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प्रिय बापू

प्रिय बापू,

आप मुझे प्रेरित करते है ‌‌l में जानता हु ये बात आप कई बार सुन चुके होंगे, परन्तु फिर भी यहा दोहराना चाहूँगा l जीवन के हर पथ पर जहा कही मुझे कोई राह नजर नही आती वहा आप याद आ जाते है l एकदम निडरता से, प्रतिघात न करते हुए हर जुल्म सहना कितना कठिन रहा होगा यह बात ही मुझे अपने दुर्गुणों से लड़ने की ताकत देती है l

अभी कुछ दिनों पहले मेरी एक मित्र के साथ ‘बदला शुद्धतम विचार है’ महाभारत की इस उक्ति पर चर्चा हो रही थी l वहा उसने दक्षिण अफ्रीका में हुए उस रेलगाड़ी वाले वाकये का उदाहरण देकर कहा, “अगर बापू को उस चीज का बदला लेने की न सुजती, तो दक्षिण अफ्रीका का सत्याग्रह न होता l” उसकी बात गलत थी लेकिन तब मेरे पास कोई जवाब न था l उसका जवाब मुझे आप ही से मिला, “अगर किसी चीज में तुम बहेतर परिवर्तन ला सकते हो तभी उसके विरोध का विचार करो” l बदला प्राथमिक विचार अवश्य हो सकता है और इसीलिए शुद्धतम होता है परन्तु वह सार्थक नही होता, साश्वत नही होता, इसीलिए सत्य के इतना करीब नही होता l

इतिहास में शायद ही कभी एसा हुआ हो की किसी कैदी के स्वागत में जज खड़ा हो जाये l लेकिन आपके साथ तो यह कई बार हुआ था l यह देखकर मेरे उस विचार को साबिति मिल गई की, “कोई मनुष्य अगर अपने भीतर के दुश्मनों पर काबू कर ले तो सारे विरोधी उसके सामने नतमस्तक हो जाते है l” आपके आध्यात्मिक गुरु चाहे टॉलस्टॉय, श्रीमद राजचंद्र या बर्नार्ड शो या कोई भी रहा हो मुझे तो उनका सुभग समन्वय आपमें दिखा है l

अहमदाबाद के इस्कोन मंदिर के पास एक व्यक्ति पानमसाला बेचता है l उसके दोनों पैर पोलियाग्रस्त है l उसने अपनी त्रिचक्रिका को ही अपनी दुकान में बदल दिया है l वो सुबह रोज अपने धंधे की शुरुआत प्रार्थना से करता है l वह शायद आपके विचारो से परिचित न हो, लेकिन प्रार्थना का महत्व अवश्य जानता है l आजकल कथाकथित हाई सोसायटी के लोग प्रार्थना से बिलकुल विमुख ही हो गये है l इसका परिणाम भी वह भोग ही रहे है l उनका जीवन बस एक भागदौड़ बनकर रह गया है l एक अशांति सी उनके भीतर पैदा हो गई है l इनसे ज्यादा मुझे उन लोगो पर दया आती है जो इसका महत्व समजते हुए भी अंधे बने हुए है l इन कुविचारको ने तो इश्वर का ही मजाक बनाकर रख दिया है l में उन्हें नही समजा पाता की इश्वर की निंदा करना असलियत में बौद्धिकता नही परन्तु मुर्खता है l आप होते तो शायद कहते की निंदा अपने आप में ही मुर्खता है l

