ये तेरी सरकार है पगले ..... sushil yadav द्वारा पत्रिका में हिंदी पीडीएफ

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ये तेरी सरकार है पगले .....

ये तेरी सरकार है पगले....

दुनिया के तमाम पागलों से क्षमा मांगते हुए मै लिखने की कोशिश कर रहा हूँ |

वैसे क्षमा मागने पर पागलों की क्या प्रतिक्रिया होती है, या हो सकती है कुछ कहा नहीं जा सकता |

ये तो भक्त और भगवान के बीच वाला मामला लगता है | भक्त लाख जतन से मांगता है भगवान सुन के अनसुनी कर देता है | कभी-कभी या अक्सर सुनता भी नहीं |

वे लोग सुबह-सुबह मेरी दस बाई दस की खोली में आये | कहने लगे हमें आपकी अगुवाई में ये सरकार गिराने का है | उनके टपोरी लेग्वेज में ही कुछ तोड़ने-गिराने की बू झलक रही थी |

मै आत्मसंयत हो के पूछा, मेरे नेत्रित्व में ही क्यों भइ ? न तो मै विधायक हूँ न आप लोगों का लीडर ....?

नहीं-नहीं ....आपकी छवि जुझारू है .... |

आपने, पिछली सरकार से प्राप्त पुरूस्कारो को लौटाया है

आपको अनशन का तजुर्बा है ....

आप लिखते अच्छा हैं

तरह-तरह के बोल फूट रहे थे |

सामान्य लोगों के बीच घिरा होता तो गदगद हो जाता ये शब्द नई कविता की पंक्तियाँ हो जाती जसके हर लाइन में दाद देने को जी करता, मगर मुझे मालूम था कि मै निहायत ‘घाघ’ किस्म के लंम्पटो के बीच फंसा हूँ | मैंने चेहरे के भावों को अपनी सोच के मुताबिक़ बदलने नहीं दिया |

‘शिष्टाचार की खुद बुनी शाल’ को कंधे पर ठीक से जमाते हुए मैंने कहा, भाई लोग, मुझे तफसील से माजरा तो समझाओ, आखिर आप चुनी हुई अपनी सरकार को गिराने के पीछे क्यं पड गए ....हैं ...? इस हैं में मेरा हें,,, हे,,,, छुपा हुआ था

मुझे मालुम था इन धुरंधरों के बीच से इस सवाल का जवाब निकलवा पाना मुश्किल ही नहीं, नामुमकिन भी है, फिर भी इस ‘पीवेट’ यानी धुरी में रिवाल्व हुए बिना आगे कैसे बढा जा सकता था | तब यही वाजिब सा प्रश्न ठोंक दिया |

मैंने सोचा, वे अगल-बगल देखेंगे, मगर इसके विपरीत वे एक के बाद एक फिर शुरू हो गए ...

-‘सी एम’ ने, अपने चुनावी वादों में, जनता से वादा किया था कि वे हर नल से पानी इतनी इफरात उगलवायेंगे कि सड़कें-, नालियों में उफान आ जाएगा | लोगों ने एहतियातन नल की टोटियां खरीद ली थी कि ज्यादा पानी आये तो नाश न हो |

बोर, ट्यूब वेळ, तालाब-गहरीकरण की योजनायें थी | सब सी एम, दबा के बैठ गए |

मंनरेगा में काम बाटने का वक्त आया तो अपने सगे- समधी के गावों की तरफदारी में ले गए |

माइनिग ठेके में अपने लोगों को डालने में नहीं चूके

एक्साइज और एंट्री की चुगियों में उंनके सेक्योरिटी वाले तैनात हुए |

ट्रांसफर-पोस्टिंग में रोजगार पाने वालों में, इनके चाटुकारों का बोलबाला रहा

मुझे, उनकी बातों में सी-एम को हटाने जैसा कोई ख़ास ‘एलिमेंट’ या वजह नजर नहीं आ रहा था सो मैंने कहा ये तो आप पिछले पच्चीस साल के अखबारों को उठा के देख ले, कई सी एम इन्ही हालात के, इसी तबीयत के पाए जाते रहे हैं, कोई नई बात है नहीं ....? समय-समय पर हम पत्रकार होने के नाते खुद इन सब बातों पर मौजूदा सरकारों की खिचाई करते रहे हैं |

वे लोग कहने लगे, अपने सीएम एक ही ढर्रे के लोगों को पिछले दस-सालों से केबिनेट में लिए बैठे हैं | वे कहते हैं ये अब हमारे किचन-केबिनेट के पारिवारिक लोग हैं, बिना वजह कहाँ भगाय डालें भला इन्हें ....?

उनके किचन-केबिनेट के लोग अब बड़े-बड़े आसामियों को हलाल कर तंदूर तक ला- ला के, कबाब परोस रहे हैं .....आप समझ तो रहे हैं.....? ये तो है ना उनको हटाने की सही वजह जनाब ....?

