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सत्य की खोज...

सत्य की खोज

Sultan singh

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लेखक परिचय

सुलतान सिंह

में एक मानोविज्ञान का छात्र हु मुझे लिखना अच्छा लिखता हु और हा सायद ओरो की नज़रो में में नास्तिक भी हु. वेसे तो ये वाट मुझे सही नहीं लगती पर लोगो को रोकना भीतो मेरा कम नहीं हे सायद इसी लिए मेरे लेख में मुसी सकती के फेले जूठे रास्तो से उलज जाता हु. वो हे तो एक ही पर उसके नामो में भी उलज जाता हु. बड़ी अजीब हे दुनिया जिसे में मानता हु नहीं सायद जानता हु उसे लोग गलत बताते हे और वो भी उस के कारण जो वो बस मानते हे जानतेतो खुद भी कुछ नहीं.

छोडो ये बाते वो सब आप पढ्नेही वाले हो फिर में आपको बोर अभिषे क्यों करू. मेरा हिंदी में सायद पहेला लेख हे मात्रुभारती पर वेसे में गुजराती में बहोत लिखता रहेता हु वेसे तो में राजस्थान से हु मेरी मातृभाषा ही हिदी हे पर जन्म से गुजरात में पलाबढा हु तो गुज्जू जादा बन गया हु. वेसे मेने एक उपन्यास भी लिखाथा सायद कुछ दिनों बाद उसे भी शेयर करूँगा. बुत फ़िलहाल आपको जो कुछ भी लगे आप कृपया मुझे प्रतिसाद जरुर दे मेरी मेल एड्रेस लिखा हे और रही बात तो आप डायरेक्ट मेसेज भी कर सकते हे.

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सत्य की खोजमे.....

सदिया बीत चुकी हे पर सच से न जाने लोग अनजान हे या फिर ऐसे ही जीने की आदतसी पड़ चुकी हे. कोई नही जानता दुनिया केसे चलती हे ? कोन चलाता हे और इशका तात्पर्य क्या समजा या बताया जा शकता हे. आखिर ये सब हे क्या जिसे लोग भगवान कहेते हे एक अनकहा सत्य जिसे मनना भी सच हे या इशपे सवाल उठाना जूठ ? क्या कोई बता शकता है की इशकी जड़ कहा से शुरू हुई थी ?

राम, रहीम ओर इशु इश्मेसे क्या कोई आजभी मौजूद हे अगर हे तो कहा देखने भर कोतो इनकी कही व्याख्या ओर सत्यता बताई जाती हे पर क्या सचमुच इशमे से एक भी चीज का कोई पुरावा मिल पाया हे ? भगवानके बारेमेभी आज दिन तक में कोई पुरावा मिल पाया हे ? भगवान.... दिन भर मे कोई व्यक्ति ऐसा नहीं हो शकता की जिसे एक बार भी ये सवाल सुजा हो की आखिर ये होता क्या हे ? जिसे हम भगवान, अल्लाह ओर जीजस कहेते हे ये अश्था का प्रतिक हे या अन्धसरधा का अंधकारमय सच ? क्या हम आज भी भ्रम में जी रहे हे या हम आज भी सच से अंजान है ?

सवाल तो हजारो उठते हे पर धर्म से लिप्त अंधे व्यक्तिओ द्वारा इन्हें दबा दिया जाता हे, रोज कई सवाल उठते हे जिनका हम जवाब ढूंढने की कोशिश में लग जाते हे पर इश सच से अंजान होने के बावजूद क्या हमने कभीभी उसे ढूंढने का सोचा तक हे कोशिश तो बहोत कोषो दूर की बात है भला ये श्रधा या आश्था कही जाये या फिर इशे डर के नाम से दर्शाया जाय ? इशमें भी अब आप सोचेंगे की भला बात तो आपकी सच हे पर हम इतने मुर्ख भीतो नहीं की भगवान ओर आश्था पर सवाल उठाये ? हम अकेले हितो नहीं जो इन्हें मानते है ? दुनिया लम्बी चौड़ी है पर हर एक धर्म में भागवानोकी कहा कमी हे फिर वो इतना नहीं सोचते ? फिर शुरुआत हम ही क्यों करे ? और भला उनपर सवाल करके हम क्या पापके भोगी बने ? आखिर किताबे, धर्मगुरु, इतिहास, पुराण ओर सभी तरह के धर्मग्रंथ सब जुठ थोड़े ना हे ? ओर फिर मंदिर, मस्जिद ओर चर्च भीतो इसबात का अद्भुत पुरावा हे की ये सत्य है जूठ नहीं ? ओर भला आखिर कर उन्हें जूठ माने ही क्यों ?

