सस्पेंडेड थानेदार का इंटरव्यू sushil yadav द्वारा पत्रिका में हिंदी पीडीएफ

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सस्पेंडेड थानेदार का इंटरव्यू

सस्पेंडेड थानेदार का इंटरव्यू

सुशील यादव

वो थानेदार इंटरव्यू देने के नाम पे बहुत काइयां है| बड़े से बड़ा कॉड हो जाए वो मुह नई खोलता| ऐसे कारनामो में भी जिसमे उसे श्रेय लेने का हक होता है वहाँ भी चुप्पी लगा जाता है|

पत्रकार लोग मनाते हैं, उसके थाने वाली जगह में कोई भी ‘दारोमदार’ वाला वाकया न घटे, कारण कि चटपटी खबरों का पूरा सत्यानाश हो जाता है|

उसकी थानेदारी में सुबह-सुबह सब की शामत आए रहती है| नाइ को थाने में तलब करके, थानेदार साहब की शेविंग-ट्रीमिंग से दिन की शुरुआत होती है| एक अर्दली जूते को पालिश करवाने ले जाता है| दूसरा ड्राइक्लीनिर्स से ड्रेस उठाने जाता है| तीसरा, घंटे भर की मशक्कत के बाद बुलेट के एक-एक पुर्जे को साफ कर के तैयार करता है| उसे कडक ड्रेस और चमचमाते बुलेट से बेंइंतिहा प्यार है| बुलेट की आवाज में ज़रा सा भी चेंज हुआ तो मेकेनिक की खिचाई हो जाती है|

उनकी सोच है कि, कडकपन और रुतबे को, यही बाहरी तामझाम, ही तो पुख्ता बनाते हैं| जब तक फरियादी-अपराधी थाने की सीढियां चढते काँप न जाएँ तो थाने और पोस्ट-आफिस में भला फर्क क्या हुआ?

वे जिस थाने के इंचार्ज बनाए जाते हैं, चार रात बिना सोए, गस्ती में गुजार देते हैं|

’गस्ती’ को वे शहर-बस्ती की स्टडी का सबसे खास मापदंड मानते हैं|

उनका कहना है कि अपराध सर्वव्यापी है| जहाँ अन्धेरा है वहाँ अपराध, जहाँ सुनसान है वहीं उठाईगिरी, जहाँ भीड़-भाड है वहीं पाकिटमारी, और तो और, जहां भजन –कीर्तन है, वहाँ भी बाबाओं की धोखाधडी है|

एक पुलसिया सोच में हर जगह लोचा है, बस लोचन घुमाने की देर है सब सामने आ जता है|

सरकार ने ला एंड आर्डर का डंडा पुलसिया हाथ में जिस आदि-काल से दे रखा है, तब से लेकर आज तक जर, जोरू, जिस्म, जान, माल-एहबाब की हिफाजत ही हिफाजत हो रही है| थानेदार इसे बिलकुल वैसा ही बताते हैं कि, महाभारत में सारथी मधुसूदन के रहने –न रहने का क्या फर्क पडता ? यकीनन, बिना सारथी-मारुती, के रथ की धज्जियां ही उड़ गई होती| प्रभु ने अपनी अलौकिक शक्ति को जैसे ही अलग कर बताया, धुरंधर धनुर्धारी अर्जुन के पाँव के नीचे की धरती खिसक गई|

वे अपनी ड्यूटी पूरी मुस्तैदी से निभाते रहे| पंगा तब तक न हुआ जब तक बकायदा जुए के फड वाले, सटोरिये, उठाईगीर, बुटलेगर सभी तय रिवाइज्ड रेट पर हप्ता पहुचाते रहे|

इधर कुछ दिनों से नए इलेक्शन बाद, दादा किस्म के विधायक के पालतू लोग, उभर आए| सब के सब नेता के ‘दाहिना हाथ’ होने की धमकी देने लगे|

‘हप्ता-महीना’ के व्यावहारिक लेन-देन के बदले कोइ थानेदार से ठेंगा बताए तो अव्यवहारिक स्तिथी का पैदा होना तो बनता ही है ?

थानेदार के पास लम्बे हाथ वाले कानून भी होते हैं, जिसे वे प्राय: जेब में घुसाए रहते हैं| जेब से हाथ निकला तो सामने वाले को खामियाजा तो भुगतना पडता है न ?

