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कॉलेज की मस्ती

कॉलेज की मस्ती

आज विनोद और भूषण में कुश्ती हो रही थी, रात के ग्यारह बज चुके थे, घर के पिछले हिस्से में खाली पड़ी जगह को अखाडा बनाया और विजेंद्र, ओंकार व नरेंद्र दर्शक भी थे साथ ही जज भी थे हार जीत तय करने के लिए।

रात के ग्यारह बजे कुश्ती? आप के दिमाग में यही सवाल उठ रहा है ना? हाँ, मेरे दिमाग में भी है, जिसका उत्तर ओंकार ने दिया, “सभी दोस्त मैस में खाना खाने के बाद नरेंद्र के कमरे में बैठकर गप शप कर रहे थे। कुछ फल लाये थे, भूषण फल काट रहा था और सभी खा रहे थे, फल काटने के बाद भूषण ने चाकू साफ किया और अचानक विनोद के पेट पर लगाकर कहने लगा कि घुसा दूँ? विनोद कहने लगा भाई मज़ाक मत कर लग जाएगा। लेकिन भूषण ने यही प्रक्रिया तीन चार बार दोहराई तो विनोद ने कह दिया कि घुसा दे। विनोद के इतना कहते ही भूषण ने चाकू हटा लिया लेकिन विनोद ने उसका हाथ पकड़ लिया और कहने लगा भाई, अब तो यह चाकू तुझे मेरे पेट में घुसाना ही पड़ेगा नहीं तो मैं ये तेरे पेट में घुसा दूंगा। विनोद ने भूषण से चाकू छीन लिया और भूषण को पकड़ कर बैठ गया। विनोद की इस प्रतिक्रिया से भूषण बुरी तरह डर गया और कहने लगा, भाई मैं तो मज़ाक कर रहा था लेकिन विनोद ने इस बात को गंभीरता से ले लिया। बाकी मित्रों ने जब बात बिगड़ती देखी तो बीच बचाव करने लगे परंतु विनोद किसी भी तरह मानने को तैयार नहीं था। भूषण शरीर में विनोद से दोगुना था तो मित्रों ने सोचा कि इनकी कुश्ती करवा दी जाए और शर्त रख दी जाए कि जो जीतेगा उसकी बात मान ली जाएगी।

विनोद इस बात पर सहमत हो गया और सभी उस खाली पड़ी जगह पर चले गए, जगह को साफ करके अखाडा बनाया, वहाँ से ईंट पत्थर उठा कर अलग कर दिये एवं दोनों को कुश्ती के लिए आमंत्रित किया।

मगर यह क्या!!! कुश्ती शुरू होने से पहले ही खतम हो गयी और विनोद ने भूषण को अखाड़े में घुसते ही उठाकर जमीन पर पटक दिया, इस तरह जमीन पर पटकने के बाद विजेंद्र ने विनोद को विजेता घोषित कर दिया।”

विनोद कुश्ती जीत गया था अतः उसकी बात मानी जानी थी। छोटा हुए भी बढप्पन दिखते हुए विनोद ने भूषण को माफ कर दिया साथ ही यह शिक्षा भी दी कि मज़ाक भी एक सीमा तक ठीक रहता है।

ये पांचों मित्र बचपन से कॉलेज तक साथ ही पढे अतः पांचों में मित्रता बड़ी गहरी थी। हालांकि कॉलेज में आकर विजेंद्र केमिस्ट्री पढ़ रहा था, भूषण और ओंकार फिजिक्स पढ़ रहे थे, विनोद गणित में एम ए कर रहा था और नरेंद्र जीव विज्ञान का छात्र था।

केमिस्ट्री में छात्र छात्राएँ बराबर ही थे, फिजिक्स में छात्र ज्यादा और छात्राएँ कम, गणित में तो कोई छात्रा थी ही नहीं, वहीं जीव विज्ञान में छात्र कम और छात्राएँ ज्यादा थीं।

इस तरह सभी मित्रों की एक गर्ल फ्रेंड बन गयी लेकिन विनोद की कोई भी गर्ल फ्रेंड नहीं थी, वहीं नरेंद्र की दो गर्ल फ्रेंड थीं।

