कुछ भी नहीं हुआ अनोखा Surendra Raghuwanshi द्वारा कविता में हिंदी पीडीएफ

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कुछ भी नहीं हुआ अनोखा

कुछ भी नहीं हुआ अनोखा

इतिहास की मोटी- मोटी किताबेंभरी हैं घटनाओं के पन्नों सेसफ़ेद कागज़ पर लिखी हैं काली इबारतेंबड़े- बड़े भूचालों को झेलकर आगे बढ गई धरतीएक लम्बी दूरी तय करके आये हैं वहांजहाँ खड़े हैं हमकोई तूफ़ान नहीं आया हैआएगा तब भी कर लेंगे उपाय बचाब केसुनामी नहीं है विध्वंस की कोई ज्वालामुखी पिघल कर नहीं बह रहा हमारी बस्तियों की ओरआंधी नहीं है प्रलयंकारी कोई हमारे आसपाससत्ता परिवर्तन का अर्थ जन का पराजित हो जाना नहीं हैइस तरह अवसाद की गहरी खाई में नहीं गिर जाना चाहिएनिराशा की चादर ओढ़कर दुबक नहीं जाना चाहिए विस्तर मेंभ्रम के अँधेरे में भय के भूत से मत डरोइस भयंकर सर्द समय में बचाये रखना होगा अपने आत्मविश्वास की आग ।

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विभाजन

इन दिनों अफवाहों की गर्म लू के थपेड़ेलग रहे हैं मन के चेहरे पर निरंतरकि दो समुदायों को कर दिया जायेगा विभाजितया किसी एक को खदेड़ दिया जायेगा अन्यत्रक्या पानी में सेआक्सीजन और हाईद्रोजन अलग करके उसे पिया जा सकता हैइस तरह नदी के सारे पानी को विखंडित करना संभव हैनफरत के बीज अपने साथ लाने वाली हवाओं की पड़ताल जरूरी हैन कि आँख बंद करके उन पर विस्वास करनायहाँ साझे चूल्हे पर बनता है भोजनऔर भूख का कोई धर्म नहीं होताऔर धर्म विभाजन और क्रूरता का आधार भी नहीं हो सकता कभीअवसरवादी बाज़ार में बगुलासन मे खड़ेभ्रम ओर भय के ठग दुकानदारों से करो किनाराजब तक बरस रही हैं प्रेम और भाईचारे की बदलियामनुष्यता के धागों से निर्मित विस्वास के रिश्ते कोनहीं किया जा सकता भस्म किसी भी ताप सेकोई जंगली हिंसक जानवर नहीं घुस आया देश मेंकि पहचानकर घरों से निकाल-निकालकरखा जयेगा हमेंअफवाहों के समय में भय की रुई कोविस्वास की हवा से उड़ा दोकि नहीं तोडा जा सकता राम और रहीम के रिश्ते कोयह देश उसके नागरिकों का था और रहेगा ।

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जिसको हमने नहीं देखा

वह भी है दुनिया अपने पूरे अस्तित्व के साथ उपस्थितजिसको हमने नहीं देखा अभी तकजहाँ तक यात्रा कर पायीं आँखें बहुत कम हिस्सा है वह दुनिया के सत्य काऔर अनदेखा ही रह गया है सत्य का वैश्विक संसार अभी तकजल्दबाजी में नहीं बनाई जा सकती है कोई संतुलित राय किसी के बारे मेंपरिक्रमण पथ पर पृथ्वी का सूर्य के सामने वाला हिस्सा हीहो पाता है प्रकाशित और शेष अँधेरे में रहकररात का प्राकृतिक निर्माण करता हैऔर फिर विपरीत होता है इसी तरहआकाश गंगा में तो अज्ञात सौर मंडलों का जाल हैहम अभी तक नहीं खोज पाए जीवन वाले उस ग्रह कोजहाँ से आते रहते हैं एलियंस धरती परहमसे ज्यादा उन्नत विज्ञान को प्राप्त कर वे पहुँच गए हम तकज्ञान और आश्चर्यों का अथाह सागर है ये ब्रह्माण्डहम उसके तट पर बालू से खेल रहे बालक हैंलहरों के ठन्डे छींटे खुद पर पड़ने सेरोमांचित प्रसन्न और विस्मितक्षितिज तक हिलोर लेता हुआ नीला सागरअपनी ओर तेजी से आती हुई सफ़ेद उजलीऔर किनारे पर समाप्त होने के लिएधीरे-धीरे कम होती सुन्दर लहरों के साथअपनी अल्पज्ञता के बह गए तिनकों के बीचयह सागर की लहरों का शोर नहींजीवन के उत्सव का कर्णप्रिय संगीत हैंजहाँ स्वाभाविक ही थिरक जाने चाहिए पैर नृत्य के लिए ।

