गुनगुनाती परछाईयाँ ग्रुप Author Mahebub Sonaliya द्वारा कविता में हिंदी पीडीएफ

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गुनगुनाती परछाईयाँ ग्रुप

गुनगुनाती परछाईयाँ"

ग्रुप पेश करता है

माहाना मुशायरा नंबर 34

०फेहरिस्त०

01..हाथ में कुछ नहीं है अब मेरे

02..दिखते अहबाब पुजारी मेरे

03..एक हलचल सी मची दिल में है दिलबर मेरे

04..हैं अभी दोस्त बदगुमाँ मेरे।

05..हो मरज़ भी दवा भी यार मेरे

06..आजकल तैयार हैं जज़्बात मेरे

07..खिल गयी दिल की ज़मी और सजे दर मेरे।

08..दिल पे आकर ही लगे थे, सभी पत्थर मेरे....

09..डसते रहते हैं मुझको ग़म मेरे

10...चुभते है यूँ सभीकी आँखों में ख्वाब मेरे।

11..कौन गुज़रा है ख़्वाब से मेरे।

12..जाने लफ़्ज़ों को क्या हुआ मेरे।

13..चाँद ने छीन लिए सारे उजाले मेरे

14..सात तालों में छिपे रहते हैं ज़ेवर मेरे

15..एक तुम ही तो नहीं यार दीवाने मेरे।

16..उसको भाए नहीं परवाज़ के मन्ज़र मेरे।

17..हुये हैं अजनबी मंज़िल के सारे रास्ते मेरे

???????????????????? पहला दौर ????????????????????

गुनगुनाती परछाइयाँ ग्रुप के 34 वे ऑनलाइन माहाना तरही मुशायरे में एक बार फिर इस अदब की महफ़िल में मैं सीमा शर्मा मेरठी आदाब अर्ज़ करती हूँ सबसे पहले सदरे मोहतरम आली ज़नाब इलियास राहत साहेब का शुक्रिया अदा करती हूँ कि उन्होंने इस जिम्मेदारी के काबिल समझा

जनाब परविन्दर सिंह शौख़ साहब और सभी

मेहमानाने ख़ुसूसी जनाब शादाब अनवर साहब।

मोहतरमा राधा महिन्दर साहिबा।

जनाब राज शुक्ल साहब।

मोहतरमा निरुपमा चतुर्वेदी साहिबा।

मोहतरमा शालिनी श्रीवास्तव साहिबा का इस्तक़बाल करती हूँ और साथ ही

आप सभी अहबाब को एक बेजोड़ मैयारी शायरी के इस ग्रुप के हिस्सा होने के लिए

मुबारकबाद पेश करती हूँ। मैं

सभी मेहमान खसूसी का इस्तक़बाल करती हूँ जिन्होंने अपना कीमती वक़्त निकाला और हमारे साथ है साथ ही मैं सभी सदस्यों से अनुरोध करूँगी कि जिन्होंने तरही में हिस्सा भी नही लिया वो भी हमारे साथ रहे और अगर किसी की शायरी दिल को छुए तो हौसलाअफजाई ज़रूर करें

-सीमा मेरठी

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शायर को मस्त रखती है दाद-ए-मुहब्बत

सौ बोतलों का नशा है एक वाह वाह मे

-नामालूम

इस शेर के साथ सबसे पहले मैं बज़्म को रौशन करने की इजाज़त मांगती हूँ औऱ जनाब अखिलेश वर्मा साहेब जो बहुत खूबसूरत शायरी करते हैं, से इल्तिज़ा करती हूं कि वो अपने कलाम से मुशायरे का आगाज़ करें।

हाथ में कुछ नहीं है अब मेरे

पास में तू नहीं है जब मेरे ।

बाद मुद्दत के वो मिले मुझको

थे नहीं आँसू बेसबब मेरे ।

तेरे जाने के बाद होश नहीं

जिस्म से रूह निकली कब मेरे ।

मुझको देना जबाव आता है

रोक लेते हैं बस अदब मेरे ।

बात वो दिल की जान लेता है

इससे पहले कि खुलें लब मेरे ।

प्यार में खार हैं बहुत ..सुन ले!

भावनाओं से खेल तब मेरे ।

मैं नदी हूँ तो वो समंदर है

पी लिए आँसू उसने सब मेरे ।

- अखिलेश वर्मा मुरादाबाद

आरज़ू-ए-चश्मा-ए-कौसर नहीं...

तिशनालब हूँ शरबत-ए-दीदार का...