वेसे तो आपका मन भी बिलकुल सही सोचके रस्ते पर ही है की भला पूरी दुनिया तो जूठ नहीं बोल शकती ना चलो मान लिया की भगवान हे या फिर अल्लाह का अस्तित्व हे या जिजस भी हे पर कहा ? बस एक छोटा ही सही इत्नासा सवाल तो उठा ही शकत्ते हे ना ? जब हम एक ५० पैसे की माचिस भी उसके बिना नाम देखे नहीं खरीदते तो फिर हम इतना बड़ा हमारे आश्था का महेल हम इतने छोटेसे सच से अंजान रहेकर केसे कर शकते हे ? लोगतो बहोत कुछ मानते हे पर हर मान्यता सच हो येभी तो जरुरी नहीं हे ना. और रही बात मानने की तो आज तक लोगो ने तो येभी माना हुआ था की ये पृथ्वी समतल हे पर क्या हुआ ? रातोरात किसी वैग्नानिकने ढूंढलिया की पृथ्वी गोल हे और वोभी संपूर्ण गोल न होकर नारंगी जेसी गोल हे ओर क्या हुआ सदीओ से चलता जूठ फटाक से बदल गया जब वो मानने से जानने तक आ पहुचे फिर हमें इनको जानने की जिज्ञासा कुछ गलत बात भी तो नहीं कही जा शकती है ना ?

शायद विज्ञान भीतो यही करता हे की मणि हुई बातो को जानने तक ले जाये और जब आप उसे जानने लगे तभी उसपर अपना यकीन बिठाये. और हर मानीहुई बात सच नहीं होती इसे भी जुट्लाया नहीं जा सकता हे ना. आग जलाती हे ये बात हम जानते हे क्योकि इसे हम कई बार जान चुके हे पर आत्माए और बुरे साये होते हे ये बात ? आगवाली बात हम प्रूफ कर सकते हे पर क्या ये आत्माओ वाली बातको हम प्रूफ कर पाएँगे ? इश्का जवाब ना ओर हा दोनोमे मिलेगा.

स्वतंत्र देशके नागरिक होने के नाते अपनि हर समस्या को जानने का पूरा हक़ है पर दुसरो के जीवनमे बाधा बनाये ओर ये सवालतो हम खुदसे भी कर शकते हे जिसमे जन-भावना दुभाने कातो सवाल भी नहीं उठता हे ना ? आखिर जब भगवान के होने की बात हम सहसा बिना कुछ सोचे मन लेते हे फिर उनकी कही बातो से हम अंजान केसे बन शकते है ओर रही बात जानने की फिर बिना खुदसे किये सवाल हम कुछभी नहीं जान शकते ? मै तो किसी व्यक्तिको जोर नहीं देना चाहता पर एक सवाल आपका जीवन भीतो बदल शकता हे ?

ओर आजका तो समय ही कुछ ऐसा ही बिना सबूतों को बाप ओर माँ को माँ न कहा जा शकता हे फिर इनके लिए भी ये धारा क्योना अपनाई जाए पर भला इशे छोड़ा जाये तो कई लाखो अनुआयी जो भगवान जेसे शब्दोके नाम पर जीवन गुजारते हे उनका क्या ? उन शाधू , संत , फकीरों ओंर पोप का भला जीवन हितो इनके कारन चलता हे. उनके लिए तो कोई इने माने या न माने श्रध्धा के कारन अंधे भक्तो की कृपा इनपे बनी रहेती हे, ओर आधा पद तो इन भगवान का उनको ही मिल जाता हे. भला किसी किताब मे भगवानने ये तो ना कहा था की मुझे मिलने के लिए भी दलालों को भोग चढ़ाना होगा. बिना इन दलालों के तो किसी कंपनीका मालिक नहीं मिलता फिर ये तो बहोत उपरी तत्व हे. ये भला बिना किसी दलालों के मिल जायेंगे आखिर बताओ भला ? ऐसे सवाल मनमे आएंगे ही पर ये जरुरी नहीं हे. उन्हें तो बस दिलके रस्ते ही मिला जा सकता हे. अकेलेमे अपने आपमें खोकर उनको पाना हे.

थोड़े दिनों पहेले मेने टीवी न्यूज पर एक धर्म संसद के बारेमे न्यूज़ देखि थी जिनमे कुछ साधू संतोके कई ग्रुप ने अपने आपको धर्मका रक्षक बता कर अचानक से साईबाबा जेसे महंत व्यक्तिका विरोध दर्शाया था. उसदिन मुझे कुछ अचानक से लगा की जेसे आज पहेली बार किसीने अश्था पर एक सवाल उठाया था पर सायद येभी दुनियाके धर्म के खेलो का ही एक हिस्सा था कही शायद इसमें धर्म और अन्धसरधा के अंत की शुरुआत दिखाई पड रही थी.

