सुन बे प्याज !
प्रेम जनमेजय
प्रेम जनमेजय
मैंने पान वाले से पान मांगा। उसने पान दिया। पान वाले ने पैसे मांगे, मैंने पैसे दिए।
मैंने पान खाकर कहा — मज़ा आ गया।'
उसने पैसे लिए और कहा — मज़ा नहीं आया, पैसे और दो।
— क्यों इतने का ही तो पान रोज़ देते हो...
— पर आज नहीं दूंगा, आज महंगाई बढ़ गई है। प्याज महंगी हो गई है, दाल— सब्जी महंगी हो गई है।'
— पर तुम तो प्याज नहीं बेचते हो,दाल — सब्जी भी नहीं बेचते हो?
— पर खाता तो हूं।
— तुम्हारी प्याज, दाल और सब्जी मंहगी हुई तो तुमने पान के दाम बड़ा दिए। मैं सरकारी नौकर किसके दाम बढ़ाउं ?
— तुम्हारा डी ए, सरकार ने बढ़ाया है।
— वो डी ए तो पिछली बड़ी मंहगाई के कारण बढ़ा है , आज जो महंगाई तुम बढ़ा रहे हो उसके लिए मैं पैसे कहां से लाउं।
— सरकार से। छह महीने बाद सरकार फिर डी ए बढ़ाएगी।
— और तुम दाम बढ़ाओगे।
— दाम मैं नहीं प्याज और दाल— सब्जी बढ़ाते हैं।
— मुझे तो आज तक समझ नहीं आया कि महंगाई बढ़ने से डी ए बढ़ता है या डी ए बढ़ने से महगाई बढ़ती है।
— जब आप जैसे पढ़े लिखे बाबू को समझ नहीं आता तो हम जैसे गरीब अनपढ़ पान लगाने वाले को कैसे समझ आएगा। हमें तो पान लगाने की समझ है ...
— और महंगाई का चूना लगाने की भी।
हम दोनों हंस दिए। हंसने के अतिरिक्त हम दोनो कर भी क्या सकते थे। वो पान बेचना बंद नहीं कर सकता और मैं पान खाना बंद नहीं कर सकता।
पान का स्वाद जो महंगाई से पहले था, बाद में वैसा स्वादी नहीं रहा। फिर भी जुगाली—सा करता आगे बढ़ गया। आगे बढ़ा तो बेचारा मतदाता मिल गया। वह गा रहा था —— मेरे टूटे हुए दिल से कोई आज यह पूछे...
मैंने कहा — क्या पूछे ?
— कि तेरा हाल क्या है ?
— यह तो मुकेश का गाया पुराना गाना है।
— मेरी हाल भी पुराना ही है। मेरा दिल प्राचीन काल सेे टूट रहा है और आधुनिक काल में फिर टूट रहा है।
— कौन तोड़ता है तुम्हारा दिल ?
— जो भी नई सरकार आती है, वही तोड़ती है। चुनाव से पहले इस सरकार ने भी बड़े— बड़े वायदे किए कि महंगाई दूर हो जाएगी और चुनाव जीत लिया।
— वायदे तो बड़े ही किए जाते हैं, प्यारे! चुनाव भी तो बड़े वायदों से जीत जाता है। सरकार तो कोई भी हो जनता का दिल तोड़ती ही है। पहले उसे अपना दिल कुर्सी के साथ जो जोड़ना होता है। दिल इस दुनिया में सब का टूटता है। पानवाले, सब्जी बेचने वाले ,मोची जैसे रंक का टूटता है तो अडानी, अंबानी, मालया जैसे राजाओं का भी टूटता है। महंगाई के कारण टूटा दिल होल सेल में टूटता है। इसके कारण पूरे परिवार का दिल टूटता है। पर इस महंगाई के कारण होल सेल का व्यापार करने वालों, जमाखोरों का दिल बल्लियों उछलता है। उनका दिल तब टूटता है जब महंगाई नहीं होती है। चुनाव जीतने के बाद नई सरकार चार साल तक दिल तोड़ने का हैजा फैलाती है, फिर एक साल मीठी दवा पिलाती है।
— यहां तो 25 साल बाद अच्छे दिन की मीठी दवा पिलाने की कह रहे हैं। मुझे महंगा प्याज मिल जाए तो उसका गला घोंट दूं।' यह कहकर उसने आंखों में खून उतारा और प्याज को ढूंढने निकल गया।