नामालूम

इस खूबसूरत शेर के साथ एक निहायत खूबसूरत शायरी और व्यक्तित्व की मालिकन मोहतरमा निरुपमा चतुर्वेदी साहिबा से अनुरोध करती हूँ कि वो बज़्म को अपने कलाम की उजालियत से बज़्म को रौशन करें

दिखते अहबाब पुजारी मेरे

शर्त.... गरदन पे कटारी मेरे।

वक़्त मीज़ान ..हुआ जाता है

ख़्वाब पलड़ों से भी भारी मेरे।

ये जो लफ़्ज़ों का है ताना-बाना

दफ़्न अहसास.... पिटारी मेरे।

बे-वफ़ा, ज़ार ...नवाजें क़ातिब

कुछ तो अलक़ाब ...उधारी मेरे।

साजिशें उम्र से बेहतर भी क्या

ज़िस्म से खाल ...उतारी मेरे।

अब जो मफ़हूम चुनें ..क्या ही'चुनें

नज़्म ओढ़े है'...खुमारी मेरे।

दिल की'चौखट पे खड़ी हूँ गुमसुम

फ़रसुदा ज़ख्म ....शिकारी मेरे।

निरुपमा चतुर्वेदी

कैसे टुकड़ों में उसे कर लूँ क़ुबूल

जो मेरा सारे का सारा था कभी

~शारिक़ कैफ़ी

एक और नाम जिनका कलाम ही उनकी पहचान है इन दिनों हमारे बीच हैं उम्दा शाइरी दिल को छूते जज़्बात लिए आ रही हैं

????????मोहतरमा शबीना नाज़ साहिबा ????????

एक हलचल सी मची दिल में है दिलबर मेरे

जाने क्यूँ उड़ गये नींदों के कबूतर मेरे ।

सारी दुनिया को मुहब्बत की ज़रूरत है बहुत

पर जलाये हैं यहां नफरतों ने घर मेरे

लोग कहते हैं यही ज़ीस्त की है राह कठिन

मुझको मंज़िल यूँ मिली साथ हैं रहबर मेरे ।

आशिकी चीज़ है क्या इश्क ये है कैसी बला

चैन पल का नहीं क्या गुजरी है दिल पर मेरे

उन सितारों को बुलाओ जो करें दिल रोशन

धुंधले धुंधले हैं सभी नाज़ ये मंजर मेरे

शबीना फ़तेह नाज़

बेहद खूबसूरत उम्दा शायरी के बाद

ये परिंदे ऐसे ही थोड़ी आँगन में आने लगे है

इस मक़ाम पे लाने में हमको ज़माने लगे है

✏ फ़िरोज़ खान ✔

इस खूबसूरत शेर के साथ जिनको मैं अब दावते सुखन देने जा रही हूँ वो हैं

????????मोहतरमा पूनम प्रकाश साहिबा ????????

जिनका बेहतरीन कलाम हम वैसे भी पढ़ते रहते हैं और उन्वान पर भी शेर कहने का जिनका हुनर कोई सबूत का मोहताज नही है

हैं अभी दोस्त बदगुमाँ मेरे।

कल तलाशेंगे सब निशां मेरे।

आइना खोल गया राज़ सभी,

वरना हक़ में था राज़दाँ मेरे।

आई तन्हाई भी लिए खंजर,

दर्द महफूज़ हैं कहाँ मेरे।

मुश्किलों का भी खूब है हासिल,

हौसले हो गए रवां मेरे।

इस तरफ तो है चार सू बस वो

अस्र कुछ होंगे क्या वहां मेरे ?

दिल की तहरीर कोई पढ़ न सका

हर्फ़ सब थे धुआं धुआं मेरे।

नब्ज़ो-धड़कन है अब तलक ज़ारी

हो गए मर्ज़ रायगाँ मेरे।

उम्र पर हैं सुफेदियां तारी

ज़ख्म हैं अब तलक जवाँ मेरे।

कैसे "पूनम" रहे मुकम्मल अब

तोड़ देते हैं इम्तिहाँ मेरे।

पूनम प्रकाश

बहुत कहती रही आंधी से चिड़िया

कि पहली बार बच्चे उड़ रहे हैं

फहमी बदायूंनी

बज़्म की पुरनूर रौशनी में एक और नाम जुड़ना चाहता है मुझे लगता है शायराओं ही बज़्म लूटने का मन बना लिया है एक और शायरा हमारे बीच अपना कलाम लेकर आ रही हैं अलग अह्सास जुदा अंदाज़ बहतरीन शायरी

???????? मोहतरमा शालिनी नायक साहिबा ????????????

