शम्मी कपूर: तुम सा नहीं देखा Prabhu Jhingran द्वारा पत्रिका में हिंदी पीडीएफ

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शम्मी कपूर: तुम सा नहीं देखा

21 अक्टूबर

जन्म दिन विशेष

शम्मी कपूर : तुम सा नहीं देखा

शमशेर राजकपूर उर्फ शम्मी कपूर सिर्फ एक अदद अभिनेता का नाम नहीं है बल्कि 50 और फिर 60 के दशक के हिन्दी सिनेमा के एक युग का नाम है जो शम्मी कपूर के नाम लिखा हुआ है। अपनी अनोखी अदाकारी और सबसे जुदा अंदाज के चलते उन्होंने इंडस्ट्री में एक नया ट्रेंड स्थापित किया और उसकी नकल करने की कोशिश तो कई अदाकारों ने की पर शम्मी दूसरा कोई न बन सका। हिन्दी सिनेमा के इस दौर में शम्मी एक ऐसे नायक हुए जिन्होंने जिंदगी की उमंग और उत्साह, मस्ती और अहहड़पन को बेहद रोमांटिक और अलग अंदाज में पेश किया।

शम्मी ऐसे कलाकार थे जो पूरी तैयारी के साथ बॉलीवुड में बड़े बदलाव की बयार लेकर आये, एकदम ताजा झोंके की तरह और छा गये। जमे—जमाये अभिनेताओं की नकल के बजाय उन्होंने नये प्रयोग करने का खतरा उठाया और वे सफल भी हुए। रोचक यह भी जानना है कि शम्मी को 'रिबेल स्टार' (विद्रोही नायक) भी कहा जाने लगा क्योंकि उन्होंने उदासी, मायुसी, दुखांत प्रसंगों और देवदासनुमा नायक की छवि को तोड़ा और अपने अभिनय की एक खास शैली विकसित की।

आलम यह था कि शम्मी कपूर को केन्द्र में रख कर फिल्मों की स्क्रिप्ट लिखी जाने लगीं और जिंदगी की मस्ती को करीने से पिरोने के लिए उनपर फिल्माये गये गीतों के बोल भी एक खास अंदाज में ढ़ाले जाने लगे। ऐसा इसलिए हुआ कि शम्मी के नये अवतार को दर्शकोें ने हाथों—हाथ लिया और वे फिल्म की सफलता के लिए गारंटी माने जाने लगे। 60 के दशक में शम्मी की लोकप्रियता का अंदाज इसी एक बात से लगाया जा सकता है कि जब कभी फिल्म निर्माता किसी नई नायिका को फिल्म जगत में स्थापित करना चाहते थे, वे उसे शम्मी की नायिका के रूप में पेश कर देते। इस कड़ी में शायरा बानो (जंगली 1961) आशा पारीख (दिल दे के देखो 1963) साधना (राजकुमार 1964) और शर्मीला टैगोर (कश्मीर की कली) के नाम शामिल हैं।

21 अक्टूबर, 1931 को मुम्बई में जन्में शम्मी कपूर अपने जमाने के बिंदास अदाकार पृथ्वीराज कपूर और रामसरनी 'रमा' मेहरा के दूसरे बेटे थे। फिल्मी माहौल तो उन्हें घर में पैदा होते ही मिल गया था लेकिन पृथ्वीराज ने उनसे थिएटर के छोटे—मोटे काम करवा कर उन्हें प्रारम्भ में ही यह एहसास कर दिया कि कपूर खानदान में पैदा हो जाने से कोई सफल अभिनेता नहीं बन सकता। वर्ष 1953 में शम्मी ने अपनी पहली फिल्म 'जीवन ज्योति' से फिल्मी सफर की शुरूआत की पर फिल्म कुछ खास नहीं कर सकी, इस फिल्म के निर्देशक महेश कौल थे और शम्मी की नायिका थी शशिकला जबकि संगीत निर्देशक थे एस. डी. बर्मन। इसी साल उन्होंने 'रेल का डिब्बा', 'ठोकर', 'लैला मजनू' आदि फिल्में भी कीं पर मंजिल अभी दूर थी। फिर 1957 में आई नासिर हुसैन की एक फिल्म 'तुम सा नहीं देखा' और इस फिल्म के माध्यम से एक नये खिलंदडे नायक का उदय हुआ।