आप ने जगमोहनजी से जो बात कही उसने मेरे जीवन का लक्ष्य ही बदल दिया l पहले में जो कुछ करता था जीवन में कुछ पाने के लिए करता था, अपनी सुख सुविधाऐ बढ़ाने के लिए करता था परन्तु अब एसा नही है l आपको वो बात याद है ? “जब भी तुम कोई कानून बनाओ तब तुमने देखे हुए सबसे दीन आदमी के बारे में सोचना ओर अपने आप से पूछना की मेरे इस निर्णय से उसके जीवन में क्या परिवर्तन हो सकेगा ? और तब देखना तुम्हारा कोई निर्णय गलत नही होगा l” यह बात मेरे दिल में बहुत गहेराई तक उतर गई l आप के इस विचार ने मेरी द्रष्टि को वैश्विक बना दिया l मेने अपने जीवन का लक्ष्य ही अब समाज की उन्नति में सोच लिया है l में अब भी जीवन को बहेतर बनाने में लगा हु पर वो एक बड़े पैमाने पर होगा l वो सारे समाज का होगा l में अब कुछ बहेतर बदलाव लाना चाहता हु और इसके सम्पूर्ण प्रेरणास्रोत आप है l

कुछ दिनों पहले एक बहोत अच्छी बात सुनने में आयी थी, ‘कई बार आदर्शो का पालन करने में जीवन व्यर्थ हो जाता है परन्तु उन आदर्शो के पीछे व्यर्थ हुआ जीवन दुसरो के लिए आदर्श हो जाता है’ l आज आपका जीवन ऐसे ही आदर्श हो गया है l लेकिन आजकल आदर्श जीवन में किसी को रूचि नही है l आज कल सीधा आदमी मुर्ख में खप जाता है l कभी कभी मुझे प्रश्न होता है की , आप एसा जीवन कैसे जी गये बापू ? जहा तक कइयो की तो सोच भी नही जाती l आपको समजने में आज के युवा निष्फल हो रहे है l विचारशीलता की कमी इसका एक कारण हो सकती है l

आपके ब्रह्मचर्य के नियम मुझे अति कठोर मालूम पड़ते है l में कोशिश करता हु परन्तु सफल नही हो पाता l सवाल शारीरिक नही, लेकिन मन में विकार आ ही जाता है l अब मेने कोशिश ही छोड़ दी है, जबतक की वो वैराग्य भाव न जन्मे l मन को मारना भी मुझे एक क्रूरता सा मालूम होता है l हालाँकि मन को काबू करने के बाद उससे मैत्री हो सकती है और वही शत्रु एक सुखकामी सारथि बनकर हमे जीवनपथ पर अविचल दौड़ा सकता है परन्तु यह अति कठिन जान पड़ता है बापू l

में आपके मानवता के विचारो से भी अति प्रकाशित हुआ हु l यहा प्रभावित की जगह प्रकाशित शब्द का प्रयोग करना ही उचित होगा l लड़ाई में जीत से सिर्फ हम ज्यादा ताकतवर साबित होते है, हम सच्चे साबित नही होते l युद्ध से हम कुछ भाग भूमि अवश्य जीत सकते है परन्तु हम कभी उनके दिलो पर कब्जा नही कर सकते l आज दुनिया में जो आतंकवाद फैला हुआ है उसे रोकने का कोई रास्ता नज़र नही आ रहा l एक बात तो तय है यह मानव संहार तब तक नही रुक सकता जब तक इनके दिलो को न जीता जाये l इनकी अंतरात्मा को न छुआ जाये l आप ने जिस प्रकार एडोल्फ हिटलर को ख़त लिख लिखकर उसका ह्रदय परिवर्तन किया था उसी प्रकार का कुछ कार्य सीरिया और ईराक में करने के लीए आज दुनिया को आपकी जरूरत है बापू l

में आपसे कई सारे प्रश्न करना चाहता हु परन्तु जगह की कमी के कारण उन्हें यहाँ न लिख सकूँगा l मेरे सारे सवाल फिर भी आप तक पहोंच ही जायेंगे जिस तरह यह पत्र भेजने से पहेले आपको मिल गया होगा l में आपसे उत्तर की भी याचना नही करूँगा l आपको नोबेल पारितोषिक नहीं दिया गया यह बात उचित ही है, नोबेल शांतिदूतो को या शांति फेलानेवालो दिया जाता है शांति के देवता को नही l जब तक संसार में प्रेम और करुणा जीवित है तब तक आप सबके भीतर जीवित रहेंगे l

आपका आज्ञाकारी,

एक विचारशील युवा

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