हो मरज़ भी दवा भी यार मेरे

बेक़रारी में हो क़रार मेरे

तेरी मसरूफ़ियत से वाक़िफ़ हूँ

साथ कुछ वक़्त तो ग़ुज़ार मेरे

प्यार करने से यूँ झिझकती हूँ

कौन नखरे सहे हजार मेरे

मुस्कुराते हैं गम भुला कर सब

साथ होते हैं जब भी यार मेरे

जिनके क़दमों तले हथेली रखी

बन गए राह के वो ख़ार मेरे

क्या ज़रूरत है शालिनी मय की

देख नैनों में है ख़ुमार मेरे

शालिनी नायक

मिरी ज़बान के मौसम बदलते रहते हैं

मैं आदमी हूँ मिरा ए'तिबार मत करना

????????शायर????आसिम वास्ती????????

एक और उम्दा शायर अब हमारे बीच आने को हैं जनाब राजीव नसीब साहेब ग्रुप के एक्टिव मेंबर होने के अलावा जिनका अल्फ़ाज़ का चुनाव उनकी विशेषता है मैं उनसे इल्तिज़ा करूँगी कि वो आकर अपने कलाम से हमें नवाज़ें

आजकल तैयार हैं जज़्बात मेरे

पास आकर देखिए हालात मेरे

दर्द चुपके से कहे ये ज़िन्दगी से

रात दिन क्यूँ खास हैं आफ़ात मेरे

दोपहर की धूप है सर पर तुम्हारे

जाने क्यूँ जलने लगे हैं रात मेरे

क्यूँ ख़यालों में तुम्हारा नाम आया

पूछते हैं प्यार के आलात मेरे

लिख रहे हैं लब नये अल्फ़ाज़ दिल पर

चाँद की तारीफ़ में कुछ बात मेरे

ज़िन्दगी से खो गई इंसानियत अब

हो गये सुख देखिए निर्यात मेरे

राजीव "नसीब"

बदन उतार के खूंटी पे टाँग रक्खा है

मिरे लिबास मज़े से पड़े हैं बिस्तर पर

भारत भूषण पंत

इस शेर के साथ एक बार फिर मैं एक शायरा के पास जा रही हूँ जिनका नाम ही काफी है उनका अंदाज़ उनका बात करने का सलीक़ा बेजोड़ है वो हैं

???????? शालिनी श्रीवास्तव साहिबा ????????

खिल गयी दिल की ज़मी और सजे दर मेरे।

बनके आए हैं वो मेहमान जो घर पर मेरे।

क्यूँ करें उनसे तकाज़ा-ए-मुहब्बत हरपल,

बनके धड़कन ही तो रहते हैं वो अंदर मेरे।

प्यार की राह में जब बचके गुज़र जाते हो,

और ढाते हो सितम मुझपे सितमगर मेरे।

क्या तमन्ना करूँ दीदार की तेरे हमदम,

तू तो रहता है तसव्वुर में ही अक्सर मेरे।

बनके दुल्हन तेरे आँगन में चली आई हूँ,

हाथ हैं मेहंदी रचे पाँव महावर मेरे।

शालिनी श्रीवास्तव

उर्दू अदब की दुनिया में सलीम तन्हा साहब ने अपनी मैयारी शायरी से एक अलग मक़ाम बनाया है। सलीम तन्हा साहब सिर्फ उन्वान पर या फिलब्दीह अशआर कहने वाले अच्छे शायर ही नही अच्छे इंसान भी हैं। सलीम तन्हा साहब ने अपनी शायरी ज़िन्दगी के तमाम रंग समेट दिए हैं। सलीम तन्हा साहब की हर ग़ज़ल हर शेर दिल छू लेने वाला होता है। सलीम तन्हा साहब ने सिर्फ शायरी ही नही बल्कि पत्रकारिता में भी अपनी मेहनत और क़ाबिलियत के दम पर अपनी अलग पहचान बनाई है।

मैं सलीम तन्हा साहब को इन अशआर के साथ दावत ए सुखन दे रही हूँ.....

बातों बातों में बिछड़ने का इशारा करके।

ख़ुद भी रोया वो बहुत हमसे किनारा करके।

जगमगा दी हैं तेरे शहर की गलियाँ मैने।

अपने हर अश्क़ को पलकों का किनारा करके

आइए सलीम तन्हा साहब और अपनी खूबसूरत ग़ज़ल से नवाज़िए।

दिल पे आकर ही लगे थे, सभी पत्थर मेरे....