अब तो आप अगुवाई करंगे ..भला ...?

दरअसल हम लोग चाहते हैं, कि एक साल पहले तख्ता-पलट हो | फिर माहौल बने |

एक स्वच्छ आदमी का चेहरा अपना अलग मायने रखता है लिहाजा आपके पास आये हैं |

मुझे अपने ‘स्वच्छ’ होने का एहसास पहली बार हुआ, वरना मेरे कमरे में आने के बाद यहं फैली गंदगी पर, गंदगी-राग के सैकड़ों गीत बीबी गा जाती है | उनके बस में अगर कचरा फेकने का काम्पीटिशन हो तो इनाम के लालच में मुझे फेक आये |

वैसे मुझे तुरंत ये अहसास भी हुआ कि, स्वच्छता के मायने, घर -जमीन, जंगल-दफ्तर, हर जगह अलग-अलग होते हैं | राजनीति में तो और भी जुदा मायने होते हैं |

मैंने प्रगट में कहा, आप लोग चाहते क्या हैं मुझसे .....?

मुझे ये भी लगा कि, अब ज्यादा भाव खाने से बात बिगडनी शुरू हो जायेगी | मेरी स्तिथि यूँ थी कि ग्राहक को भाव पसंद न आये तो खिसकने की तैय्यारी कर लेता है तब दूकानवाले को उन्हें उनकी शर्तों पर रोकना पड़ता है |

मेरे भीतर नेतृत्व के गुण, जो आठवीं क्लास की मानिटरशिप के बाद नदारद हो गई थी, जागने लगी | मैंने कहा बताओ क्या प्लान है |

मै भीतर से जानता था, वे लोग, खुल के मुझको पूरे पट्टे सम्हालने नहीं देने वाले थे ..., यूँ किसी आन्दोलन का स्वरूप भी ऐसा होता है सब के पास थोड़े थोड़े अधिकार बटे होते हैं |

वे लोग बोले, आप बस साथ चलिए, प्लान आप ही आप बनता जाएगा | वे लोग चले गए |

मुझे रात भर नीद नहीं आई | रह- रह कर मुझको ‘चेतक घोड़ा’, उसका टूटा पैर, जे ऍन यू. आरक्षण, देशद्रोह, मुक़दमे, जेल न जाने कैसे-कैसे खतरनाक किस्म के सैकड़ों विचार आसपास मंडराते दीखने लगे .....?

निगेटिव विचारों को पाजेटिव ऊर्जा देने के लिए, मैंने खुद ही, विचारों को डाइवर्ट करने के नाम पर. स्वयं को फीता काटते हुए, बड़ी बड़ी हस्तियों से उनकी समस्याओं का हल देते हुए, पी एम के बुलावे पर सरकारी पर्सनल फ्लाईट से टेक आफ करते हुए, लाखों पब्लिक को भाषण में देशभक्ति के सीख देते हुए, जैसे सुन्दर मनभावक दृश्यों से लबरेज देखना शुरू कर दिया या इस माफिक के क्रिया कलापों की कल्पना में मशगूल करने की कोशिश करता रहा |

अब से आगे की दिनचर्या कैसी होगी .....? एक व्यापक प्रश्न सामने था ....

जल्दी उठना पड़ेगा ...? मेहनत भी ज्यादा करनी पड़ेगी | स्कूटर-ऑटो से घूमना-फिरना बन्द करना पड़ेगा | वी. आई. पी. बनते ही आम आदमी की कई मुश्किलों का हल यकायक हो जाता है | मसलन रिजर्वेशन, गेस सप्लाई, जैसी आम आदमी-नुमा कतारे आप ही आप डिलीट हो जाती हैं |

दिन के ग्यारह बज गए थे |

कल के मुलाकातियों में अबतक किसी का अता-पता नहीं था ....?

हरेक के मोबाइल में ट्राय किया सब के सब बंद मिले |

अंदरुनी घबराहट, बेचैनी बढी, तब टी व्ही खोल बैठा |

किसी प्रादेशिक समाचार चेनल में ब्रेकिंग न्यज चल रहा था, ’पुनीत राम’ मंत्री-मंडल का विस्तार...... छह नए केबिनेट मत्रियों को शाम चार बजे गाधी मैदान में पद और गोपनीयता कि शपथ दिलवाई जायेगी | ये सभी कल वाले चहरे थे सब बड़े खुशहाल दिख रहे थे |

मुझे अपने पडौसी कुत्ते पर नाहक क्रोध आया, साला रातो रात तलुए चंट आया होगा ....?

मैंने खिडकी खोल के देखा, बाहर कोई मीडिया वाला , या खोजी पत्रकार कहलाने वालों में से कोई एक भी नहीं था | रोड तक वीरानी फैली थी |

मै खुद को अल्प समय में, बिना बहुमत के, गिरी हुई सरकार मान कर, अपनी अंतरात्मा को स्तीफा पेश करने की तैय्यारी में लग गया |

सुशील यादव