा।

धरा स्कूल से घर आई, अक्सर मंशा धरा के स्कूल से आने से पहले ही घर आ जाया करती थी लेकिन आज घर में माँ को न पाकर थोड़ी देर प्रतीक्षा करने के बाद खेत की तरफ चल पड़ी। खेत पर जाकर उसने देखा कि उसके पिता और मालिक में जबर्दस्त लड़ाई हो रही है। तभी दीपे ने पलकटी उठाकर राजे की गर्दन पर दे मारी और एक ही वार में उसका सिर धड़ से अलग हो गया।

धरा यह सब देखकर चीख पड़ी और वहाँ से उल्टे पैर भाग खड़ी हुई। दीपे ने धरा को चिल्लाते हुए देख लिया और उसके पीछे दौड़ पड़ा, उसको लगा कि धरा सबको सब कुछ बता देगी अतः उसने उसको सड़क पर आकर पकड़ लिया।

सभी लोग देख रहे थे लेकिन समझ नहीं पा रहे थे कि क्या हुआ और पलक झपकते ही दीपे ने धरा को पैरों से पकड़ कर पक्की सड़क पर इतने ज़ोर से पटका कि वहीं उसके सिर और शरीर के टुकड़े टुकड़े हो कर चारों तरफ बिखर गए।

इतने वीभत्स दृश्य को देखकर सभी लोग हैरान थे और समझ नहीं पा रहे थे कि आखिर हुआ क्या है........

धरा के फटे सिर, बिखरे शरीर व खून को देखकर दीपे वहीं उसी समय पागल हो गया और अब तक अपने कर्मों का फल भोग रहा है ऊपर वाले ने तुरंत फैसला किया था उसके गुनाहो का, अब इसको इस जीवन से तभी छुटकारा मिलेगा जब यह अपने सभी गुनाहों का फल भोग चुकेगा।

“लेकिन हितेन गाँव वालों को किस बात की सजा मिल रही है जो यह पागल गाँव वालों को सताता है?” भीष्म ने पूछा तो हितेन बोला, “गाँव वालों के सामने इतना जघन्य अपराध हुआ है तो उसकी सजा तो मिलेगी ही और गाँव वाले भी उसी पाप की सजा भोग रहे हैं।”

छुट्टी समाप्त होने के बाद भीष्म वापस पुणे आ गया एवं अपने काम में लग गया। एक दिन हितेन का फोन आया और उसने भीष्म को बताया, “भाई आज सुबह एक तेज रफ्तार ट्रक ने दीपे को जोरदार टक्कर मार दी, जिससे दीपे सड़क पर उसी जगह जहां उसने धरा को मारा था, बड़े ऊपर तक उछल कर सड़क पर गिरा तो उसका शरीर टुकड़ों में फट गया ठीक वैसे ही जैसे उसने धरा के शरीर को सड़क पर मार कर फाड़ दिया था। आज दीपे को छुटकारा मिल गया और साथ में गाँव को भी उस घटना का साक्षी बनने के पाप से मुक्ति मिल गयी।”

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