इसलिए टूटकर बिखरे थे, ये मन्ज़र मेरे..

अब नज़र क्यूँ नहीं आते, वो जवां नज़्ज़ारे...

बन गए थे जो कभी, दोस्त मुकद्दर मेरे...

आग बुझती नहीं, उठती हैं क्यूँ दिल से लपटें....

जाने क्या चीज़ सुलगने लगी अंदर मेरे...

लोग कहते हैं वो आए हैं इसी बस्ती में ..

अब तलक आ नहीं पाए है वो घर पर मेरे..

दिल तड़प उट्ठा है ये सोच के बीते लम्हे...

बाम पर आ के जो बैठा है कबूतर मेरे..

एक पल भी न रुका, चल दिया उठ कर तन्हा...

रुक सका ही न वो अशआर को सुनकर मेरे...

सलीम तन्हा

???????????????????? दुसरा दौर ????????????????????

मैयारी अदबी ग्रुप गुनगुनाती परछाइयाँ के माहाना तरही मुशायरे में मैं कुसुम ख़ुशबू आप सभी का इस्तक़बाल करती हूँ और आली जनाब इलियास राहत साहब का शुक्रिया अदा करती हूँ कि उन्होंने मुझे इस खूबसूरत बज़्म के इस मुशायरे के संचालन का दायित्व सौंपा।

पहले दौर की निज़ामत के फ़राइज़ को अंजाम दे रही मेरी बड़ी बहन सीमा शर्मा मेरठी ने अपने खूबसूरत अंदाज़ में निज़ामत की है। मैं कोशिश करूंगी की उस मैयार को क़ायम रखूँ। मैं आली जनाब इलियास राहत साहब की आशाओं पर भी खरा उतरने का प्रयास करूंगी।

-कुसुम खुशबु

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सदरे मोहतरम की इजाज़त के बाद मुशायरे का आग़ाज़ करते हुए सबसे पहले मैं दावत ए सुखन दे रही हूँ ताहिर मलिक रामपुरी साहब को।

ताहिर मलिक साहब आसान लफ़्ज़ों में उम्दा शायरी करते हैं। हरदीप बिरदी साहब को शायरी और उर्दू से मुहब्बत है। तरही मुशायरों में बढ़चढ़ कर हिस्सा लेने वाले ताहिर मलिक साहब को मैं शेर के साथ आवाज़ दे रही हूँ....

वफ़ा के नाम पर चोंका भी और रोया भी।

वो एक आम सा सब से जुदा लगा मुझे।

आइए ताहिर मलिक साहब।

डसते रहते हैं मुझको ग़म मेरे।

आ भी जाओ यहाँ सनम मेरे।

उनके चेहरे पे कुछ उदासी है।

नैन होने लगे हैं नम मेरे।

यूँ तो मेरा है वो हमेशा से।

पास आता है फिर भी कम मेरे।

जिनकी फ़ितरत में यार शोले हैं।

उनको लगते हैं लफ़्ज़ बम मेरे।

मुझको ग़ुरबत में लग रहा है यूँ।

हो न पाएंगे वो सनम मेरे।

आ भी जाओ कि चैन आ जाए।

भूल बैठे हो क्यूँ करम मेरे।

जो भी सुनता है दाद देता है।

शेर लिखते हैं वो क़लम मेरे।

अब तो बाँहों में आ भी जाओ ना।

टूट जाएं न सब भरम मेरे।

वो उजालों में खो गया ताहिर।

अब सताते हैं मुझको तम मेरे।

ताहिर मलिक रामपुरी

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महबूब सोनालिया साहब

उर्दू अदब की दुनिया का जाना पहचाना नाम। महबूब सोनालिया साहब ने अपनी लाजवाब शायरी के ज़रिए अपनी एक अलग पहचान बनाई है। महबूब सोनालिया साहब सिर्फ उन्वान पर या फिलब्दीह अशआर कहने वाले अच्छे शायर ही नही अच्छे इंसान भी हैं। । महबूब सोनालिया साहब को मैं मशहूर शायर राजेन्द्र नाथ रहबर साहब के इन अशआर के साथ बुला रही हूँ कि वो आएं और अपने कलाम से हम सबको नवाज़ें.....