सभी मित्र अपनी अपनी गर्ल फ्रेंड के साथ कॉलेज के मैदान की हरी हरी घास पर घेरा बनाकर धूप में बैठे थे। सबकी गर्ल फ्रेंड उनके बराबर में बैठी थीं। वहीं नरेंद्र की दोनों गर्ल फ्रेंड उसके दायें बाएँ बैठी थी लेकिन विनोद अकेला ही बैठा था।

भूषण बोला भाई! यह तो नाइंसाफी है, नरेंद्र के पास दो दो गर्ल फ्रेंड और विनोद के पास एक भी नहीं। सब ने भूषण की बात का समर्थन किया और निर्णय लिया कि नरेंद्र अपनी एक गर्ल फ्रेंड विनोद को देगा।

इसका फैसला बाकी मित्रों ने दोनों के नाम कीपर्ची डालकर किया और पर्ची विनोद से ही उठवाई, पर्ची खोली तो उसमे रिया का नाम आया, अब रिया खुश होकर अपनी मर्जी से नरेंद्र के पास से उठ कर विनोद के पास जा बैठी। इस तरह सभी मित्रों के पास एक एक गर्ल फ्रेंड हो गयी जिनको वो कह सकते थे कि हम तुम्हारे लिए अपनी जान की बाजी लगा देंगे, तुम अगर चाँद तारे तोड़ कर लाने को कहोगे तो वो भी हम लाकर देंगे।

शुरुआत हुई ट्रीट की तो सभी दोस्तों ने एक दिन विनोद से ट्रीट ली, दूसरे दिन रिया से यह कह कर हाफ बॉय फ्रेंड से तो फुल बॉय फ्रेंड मिल गया, पार्टी तो बनती है। अब नरेंद्र की बारी थी कि दो दो की ज़िम्मेदारी उठाता था, एक को तेरी ज़िम्मेदारी से अलग कराया, भाई! चुपचाप कमला नगर चल और छोले भटूरे खिला दे। ऐसे ही नरेंद्र की दूसरी गर्ल फ्रेंड मधु से भी पार्टी ले ली यह कहकर कि पहले बॉय फ्रेंड का बंटवारा था अब तो सारा है चलो आज तो कमला नगर की रस मलाई खाएँगे और तुम्हें मीठा मीठा आशीर्वाद देंगे, इस तरह एक एक करके चारों से पार्टी ले ली।

नरेंद्र की गर्ल फ्रेंड मधु के पापा सरकारी अधिकारी थे, उनका स्थानांतरण दूसरे श्हर में हो गया, मधु को भी साथ जाना पड़ा। उन दिनों फोन की ज्यादा सुविधा नहीं थी तो पत्राचार ही एक माध्यम था। मधु एक पत्र हर हफ्ते नरेंद्र को कॉलेज के पते पर लिखती थी और नरेंद्र भी मधु को पत्र लिखा करता था।

एक दिन मधु का पत्र कॉलेज के नोटिस बोर्ड पर लगा हुआ भूषण ने देख लिया, भूषण ने लिफाफा उठाया और खोल कर पत्र पढ़ लिया। पत्र में जो भी प्यार भरी बातें लिखी थी वो सब भूषण ने एक कागज पर लिख ली एवं उस पत्र को दूसरे लिफाफे में डाल कर नरेंद्र का पता लिख कर डाक में डाल दिया।

अगले दिन डाकिया फिर उस पत्र को सूचना पट पर लगा गया। उन दिनों डाकिये सभी छात्रों के पत्र सूचना पट पर लगा देते थे, जिसका हो वह ले लिया करता था। नरेंद् ने देखा तो पत्र उठा लिया और अपने कमरे में जाकर पढ़ने लगा।

नरेंद्र अभी पढ़ भी नहीं पाया था कि उसमे लिखी बातें भूषण विजेंद्र, ओंकार व विनोद दोहराने लगे। नरेंद्र समझ ही नहीं पाया कि पत्र में लिखी सारी बातें इन्हे कैसे पता है जबकि लिफाफा तो उसने स्वयं खोला है।