उसे तो प्याज तो नहीं मिला पर मुझे मिल गया।एक बार गुलाब महंगा हो गया तो महाप्राण‘ निराला ' ने गुलाब से कहा था , ‘ अबे सुन बे गुलाब ,' मैं अल्पप्राण प्रेम जनमेजय प्याज से कहता हूं ——
‘‘ अबे सुन बे प्याज / मत इतरा / जो पाई तूनें /महंगाई —ए — खास । / तूं ही नहीं है अकेला / बदबूदार / हो गया यकायक जो , खासमखास / पूछता नहीं था कल तक जिन्हे / टके सेर कोई / पहने मुकुट वे ही / रहे इतरा / तेरी ही तरह / तूने सुना ,बे बहरे प्याज ।''
प्याज ने सुना और मेरा गिरेबान पकड़ लिया , बोला ,‘‘ ओ भेड़ू अबे किसे बोलता है ...... तमीज से बात करने का ... जानता नहीं आजकल अप्पन का मार्केट में बहुत वैल्यू ..... अप्पन माफिया का डार्लिंग होता .........जास्ती अबे तबे करने का नहीं ... साला हरामी टके सेर लेखक .... अप्पन कू ....प्याज जी कू गाली देता अब के बोलेगा तो तेरा सुपारी दिलवा दूंगा ....समझा कि नहीं ।''
मैं समझ गया कि प्याज मुझको गाली दे सकता है पर मैं प्याज को नहीं दे सकता । इसे ही शायद सूफी संतों नें एकतरफा इश्क कहा है ।
जैसे काला अंग्रेज बहुत जल्दी हिंदी पर उतर आता है , आम भारतीय प्याज छोड़कर सादे जीवन पर उतर आया है मैं गद्य पर उतर रहा हूं । ; वैसे इन दिनों कविता भी गद्य ही तो है ।द्ध
प्याज ने आम भारतीय को संत बना दिया है । प्याज आम आदमी की पहुंच से दूर सीकरी मे जा बैठा है । और संतों को सीकरी से कोई काम होता नहीं है । हमारे राधेलाल ने टमाटर महंगा हुआ तो टमाटर का मोह त्याग दिया , प्याज महंगा हुआ तो उसका मोह त्याग दिया । प्यारे राधेलाल यहां तो जिंदगी महंगी हुई जा रही है ! इस तरह संत बनने से नहीं चलेगा । संतों के देश में तो प्रजातंत्रा घुट घुट कर आत्महत्या कर लेता है ।
जो जितना आम जनता की पहुंच से दूर है उतना ही महंगा है या यह कहें कि जो जितना महंगा है वही आम आदमी से दूर है ।
प्याज जीवन स्तर नापने का यंत्रा बन गया है । पहले डायनिंग टेबल पर लोग सेब की टोकरी सजाते थे आजकल प्याज की सजाते हैं । अपने घर कोई खाने पर बुलाए और सलाद में प्याज न हो तो लगता है कि बडा़ गरीब है और दे दे तो लगता है साले का जीवन स्तर बहुत उंचा हो गया है। पहले सलाद में मेहमान प्याज सबसे अंत में खाते थे आजकल सबसे पहले उसी पर हल्ला बोलते हैं । इस दीपावली पर अहूजा साहब के उपहार स्वरूप लाए दो किलो प्याज के सामने बरफी , रसगुल्ला ,कलाकंद और ड्राई फ्रूट ऐसे फीके लग रहे थे जैसे आजकल अमेरिका के सामने रूस लग रहा है अथवा भारतीय राजनीति में नैतिकता , न्यायालय में सत्य या फिर थाने में ईमानदारी लगती है ।
सुना है इन दिनोंं प्याज बौलीवुड पहुंच गया है । प्याज पर फिल्म बन रही है , धड़ाधड़ गाने लिखे जा रहे हैं ।एक नमूना आप भी देखें ——
जय हो, जय हो!
लाल प्याज की जय हो !
हरे प्याज की जय हो !
प्याज खाने वालों की जय हो जय हो!''