मेरे ख्याल सा है, मेरे ख़्वाब जैसा है।

तुम्हारा हुस्न महकते गुलाब जैसा है।

मैं बन्द आँखों से पढ़ता हूँ रोज़ वो चेहरा।

जो शायरी की सुहानी किताब जैसा है।

आइए महबूब सोनालिया और अपनी खूबसूरत ग़ज़ल से नवाज़िए।

चुभते है यूँ सभीकी आँखों में ख्वाब मेरे।

लगते है खार सबको नाजुक गुलाब मेरे।

नाकामियाबियां सब मेरी गिना रहे है।

बच्चे भी हो गये है युँ कामियाब मेरे।

कोड़ी के दाम में था बिकना मेरा मुक़द्दर

देखे थे सो जतन से लाखों के ख्वाब मेरे।

लगता है राह ए हक़ पर इस बात से हूं क़ायम।

है नापसंद सबको सच्चे जवाब मेरे।

किस दर्ज़ा कार-ए- उल्फ़त दुश्वार है यहाँ पर।

अब तक गलत हुए है सारे हिसाब मेरे।

रखता हूँ इस तरह से बच्चोंको मैं हमेंशा।

जैसे की पुरकशिश ही हो ये माहताब मेरे।

रहने दो मेरी खातिर 'महबूब' हर बुराई।

काम आये गर तुम्हे तो ले लो सवाब मेरे।

महबूब सोनालिया

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मोहतरमा राधा महेंद्र श्रोतिया साहिबा।

एक ऐसी शायरा कि जिनकी ग़ज़लें पढ़ना शुरू कर दें तो पढ़ने की तलब कम ही न हो। मन करता है कि बस पढ़ते ही जाएं। राधा साहिबा की ग़ज़लों को पढ़कर ऐसा लगता है जैसे कि ये हमारे लिए ही कही गयी हैं। फ़िलबदीह अशआर हों, उन्वान पर अशआर हो या तरही ग़ज़ल राधा साहिबा हर जगह ख़ुद को साबित कर देती हैं।

मैं राधा साहिबा इन अशआर के साथ दावत ए सुखन दे रही हूँ......

तेरी आँखों का काजल हो गयी है।

ग़ज़ल शायद मुकम्मल हो गयी है।

बरसना हो गया है लाज़मी सा।

तेरी हर याद बादल हो गयी है।

आइए मोहतरमा राधा महेंद्र श्रोतिया साहिबा।

कौन गुज़रा है ख़्वाब से मेरे।

नींद छोड़ी है वास्ते मेरे। ।

मुझ में रहता है कौन मुझ जैसा।

हैं परेशान आईने मेरे। ।

जाने आहट सुनी है ये किसकी।

सज गये सारे रास्ते मेरे। ।

क़ाफ़िले थक गए हैं यादों के।

साथ बरसों तलक चले मेरे। ।

वक़्त ने खुरदुरे किये उनको।

वो जो चेहरे थे फूल से मेरे। ।

नफ़रतों ने जला दिये राधा।

सुर्ख़ फूलों के क़ाफ़िले मेरे। ।

राधा श्रोत्रिय "आशा"

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डॉ विरोत्तमा सरगम साहिबा।

इस खूबसूरत मैयारी अदबी ग्रुप की एडमिन और लाजवाब शायरी करने वाली डॉ विरोत्तमा सरगम साहिबा को ग़ज़ल के लिए आवाज़ देना मेरे लिए बाइस ए फ़ख़्र है। मैने डॉ विरोत्तमा सरगम साहिबा की ग़ज़लें पढ़ी हैं। जिस अंदाज़ में वे शायरी करती हैं वो बहुत दिलकश है। उनके अशआर पढ़ते हुए दिलो दिमाग़ को एक सुकून हासिल होता है। हालाँकि उनकी तबियत ठीक नही रहती और आज भी उनका डायलिसिस हुआ। इस सब के बावजूद वे ग्रुप में हाज़िर रहती हैं और सभी की हौसला अफ़ज़ाई भी करती हैं।

मैं बड़े अदब और अहतराम के साथ डॉ विरोत्तमा सरगम साहिबा को इस शेर के साथ दावत ए सुखन दे रही हूँ......