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माँ

शब्दों ने असमर्थता व्यक्त कर दीतुम्हारी कहानी कहने मेंवाणी सृष्टि के मूल को समझते हुएकह पा रही है केवल माँमाँ ! तुम्हारे लिए भावनाओं का प्रबल ज्वार है अव्यक्तेयहर बार खुद के प्राण जोखिम में डालकरतुम फिर जन्मीं हो अपनी संतान मेंअपने सुखों को तिरोहित करकेअपने बच्चों का पालन-पोषणतुम्हारे जीवन का एकमात्र लक्ष्य रहाममता का नीला विस्तृत आकाशवात्सल्य की बहती गहरी नदीप्रेम की तरलता लिए करुणा का अथाह सागर हो तुमसहनशीलता की धरती परतुम साहस का सर्वोच्च पर्वत हो माँ !पर ये क्या माँकुछ भवन बने हैं जिन पर लिखा है वृद्धाश्रमये भवन क्यों बढ़ते और भरते जा रहे हैंऔर अपना बेटा जीवन की इस सांध्य बेला मेंइसमें क्यों भर्ती कर रहा है माँ को क्या तुम्हारी ममता का सागर रिक्त हो गया उसके लिएया तुम अनुपयोगी और गैर ज़रूरी चीज हो गयी हो कबाड़ के सामान की तरहअब तुम्हें समझ लेना होगाकि स्वार्थी हवाएं उड़ा ले गईं ममता का छप्परतुम्हारे द्वारा आजीवन की गई करूणा और वात्सल्य की बर्षा का निर्मल जलसोख लिया अमानवीयता के क्रूर सूर्य नेवह अपने यौवन के ताप के अहंकार में भूल गया अपना प्राकृतिक भ्रमण पथसंवेदनाओं की हवाएं तो कैद होकर रह गयीं कहीं

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जहाज

दुनिया के समंदर मेंजीवन के जहाज को चलना हैसमय के तूफानों के बीचकाली घटाएँ आसमानी चादर हैंबिजली की चमककाली रात में पथ प्रदर्शक हैऊपर उठती पानी की लहरेहमारे अहंकार का प्रतिकार हैंश्रवण शक्ति बाधित करता लहरों का तूफानी शोरहमारे धैर्य की परीक्षा का समय हैइन विषम परिस्थितियों में भी मंथर गति से चल रहा है जहाजइस उम्मीद के साथ कि कहीं आगे जाकर थम जायेगा तूफ़ानकि पार कर जायेंगे भय का खारापनकि चलने के आलावा और कोई चारा नहीं

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सूरज

उदासियों की काली पहाडियों के पीछे से निकलता है सूरज हर रोजऔर काली कठोर चट्टानों के ऊपर आकरछाप देता है अपना सुनहरा अक्सनर्म और गर्म थपकी देकर जैसे जगाता है उन्हेंकि सदियों की नींद को तोड़ने का मुकम्मल वक़्त है येहवा एक सहयोगी की तरहआवेग के साथ रोज उडा देती है कूड़ा करकट बारिश भी नहलाकर यथा समयहर चोटी को बना देती है सध्य स्नाताधुल जाना तय होता निराशाओं की धूल कासमय के विस्तृत सागर को देखने के लिए चाहिएआकाश की ऊँची और तरल दृष्टिसागर भी जानता है पारस्परिक सम्बद्धता मेकि उसकी गहरी तरलता भी आकाश से ही आती हैपूरी दुनिया और ब्रह्माण्ड दरअसल युग्मों की जटिल संरचना हैजिसको बहुत सरलता में समझा जा सकता हैपारस्परिक सम्बद्धता के मीठे बंधन बहुत प्राकृतिक और शाश्वत हैंहम भी उस पृथ्वी के निवासी हैंजो सूर्य के आकर्षण की कक्षा में घूम रही है निरंतर ।

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औचित्य

रैलियों के रेले, आश्वासनों के शब्जबागऔर भाषणों के मुलम्मेदार आकर्षण के बीचआखिर वोटों से भर गए वोटिंग मशीनों के पेटजबकि भूखे रह गए रोटी की जरूरत वाले लोगलोग समझ नहीं पाये चक्रव्यूह रचना का षड्यंत्रएक ही देश के जीवन स्तर में भयानक अंतर की खाई को पाटने आखिर कौन कल्पित महानायक आएगाप्रश्नों की पोटली कर्ज की गठरी के साथ लादे चल रहे हैं देशवासीरोटी पानी बिजली सडकों रोजगार फसलों के उचित दाम मिलने जैसे मुद्दे भीक्या बने रहना चाहिए था अब तकमुद्दा ये है कि ये मुद्दे क्यों हैंदेश के शरीर से जोंक की तरह चिपके हुए क्या इसके आगे कोई राह नहींन्याय के जल से प्लावित बदलियों कोकौन सी अमानवीय हवाएं उड़ा ले गईंदेश के आसमान से बाहर धरती पर बरसने से पहले हीफिर रह गए खेत सूखे , खलिहान सूनेउदासी में डूवे घर और कोरी उम्मीद में आसमान की ओर ताकती आँखें अनगिनितजब क्रूर अमानवीय और निर्दयी हो जाये राजातब राज दरवार मे न्याय हेतुबार-बार फरियादी घंटा बजाने का भी क्या औचित्य है ।