साईं भक्तो पर एक सवाल मनो हावी होता दिखाई देने लगा था की आखिर उनकी कहानी क्या हे. साईं बाबा कोन थे ? उनके गुरु कोन थे ? उनको दीक्षा कहासे मिली ? ओर केसे मिली ? उनके माता-पिता कोन थे ? उन्हें शिरडी में कोन लाया था ? इसी प्रकार के कई सवाल उनको घेर रहे थे. पर एक सवाल अबभी मेरे मनमे ये था की जो सवाल आज साईं बाबा पर उठाये गए थे वाही सवाल हर भगवान और सम्प्रदाय परभी तो उठाये जा शकते हे ना ? शायद हा उठाया जा शकता हे बस इतने सवाल करनेकी हिम्मत कर शकने वाले की जरूरत हो रही थी. शायद सारे सवाल सही तो थे पर उन्हें गलत बताने के बजाय उनकी रित को अनुचित कहेना ठीक होगा. शायद इस लिए की ये गलत था क्योकि लाखो साईं बाबा के भक्तो का दिल तोड़ने का हक़ न किसी धर्मगुरूओ को हे नहीं किसी एक व्यक्ति को फिर चाहे वो एक हिंदू हो, मुस्लिम हो, या फिर चाहे शिख या इशाई ही क्यों न हो. वेसे तो साईं एक मात्र सर्व ग्राही संत माने जाते हे क्योकि उनके दरबार में तो किसी धर्म के लिए नाहीं कोई बाध्य था न ही कोई बंधन रखा जाता था. उन्होंने तो जीवन भर सायद एक ही बात दोहराइ थी जो कुछ इश प्रकार से थी की “ सबका मालिक एक ” यानि की वो चाहे भगवान हो, अल्लाह हो, जीजस हो या फिर वाहेगुरु पर वो परमात्मा एक ही तत्व हे जो सबका मालिक हे.

शायद यही एक सवाल हो शकता हे जो दिलो दिमाग पर कोई नया सच खोलकर रखदेने वाला हो अनजानी हकीकतो उजागर करने वाला हो ? सायद साईं ने अपने आप को कभी भी भगवान तो कहा ही नहीं था ये भी तो उतनाही सच हे जितना वो परमात्मा. और अगर कोई धर्मगुरु या उनके कुछ अनुआयी अब भी यही सवाल करते हे तो फिर न तो उन्हें किसी धर्मका कहेलाने का हक़ हे न किसी धर्म पे ऊँगली उठानेका ? अगर वो धर्मगुरु अपने आपको हिदू कहे दे तो न भगवत गीतामे ये कहा गया हेकी किसी भक्त के लिए उसके जन्मस्थल, माता-पिता, गुरु, गुरुदीक्षा या किसी अन्य कारणों का होना जरुरी हो. या न किसी पुराणोमे न ही कुरान-ऐ-शरीफ में या नहीं बाइबल में ऐसा कुछ होना चाहिए. क्योकि एक भक्त को न किसी फोर्मलिटी की जरुरत हे. आखिर कर वैराग्य किसी कपडे, धर्म या गुरुकी दक्षिणा का मोहताज़ भी तो नहीं माना जाता ? सवाल उठाने कोतो लाखो ही उठाये जा सकते हे पर क्या वो सवाल हमें सत्य की खोज करने में मदद करता हे या नहीं ये बात ज्यादा आवश्यक हे.

भगवान जिश तत्व को भी कहा जाता हे क्या उनकी कोई निशचिंत पहेचन हे ? क्या उनका कोई एक चहेरा हे जोकि उनकी पहेचान करा शके ? और रही बात सत्य की तो अगर सत्यभी एक्से जादा होते हे तो फिर जूठ की टी कल्पनाए करना भी एक पागलपन ही कहा जा शकता हे ना ? सत्य हमेह्सा एक ही हो शकता हे ओर अगर एक से जादा हो तो मतलब साफ हे की कहिन कही कुछ गलत तो जरुर ही हे. एक से जादा सच होने की बात भी मान्य नहीं कही जा सकती. शायद यही सत्य की व्याख्या भी हे की वो हमेशा सनातन होता हे ओर यही सनातनता दर्शाता हे जो कभी न बदलने वाली बात जीसे हम सत्य कहे शकते हे.

--- लेखक --- सुलतान सिंह बारोट ---

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