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प्रिय के नाम खत - फ़रवरी प्रतियोगिता

प्रिय के नाम खत

सोनिया गुप्ता

मेरे प्रिय

तुम भी हैरान हो रहे होगे, कि मोबाइल और टेलीफोन की दुनिया में, तुम्हारी प्रियसी तुम्हें यह खत भेज रही है ! जानती हूँ, रोज़ बात करते हैं हम, परन्तु, सुना है अपने हाथों से लिखे प्रेम पत्र में एक अलग ही अनुभूति का एहसास छिपा होता है !

तुम मेरे प्रिय, मैं तुम्हारी प्रियसी, जाने कब यह बंधन बना, कब चाँद तारे, आसमान, धरती और ये सारी सृष्टि हमारे प्रेम की गवाह बनी ! पलक झपकते ही मानो कितने वर्ष बीत गये ! आज भी याद आती है, मुझे वो अपने मिलन की पहली रात, वो पहली बरसात ! एक दोस्त के विवाह में तुमसे मुलाक़ात हुई, और अकस्मात ही वह पहली मुलाकात एक ऐसे एहसास में बदल गयी, जो मेरे जीवन का सबसे सुखद पल बन गया ! तबसे शुरू हो गया एक अनोखा सिलसिला, और मुलाकातों का, ढेरों बातों का !

आख़िर क्या था वह एहसास, क्या था तुम्हारी बातों में, जो मुझे तुम्हारी ओर खींचता जा रहा था ! कितने ही दिन तो हम छिप छिपाकर मिलते रहे दुनिया से, फिर एक दूसरे के संग पूरी उम्र बिताने की सोच ली और घर में बात की ! जानती हूँ थोड़ी मुश्किल अवश्य आई थी, पर जैसे कैसे हमारे घर वाले मान ही गये !

मेरी बेरंगीन सी दुनिया में तुमने अपने प्रेम के ऐसे रंग भरे, कि मेरी हर सुबह, हर रात महकने लगी ! मेरे स्वप्नों को तुमने अंजाम दिया ! मेरी ख्वाहिशों को अपना समझकर पूरा किया ! तुम्हारे दिए हर छोटे छोटे तोहफ़े को मैनें आज तक अपने पास सम्भाल कर रखा है ! वो याद है, प्रिय, तुम मेरे लिए माँ से छिपकर गजरा लेकर आए थे, और पीछे से मेरे बालों में सजा दिया तुमने, जिसके फूलों की महक आज तक मेरी साँसों में बसी हुई है ! वो पहली पायल, जो तुमने मुझे जन्मदिन के तोहफ़े के रूप में दी थी, झन झन करती आज भी बजती है ! हर पर्व, हर लम्हा, साथ में बिताया एक याद बनकर रह गया ! घंटों साथ में बैठे यूँ ही कितनी बातें करना, खामोशी में भी जाने कितने एहसास छिपे होते थे!

सावन के महीने के झूले, वो तुम्हारा मेरे लिए गीत लिखना और गुनगुनाना, सब याद है मुझे ! और तुम्हें वो पुस्तक याद है जो मैनें तुम्हारे लिए लिखी थी ? तुमसे झगड़कर मैनें तुम्हारी तस्वीर मांगी थी, तुमने कितने प्रश्न किये, पर जब तुम्हें मैनें वो किताब सगाई पर दी, तो तुम खुद भी चकित रह गये ! वो अपने हाथों से तुम्हारे लिए बुना स्वेटर, जो तुम आज तक पहनते हो, सब कुछ कितना हसीं था!

तुमसे मिलने से पहले मुझे प्रेम शब्द का अर्थ ही नहीं मालूम था, प्रेम क्या होता है, श्रृंगार क्या होता है, तुमसे मिलकर ही जाना मैनें!

सुना था लड़के घर के काम काज में बिलकुल दिलचस्पी नहीं रखते, पर तुम्हारा वो पहला चाय का प्याला बनाकर लाना, वो रात का खाना बनाना, एक अलग ही प्रतिभा का प्रमाण था ! उस रोज़ मैं जब बीमार थी, किस तरह तुमने मेरे सिर पर पानी की पट्टियाँ रख कर दिन रात मेरी सेवा की, ऑफिस भी नहीं गये! प्रिय, तुम्हारे साथ हर बिताया सुख दुःख का पल ख़ास था !

