Azad Katha - 2 - 70 books and stories free download online pdf in Hindi

आजाद-कथा - खंड 2 - 70

आजाद-कथा

(खंड - 2)

रतननाथ सरशार

अनुवाद - प्रेमचंद

प्रकरण - 70

शाम के वक्त हलकी-फुलकी और साफ-सुथरी छोलदारी में मिस क्लारिसा बनाव-चुनाव करके एक नाजुक आराम-कुर्सी पर बैठी थी। चाँदनी निखरी हुई थी, पेड़ और पत्ते दूध में नहाये हुए और हवा आहिस्ता-आहिस्ता चल रही थी! उधर मियाँ आजाद कैद में पड़े हुए हुस्नआरा को याद करके सिर धुनते थे कि एक आदमी ने आ कर कहा - चलिए, आपको मिस साहब बुलाती हैं। आजाद छोलदारी के करीब पहुँचे तो सोचने लगे, देखें यह किस तरह पेश आती है। मगर कहीं साइबेरिया भेज दिया तो बेमौत ही मर जाएँगे। अंदर जा कर सलाम किया और हाथ बाँध कर खड़े हो गए। क्लारिसा ने तीखी चितवन कर कहा - कहिए मिजाज ठंडा हुआ या नहीं?

आजाद - इस वक्त तो हुजूर के पंजे में हूँ, चाहे कत्ल कीजिए, चाहे सूली दीजिए।

क्लारिसा - जी तो नहीं चाहता कि तुम्हें साइबेरिया भेजूँ, मगर वजीर के हुक्म से मजबूर हूँ! वजीर ने मुझे अख्तियार तो दे दिया है कि चाहूँ तो तुम्हें छोड़ दूँ, लेकिन बदनामी से डरती हूँ। जाओ रुखसत!

फौज के अफसर ने हुक्म दिया कि सौ सवार आजाद को ले कर सरहद पर पहुँचा आएँ। उनके साथ कुछ दूर चलने के बाद आजाद ने पूछा - क्यों यारो, अब जान बचने की भी कोई सूरत है या नहीं?

एक सिपाही - बस, एक सूरत है कि जो सवार तुम्हारे साथ जायँ वह तुम्हें छोड़ दें।

आजाद - भला, वे लोग क्यों छोड़ने लगे?

सिपाही - तुम्हारी जवानपी पर तरस आता है। अगर हम साथ चले तो जरूर छोड़ देंगे।

तीसरे दिन आजाद पाशा साइबेरिया जाने को तैयार हुए। सौ सिपाही पहरे जमाए हुए, हथियारों से लैस, उनके साथ चलने को तैयार थे। जब आजाद घोड़े पर सवार हुए तो हजारहा आदमी उनकी हालत पर अफसोस कर रहे थे। कितनी ही औरतें रूमाल से आँसू पोछ रही थीं। एक औरत इतनी बेकरार हुई कि जा कर अफसर से बोली - हुजूर, यह आप बड़ा गजब करते हैं। ऐसे बहादुर आदमी को आप साइबेरिया भेज रहे हैं।

अफसर - मैं मजबूर हूँ। सरकारी हुक्म की तामील करना मेरा फर्ज है।

दूसरी स्त्री - इस बेचारे की जान का खुदा हाफिज है। बेकुसूर जान जाती है।

तीसरी स्त्री - आओ, सब की सब मिल कर चलें और मिस साहब से सिफारिश करें। शायद दिल पसीज जाय।

ये बातें करके वह कई औरतों के साथ मिस क्लारिसा के पास जा कर बोलीं - हुजूर, यह क्या गजब करती हैं! अगर आजाद मर गए तो आपकी कितनी बड़ी बदनामी होगी?

क्लारिसा - उनको छोड़ना मेरे इमकान से बाहर है।

वह स्त्री - कितनी जालिम! कितनी बेरहम हो! जरा आजाद की सूरत तो चल कर देख लो।

क्लारिसा - हम कुछ नही जानते!

अब तक तो आजाद को उम्मेद थी कि शायद मिस क्लारिसा मुझ पर रहम करें लेकिन जब इधर से कोई उम्मेद न रही और मालूम हो गया कि बिना साइबेरिया गए जान न बचेगी तो रोने लगे। इतने जोर से चीखे कि मिस क्लारिसा के बदन के रोएँ खड़े हो गए और थोड़ी ही दूर चले थे कि घोड़े से गिर पड़े।

एक सिपाही - अरे यारो, अब यह मर जायगा।

दूसरा सिपाही - मरे या जिए, साइबेरिया तक पहुँचाना जरूरी है।

तीसरा सिपाही - भई, छोड़ दो। कह देना, रास्ते में मर गया।

चौथा सिपाही - हमारी फौज में ऐसा खूबसूरत और कड़ियल जवान दूसरा नहीं है। हमारी सरकार को ऐसे बहादुर अफसर की कदर करनी चाहिए थी।

पाँचवाँ सिपाही - अगर आप सब लोग एक-राय हों तो हम इसकी जान बचाने के लिए अपनी जान खतरे में डालें। मगर तुम लोग साथ न दोगे।

छठा सिपाही - पहले इसे होश में लाने की फिक्र तो करो।

जब पानी में खूब छींटे दिए गए तो आजाद ने करवट बदली। सवारों को जान में जान आई। सब उनको ले कर आगे बढ़े।

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