नुज़ूल इश्क़ का होता नही हर इक दिल पर।

हर इक ज़मीं पे पयम्बर कहाँ उतरता है।

आइए डॉ विरोत्तमा सरगम साहिबा

जाने लफ़्ज़ों को क्या हुआ मेरे।

हो गए गीत बे सदा मेरे। ।

शोर सा हो रहा है सीने में।

दिल में होने लगा ये क्या मेरे। ।

तुम सलामत रहो जहाँ भी हो।

लब पे रहती है ये दुआ मेरे। ।

जाने क्यूँ हो गया वो पत्थर सा।

दे के हाथों में आइना मेरे। ।

कुछ नज़र में नहीं सिवा उस के।

कौन सपने में आ गया मेरे। ।

था वो कहने को अजनबी सरगम।

प्यार सीने में भर गया मेरे। ।

डॉ. वीरोत्तमा सरगम

तरुणा मिश्रा साहिबा

शायरी का ज़िक्र हो और तरुणा मिश्रा साहिबा का ज़िक्र न हो बात अधूरी रहती है। इस खूबसूरत अदबी ग्रुप की एडमिन और एक ऐसी शायरा जिनका दिल मुहब्बत से भरा हुआ है। आप तरही ग़ज़ल कहने में महारत हासिल कर चुकी हैं। इनकी अशआर में लफ़्ज़ फूलों की तरह महकते हुए महसूस होते हैं। इन्होंने ज़िन्दगी के हर मौज़ू पर अशआर कहे हैं। दिल छू लेने वाली शायरा और बेहतरीन निज़ामत के लिए मशहूर आदरणीया तरुणा मिश्रा जी को मैं इस शेर के साथ दावत ए सुखन दे रही हूँ...

ख़ुशबू से किस ज़बान में बातें करेंगे लोग।

महफ़िल में ये सवाल तुझे देख कर हुआ।

आइए तरुणा मिश्रा साहिबा और अपनी ग़ज़ल से नवाज़िए।

चाँद ने छीन लिए सारे उजाले मेरे

रात होते ही बढ़े और अँधेरे मेरे

इतने चेहरों का लिए बोझ फिरा करती हूँ

थक न जाएँ कहीं इस भार से काँधे मेरे

इक सिरा जैसे खुला फिर तो वो खुलता ही गया

एक स्वेटर की तरह उधड़े हैं रिश्ते मेरे

उनमें हर रंग सलीक़े से भरा है मैंने

मेरी तहज़ीब की पहचान हैं बच्चे मेरे

वो हमेशा ही रहे दूर मेरी नींदों से

ख़्वाब निकले मिरी उम्मीद से उलटे मेरे

अनगिनत हिस्सों में तक़सीम हुआ वक़्त मिरा

मेरे हिस्से में ही आ पाए न लम्हे मेरे

चैन से ओढ़े पड़े रहते हैं चादर दिन भर

रात जागेंगे ख़्यालों के सितारे मेरे

उसकी रहमत से ही कह पाती हूँ मिसरा कोई

वरना अशआर पड़े रहते अधूरे मेरे

वक़्त से तेज़, हवाओं की तरह बहते हैं

मुझसे भी आगे निकल जाते हैं किस्से मेरे

नींद थी उसकी वफ़ादार, गई साथ उसके

रात भर रोते रहे ख़्वाब अकेले मेरे

- "तरुणा मिश्रा"

सीमा शर्मा साहिबा एक ऐसी शायरा जो ख़ुद जितनी खूबसूरत हैं उतनी ही लाजवाब शायरी करती हैं। सीमा जी की शायरी में मुहब्बत हुस्न मिलन जुदाई का अनोखा संगम देखने को मिलता है। सीमा शर्मा साहिबा हालात पर गहरी नज़र रखती हैं और हालात को बड़ी नफ़ासत के साथ शायरी में ढाल लेती हैं। उनकी ग़ज़लें पढ़ते हुए ऐसा लगने लगता है कि ये हमारी ही कहानी बयान की गयी है। पिछले दिनों सीमा शर्मा साहिबा ने दिल्ली में जश्न ए रेख़्ता में भाग लेकर नई बुलन्दियों को छुआ है। सीमा शर्मा साहिबा अपनी शायरी के अलावा शानदार निज़ामत के लिए भी मशहूर हैं। आज के मुशायरे के पहले दौर में वे अपने इस फ़न का मुज़ाहरा कर चुकी हैं।

मैं सीमा शर्मा साहिबा को इन अशआर के साथ दावत ए सुखन दे रही हूँ कि वे आएं और अपनी खूबसूरत ग़ज़ल से हमें नवाज़ें......