थानेदार ने बेरियर लगा दिया, गस्ती बढ़ा दी| एक-एक ‘दाहिने हाथ के दावेदारों’ को चुन-चुन के घरों से उठाने लगे| सब की कमाई का जरिया बंद होने की नौबत देख, ‘आका’ लोग मौक़ा ए अपराध में कूदे|

उन सबों को ‘उपर के आदेश की मजबूरी बता कर हाथ खड़े कर देना थानेदार का आजमाया हुआ नुस्खा था|

नेताओं में तहलका मचा, वे भाग कर मुखिया की शरण में गए|

मुखिया ने कहा, जहां तक हमारे थानेदार का एक्शन है, उस पर तो हम कुछ करने से रहे| सब ‘टू द पॉइंट’ वाला मामला है|

तुम लोग थानेदार को किसी दूसरे तरीके से घेर-फंसा सको तो मामला बनेगा| नेता लोग अपना सा चेहरा लिए लौट आए|

थानेदार का छुट-भइयों के स्टाइल में स्टिंग की कइ कोशिशे हुई| काइयां लोग पकड़ में कब आते हैं भला? वे भी पकड़ से दूर थे|

कहते हैं हर कुते का एक दिन जरूर आता है, हुआ भी वैसा, एक मरियल सी गाय को एक समुदाय विशेष ने बाइक से ठोक डाला| गउ-माता परलोक चली गई| इस लोक में कुहराम मच गया| दंगे भडक गए| थानेदार को हवाई फायर करने की नौबत आ गई|

कलेक्टर का दौरा हुआ| फरमान निकला, ला एंड आर्डर, का ठीक से अनुपालन नहीं हुआ, शहर में दंगे भडक जाने के पूरे आसार थे, थानेदार तुरंत प्रभाव से निलंबित क्र दिए गये|

केवल हमारा चेनल, पहली खबर देने का ठेका लिए फिरता है, सो हम हालात का जायजा लेने पहुचे| हमारे बाद दुसरे चेनल वाले भी कूद-कूद कर बताने लगे, थानेदार तुरंत प्रभाव से निलंबित|

हमने सस्पेंडेड थानेदार की ओर माइक किया|

हम लोग की इंटरव्यू लेने के पहले, इंटरव्यू देने वाले को खूब चढाते हैं| हमने उसकी प्रसंशा में कहा, जनाब आपके थाने का एक बेहतरीन रिकार्ड है| सभी कस्बों से कम चोरी -डकैती, लूट-मारपीट, ह्त्या-आगजनी, बलात्कार –किडनेपिंग के केस, आपके यहाँ पाए जाते हैं ऐसा क्यं, इसकी कोई खास वजह ?

थानदार ने अपने डंडे को ऊपर की तरफ इशारा करते हुए कहा, सब ‘ऊपर वाले’ की मेहरबानी है जनाब| एक काइयां-पन से लबरेज जवाब हमारे सामने था, जिसके दो-तीन मायने तो लग ही सकते थे|,

हमने पूछा, आपको एक सख्त थानेदार के रूप में जाना जाता है| अपराधियों की पतलून आपके थाने में आपके डर से गीली हो जाती है ?

नहीं जी, ये सरासर गलत है| हम तो बड़े प्यार से पुचकार के तहकीकात करते हैं| अब हमारे छूने मात्र से कोई अपने अधोवस्त्र को गीला होने से न रोक सके तो हम क्या कर सकते हैं ?

एक बात कहे ? ...... लोगों में जो कानून का भय होता है वही उनके पतलून को गीला करता है जी| वे अपनी मुछो पर हाथ फिराने लग गये|

अच्छा आखिरी सवाल, आपको सस्पेंड होने में कैसा लग रहा है ?

बहुत बढिया लग रहा है जी|

थानेदार हो, और सस्पेंशन-वस्पेशंन न हो, ये तो कोई बात न हुई जी|

बारी-बारी से प्रोग्राम बना होता है| ये अंदरूनी बात है|

हम ला-आर्डर वाले लोगो के ऊपर, ‘पबलिक के लिए मेसेज वाला कार्यक्रम’ भी चलता है| अभी सस्पेंशन हुआ है, चार्ज –शीट मिलेगा, इन्क्वारी होगी, रुटीन है जी रुटीन ?

हमने देखा थानेदार के न तो चहरे की हवाईया उडी. न शिकन आया, न कहीं जू के रेगने का निशाँ मिला, वे सर को तनिक भी नहीं खुजलाए|

ये हमारा पहला इंटरव्यू था, जिसमे थनदार के सामने, हम ज्यादा घबराए लग रहे थे|