ओ. पी. नय्यर की धुनों से सजी इस फिल्म के गीत 'छुपने वाले सामने तो आ', 'यू ंतो हमने लाख हसीं देखे हैं' और 'जवानियां' ये मस्त मस्त बिन पिये', दर्शकों की जुबान पर चढ़ गये। शम्मी की दुकान चल पड़ी, लेकिन वर्ष 1961 में आई सुबोध मुखर्जी की फिल्म 'जंगली' ने तो जैसे आग लगा दी और शम्मी रातोंरात स्टार बन गये। हालांकि इस फिल्म में उनके अभिनय और नृत्य आदि पर हॉलीवुड अभिनेता 'एल्विस प्रेस्ली' की छाप देखी जा सकती है, पर फिल्म ने डायमंड जुबली मनाई और शम्मी को लेकर फिल्म बनाने वाले निर्माताओं की लाइन लग गई। फिल्म में शंकर जयकिशन की अधिकांश धुनें घर —घर में गूंजने लगीं, खास तौर पर 'नैन तुम्हारे मजेदार', 'कश्मीर की कली हूं मैं', और 'दिन सारा गुजारा तोरे अंगना' बेहद लोकप्रिय हुए। 'चाहे कोई मुझे जंगली कहे' गीत तो भारतीय सिनेमा में मील का पत्थर है ही।

जंगली के बाद शम्मी ने पीछे मुड़कर नहीं देखा। 'दिल दे के देखो', 'दिल तेरा दीवाना', 'प्रोफेसर', 'चाइना टाउन', 'राजकुमार', 'जानवर', 'तीसरी मंजिल', 'एन हवनिंग इन पेरिस' 'ब्रम्हचारी', 'अंदाज' और 'विधाता' उनकी अन्य चर्चित फिल्में हैं। वर्ष 1968 में शम्मी को फिल्म ब्रम्हचारी के लिए सर्वश्रेष्ठ अभिनय के लिए फिल्म फेयर पुरस्कार से सम्मानित किया गया। वर्ष 1982 में सर्वश्रेष्ठ सपोटिर्ंग एक्टर का पुरस्कार उन्हें 'विधाता' फिल्म के लिए मिला, और वर्ष 1995 में उन्हें 'फिल्म फेयर लाइफटाइम अचीवमेंट' पुरस्कार दिया गया।

वर्ष 1999 में उन्हें जी सिने 'एवार्ड फार लाइफटाइम अचीवमेंट' से सम्मानित किया गया।

शम्मी कपूर को वैसे तो सबसे पहले मुमताज से इश्क हो गया था 'ब्रम्हचारी' के सेट पर, लेकिन मुमताज जो उस समय मात्र 18 वर्ष की थीं, शादी करने की स्थिति में नहीं थी, इसलिए उन्होंने प्रस्ताव ठुकरा दिया। बाद में शम्मी के जीवन में दो पत्नियां आयीं, गीता बाली और नीला देवी। गीता बाली और शम्मी का प्रेम परवान चढ़ा वर्ष 1955 में फिल्म 'रंगीना रतन' के सेट पर। लेकिन उस समय कपूर खानदान में एक अघोषित सा नियम था कि फिल्म अभिनेत्री से कोई शादी नहीं करेगा लिहाजा यह प्यार छुप—छुप कर पनपता रहा। 4 महीने बाद शम्मी ने नेपियन सी इलाके के पास बाणगंगा मंदिर में गीता के साथ शादी कर ली और इसके बाद घर वालों को बताया। शम्मी को पुत्र रत्न की प्राप्ति हुई आदित्य राज कपूर के रूप में। वर्ष 1965 में गीता बाली की चेचक से मृत्यु हो गई और 27 जनवरी 1969 को शम्मी ने भावनगर के शाही खानदान की नीला देवी से दूसरी शादी तो कर ली पर वे गीता के प्यार को भूल नहीं पाये। धीरे—धीरे शम्मी का वजन बढ़ता गया और वे बेहद मोटे हो गये।

शम्मी को उस शुरूआती दौर में इंटरनेट की तलब लग गई। वे इंटरनेट यूजर्स कम्युनिटी के संस्थापक अध्यक्ष बने। उन्होंने 'एथिकल हैकर्स एसोसिएशन' की स्थापना भी की और कपूर परिवार को केंद्र में रखकर एक बेहतरीन वेबसाइट का निर्माण भी किया।

वर्ष 1974 में शम्मी ने फिल्म निर्देशन के क्षेत्र में हाथ आजमाने का निर्णय लिया और फिल्म 'मनोरंजन' निर्देशित की जो फ्रेंच फिल्म 'इरमा ला डाउस' का रीमेक थी। वर्ष 1976 में शम्मी ने 'बंडलबाज' फिल्म निर्देशित की हालांकि दोंनो ही फिल्में बॉक्स आफिस पर कुछ खास नहीं कर पाईं।

शम्मी को बड़े पर्दे पर आखिरी बार वर्ष 2006 में 'सैंडविच' फिल्म में चरित्र कलाकार के रूप में देखा गया। टेलीविजन पर उनका 'पानपराग' का विज्ञापन खूब प्रचलित हुआ।14 अगस्त 2011 को पर्दा हमेशा के लिए गिर गया, लेकिन जो रूमानियत भरी फिल्में वे छोड़ गये हैं, उनके दीवाने आज भी यू—ट्‌यूब वगैरह पर उन्हें तलाशते रहते हैं।

प्रभु झिंगरन

वरिष्ठ मीडिया समीक्षक

mediamantra2000@gmail.com