इस बात से नरेंद्र थोड़ा परेशान हो गया, उसकी परेशानी देखकर विजेंद्र ने नरेंद्र को सारी बात बता दी। जब नरेंद्र को भूषण की इस हरकत का पता चला तो नरेंद्र ने भूषण को सबक सिखाने की योजना बनाई एवं योजना में विजेंद्र को भी शामिल कर लिया क्योंकि विजेंद्र तो आनंद लेता था जब किसी की भी खिंचाई होती थी और जिसका पलड़ा भारी देखता उसकी तरफ हो जाता था।

भूषण की एक गर्ल फ्रेंड जो गाँव में रहती थी, जिसके साथ भूषण ने पूरा जीवन बिताने का वादा किया था, साथ मरने जीने की कसमें खाई थीं, उसके बारे में नरेंद्र जानता था।

नरेंद्र गाँव गया और दो दिन बाद वापस आकर सब के साथ बैठकर गाँव की बातें बताने लगा, बातों बातों में ही उसने उषा के बारे में भी बता दिया और कहा, “भाई भूषण! उषा तुम्हें पूछ रही थी, मेरे से पता लिया है खत लिखने को कह रही थी।”

भूषण बोला, “भाई नरेंद्र! तुझे मेरा पता देने की क्या जरूरत थी, मैं उसको भूल चुका हूँ, अब तुम ही बताओ, मैं यहाँ एम एस सी करके लेक्चरर बन जाऊंगा और वह पाँचवी पास मेरे लायक है क्या? मैं तो छाया के साथ खुश रहूँगा, हम दोनों एक साथ पढ़ रहे हैं और एक जैसी नौकरी करेंगे, आगे हमारे बच्चे भी बुद्धिमान होंगे।” नरेंद्र ने कुछ नहीं कहा और सब अपने अपने बिस्तर में सोने चले गए।

दो दिन बाद भूषण ने देखा, सूचना पट पर उसके नाम का पत्र लगा था, भूषण ने पत्र उठा लिया एवं एकांत में जाकर खोल कर पढ़ने लगा जिसमे उषा ने भूषण के साथ बिताए दिनों की याद ताजा करते हुए लिखा और भविष्य में साथ रहकर अपने सपनों के बारे में लिखा।

पत्र पढ़ कर भूषण बेचैन हो गया और सोचने लगा कि यह मुसीबत बैठे बिठाये आ गयी है, मैं तो उसको पूरी तरह भूल चुका था। उसकी बेचैनी देख कर नरेंद्र व विजेंद्र समझ गए कि इसने पत्र पढ़ लिया है, पत्र तो विजेंद्र ने ही लिखा था क्योंकि उसकी लिखावट लड़कियों जैसी ही थी।

एक सप्ताह बाद दूसरा पत्र आ गया, इसमें शिकायत भरी थी, लिखा था, ‘आपने तो मेरे पत्र का कोई जवाब ही नहीं दिया या आपको पत्र नहीं मिला’ एवं वही सारी बातें भी उसमे दोहरा दीं, साथ में यह और लिख दिया कि अब तुम्हारी पढ़ाई पूरी होने वाली है, मैं अपने पिताजी को आपके पिताजी के पास भेज दूँगी बात पक्की करने के लिए।”

पत्र पढ़ कर भूषण इतना बेचैन हो गया कि ओंकार से बोला, “भाई मैं अत्महत्या करने जा रहा हूँ, मुझे उस लड़की से शादी नहीं करनी।” ओंकार ने पूछा, “भाई! क्या बात है, बताओ तो, तभी इसका कुछ हल निकलेगा।”

भूषण ने ओंकार को सारी बात बता दी और कहा, “मैं उस लड़की से शादी करने की बजाय अत्महत्या कर लूँगा।” ओंकार ने नरेंद्र और विजेंद्र को भी बुला लिया, अगले दिन परीक्षा भी थी, और भूषण की हालत खराब थी, वह पढ़ नहीं रहा था बस परेशान सा लेटा हुआ था।