मेरे परिवार को भी यह संशय रहता था, कि पता नहीं किस तरह का जीवन साथी मिला होगा उनकी पुत्री को, पर तुमको पाकर उनका भी संशय दूर हो गया, और वो निश्चिन्त हो गये! तुमने मेरे परिवार को अपना परिवार समझा, और एक बेटे की तरह हर फर्ज़ निभाया !

बातें तो बहुत हैं प्रिय लिखने को, कहने को, कितनी अनमोल यादें हैं जो शायद इन पन्नों में सिमट न पाएं, दिल करता है, लिखती जाऊं, और तुम्हें सुनाऊं ! आज वैलेंटाइन दिवस है, प्रेम का खास पर्व, कहने को तो प्रेम का इज़हार करने को किसी दिवस की आवश्यकता नहीं होती शायद, परन्तु, जब कुछ विशेष अवसर बनाये गये हैं, तो उन्हें मनाना भी चाहिए ! वो पहला वैलेंटाइन मुझे आज भी याद आता है, किस प्रकार तुमने मुझे एक सरप्राइज दिया था, चाहे नन्हें से एक गुलाब के पुष्प के संग ही, डिनर पर ले गये और वहाँ समन्दर किनारे रात की जगमगाती बत्तियों में हम दोनों तन्हा से, एक दूसरे के हाथों में हाथ डाले, कितनी देर बैठे रहे! क्या हसीं पल थे, जो शायद लौट कर न आएं कभी, पर दिल के किसी कौनें में आज भी खिले गुलिस्ताँ की तरह महकते हैं !

आज तुम मुझसे दूर हो, पर फिर भी हम यह दिन मनाएंगे, अपने लफ्जों के जरिये, अपने एहसासों के जरिये! अपना सूटकेस खोलकर देखो, तुम्हारे लिए एक तोहफ़ा रखा है, अंदर की पॉकेट में, उसमें एक रुमाल भी होगा, जिसपर तुम्हारा और मेरा नाम लिखा है, मेरी की क्रोशिये की कढ़ाई से, और हाँ एक और ख़ास चीज़ है, जो तुम खुद देखकर बताना मुझे ! आशा है, तुम्हें मेरा भेजा तोहफ़ा जरूर पसंद आएगा !

और क्या कहूँ.......

तुम मेरे जीवन साथी नहीं, मेरा जीवन हो, जिसकी व्याख्या मैं अपने शब्दों में नहीं कर सकती! इतना ही कहूँगी, तुमने मेरे जीवन को एक आयाम दिया, एक नाम दिया ! कोई पिछले जन्मों का पुन्य होगा जो मुझे तुम मिले!

आज कुछ खास पंक्तियाँ मेरी कलम की स्याही से लिखी तुम्हारे नाम;

***

जीवन आख़िर होता क्या है, तुमसे मिलकर जाना

साथी मेरे हर पल मेरा, यूँ ही साथ निभाना !

दिल को मेरे होश नहीं है, करता तेरी बातें

तुम पर ही ये मरता फिरता, है पागल दीवाना !

सुन लो साजन कहती तुमसे, हाल आज ये सजनी

विरहा की बेला में मुझको, कभी नहीं तड़पाना !

सौंप दिया है जीवन तुझको, धड़कन भी ये तेरी

मीत बने हो तुम जीवन के, क्या तुमसे शरमाना !

जग ये सारा पूछे मुझसे, क्या पाया है तूने

ये क्या जाने पाया मैनें, इक अनमोल खजाना !

मांगूँ तुझसे इक ही दौलत, सुन लो मेरे साथी

जन्मों जन्मों तक इक तुम ही, प्रियतम बनकर आना !

***

बस इक ही गुजारिश, इक ही तम्मना, प्रिय हमारा साथ यूँ ही बना रहे, जब तक मेरे श्वास चल रहे हों, मैं तुम्हारी ही अर्धांगिनी बनकर इस जीवन में वास करूँ !

तुम्हारी प्रियसी.

सोनिया !

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