अपने जज़बात पे कैसे मुझे क़ाबू आए।

मुस्कुराते हुए सामने से जब तू आए।

ऐ ख़ुदा मुझको तू रहने दे इसी जन्नत में।

गोद उसकी हो मिरे चेहरे पे गेसू आए।

आइए सीमा शर्मा साहिबा और खूबसूरत ग़ज़ल से हम सबको नवाज़िए।

सात तालों में छिपे रहते हैं ज़ेवर मेरे

ज़ख़्म फिर कैसे हुए तुम पे उज़ागर मेरे।

चहचहाती हुई आती हैं नज़र ये अक्सर।

तेरी यादों की चिरैया हैं शज़र पर मेरे।

इश्क़ के एक खिलौने पे लड़कपन मचले

रोके संजीदा सी लड़की जो है अंदर मेरे।

तिश्नगी अब तो निगाहों में उतर आई है

लब पे सहरा है नज़र में है समन्दर मेरे।

मेरी तस्वीर से घर तेरा महक जाएगा

फ्रेम में रखना गुलों को तू सजाकर मेरे।

दिल में लौ जलती है धड़कन की बजे है घण्टी

जिस्म मन्दिर है तिरे नाम का दिलबर मेरे।

कोई भी बैर नहीं मुझको हवाओ तुमसे

क्या मिलेगा भी तुम्हे दीप बुझाकर मेरे।

तिश्नगी हूँ मैं नमी सब तिरी पी सकती हूँ

ज़िन्दगी शक़ न कभी करना हुनर पर मेरे।

चूम लेता है जो हर एक नज़र का भंवरा

फूल जैसे हैं ये अशआर भी सुन्दर मेरे।

दिल के ज़ज़्बात बयाँ करते हैं सीमा अक्सर

इश्क़ की स्याही में डूबे हुए आखर मेरे।

सीमा शर्मा मेरठ

शादाब अनवर साहब

अब मैं दावत ए सुखन दे रही एक ऐसे शायर को कम उम्र में ही इतनी उम्दा शायरी करते हैं कि उनके अशआर सीधे दिल में उतर जाते हैं। जिस लगन से वो शायरी कर रहे हैं उससे यह अंदाजा लगाना बेहद आसान है कि ये आगे चलकर बड़े शायरों की फहरिश्त में शामिल होंगे।

जी हाँ मैं बात कर रही हूँ दिल्ली के उस नोजवान शायर की जो कारोबारी मसरुफियात होने के बावजूद शायरी के लिए वक़्त निकालते हैं। शादाब अनवर साहब का आसान लफ़्ज़ों में शानदार ग़ज़ल का कहने का अंदाज़ बहुत प्यारा है।

मैं शादाब अनवर साहब को इस शेर के साथ बुला रही हूँ।

रिश्तों का ऐतबार, वफाओं का इंतेज़ार,

हम भी चराग़ ले के हवाओं में आये हैं।

आइए शादाब अनवर साहब।

एक तुम ही तो नहीं यार दीवाने मेरे।

सैंकड़ों हीर सुनाती हैं फ़साने मेरे।

आज हंसते हो मेरी वस्ल की फरमाइश पे।

याद आएंगे मिरे बाद बहाने मेरे। ।

मेरे अंदर कोई सिसकी सी लिए जाता है।

कौन रोता है यहाँ साथ न जाने मेरे। ।

जो मेरी नींद का दुश्मन था बड़ी मुद्दत से।

आज आया है वही ख़्वाब सजाने मेरे। ।

देख कर ख़ुश मुझे अक्सर ही चले आते हैं

कुछ नए ज़ख़्म लिए यार पुराने मेरे। ।

शादाब अनवर

अब मैं इस अदबी तंज़ीम के रूहे रवां और हम सभी के स्तपरस्त आली जनाब इलियास राहत साहब को दावत ए सुखन देने जा रही हूँ। उनको बुलाने से पहले उनके बारे में कुछ कहना भी ज़रुरी है। हालाँकि उनके बारे में मेरा कुछ कहना सूरज को दिया दिखाने जैसा है। आली जनाब इलियास राहत साहब ने अपनी शायरी में ज़िन्दगी के तमाम पहलुओं को छुआ है। उनका कलाम दिल को छूले वाला होता है। अदब की दुनिया में यूं तो लिखने- कहने वालों की कमी नहीं है लेकिन, उनके जैसी सोच और शायरी की इतनी गहरी समझ रखने वाले आज बहुत कम देखने को मिलते हैं।

आली जनाब इलियास राहत साहब ने आँख उन्वान पर दो हज़ार से ज़्यादा शेर कह कर एक रिकार्ड बना दिया है। तीन -चार-पाँच काफ़िए वाली ग़ज़लें कह कर एक बड़ी लाइन खींच दी है जिसे पार करना हर किसी के लिए आसान नही होगा। आपने बहुत सी ग़ज़लें ऐसी कहीं हैं जिनको पढ़ते हुए होंट आपस में नही मिलते और बहुत सी ग़ज़लें ऐसी कही हैं जिनको पढ़ते हुए हर मिसरे में होंट आपस में मिलेंगे।

आली जनाब राहत साहब अदब के पैरोकार हैं। सैंकड़ों शागिर्द उनसे इस्लाह लेकर अदब की दुनिया में अपना और उनका नाम रौशन कर रहे हैं।

मैं आली जनाब इलियास राहत साहब को इस शेर के साथ बुला रही हूँ.........