नरेंद्र ने विजेंद्र से कहा, “अब हमे राज खोल देना चाहिए, इससे ज्यादा सताना ठीक नहीं।” विजेंद्र ने हाँ में सिर हिलाया और तब नरेंद्र ने भूषण को सारी सच्चाई बता दी, विजेंद्र ने अपनी लिखवाट पहचानने के लिए अपनी कॉपी भी दिखाई।

भूषण को जब विश्वास हो गया कि यह सब नरेंद्र और विजेंद्र ने ही किया है तभी नरेंद्र बोला, “अब बता भाई! कि गर्ल फ्रेंड का पत्र पढ़ेगा?” भूषण ने अपने दोनों कान पकड़कर माफी मांगते हुए कहा, “भाई! मैं कभी ऐसी गलती नहीं करूंगा, मुझे आप लोगों ने एक अच्छा सबक सिखा दिया है।”

ओंकार बोला, “भाइयों अब चलें कमला नगर, छोले भटूरे और रस मलाई दोनों ही खानी बनती हैं, जब चारों चल दिये तो भूषण ने कहा, “भाई! विनोद को तो बुलाओ, पाँच के पाँच रहेंगे, चार कैसे खाने जाएंगे?”

और पांचों मित्र उस रात भूषण से ट्रीट लेकर पूरी रात पढे, सुबह खुशी खुशी परीक्षा देकर आए। परीक्षा समाप्त होने के बाद सभी केंटीन में बैठे खा पी रहे थे, विनोद बोला, “भाई! आज तो किसी को पीटने का मन कर रहा है” तभी छाया बोल पड़ी, “ये माईकल मुझे घूरता रहता है।” छाया की इतनी बात सुनते ही पांचों उठ लिए और सड़क पर जा रहे माईकल को साइकल से टक्कर मार कर गिरा दिया। माईकल खड़ा होकर अपने कपड़े झाड कर फिर चलने लगा तो दोबारा उसको साइकल की टक्कर मार कर गिरा दिया।

जब गिरने गिराने की प्रक्रिया तीन चार बार हो गयी तो माईकल ने कहा, “भाई! देखकर साइकल चलाओ, बार बार मुझे क्यो साइकल से टक्कर मार कर गिरा रहे हो।” तब विनोद ने एक जोरदार थप्पड़ माईकल के गाल पर जड़ दिया, ऐसे ही बाकी लोगों ने भी एक एक थप्पड़ माईकल के गाल पर मारा तो माईकल का गाल लाल हो गया एवं सूज गया लेकिन वह चुपचाप वहाँ से चला गया।

माईकल का भाई जोसफ अपने इलाके का गुंडा था, जब उसको पता चला तो वह एक गाड़ी अपने साथियों से भरकर कॉलेज में आ गया। सबके पास हाकियाँ थी और पूरे इरादे से उन पांचों मित्रों की मरम्मत करने आए थे।

पांचों मित्रो की हालत खराब हो गयी और सोचने लगे कि आज तो स्ट्रेचर पर ही यहाँ से जाएंगे लेकिन तभी नरेंद्र की मौसी का लड़का विजय वहाँ आ गया। विजय ने पूछा, “क्या बात है तुम पांचों परेशान यहाँ क्यो खड़े हो, अपनी कक्षा में क्यो नहीं गए?”

नरेंद्र ने विजय को सारी बात बताई और दिखाया कि माईकल का भाई और उसके साथी हमें हो तोड़ने आए हैं।

विजय जोसफ के पास गया, उससे हाथ मिलाया और उन पांचों का परिचय यह कहकर करवाया कि ये मेरे भाई हैं। पांचों का जोसफ और माईकल से हाथ मिलवाया एवं जोसफ को समझा कर वापस भेज दिया। जोसफ विजय का दोस्त था इसलिए सब कुछ ठीक हो गया अन्यथा उन पांचों मित्रो का जो हाल होना था वह तो वे सोच कर ही काँप गए थे।

विजय ने उन पांचों को समझाया, “पढ़ने आए हो, पढ़ाई पर ध्यान दो, ऐसी कोई समस्या हो तो मुझे बता दिया करो, स्वयं ऐसे पंगे मत लिया करो, पता नहीं चलता कौन कितने पानी में है, लेकर न डूब जाए।”

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