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अनदेखा करो

महत्वपूर्ण सत्य को अनदेखा करोचर्चा ही मत करोसामना होने पर मुंह फेरकर बदल लो रास्तानहीं करता जो आपके चरण प्रच्छालन जो आपका चारण होने से इन्कार करता हैंमान्यता मत दो उसकोआरक्षित करके सभागृह भाटों और नटों के लिएप्रवेश वर्जित कर दो उपयुक्त पात्रों का भीतुम्हारे विशाल वटबृक्ष रहते हुएकैसे पनप सकता है कोई पौधाया हो सकता है शामिल मजबूत बृक्ष बनने की प्रक्रिया मेंजो आपकी दृष्टि की परिधि से बाहर हैस्वीकार ही मत करो उसका अस्तित्वजो अपनी प्रजाति के नहीं ऐसे फूलों को सुगंध विहीन और असुंदर कहोगरियाओ उन्हें कांटो का सहगामी कहकरतपते हुए सूरज को मत मानो सूरजहर उस चीज का होना मत करो स्वीकारजो आपके अहंकार को तुष्ट और पुष्ट नहीं करतीअपने सिर को छिपाकर बालू में पैर ऊंचे करकेप्रतीक्षा करो आसमान गिरने कीकि आसमान गिरेगा तो उसे पैरों पर झेल लेंगे आपआखिर शुतुरमुर्गों का कोई क्या बिगाड़ सकता है ।

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असहज

ज्यादा प्रेम प्रदर्शित करोगेतो शक के दायरे में ले लिए जाओगेचाहे स्वाभाविक ही क्यों न हो तुम्हारा प्रेममान लिया जाएगा उसे अस्वाभाविक और असामान्यसंदिग्ध माना जा सकता है ह्रदय के विशुद्ध भावों को निष्कपटता की सरल रेखा मेंइस तरह नहीं प्रगट किये जाते उद्गार जैसे तुम कर देते हो हूबहूइसे अशिष्टाचार की श्रेणी में रखा जाता हैआवरण के द्वारा सुन्दर बनाकर प्रस्तुत करने की कला से अनभिज्ञ हो तुमअनुपलब्ध और दूर रहोगे आवरणों के भीतरविशिष्ट और चाणक्य बनकरबने रहोगे आकर्षण का केंद्रऔर चले आयेंगे सिर की ओर चमकीले ताज़जो विद्वान हैं वे जानते हैंगहरे पानी में भी वक्र गति से सफलतापूर्वक तैरना और अंततः विजयी होकर किनारे पर लग जानाअब अति सरलता मूर्खता का पर्याय असफलता की गारंटी हैबाज़ार सफल होने के लिए किसी भी स्तर तकगिर जाने की छूट दे रहा सरेआमसामाजिक स्वीकृति तो माला लेकर खड़ी है पक्ष में चारण और भाट गा रहे हैं यश गानदलाल कर रहे हैं पुष्प बर्षाचंद सिक्कों की खनक के लिएविदूषक मस्त होकर कर रहे हैं उनका मनोरंजनशासकों द्वारा दुनियाभर के कुओं में मिला दी गई है भाँग और प्रजा नशे में चूर है ।

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रथ

यूं ही नहीं कहा गया तुम्हें गृहस्थी के रथ के दो पहियों में सेएक महत्वपूर्ण पहियातुम्हारे बगैर चल ही नहीं सकतीगृहस्थी और जिन्दगी जी गाड़ीस्त्री तुम्हें दरकिनार करके रचा गया सौंदर्यशास्त्र सच की गाढ़ी स्याही से नहीं लिखा गया चरमराकर चल रहा है रथआजीवन यात्रा लम्बी और अंतहीन हैइसलिए मरम्मत की जरूरत भी हैऔर प्रेम की अनुकूल वयार की भीनीले आकाश में छुटपुट सफ़ेद बादलों के नीचेअपनत्व की सुगन्धित हवा मेंतुम्हारे साथ ये सफ़र बहुत सुहाना हैतुम साथ हो तो पहाड़ियों के बीच निर्जन पथ भी शुकून देता हैकिसी एक दिन की कथा नहींसमर्पित है तुम्हेंजीवन का पूरा उपन्यास ही ।

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