ज़िन्दगी, रिश्ते, मुहब्बत, आरज़ू, अहसास, ख़्वाब।

फल तो ज़हरीले थे लेकिन ज़ायक़ा अच्छा लगा।

आइए आली जनाब इलियास राहत साहब।

उसको भाए नहीं परवाज़ के मन्ज़र मेरे।

जल के सय्यद ने यूँ नोच लिए पर मेरे। ।

आइनों से तो मुझे बैर नहीं था लेकिन।

हाथ में दे दिया हालात ने पत्थर मेरे। ।

जानता कोई नहीं था मुझे तुम से पहले।

जब से चाहा है तुम्हें चर्चे हैं घर घर मेरे। ।

तूने तोडा जो तअल्लुक़ तो अजब आलम है।

ज़िन्दगी बारे गराँ हो गयी सर पर मेरे। ।

लौटकर आ उसी साए में बिछड़ने वाले।

याद करते हैं ये आँगन के सनोबर मेरे। ।

मेरी दुनिया से हुआ है तू कुछ ऐसे रुख़्सत।

अब तेरे ख़्वाब भी आते नहीं दिलबर मेरे। ।

तितलियाँ आके मेरे गिर्द बिखर जाती हैं।

कौन आता है ख़्यालों में ये अक्सर मेरे। ।

जाने किस शै का तलबगार है तुझसे राहत।

दस्तकें दे के गुज़रता है जो दर पर मेरे। ।

इलियास राहत

अब मैं दावते सुखन देने जा रही हूँ आज के इस खूबसूरत तरही मुशायरे की सदारत कर रहे जनाब परविंद्र शोख़ साहब को।

परविंदर शोख़ साहब की शायरी फिक्रो-फन के ऐतबार से बेहतरीन और शानदार होती है। परविंदर साहब जो कहते हैं जो लिखते हैं वो सीधा दिल तक पहुंचता है।

परविंदर शोख़ साहब पेशे से इंजीनियर हैं पंजाब राज्य बिजली बोर्ड पटियाला में बतौर डिपटी डायरेक्टर कार्यारत

आपके 6 मज़मुये मंज़र-ए-आम पर आ चुके हैं

आग़ाज़, सफ़र, मंज़िलें, गुफ़्तगू, मुहब्बत, तसव्वुर

आप आल इंडिया मुशायरों में शिरकत करते और अपनी शायरी से सामाइन को दीवाना बना लेते हैं। शोख़ साहब तरही ग़ज़ल और उन्वान पर अशआर कहने में भी महारत हासिल कर चुके हैं।

मैं परविंद्र शोख़ साहब को इस शेर के साथ दावत ए सुखन दे रही हूँ..........

इतनी आसानी से नही मिलती फ़न की दौलत।

ढल गयी उम्र तो ग़ज़लों में जवानी आयी।

आइए परविंद्र शोख़ साहब और अपनी ग़ज़ल से नवाज़िए।

हुये हैं अजनबी मंज़िल के सारे रास्ते मेरे

सफ़र में साथ चलते हैं फ़कत अब हादसे मेरे

उतरता जा रहा है क्यों भला ग़म से तिरा चिहरा

सवाल अकसर ये मुझ से पूछते हैं आइने मेरे.

ये सच है जब कि हर सू झूट का ही बोल बाला है

सुनेगा कौन फिर ऐसे में सच के मशवरे मेरे

छुपा कर ग़म हँसा महफ़िल में जब मैं सामने उसके

अचानक रो पड़ा वो शख़्स सुन कर कहकहे मेरे

ये मुमकिन है कि आये शर्म होने पर उसे दरिया

अगर वो देख ले आ कर मनाज़िर प्यास के मेरे

फिर उसके बाद मैने एक भी थामा नहीं दामन

छुड़ा कर यूँ गया वो हाथ अपना हाथ से मेरे

उसे अब दिन-ब-दिन होते पराया देख कर ऐसे

बिखरते जा रहे हैं 'शोख़' सारे हौसले मेरे

परविंदर शोख़

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