आजकल प्याज बड़े बड़ों को ऐश करा रहा है । सारा जमा प्याज सोने के भाव बिक रहा है । व्यापारी — पत्नी प्रसन्न है कि उसे उसके वोट की उचित कीमत मिल रही है । बहुत जल्दी प्याज का सेंट बाजार में आने वाला है । भारतीय व्यापारी भी बदबूदार चीजों को खुशबूदार बनाकर बेचने में माहिर हो रहा है ।
पहले खिलते गुलाब से , चमकते चंद्रमा से नारी की सुंदरता की उपमा दी जाती थी , आजकल प्याज से दी जा रही है । प्याज का रस श्रृंगार के रस में समा गया है ।
एक सखि दूसरी सखि से कह रही है —— ‘‘ हाय मैं मर जाउं आज तो तूं बड़ी प्याज लग रही है । '' यह सुनते ही वह गाने लगती है —— देखा है मैंनें साजन की आंखों में प्याज ।''
पहले गृहिणी प्याज काटे तो आंखों से आंसू झरते थे , आज नहीं काटे तो झरते हैं । जरा सुन तो राधेलाल , तेरे पड़ोस की बाला अपनी आंखों में महंगाई भरे , प्रियतम से क्या कह रही है —— सुनो जी , मैंनें बहुत दिनों से प्याज काटना तो दूर देखा तक नहीं है । आपको मेरी कसम अगर मुझे खुश देखना चाहते हो तो आज ही 250 ग्राम ही प्याज ला दो । अपने पड़ोस के शर्मा जी के पास कलर टी0वी0 तक नहीं है पर फिर भी जब से शर्मा जी ने लाईन में लगकर एक किलो प्याज उसे लाकर दिया हे , वह घमंड से कैसे इतराती है । मोहल्ले में मेरी इज्जत की आपको परवाह है कि नहीं । प्याज नहीं ला सकते तो थोड़ा — सा संखिया ही ला दो । '' आंखों से बिना प्याज काटे प्याज के कारण आंसू बहने लगते हैं । हे प्याज तूं कितना निर्मोही है , सुंदरियों को कैसे — कैसे रुलाता है ।
पत्नी के आंसू देख पति के हृदय में वीर भाव हिलोरे मारने लगता है । वह पत्नी को थैला लाने का आदेश देता है । प्याज — युद्व का बिगुल बज उठता है । अपनी दो सौ रुपए की कमीज फड़वा कर , मजनूं की तरह चाक — गिरेबां हुआ प्रियतम जब एक किलो प्याज के साथ घर लौटता है तो पत्नी उसका तिलक करती है , आरती उतारती है ।
प्याज तूं धन्य है , तूने आम भारतीय के जीवन में वीर भाव को जन्म दिया है , एक थ्रिल दे डाला है । यह कोई पृथ्वीराज चौहान का युग तो है नहीं कि कुछ नहीं कर रहे हैं तो अपनी मूछों पर ताव दे डाला और लड़ाई लड़ ली तथा वीरता के भाव से छाती चौड़ी कर ली । जिंदगी का सारा थ्रिल तो राजनीति में चला गया है । आम आदमी तो घर से दफतर और दफतर से घर की मशीन बन गया है । चार घंटे लाईन में खड़ा होकर एक किलो प्याज घर लाने में जो थ्रिल है वह बड़ी से बड़ी जंग जीतने से या चुनाव जीतने में नहीं मिलता है ।
एक उम्र थी कि किसी हसीना को देखकर दिल बेईमान हो जाता था , आजकल प्याज को देखकर बेईमान होता है । सामने प्याज का ढेर पड़ा देखकर अंदर से जैसे कोई धक्के देकर ललकारता है —— लूट ले ... लूट ले .. ।
हे प्याज ,तूं तो चुनाव की जंग जिताने वाला हथियार बन गया है । प्याज ! मुझे तुझसे ईर्ष्या हो रही है । मैं तो प्रभु से कामना करता हूं कि अगले जन्म में वह मुझे प्याज ही बनाए ।
प्याज की हमपर कृपा बनी रहे इसके लिए मेरा परिवार रोज शाम यह आरती गाता है ।
ओइम जय प्याज हरे , हरे हरे पयाज हरे ।
लाल लाल प्याज हरे , छोटे बड़े प्याज हरे ।
विरोधी दल के तुम रक्षक, तुम मुद्दा कर्ता।
सत्ताधारी की चिंता, स्टोरियों के भरता ।
ओइम जै प्याज हरे
तुम बिन चिकन न बनता तड़का न लग पाता ।
सलाद सूना रह जाता , स्वाद बिगड़ जाता ।
ओइम जै प्याज हरे ....
तुम सब्जियों के स्वामी , तुम इज्जत रखता ।
अपने दरस दिखावो , द्वार पड़ा मैं तेरे ।
ओइम जै प्याज हरे ....
तुम बिन पार्टी न होती , ब्याह न हो पाता ।
कितना जोर लगा ले ,खाने मे मजा नहीं आता।
ओइम जै प्याज हरे ....
प्याज जी की आरती जो कोई नर गावे ।
कहत प्रेमानंद स्वामी मनवांछित प्याज पावे ।
ओइम जै प्याज हरे ....
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